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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतसुप्रीम कोर्ट ने फौजी सहायकों से घरेलू काम कराने की प्रथा को नहीं रोका मगर अग्निवीर इसे बंद करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने फौजी सहायकों से घरेलू काम कराने की प्रथा को नहीं रोका मगर अग्निवीर इसे बंद करेगा

संगठन और समाज में परिवर्तन भारतीय सेना में सुधार ला सकता है लेकिन सरकारी व्यवस्था में कर्मचारियों से घरेलू काम करवाने के चलन पर रोक लगाना अब तक मुश्किल ही लगता रहा है

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सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने 31 अक्टूबर को उस लोकहित याचिका को दर्ज करने से मना कर दिया, जिसमें मांग की गई थी कि भारतीय सेना में ‘सहायक सिस्टम’ को खत्म किया जाए. 2009 में, रक्षा मामलों की संसद की स्थायी समिति ने ‘सहायकों’ की भर्ती को शर्मनाक बताया था और कहा था कि स्वतंत्र भारत में ऐसी प्रथा के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए इसलिए इसे समाप्त किया जाए. समिति ने उम्मीद जाहिर की थी कि रक्षा मंत्रालय इसे बंद करेगा और गृह मंत्रालय भी अर्द्धसैनिक बलों और दूसरे संगठनों के मामले में ऐसे कदम उठाएगा.

लेकिन रक्षा मंत्रालय ने अपनी कार्रवाई रिपोर्ट में सहायकों के इस्तेमाल का बचाव करते हुए कहा कि उनके कामों को नियमित करने के बारे में विस्तृत निर्देश दिया जा चुके हैं. कमिटी ने कहा कि उसे समझ में नहीं आता कि सेना में सहायकों की क्या जरूरत है जबकि नौसेना और वायुसेना में ऐसी कोई प्रथा नहीं है. कमिटी ने अपनी पिछली सिफ़ारिश को दोहराते हुए कहा कि सेना को नौसेना और वायुसेना का अनुकरण करते हुए इस औपनिवेशिक प्रथा को तुरंत बंद करना चाहिए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकारी पदाधिकारियों को अप्रासंगिक औपनिवेशिक विरासतों से छुटकारा पाने की नसीहत देते रहते हैं. खासतौर से सेनाओं के संयुक्त कमांडर कन्फ्रेंसों में अपने भाषण में वे प्रायः वे इस बात पर ज़ोर देते रहे हैं. सुप्रीम कोर्ट ने सहायकों के मामले में संसदीय कमिटी की जगह सरकार के नजरिए का समर्थन कर दिया है तो इस औपनिवेशिक प्रथा का कानूनी निपटारा हो गया है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि सेना में जारी ऐसी कुछ प्रथाओं को बदलने के पक्ष में संगठन या समाज के अंदर हवा नहीं बह रही है जिन प्रथाओं पर नजर रखने या रोक लागने की जरूरत है.


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एकीकरण और अग्निवीर

‘सहायक’ वाली सिस्टम में गड़बड़ी का मूल आधार यह है कि इन कर्मचारियों से घरों में काम करवाया जाता है. यह हर स्तर पर कमांड की ज़िम्मेदारी का मामला है. मामला ऊंचे अधिकारियों और कुछ स्थितियों में उनकी पत्नी के लिए घरों में काम करने वाले कर्मचारियों की तैनाती को मंजूर करने का भी है. इसमें सुरक्षा का और सेवा देने वालों की आधिकारिक प्रतिबद्धता का भी है. लेकिन अगर यह प्रथा वरिष्ठ नेतृत्व द्वारा पेश की गई निजी मिसाल पर आधारित नहीं होगी तो इसे लागू करने में दिक्कत होगी.

जब एकीकृत थिएटर कमांड स्थापित होंगे और तीनों सेनाओं को एक ही व्यवस्था में शामिल किया जाएगा या जब वे करीब-करीब रहकर काम करेंगी तब इस मसले की असली परीक्षा होगी. सहायकों की उपलब्धता थलसेना को हासिल लाभों के मामले में दूसरी सेनाओं के मुक़ाबले ज्यादा फायदे में रखेगी तब सवाल खड़े होंगे और तब बदलाव करना पड़ेगा, हालांकि यथास्थिति जारी रखने के पक्ष में जो लोग होंगे वे विरोध करेंगे.

संसदीय कमिटी ने इस बात पर भी ज़ोर दिया था कि जवानों की भर्ती देश सेवा के लिए की जाती है, न कि अफसरों के घरों में उनके परिवार की सेवा में घरेलू काम करने के लिए, जो कि उनकी बेइज्जती है. अग्निवीर सिस्टम में चार साल की सेवा अवधि भी सहायकों से काम लेने के तरीके में बदलाव की हवा को गति प्रदान करेगी.

चूंकि सहायकों को अफसरों और जूनियर कमीशंड अफसरों के, बेशक अलग स्तरों पर, यहां तैनात किया जाता है इसलिए एक यूनिट में उनकी संख्या छोटी नहीं होती. इसके अलावा, निजी आकांक्षाएं और नयी पीढ़ी के रंगरूटों में घरेलू कामों के प्रति उपेक्षा भाव भी प्रतिरोध पैदा करेंगे जिनसे निपटना मुश्किल होगा, बशर्ते आप नियमों का पालन न कर रहे हों. नियमों में साफ कहा गया है कि सहायकों का इस्तेमाल सरकारी कामों में प्रासंगिक सहायता लेने के लिए ही किया जा सकेगा और सरकारी कामों में ये सब शामिल हैं—निजी सुरक्षा देना, हथियारों, वर्दी, साजो-सामान का रखरखाव, और शांति अथवा युद्ध काल में विविध ऑपरेशनों में सहायता देना.


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सरकारी ढांचे में भी सुधार की जरूरत

सेना में सहायकों का घरेलू कामों में इस्तेमाल करने के दिन अब गिनती के रह गए हैं. लेकिन यही बात व्यापक राष्ट्रीय और प्रादेशिक सरकारों के ढांचे में लागू नहीं है. कुछ स्तरों के अधिकारियों के द्वारा सरकारी कर्मचारियों के इस्तेमाल की प्रथा बेकाबू फैली हुई है. संसदीय कमिटी ने इस मामले में खासतौर से गृह मंत्रालय और उसके संगठनों का जिक्र किया है.

सरकारी कर्मचारियों से घरेलू काम करवाने पर रोक लगाना सुधारों का बड़ा कदम बनना चाहिए जिसे तुरंत लागू करने की जरूरत है. इसकी वजह यह है कि केंद्र और राज्यों में असैनिक सरकारी विभागों में कई ‘बड़े साहब’ कुर्सियां गरम कर रहे होंगे. मानव संसाधन का दुरुपयोग और दिशाहीनता भारतीय सामाजिक तथा प्रशासनिक व्यवस्थाओं की दुखती रग है. इस क्षेत्र में सुधार किए बिना भारत अपने मानव संसाधन की असली क्षमता का उपयोग करने की उम्मीद नहीं कर सकता.

जल्दी ही भारत दुनिया में सबसे ज्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा, और उसकी प्रगति के लिए उन सामाजिक प्रथाओं का निषेध जरूरी होगा जिनसे दूर रहा जाना चाहिए. इसलिए निराशाजनक बात यह है कि मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को आजीवन घरेलू कर्मचारियों को रखने की मंजूरी दी है. यह कदम उस दिशा के विपरीत जाता है जिस दिशा में देश को अपनी आज़ादी के 75वें साल में आगे बढ़ना चाहिए.

सरकारी कर्मचारियों के इस्तेमाल की गैरज़रूरी प्रथा को खत्म करने के लिए नेतृत्व के सभी स्तर पर निजी मिसाल पेश करने की जरूरत है. मूलतः यह सत्ता के दुरुपयोग का मामला है, और ऐसे मामलों में व्यक्ति की अंतरात्मा ही संयम का मुख्य स्रोत बनती है. अफसोस की बात यह है कि सत्ता से लगाव देश प्रेम पर हावी हो रहा है.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में स्ट्रैटेजिक स्टडीज के डायरेक्टर हैं; वे नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के पूर्व सैन्य सलाहकार भी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. व्यक्त विचार निजी है)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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