scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतकोरोनावायरस के खिलाफ भारत की लड़ाई में सबसे जरूरी अस्त्र 'डेटा' नदारद है

कोरोनावायरस के खिलाफ भारत की लड़ाई में सबसे जरूरी अस्त्र ‘डेटा’ नदारद है

केवल कुछेक शहर और जिले ही उस तरह के कोविड के आंकड़े प्रकाशित कर रहे हैं जोकि, गृह मंत्रालय के अनुसार, राज्यों को अपने निर्णय के लिए काम में लेने चाहिए.

Text Size:

लॉकडाउन 3.0 के अंतिम घंटों में जब विभिन्न राज्य फिर से कामकाज़ की शुरुआत करने की तैयारी कर रहे थे, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने पाबंदियों में छूट संबंधी दिशा-निर्देश जारी किया. जबकि गृह मंत्रालय के पत्र में कहा गया कि लॉकडाउन 4.0 में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के ज़िलों को रेड, ऑरेंज और ग्रीन ज़ोन में बांटने का अधिकार होगा.

पत्र में छह मापदंडों की सूची दी गई और इसमें कहा गया कि अगर कोई ज़िला या शहर ‘वांछनीय’ स्तर को हासिल करता है, तो राज्य सरकार उसे खोलने पर विचार कर सकती है. लेकिन इसमें एक समस्या है— केवल कुछेक शहर और जिले ही उस तरह के आंकड़े प्रकाशित कर रहे हैं जोकि, गृह मंत्रालय के अनुसार, राज्यों को अपने निर्णय के लिए काम में लेने चाहिए.

कोविड-19 से जुड़े भारत के प्रयासों के संबंध में यही कहानी बारंबार और विविध रूपों में दोहराई गई है और इस तरह फैसले के लिए ज़रूरी बिल्कुल बुनियादी सूचनाएं भी उपलब्ध नहीं हैं. ये रहे वो पांच अहम क्षेत्र जिनसे जुड़े आवश्यक आंकड़े हमारे पास नहीं है.

1. टेस्टिंग

भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने गुरुवार को 9 बजे सुबह के अपने दैनिक अपडेट, जोकि कई सप्ताहों से जारी सिलसिला है, में टेस्टिंग के अहम मुद्दे पर कहा, ’21 मई 2020 के 9 बजे पूर्वाह्न तक कुल 26,15,920 नमूनों की जांच की गई. पिछले 24 घंटों में 1,03,532 नमूनों की जांच की गई.’

इसमें ये नहीं बताया गया है कि कितने नमूने पॉजिटिव और कितने निगेटिव पाए गए और इनमें से कितनी जांच पहले से ही पॉजिटिव रोगियों से संबंधित हैं. इसमें राज्यवार टेस्टिंग के आंकड़े भी नहीं हैं, ना ही इस बारे में जानकारी कि जिन लोगों की टेस्टिंग की गई उनमें से कितनों में बीमारी के बाह्य लक्षण भी थे या कितने पूर्व में पॉजिटिव पाए गए व्यक्तियों के संपर्क में आए लोग थे. जब तक हम ये नहीं जानते कि टेस्टिंग में शामिल आबादी देश का या उच्च जोख़िम वाले समूहों का प्रतिनिधित्व करती है या नहीं, हम ये नहीं तय कर सकते कि टेस्टिंग का हमारा अभियान सही दिशा में जा रहा है या नहीं.


यह भी पढ़ें: चीन का मानना है कि भारत अक्साई चीन वापस चाहता है, इसीलिए लद्दाख में ‘एलएसी’ पार किया


सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रेषित अपने पत्र में गृह मंत्रालय ने सुझाव दिया था कि ज़िलों या शहरों को रेड, ऑरेंज या ग्रीन ज़ोन में डालने के लिए उनके टेस्टिंग अनुपात और नमूनों के पॉजिटिव पाए जाने की दर पर विचार किया जाना चाहिए. अभी तक सभी राज्य व्यवस्थित ढंग से दैनिक टेस्टिंग डेटा जारी नहीं कर रहे हैं, ज़िलों की तो बात ही छोड़ दें.

2. क्लिनिकल प्रबंधन

हम भारत के कोविड-19 मरीजों के क्लिनिकल प्रबंधन के बारे में इससे अधिक कुछ नहीं जानते हैं कि टेस्टिंग में कितने पॉजिटिव मिले, बाद की जांच में कितने निगेटिव पाए गए और कितने लोगों की मौत हो गई. हमें ये नहीं पता कि रोगियों को कितने दिनों तक अस्पतालों या अन्य स्वास्थ्य केंद्रों में रहना पड़ा और उनके लिए किस तरह के क्लिनिकल प्रबंधन को काम में लिया गया.

बुधवार को स्वास्थ्य मंत्रालय के संयुक्त सचिव लव अग्रवाल ने गहन उपचार से संबंधित एक चार्ट जारी किया, लेकिन उसमें सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों के अलग आंकड़ों और उन मामलों के नतीजों की जानकारी नहीं थी.

स्रोत: पीआईबी | भारत सरकार

3. रोगियों की जनसांख्यिकी

हम भारत के कोविड-19 रोगियों की जनसांख्यिकी के बारे में भी कुछ नहीं जानते, सिवाय इसके कि अग्रवाल द्वारा बीच-बीच में जारी जानकारियों में मरीजों की संख्या को उम्र और लिंग के आधार पर बांटा गया होता है. उदाहरण के लिए, मीडिया की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि 3 मई तक महाराष्ट्र में कोविड से संबंधित मौतों में 40 प्रतिशत से अधिक का संबंध मुस्लिम समुदाय से था.

भारत में इस महामारी की प्रकृति को समझने को लिए ये जानना अहम होगा कि क्या मरीजों या मरने वालों में गरीबों और हाशिए पर पड़े समुदायों का प्रतिनिधित्व औसत से अधिक है. उदाहरण के लिए, अमेरिका में अफ्रीकी-अमेरिकियों और ब्रिटेन में भी गैर-श्वेतों पर कोविड की मार अधिक पड़ी है.

4. एसएआरआई

आईसीएमआर अपने वायरस रिसर्च एंड डाइगनोस्टिक लैबोरेटरी नेटवर्क्स (वीआरडीएलएन) के तहत 100 से अधिक जांच प्रयोगशालाएं संचालित करती है जिनमें अन्य बीमारियों के साथ ही सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी इलनेस (एसएआरआई) की व्यवस्थित तरीके से जांच की जाती है. भारत में सार्स-कोव2 (कोविड) के बारे में पहला रिसर्च इसी नेटवर्क से आया, आईसीएमआर के वैज्ञानिकों ने 15 फरवरी के बाद वीआरडीएलएन के ज़रिए 41 जांच केंद्रों पर एसएआरआई के रोगियों की कोविड-19 के लिए जांच की और सामुदायिक संक्रमण के कुछ शुरुआती संकेत प्राप्त किए.


यह भी पढ़ें: पीएम केयर्स फंड में दान देने वाले हुए कम, पहले हफ्ते में आए थे 6500 करोड़, अगले दो महीने में जमा हुए महज़ 3500 करोड़


लेकिन एसएआरआई के बारे में हम बस इतना ही जानते हैं, भले ही ये बात ज़ाहिर है कि आईसीएमआर एसएआईआई के मामलों की निगरानी कर रही है. यदि इससे संबंधित डेटा को सार्वजनिक किया जाता, जैसा ब्राज़ील करता है, तो भारतीय वैज्ञानिक जान पाते कि क्या वायरस की मौजूदगी के शुरुआती संकेत भी मौजूद थे (जैसा कि ब्राज़ील ने पाया), या क्या हम अभी भी मौजूदा मामलों को पकड़ नहीं पा रहे हैं.

5. एसआरएस के मौत के आंकड़े

अधिकांश देश ‘अतिरिक्त मौतों से संबंधित डेटा’ — हाल के दिनों में तमाम वजहों से हुई मौतों के आंकड़े— एकत्रित करने के तरीके ढूंढ रहे हैं ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि कोविड-19 से हुई कुछ मौतें सामने आने से रह तो नहीं गईं. उदाहरण के लिए, ब्रिटेन के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय का अनुमान है कि 13 मार्च और 8 मई के बीच सिर्फ इंग्लैंड और वेल्स में 49,353 अधिक मौतें हुईं जिनमें से 37,925 कोविड से संबंधित थीं. जबकि उसी अवधि के लिए सरकारी आंकड़ों में पूरे ब्रिटेन में मात्र 34,796 मौतें होने की बात कही गई थी.

भारत के महापंजीयक कार्यालय के तहत नमूना पंजीयन प्रणाली (एसआरएस) में सैंपल स्थलों के जन्म और मृत्यु के आंकड़ों का रिकॉर्ड रखा जाता है. इसके अतिरिक्त मुंबई जैसे बेहतर प्रबंधन वाले शहर वहां सप्ताह भर में दर्ज कुल मौतों का सटीक आंकड़ा रखते हैं. भारत को तत्काल इस आंकड़े को सार्वजनिक करना चाहिए ताकि इस बारे में सही अनुमान लगाया जा सके कि क्या मृत्यु दर बढ़ी है और क्या कुछ अतिरिक्त मौतें कोविड-19 के आंकड़ों में जोड़ी जा सकती हैं.

(लेखिका चेन्नई स्थिति डेटा पत्रकार हैं. ये उनके निजी विचार हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments