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Wednesday, 22 May, 2024
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राम मंदिर आंदोलन का नेतृत्व करने वाले लालकृष्ण आडवाणी कैसे भारतीय राजनीति का रुख बदलते रहे हैं

लालकृष्ण आडवाणी के जन्मदिन पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने उनके घर पर जाकर उन्हें जन्मदिन की बधाई दी.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अविभाजित भारत के कराची शहर से लेकर आजाद भारत में उपप्रधानमंत्री के तौर पर एक लंबा सफर तय किया है. देश के इतिहास में ऐसे कई मौके आए जिसका रूख उन्होंने बदला. मंगलवार को आडवाणी 96 वर्ष के हो गए और इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह समेत कई नेताओं ने उनके कामों को अपनी-अपनी तरह से याद किया.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर कहा, ‘आदरणीय आडवाणीजी के आवास पर जाकर उन्हें जन्मदिवस की शुभकामनाएं दीं. मैं भगवान से उनके अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की कामना करता हूं.’ वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने ट्वीट किया, ‘आडवाणी जी ने अपने सतत परिश्रम से एक ओर देशभर में संगठन को मजबूत किया तो वहीं दूसरी ओर सरकार में रहते हुए देश के विकास में अमूल्य योगदान दिया.’

संघ से रहा है पुराना रिश्ता

8 नवंबर 1927 को जन्मे लालकृष्ण आडवाणी देश के बंटवारे के बाद भारत आ गए. उनकी प्रारंभिक शिक्षा कराची के सेंट पैट्रिक स्कूल से हुई. बाद में उन्होंने एडीजी कॉलेज से अपनी पढ़ाई की और मुंबई विश्वविद्यालय के गवर्नमेंट लॉ कॉलेज से स्नातक की डिग्री ली. 1965 में आडवाणी का विवाह कमला देवी से हुआ. लेकिन वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आएरएसएस) से काफी पहले जुड़ गए थे. कम ही उम्र में वे संघ के प्रचारक बने और कराची में संघ की कई शाखाओं की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

आजादी के बाद जब आडवाणी का परिवार भारत आ गया तो उन्होंने राजस्थान के कई जिलों में संघ के विस्तार के लिए काम किया. आजादी के बाद जब कांग्रेस से मतभेद होने के बाद श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अलग पार्टी जनसंघ बनाई तो आडवाणी पहली बार सक्रिय राजनीति में दाखिल हुए. आडवाणी को जनसंघ का सचिव बनाया गया. उसके बाद आडवाणी जनसंघ में कई पदों पर रहें. साल 1973 से लेकर 1977 तक वे जनसंघ के अध्यक्ष रहे.

1975 में इंदिरा गांधी द्वारा देश में आपातकाल लगाने के विरोध में सभी विपक्षी पार्टियां एकजुट हो रही थी. जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर कई विपक्षी पार्टियों को मिलाकर एक नए राष्ट्रीय दल ‘जनता पार्टी’ का गठन किया गया. मई 1977 को जनसंघ ने भी अपना विलय जनता पार्टी में कर दिया. लेकिन जनता पार्टी दो साल के अंदर ही आंतरिक कलह के कारण टूट गई. जनता पार्टी की सरकार गिरने के तीन साल बाद 6 अप्रैल, 1980 को भाजपा की स्थापना हुई और लालकृष्ण आडवाणी उसके पहले महासचिव बने.

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1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस के प्रति उपजी सहानुभूति लहर में भाजपा 2 सीट ही जीत पाई थी. लेकिन अभी भाजपा का देश में जितना बड़ा आधार है, उसे बनाने में उनका काफी योगदान माना जाता है.


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राम मंदिर आंदोलन, सोमनाथ-अयोध्या रथ यात्रा और बाबरी विध्वंस

भाजपा अपने स्थापना के साथ ही राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय हो गई. हालांकि वो गांधीवादी समाजवाद की विचारधारा के साथ राजनीति में दाखिल हुई थी. साल 1989 के आम चुनाव में बोफोर्स घोटाले का सामना कर रहे राजीव गांधी चुनाव हार गए और वीपी सिंह देश के प्रधानमंत्री बने. भाजपा ने वीपी सिंह सरकार को बाहर से समर्थन देने का फैसला किया. भाजपा को इस चुनाव में 85 सीट प्राप्त हुई. उसके बाद भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी के नेतृत्व में राम मंदिर आंदोलन शुरू करने का फैसला किया. यह मंडल कमीशन के बाद लामबंद पिछड़े वर्ग को काउंटर करने का सबसे बड़ा हथियार था. 25 सितंबर 1990 को लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से राम रथ यात्रा की शुरुआत की.

इस यात्रा को डेढ़ महीने बाद अयोध्या पहुंचना था लेकिन यात्रा जब बिहार पहुंची तो राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने आडवाणी को गिरफ्तार कर लिया. इसके विरोध में भाजपा ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस ले लिया जिसके बाद 7 नवंबर 1990 को उन्हें प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा. छह दिसंबर 1992 को कारसेवकों द्वारा बाबरी मस्जिद को ढहा दिया गया. जिसके कारण पूरे देश में सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया और हिंसा की कई घटनाएं हुईं. लालकृष्ण आडवाणी पर बाबरी मस्जिद विध्वंस का आरोपी माना गया लेकिन सितंबर 2020 में सीबीआई कोर्ट ने आडवाणी समेत 32 लोगों को बरी कर दिया गया.

मोदी शाह युग की शुरुआत और आडवाणी युग का पतन

2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को कांग्रेस के हाथों भयंकर हार का सामना करना पड़ा. भाजपा का शाइनिंग इंडिया देश के मतदाताओं को लुभा नहीं सका. लालकृष्ण आडवाणी ने इस चुनाव में भाजपा की हार का ठीकरा विश्व हिंदू परिषद पर फोड़ा था.

लेकिन अटल बिहारी वाजपेई का मानना था कि 2002 के गुजरात दंगों के बाद नरेंद्र मोदी को गुजरात के मुख्यमंत्री पद से बर्खास्त नहीं करने के कारण भाजपा को आम चुनाव में हार का सामना करना पड़ा. हालांकि 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के हार के कई कारण थे. उसके बाद आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा को 2009 के आम चुनाव में भी हार का सामना पड़ा, जिसके बाद पार्टी में उनकी स्थिति कमजोर होती चली गई.

2014 के आम चुनाव से पहले भाजपा की गोवा में पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी की बैठक में नरेंद्र मोदी को चुनावी अभियान प्रमुख के रूप में घोषणा के बाद आडवाणी ने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया. हालांकि उन्हें मना लिया गया लेकिन उसके बाद वे उसी पार्टी में मार्गदर्शक मंडल में डाल दिए गए, जिस दल के हर संघर्ष के वे साक्षी रहे.


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