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Tuesday, 17 December, 2024
होममत-विमतइंफेंट्री डे यानी पैदल सैना के गौरव को याद करने का दिन जिन्होंने कश्मीर को बचाया और जो चीन से भिड़े

इंफेंट्री डे यानी पैदल सैना के गौरव को याद करने का दिन जिन्होंने कश्मीर को बचाया और जो चीन से भिड़े

1947 में कश्मीर में शरद ऋतु, 1962 में ऊंचे हिमालय, और 1987 में उत्तरी श्रीलंका के उष्णकटिबंधीय जंगलों में इन्फैंट्री ने मोर्चा लिया.

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नई दिल्ली: सेना और रक्षा सेवाओं के लिए 27 अक्टूबर का दिन खास महत्व का है. इस दिन सेना इंफेंट्री (पैदल सेना) डे मनाती है. सेना या रक्षा सेवाओं के हर अंग अपना सालाना दिन मनाते हैं, लेकिन जो जज्बा और जलवा इंफेंट्री डे को नजर आता है, उसकी तुलना नहीं हो सकती. लड़ाकू विमान दिवस या पनडुब्बी दिवस में वो बात नहीं हो सकती, जो इंफेंट्री डे में होती है. इस बात की कई सैन्य वजहें हैं कि सेना के इस खास अंग के सालाना दिवस को इतना महत्व हासिल है.   

महत्वपूर्ण राजनीतिक-सैन्य वर्षगांठ

जब नए बने राष्ट्र के सामने पहला राजनीतिक-सैन्य संकट आया और पाकिस्तानी घुसपैठिए कश्मीर घाटी में घुस आए तो जवाब में सेना ने 27 अक्टूबर, 1947 को इसी दिन सिख रेजिमेंट की पहली बटालियन को श्रीनगर एयरपोर्ट पर उतारा. इस कार्रवाई से चंद घंटे पहले ही 26 अक्टूबर को महाराजा ने जम्मू-कश्मीर के भारत में विलय-पत्र पर दस्तखत किए थे और इंफेंट्री कार्रवाई के लिए तैयार थी. इंडियन एयर फोर्स के अनुभवी पायलट्स ने डकोटा विमान से उन्हें श्रीनगर पहुंचा दिया. ‘

कमांडिंग अफसर लेफ्टिनेंट कर्नल दिवान रंजीत राय ने आगे बढ़कर अपनी टुकड़ी का नेतृत्व किया और उसी दिन बारामुला में दुश्मन की गोलियों से शहीद हो गए. उन्हें भारत के पहले महावीर चक्र से सम्मानित किया गया. उनकी प्राणों की आहूति बेकार नहीं गई. बारामूला से घुसपैठियों को खदेड़ दिया गया और श्रीनगर दुश्मन के हाथों में जाने से बच गया.

उसके बमुश्किल एक हफ्ते बाद, पहला परमवीर चक्र 4 कुमाऊं के मेजर सोमनाथ शर्मा को दिया गया, जो बडगाम के पास शहीद हुए थे. यह महज संयोग नहीं था कि ये दोनों बहादुर सैनिक इन्फैंट्रीमैन थे और न ही यह कोई संयोग है कि युद्ध में दोनों इकाइयां भी इन्फैंट्री की थीं. इसी तरह कई अन्य इकाइयों को कश्मीर घाटी में वायु सेना द्वारा उतारा गया था जिसे अभी तक देश से उचित सम्मान नहीं मिला है. सीमित संसाधनों में उन्होंने जो कर दिखाया, वह असाधारण था. जाहिर है कि उन्होंने घाटी को बचाया, और हमलावरों को खदेड़ दिया था.


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विलय-पत्र पर हस्ताक्षर की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर इन्फैंट्री डे को उतनी सुर्खियां नहीं मिलीं, जैसी अमूमन मिलती रही हैं. लेकिन अक्टूबर में पडऩे वाली अन्य वर्षगांठों को ओझल नहीं किया जा सका. मसलन, 10 अक्टूबर 1987 को शांति मिशन पर गए 10 पैरा कमांडो के पांच बहादुर सैनिकों को घात लगाकर हमला किया गया, जबकि एलटीटीई के खिलाफ संघर्ष का अभी ऐलान नहीं हुआ था. महीने भर बाद उनका खून से सना और गोलियों के निशान वाला 1 टन ट्रक बरामद हुआ था. उससे पच्चीस साल पहले, 20 अक्टूबर को चीनी सैनिकों ने 1962 के युद्ध की शुरुआत की थी.

यह महज संयोग है कि अक्टूबर में तीन महत्वपूर्ण राजनीतिक-सैन्य वर्षगांठ पड़ती हैं. लेकिन यह कोई संयोग नहीं है कि दशकों के अंतर और अलग-अलग इलाकों के बावजूद ये तीनों सालगिरह इन्फैंट्री की अगुआई वाले ऑपरेशन थे. 1947 में कश्मीर में शरद ऋतु, 1962 में ऊंचे हिमालय, और 1987 में उत्तरी श्रीलंका के उष्णकटिबंधीय जंगलों में इन्फैंट्री ने मोर्चा लिया. हालांकि, असलियत यह भी है कि हर तरह के भूभाग और मौसम में इन्फैंट्री सक्रिय रहती है. यकीनन, यह इकलौता सदाबहार सैन्य अंग है, जो हर मौसम, शहरी या ग्रामीण इलाके में मोर्चा लगाने के काबिल है.

सेना के तीनों अंगों में किसी भी लड़ाकू शाखा ने इन्फैंट्री जैसी बहुमूल्य सेवा देश की नहीं की है. किसी भी अन्य लड़ाकू शाखा में वैसी निरंतर युद्ध-क्षमता, अभियान की फितरत, और शहीदों की संख्या नहीं दिखी है. लेफ्टिनेंट कर्नल राय और उनके बहादुर सिख जवानों से लेकर अब 2022 तक किसी भी अंग ने उतने लोगों की कुर्बानी नहीं दी, जितनी इन्फैंट्री ने दी है. तमाम चुनौतियों के बावजूद, इन्फैंट्री जरूरत पड़ने पर बलिदान देती रहेगी. यह भारत में ही बेमिसाल नहीं है, लेकिन बजटीय कंजूसी तो भारत जैसी शायद कहीं नहीं.

जवानों पर खर्च करें

देश में बड़े धूमधाम तकरीबन एक दशक पहले भविष्य के पैदल सैनिकों के लिए दीर्घकालिक योजनाओं की घोषणा की गई थी. वह नजरिया यकीनन आर्थिक उन्नति वाले देश में आधुनिक सेना के योग्य था. उस अवधारणा को आकर्षक नाम एफ-आइएनएसएएस यानी फ्यूचर इन्फैंट्री सोल्जर एज ए सिस्टम दिया गया था. योजना यह थी कि हर जवान को हथियार से लैस करना और उसकी रक्षा करना है, ताकि उसकी क्षमताओं में इजाफा हो सके. मतलब यह कि वह रोबो-कॉप, आयरन-मैन जैसा हो. यह भी भारत में बेमिसाल नहीं था क्योंकि उसी दौरान कई देशों ने वैसी ही योजना बनाई थी.

हालांकि, कुछ वर्षों के भीतर वह योजना को बदल दी गई और परियोजना को भविष्य के युद्ध के दो अलग-अलग पहलुओं में बांट दिया गया. जवानों के हथियार, सामरिक संचार और सुरक्षा कार्यक्रम विकसित होते रहे, लेकिन युद्धक्षेत्र प्रबंधन प्रणाली अलग कर दी गई. अगस्त 2022 में नए जवान की रूपरेखा तैयार की गई. नए पैकेज की उपयोगिता का परीक्षण किया जाना बाकी है, लेकिन यह कहना जायज है कि निवेश आवश्यकताओं और देश की सुरक्षा में कई दशकों में हुए बलिदान की मात्रा के अनुरूप नहीं किया गया है. 1947 में कश्मीर को बचा लिया गया था और 2022 में भी इन्फैंट्री का आभार मानने का मौका बना हुआ है.

मानवेंद्र सिंह एक कांग्रेस नेता, डिफेंस एंड सिक्योरिटी अलर्ट के प्रधान संपादक, और सैनिक कल्याण सलाहकार समिति, राजस्थान के अध्यक्ष हैं. वो @ManvendraJasol.पर ट्वीट करते हैं. व्यक्त विचार निजी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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