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Thursday, 19 December, 2024
होममत-विमतसजा को असंभव बनाकर इंडियन ज्युडिशियल सिस्टम एनकाउंटर को बढ़ावा देता है, कानूनों में संशोधन की जरूरत

सजा को असंभव बनाकर इंडियन ज्युडिशियल सिस्टम एनकाउंटर को बढ़ावा देता है, कानूनों में संशोधन की जरूरत

पुलिस मुठभेड़ों को कम किया जा सकता है अगर गवाहों, न्यायाधीशों और अभियोजन पक्ष के वकील को मुकदमे में बाधा डालने वाले लोगों के विशाल नेटवर्क से बचाया जाए.

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एक्स्ट्रा ज्युडिशियल हत्याओं के रूप में भी जाने जाने वाली हाल ही में हुई पुलिस मुठभेड़ों की घटनाओं में तेजी से वृद्धि हुई है विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में. यह हमें न्याय पाने की दिशा में चल रहे मार्ग पर विचार करने के लिए प्रेरित करती है. जबकि कुछ पुलिस मुठभेड़ों का उद्देश्य तत्काल न्याय प्रदान करना होता है, तो कुछ का उद्देश्य आरोपियों को परोक्ष रूप से दंडित करना होता है जब लगता है कि स्थापित कानूनी प्रक्रियाएं व्यावहारिक रूप से प्रभावी नहीं हो सकतीं. आइए कुछ उदाहरणों पर विचार करें जहां आरोपियों को दोषी ठहराना वर्तमान परिस्थितियों में असंभव लगता है और कानून में संभावित संशोधनों का पता लगाते हैं जो इन असंभव प्रतीत होने वाली सजाओं को सक्षम कर सकते हैं.

क्रिमिनल कोड के माध्यम से अतिरिक्त-न्यायिक हत्याओं की अनुमति देने का मुख्य कारण गिरफ़्तारी को प्रभावी बनाना और गिरफ़्तार किए गए व्यक्ति को भागने से रोकना था. मुठभेड़ों की अवधारणा इस धारणा के साथ प्रस्तावित की गई थी कि यह अभियुक्तों को हिरासत में रखेगी और मुकदमे की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाएगी. हालांकि, बाद में यह पता चला कि गवाहों की सुरक्षा की तुलना में गिरफ्तारी को प्रभावी बनाना और भागने से रोकना बहुत आसान था.

क्रिमिनल कोड इस तथ्य को स्वीकार करने में विफल रहा कि कभी-कभी अभियुक्तों के पास वफादार व्यक्तियों का एक विशाल नेटवर्क होता है जो उनके खिलाफ मुकदमे में बाधा डालते हैं. यह नेटवर्क गवाहों, न्यायाधीशों, या अभियोजन पक्ष के वकील को रिश्वत, धमकी या यहां तक कि उन्हें खत्म करके निशाना बनाता है और उनके साथ छेड़छाड़ करता है. नतीजतन, मुकदमा अभियुक्तों के पक्ष में झुक जाता है, जिससे मौजूदा कानूनी व्यवस्था में जनता का विश्वास खत्म हो जाता है. जिससे होता ये है कि इस विशाल नेटवर्क को न्याय के रास्ते में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए अब मुठभेड़ किए जा रहे हैं. इस नेटवर्क के काम करने से पहले अभियुक्त को मार देना एक सुरक्षित विकल्प के रूप में देखा जाता है.


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कानूनों में संशोधन करें

ऐसा प्रतीत होता है कि अगर गवाहों, न्यायाधीशों और अभियोजन पक्ष के वकील को सुरक्षा प्रदान की जाए तो मुठभेड़ों को कम किया जा सकता है. यदि किसी अपराध में सभी भागीदार बिना किसी डर के स्वतंत्र रूप से भाग ले सकते हैं, तो अदालत अधिक आसानी से दोष सिद्ध कर सकती है. जबकि न्यायाधीशों और अभियोजन पक्ष के वकील की रक्षा करना चुनौतीपूर्ण है, गवाहों का नाम जाहिर न किए जाने जैसे उपायों को लागू करके उन्हें काफी हद तक सुरक्षित किया जा सकता है. अभियुक्त के पास उपलब्ध दस्तावेजों में गवाहों के नाम का खुलासा नहीं किया जाना चाहिए. मुकदमे के दौरान जिन आरोपों का वे सामना करेंगे, उनके बारे में अभियुक्तों को सूचित करने के लिए केवल गवाह के बयान पर्याप्त होने चाहिए. अक्सर, गवाह धमकियों या प्रलोभनों के कारण अपने मूल बयान से मुकर जाते हैं, जो निष्पक्ष सुनवाई और न्याय के प्रशासन में बाधा डालता है. इसलिए, अदालत को गवाहों को प्रभावी सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए. एक साथ सभी गवाहों के लिए गुमनामी लागू करना संभव है. हालांकि, इस प्रक्रिया में, हमें अभियुक्तों के अधिकारों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए, जैसे कि जिरह, परीक्षण पहचान परेड, और अभियुक्तों को गवाहों के बयानों की प्रतियां मुफ्त में प्रदान करना.

यह स्वीकार करना होगा कि न्यायाधीशों को रिश्वतखोरी के जाल से फंसाए जाने से भी बचाया जाना चाहिए. हर आपराधिक मुकदमा जिला अदालत में शुरू होता है. एक अलग श्रेणी स्थापित की जानी चाहिए जहां उच्च न्यायालयों में कट्टर अपराधियों से जुड़े मुकदमों के ट्रायल हों. ऐसे मामलों में, रजिस्ट्रार के समक्ष साक्ष्य दर्ज किए जा सकते हैं. इसी प्रकार अभियोजन अधिकारियों को भी घूसखोरी की घटनाओं से बचाना चाहिए. इसे निम्नलिखित तरीकों से प्राप्त किया जा सकता है:

(ए) वरिष्ठ न्यायाधीशों और अभियोजन अधिकारियों द्वारा सुपरविज़न: जिला स्तर की अदालतों में चलने वाले कट्टर अपराधियों के मुकदमों की निगरानी उच्च न्यायालयों और वरिष्ठ अभियोजन अधिकारियों द्वारा की जानी चाहिए.

(बी) प्राइवेट पार्टीज़ की भागीदारी: पीड़ितों, जिन्हें आमतौर पर आपराधिक मुकदमों के बारे में जानकारी नहीं होती है, उनको भाग लेने की अनुमति दी जानी चाहिए ताकि वे किसी भागीदार को रिश्वत देने पर अदालत को सूचित कर सकें.

(सी) प्राइवेट पार्टीज़ एडवोकेट्स को शामिल करना: वर्तमान में, प्राइवेट पार्टीज़ के एडवोकेट्स को मामले पर बहस करने का अधिकार नहीं है. केवल लोक अभियोजक को तर्क प्रस्तुत करने की अनुमति है, जबकि निजी पक्ष के अधिवक्ता केवल लोक अभियोजक की सहायता कर सकते हैं. सरकारी वकील को बदलने के लिए निजी अधिवक्ताओं को अनुमति देने से दोषसिद्धि दर पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा.

(डी) प्रत्येक कार्रवाई के लिए कारण प्रदान करना: न्यायाधीशों, वकील और पीड़ितों सहित प्रत्येक प्रतिभागी के कार्यों के लिए जांच और संतुलन होना चाहिए. ऐसे मामलों में जहां अभियोजन पक्ष के वकील, जो विपक्षी पार्टी से प्रभावित हैं, अभियुक्त को जमानत, रिहाई या कोई अनुकूल आदेश प्राप्त करने में मदद करने में काफी चलताऊ तरीके से काम करते हैं, उन्हें अदालत को ऐसे कार्यों के लिए बाध्यकारी कारण प्रदान करने की आवश्यकता होनी चाहिए. इन स्थितियों में निजी अधिवक्ताओं को बहस करने और अपने दृष्टिकोण प्रस्तुत करने की अनुमति देना महत्वपूर्ण हो जाता है.

यह स्पष्ट है कि वर्तमान में हम गवाहों को पर्याप्त सुरक्षा प्रदान नहीं करते हैं या अभियोजन पक्ष के वकीलों और न्यायाधीशों पर पर्याप्त नियंत्रण और संतुलन नहीं रखते हैं. नतीजतन कई बार शातिर अपराधी छूट जाते हैं. यह बेहतर समय है कि हम इन अपराधियों द्वारा अपनी स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने के लिए बुने गए नए डिजाइनों से निपटने के लिए क्रिमिनल कोड में संशोधन करें.

(ऋषभ अत्रि सुप्रीम कोर्ट में वकील हैं और रौनक वुत्स्य दिल्ली हाईकोर्ट में वकील हैं. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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