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Wednesday, 20 November, 2024
होममत-विमतरोम ने 'ब्रेड और सर्कस' के जरिए जैसे लोगों को मूर्ख बनाया वैसे ही भारत कर रहा है: जिग्नेश मेवाणी

रोम ने ‘ब्रेड और सर्कस’ के जरिए जैसे लोगों को मूर्ख बनाया वैसे ही भारत कर रहा है: जिग्नेश मेवाणी

प्राचीन रोम के लोग 'रोटी और सर्कस' की मिसाल देते थे कि कैसे लोगों को थोड़ा सा भोजन और भरपूर मनोरंजन दिया जा सकता है. भारतीयों को भी उसी तरह खुराक दी जा रही है और बेवकूफ बनाया जा रहा है.

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गत सप्ताह कोविड संक्रमण के रोजाना 3.5 लाख से अधिक नए मामले सामने आए और 3,000 से अधिक मौतें हुईं, जो कि माना जाता है कि असल से कम संख्या में दर्ज हो रही हैं. हताश मरीज अस्पताल के बेड या ऑक्सीजन के इंतजार में आखिरी सांस ले रहे हैं. एक चिता की आग पूरी तरह बुझने से पहले ही उसकी जगह दूसरी की तैयारी शुरू हो जाती है. बेड, प्लाज्मा, दवा और ऑक्सीजन सिलेंडर की तलाश में लाचार जनता सड़कों से लेकर सोशल मीडिया तक हर जगह रो रही है. कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर में भारत का जनस्वास्थ्य ढांचा ध्वस्त हो गया, या कहें कि उसकी जर्जरता उजागर हो गई. हर दिन, हम कोविड की तबाही में एक कदम और आगे बढ़ रहे हैं. भारत की भयावह त्रासदी दुनिया के सामने है. दुनिया हमारे लिए, हमारे साथ आंसू बहा रही है, जब हजारों भारतीय एक मानव निर्मित त्रासदी के शिकार बन रहे हैं, जिसे कि आसानी से टाला जा सकता था. यह त्रासदी एक अहंकारी, उग्र राष्ट्रवादी, और लापरवाह सरकार के शासन में सामने आई है, जो ऐसे समय अतिराष्ट्रवाद में लिप्त थी, जब जनता सांस लेने के लिए तड़प रही थी.

क्या ‘मोदी है तो मुमकिन है’ से उनका यही मतलब था? क्या यही ’अच्छे दिन’ हैं, जिनका कि उन्होंने वादा किया था? एक देश मानवीय संकट से जूझ रहा है, ताकि उसका प्रधानमंत्री दबंग की अपनी छवि बनाए रख सके. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बार कहा था कि वह चाहते हैं कि उनकी सरकार की आलोचना की जाए क्योंकि ‘आलोचना लोकतंत्र को मजबूत बनाती है’. लेकिन उनकी नाकामियों को छुपाने के लिए हमारी आवाज़ों को दबाया जाता है. जब हमने सवाल किया कि हमारे परिवार के लोगों को क्यों कोरोना से मरना पड़ रहा है, तो सरकार की पहली प्रतिक्रिया थी ट्विटर से हमारी बातों को हटाने के लिए कहना. हमने गरीबी और भ्रष्टाचार और नफरत से आज़ादी मांगी, हमें लाठियां मिली. हमने ज़मीन मांगी, हमें मंदिर मिला. अब हम ऑक्सीजन मांग रहे हैं, और हमें भीड़ भरी चुनावी रैलियां मिलीं. हम पागलपन के माहौल में जी रहे हैं.


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ये हमारी ज़िंदगी है, तुम्हारी सांप्रदायिक राजनीति नहीं

महामारी के प्रकोप के बीच, उत्तराखंड में हिंदू-राष्ट्रवादी सरकार की निगरानी में कुंभ मेले का आयोजन किया गया, जिसके तहत हरिद्वार में गंगा नदी में डुबकी लगाने के लिए 35 लाख से अधिक श्रद्धालु एकत्र हुए. हजारों लोग संक्रमित हो गए, जिससे कुंभ मेले ने सुपरस्प्रेडर आयोजन का रूप ले लिया. फिर भी सरकार या उसके गोदी मीडिया में से किसी ने भी इसके खिलाफ बात नहीं की, बावजूद इसके कि संक्रमित होने वालों में हिंदू तीर्थयात्री सबसे आगे थे – मध्यप्रदेश में, कुंभ से लौटे 61 लोगों की जांच में 60 कोविड पॉजिटिव पाए गए, जबकि 22 अन्य को ढूंढा ही नहीं जा सका.
पिछले साल मार्च में, जब दुनिया भर में महामारी फैलने लगी थी, तब मुस्लिम संगठन तबलीगी जमात ने दिल्ली में अपना वार्षिक सम्मेलन आयोजित किया था. उसके कई सदस्य बाद में कोविड पॉजिटिव पाए गए थे. जैसे ही नए मामले सामने आए, सांप्रदायिक नफरत पर आधारित एक मुस्लिम विरोधी कथानक पूरे देश में वायरस से भी अधिक तेजी से फैला दिया गया. महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और हिमाचल प्रदेश विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष राजीव बिंदल ने इन लोगों को ‘मानव बम’ तक करार दिया, जबकि भाजपा समर्थक समाचार चैनलों ने तबलीगियों को यह कहकर अपमानित किया कि वे भारत में ‘कोरोना जिहाद’ फैला रहे हैं. किसी ने भी इस आयोजन की अनुमति देने वाले केंद्र और दिल्ली सरकारों की अक्षमता की चर्चा तक करने की ज़रूरत नहीं समझी. उनकी नाकामियों को छिपाने के लिए उन्हें मुस्लिम समुदाय के रूप में बलि का बकरा जो मिल गया था.

हाल ही में, प्रतिष्ठित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) तब राष्ट्रीय शर्म का विषय बन गया जब उसने केंद्र सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा वित्तपोषित अध्ययन कराने का फैसला किया कि क्या गायत्री मंत्र, हिंदू धर्म की एक धार्मिक स्तुति, का जाप करने से कोविड-19 का इलाज हो सकता है. उससे पहले, हम भाजपा नेताओं और समर्थकों से कथित प्रभावी उपचारों के बारे में सुन चुके थे, जिनमें से गोमूत्र पीना और ‘गो कोरोना गो’ का जाप करने जैसे उपाय शामिल थे. दुख की बात ये है कि इन उपायों में से कोई भी कामयाब साबित नहीं हुआ. ये राष्ट्रीय स्वास्थ्य आपदा के समय में हिंदू संस्कृति का प्रचार करने के कपटी तरीके हैं, और ये दुनिया की नजरों में भारत की वैज्ञानिक मनोवृति पर भी सवाल खड़ा करते हैं.

प्राचीन रोम के लोग ‘रोटी और सर्कस’ की मिसाल देते थे कि कैसे लोगों को थोड़ा सा भोजन और भरपूर मनोरंजन दिया जा सकता है. भारतीयों को भी उसी तरह खुराक दी जा रही है और बेवकूफ बनाया जा रहा है. जब कोविड से होने वाली मौतों की संख्या प्रतिदिन बढ़ती जा रही है, विजयवादी राष्ट्रवादी मीडिया सवाल उठाने की जगह जश्न में लगा हुआ है. जब हमारे लोग मर रहे हैं, तो ऐसे में अर्नब गोस्वामी जैसे पत्रकार व्यवसायियों को इस बात पर चर्चा के लिए आमंत्रित कर रहे हैं कि कैसे कोविड उपरांत भारत में निवेश का एक शानदार अवसर होगा. लाभ को लेकर सार्वजनिक विमर्श किया जा रहा है. सरकार के इन भोंपुओं ने, अपने आकाओं की ही तरह, इस देश के लोगों को धोखा दिया है.

पिछले हफ्ते, अमित शाह पश्चिम बंगाल में अपनी चुनावी रैलियां करने के बाद एक अस्पताल का उद्घाटन करने के लिए अहमदाबाद आए थे. अस्पताल कुछ दिनों से तैयार पड़ा था जहां कि सैकड़ों कोविड रोगियों का उपचार हो सकता था. स्थानीय मीडिया ने उद्घाटन को एक बड़ी खबर के रूप में पेश किया, लेकिन इसमें हुई देरी के बारे में किसी ने नहीं पूछा. क्या मरीज़ों के उपचार की तुलना में इस सरकार के लिए प्रचार के मौके अधिक महत्वपूर्ण हैं? अगले दिन, अस्पताल खाली था और वहां इलाज के लिए आने वालों को कोई मदद नहीं दी जा रही थी. गुजरात के एक विधायक के रूप में, यह सब देखना असहनीय है.


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स्वास्थ्य आपदा के दौरान एक विधायक क्या कर सकता है?

कोविड पॉजिटिव पाए जाने पर मुझे, एक विधायक के रूप में, अस्पताल में भर्ती होने का सौभाग्य मिला. अस्पताल के बेड पर लेटे होने के दौरान जब मैं देश की स्थिति को समझने की कोशिश कर रहा था, मुझे हृदयविदारक वीडियो देखने को मिले कि कैसे लोग अपने प्रियजनों के वास्ते मदद जुटाने के लिए बेताब थे. दम तोड़ते पति के सीने को पंप करने की कोशिश करती एक बेबस पत्नी, अस्पताल के बेड के इंतजार में एंबुलेंस में मृत पिता के लिए बेटी के आंसू, अपनी मां के अंतिम संस्कार की बारी का इंतजार करता एक बेटा – अंतत:, ये सारे वृतांत एक ऐसी त्रासदी के आंकड़े मात्र बनकर रह गए हैं जिसे कि टाला जा सकता था. मैं बीमारी से उबर रहा हूं, लेकिन इन भयावह दृश्यों के दर्द और दुख से मैं कभी उबर नहीं पाऊंगा. और इस देश में किसी को भी इन्हें नहीं भुलाना चाहिए. मैं राजनीति में इसलिए शामिल हुआ क्योंकि मैं बदलाव लाना चाहता था, मैं लोगों के जीवन में बेहतरी लाना चाहता था. और अब, अनेक अन्य विधायकों और सांसदों के समान ही, अपनी राजनीतिक स्थिति और प्रभाव के बावजूद, मैं उन हजारों लोगों के सामने खुद को असहाय पाता हूं जो अस्पताल के बेड या ऑक्सीजन सिलेंडर की आस में मेरे पास आते हैं.

एक स्वतंत्र विधायक के रूप में, जिसे किसी भी पार्टी या व्यवसाय के पैसे का समर्थन नहीं हैं, मैं मार्च 2020 से ही एक राहत कोष की स्थापना पर काम कर रहा हूं जब देश में पहली बार कोविड-19 के कदम पड़े थे. सबसे पहले, राष्ट्रीय दलित मंच मंच की मदद से हम 50 से अधिक दिनों तक अहमदाबाद में एक कैंटीन संचालित करने में सफल रहे जहां रोजाना 400 से अधिक लोगों को भोजन वितरित किया गया. हमने लगभग 51 हेल्पलाइन और फोन नंबर भी स्थापित किए हैं ताकि गुजरात के लोग मानवीय सहायता और प्रशासनिक सहायता प्रदान करने वाले गैर-सरकारी और सरकारी संगठनों से संपर्क कर सकें. वडगाम में मेरे निर्वाचन क्षेत्र में, महामारी के पहले सप्ताह के भीतर, मैंने संकट से निपटने में मदद के लिए गरीबों, बुजुर्गों और 11 गर्भवती महिलाओं को 25 किलो के 2,000 से अधिक खाद्य पैकेट प्रदान किए. उदारतापूर्वक मिले दान के माध्यम से, हम 100 से अधिक विकलांग लोगों को वित्तीय सहायता पहुंचाने में कामयाब रहे. लॉकडाउन के ठीक बाद, मैंने तत्परता से अपनी टीम को सक्रिय किया ताकि 15,000 से अधिक लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार मिल सके और उनके लिए रोजगार और आमदनी सुनिश्चित की जा सके, और ये गुजरात के भीतर एक रिकॉर्ड है.

स्वास्थ्य क्षेत्र में कुछ करने के लिए पूरे साल हरसंभव कोशिश करने के बाद, हम वडगाम में ऑक्सीजन प्लांट लगाने तथा हताश रोगियों के लिए कंसंट्रेटर, वेंटिलेटर और रेमडेसिविर इंजेक्शन खरीदने हेतु 60 लाख रुपये जुटाने के लिए एक बड़ा क्राउडफंडिंग अभियान चला रहे हैं. यह राशि शायद हमारे समक्ष मौजूद संकट से निपटने के लिए पर्याप्त नहीं हो, लेकिन यह हरसंभव तरीके से मदद करने का एक ईमानदार प्रयास है. और, गुजरात के लोगों और साथ ही जमीन पर सक्रिय विधायकों को सहायता और वित्तीय मदद उपलब्ध कराने में राज्य की असंगत प्रतिक्रिया को देखते हुए, मैं धन जुटाने के साथ-साथ जरूरतमंदों, विशेषकर प्रवासी श्रमिक और वंचित वर्गों के लोगों को भोजन और दवा प्रदान करने का प्रयास जारी रखूंगा.

जहां मैं और कई अन्य लोग पिछले एक साल से लोगों की मदद करने के लिए अथक प्रयास कर रहे हैं, मोदी सरकार भी बिना रुके काम कर रही है – मंदिरों और स्मारकों के निर्माण के लिए, और चुनाव रैलियों के आयोजन के लिए ताकि सत्ता में उनकी मौजूदगी सुनिश्चित की जा सके. महामारी की पहली लहर के बाद, दूसरी लहर की तैयारी के लिए हमारे पास पर्याप्त समय था. हमारी जनस्वास्थ्य प्रणाली को मजबूत करने, तथा पर्याप्त संसाधनों के आवंटन और दूसरी लहर के प्रभावों को कम करने की योजना बनाने के बजाय, भाजपा सरकार ने विभाजनकारी राजनीतिक रणनीतियों पर ध्यान केंद्रित किया. उनका अहंकार, उनकी अक्षमता और सत्ता की भूख भारत को मरघट में बदल रही है. हमारा हिंदुस्तान कब्रिस्तान बनता जा रहा है. और, हाल के विधानसभा चुनावों में विपक्ष की तीन बड़ी जीतों ने दिखा दिया है कि तथाकथित ‘मोदी लहर’ भी खत्म हो चुकी है.

(जिग्नेश मेवाणी गुजरात विधानसभा में एक निर्दलीय विधायक और राष्ट्रीय दलित अधिकारी मंच के संयोजक हैं. वह क्राउडफंडिंग से संचालित ट्रस्ट ‘वी द पीपल फाउंडेशन’ से भी जुड़े हुए हैं जो ग्रामीण वडगाम में ऑक्सीजन संयंत्र लगाने के लिए पैसे जुटा रहा है. मेवाणी की अपील को यहां देख सकते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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