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Friday, 5 September, 2025
होममत-विमतभारत में ऑनलाइन गेमिंग पर बैन दिखाता है कि आज का फलता-फूलता सेक्टर कल का शिकार बन सकता है

भारत में ऑनलाइन गेमिंग पर बैन दिखाता है कि आज का फलता-फूलता सेक्टर कल का शिकार बन सकता है

नीतियों की यह अनिश्चितता भारत से प्रतिभाशाली लोगों के बाहर जाने (ब्रेन ड्रेन) को तेज़ कर रही है, खासकर टेक और डिजिटल इनोवेशन में, जहां कुशल पेशेवर विदेशों में अधिक स्थिर माहौल खोज रहे हैं.

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लोकसभा में महज़ छह मिनट और राज्यसभा में कुछ और मिनट लगे और एक स्थापित इंडस्ट्री खत्म हो गई. सिर्फ 48 घंटे में ऑनलाइन गेमिंग के प्रमोशन और रेगुलेशन से जुड़ा 2025 का बिल पास होने से 2,00,000 प्रत्यक्ष कर्मचारी प्रभावित हुए, 23,613 करोड़ रुपये का निवेश डूब गया, 4,500 करोड़ रुपये से ज़्यादा के विज्ञापन और 20,000 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष टैक्स पर असर पड़ा.

यह बिल, जो अब कानून बन चुका है, संसद में बिना ड्राफ्ट जारी किए, सार्वजनिक राय लिए, हितधारकों से बातचीत किए या कम से कम चेतावनी दिए बिना ही पेश कर दिया गया. कहा जा रहा है कि यहां तक कि सहयोगी दलों को भी इस कदम की भनक नहीं थी. एक दशक पुरानी, संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित इस इंडस्ट्री को अब बंद करने को कहा गया है और चेतावनी दी गई है कि अगर नियमों का पालन नहीं किया तो कंपनी और उसके कर्मचारियों पर भी आपराधिक मुकदमे चलेंगे. सरकार का तर्क है कि यह कानून पब्लिक हेल्थ की रक्षा करेगा और ऑफशोर अवैध प्लेटफॉर्म्स पर रोक लगाएगा, लेकिन डिजिटल सेक्टर में किसी भी तरह का बैन हमेशा समस्या को कई गुना बढ़ाता ही साबित हुआ है. इसका तुरंत असर आर्थिक अव्यवस्था, यूज़र्स के व्यवहार में बदलाव और सामाजिक नुकसान के रूप में सामने आएगा.

सरकार ने जिस अपारदर्शी रणनीति को अपनाया है, वह भारत में नीति निर्माण की गंभीर दिशा को उजागर करता है. यह अनिश्चितता सिर्फ ऑनलाइन रियल मनी गेमिंग तक सीमित नहीं रहेगी, बल्कि भविष्य में हर सेक्टर की नीतियों के लिए मिसाल बनेगी. इतनी तेज़ी से और बिना सलाह-मशविरा किए किया गया यह कानून केवल एक रेगुलेटरी गलती नहीं है, बल्कि यह चेतावनी है कि भारत की नीति व्यवस्था कितनी अप्रत्याशित होती जा रही है. इससे निवेशकों का भरोसा डगमगा सकता है, घरेलू बिजनेस का विश्वास टूट सकता है और प्रतिभाओं व कारोबार का ब्रेन ड्रेन और ज़्यादा तेज़ हो सकता है.

नीति की जल्दबाज़ी से बढ़ी आर्थिक अव्यवस्था

तुरंत दिख रहा आर्थिक असर बेहद चौंकाने वाला है और यह बिल की दूरदर्शिता की कमी को दिखाता है. 2,00,000 सीधे रोजगार दांव पर लगने के अलावा इसका असर फिनटेक, विज्ञापन और कंटेंट क्रिएशन जैसी सहायक इंडस्ट्रीज़ पर भी होगा. सालाना 20,000-25,000 करोड़ रुपये का जीएसटी राजस्व और 1,080 करोड़ रुपये (वित्त वर्ष 2024) का टीडीएस खत्म हो जाएगा. यह सब ऐसे समय में होगा जब भारत का वित्तीय घाटा 15.77 लाख करोड़ रुपये है, जो जीडीपी का 4.8% है.

लेकिन असली खतरे की घंटी निवेशकों की हताशा है. रियल मनी गेमिंग में 2.7 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) और 2.8 अरब डॉलर का स्टार्टअप फंडिंग अब अधर में लटक गई है. यह अनिश्चितता भारत की नीति व्यवस्था के उस पैटर्न को दर्शाती है, जहां अचानक लिए फैसले लंबे समय के निवेश को हतोत्साहित करते हैं. जैसे 2019 में ई-कॉमर्स एफडीआई नियमों ने ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स के लिए इन्वेंट्री मॉडल पर रोक लगाई थी, जिससे अमेरिका-भारत टेक निवेश में गिरावट दर्ज हुई और कंपनियों ने रेगुलेटरी झटकों को मुख्य वजह बताया. इसी तरह, वोडाफोन केस जैसे पुराने टैक्स विवादों ने भी एफडीआई प्रवाह को प्रभावित किया था. अध्ययनों में दिखा है कि आर्थिक नीतियों की अनिश्चितता भारत जैसे उभरते बाज़ारों में एफडीआई को 30% तक घटा देती है. 2025 की Kearney FDI Confidence Index में भी निवेशकों ने भारत में रेगुलेटरी जटिलता और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को बड़ी चिंता बताया है, जिससे वैश्विक अस्थिरताओं (जैसे अमेरिका के टैरिफ) के बीच अरबों डॉलर का निवेश हट सकता है.

बिज़नेस, खासकर डिजिटल इकोनॉमी, स्थिरता पर फलते-फूलते हैं. हितधारकों से चर्चा किए बिना और प्री-लेजिस्लेटिव कंसल्टेशन पॉलिसी को नज़रअंदाज़ कर पास किया गया यह बिल एक डराने वाला संदेश देता है: आज का सफल सेक्टर कल का शिकार बन सकता है. इंडस्ट्री ने इस पर गंभीर चिंता जताई है और मामला अदालत तक जा सकता है, लेकिन इससे पहले ही यह कदम पड़ोसी डिजिटल क्षेत्रों पर असर डाल सकता है, जहां भारत वैश्विक नेतृत्व चाहता है, पर निवेशक ऐसी अस्थिरता की वजह से हिचकिचा सकते हैं.

प्रतिभा का पलायन और चेतावनी

बड़ी तस्वीर में देखें तो नीतियों की यह अनिश्चितता भारत के ब्रेन ड्रेन (प्रतिभा पलायन) को और तेज़ कर रही है. खासकर टेक्नोलॉजी और डिजिटल इनोवेशन के क्षेत्र में जहां कुशल पेशेवर अब विदेशों में अधिक स्थिर माहौल तलाश रहे हैं. 2025 के आंकड़े साफ इशारा करते हैं—इस साल ही दुनियाभर में 1,05,000 से ज्यादा टेक कर्मचारियों की छंटनी हुई, जिनमें से 20 प्रतिशत भारत में हुई है. इसके चलते हज़ारों इंजीनियर और डेवलपर विदेश चले गए. गोल्डमैन सैक्स की रिपोर्ट बताती है कि पीएचडी-स्तर के एआई शोधकर्ताओं में भारत की हिस्सेदारी बेहद कम है क्योंकि प्रतिभाएं अमेरिका और यूरोप की ओर जा रही हैं, जहां उच्च-कुशल लोगों का पलायन 10 से 50 प्रतिशत तक है. हर साल हज़ारों भारतीय इंजीनियर और वैज्ञानिक सिलिकॉन वैली जाते हैं क्योंकि देश में उन्हें अपर्याप्त रिसर्च फंडिंग, नौकरशाही अड़चनें और अस्थिर नीतियों जैसी दिक्कतें झेलनी पड़ती हैं.

यूएन ट्रेड एंड डेवलपमेंट की टेक्नोलॉजी एंड इनोवेशन रिपोर्ट 2025 चेतावनी देती है कि अगर प्रतिभा को रोकने के लिए स्थिर नीतियां नहीं बनाई गईं, तो एआई और टेक सेक्टर में और ज्यादा ब्रेन ड्रेन होगा और इनोवेशन हब अमेरिका या सिंगापुर जैसे देशों में शिफ्ट हो जाएंगे. ऑनलाइन गेमिंग बैन के बाद जिन कंपनियों में कर्मचारियों को नौकरी से निकाला गया है, उनके डेवलपर भी इस पलायन में शामिल हो सकते हैं. अगर वे यहीं रहे, तो भी आईटी जॉब मार्केट पर दबाव बढ़ेगा, जो पहले से ही छंटनियों से जूझ रहा है और संभव है कि सैलरी स्टैंडर्ड भी नीचे चले जाएं. यह न केवल भारत की ह्यूमन कैपिटल को कमजोर करेगा, बल्कि 2028 तक 1 ट्रिलियन डॉलर की डिजिटल इकॉनमी बनने की महत्वाकांक्षा को भी झटका देगा.

सोच-समझकर नीति बनाने की ज़रूरत

भारत का डिजिटल भविष्य अब एक मोड़ पर खड़ा है. इस बिल का कठोर तरीका सुधार से ज्यादा नुकसान कर सकता है, भूमिगत अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देगा और भरोसा कमज़ोर करेगा. यह केवल गेमिंग का संकट नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए चेतावनी है. सरकार जिस गोपनीयता के साथ इस बिल को लाने पर गर्व जता रही है, उद्योग जगत को अंधेरे में रखकर, वह असली मायनों में पायरिक विजय है. विधायी जांच और स्टेकहोल्डर से बातचीत को दरकिनार करना लोकतांत्रिक शासन की बुनियाद को कमज़ोर करता है और इससे जनता का भरोसा, कारोबारी विश्वास और आर्थिक स्थिरता सभी प्रभावित हो सकते हैं. निवेशकों की अव्यवस्था और STEM सेक्टर से ब्रेन ड्रेन रोकने के लिए जरूरी है कि नीति-निर्माण में पारदर्शिता हो, सभी पक्षों से परामर्श लिया जाए और सुधार तथ्यों पर आधारित हों. अगर ऐसा नहीं हुआ, तो यह मिसाल आने वाले निवेश और प्रतिभा दोनों को डरा सकती है, जो मजबूत अर्थव्यवस्था बनाने के लिए ज़रूरी हैं. गेमिंग सेक्टर की यह स्थिति सबके लिए सबक है: पॉलिसी की प्रेडिक्टेबिलिटी कोई विलासिता नहीं है, यह विकास के लिए अनिवार्य है.

(कार्ति पी चिदंबरम शिवगंगा से सांसद और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य हैं. वे तमिलनाडु टेनिस एसोसिएशन के उपाध्यक्ष भी हैं. उनका सोशल मीडिया हैंडल @KartiPC है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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