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Wednesday, 20 November, 2024
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वफादार सेवक खोजने के सिवाए CDS के लिए ‘च्वाइस पूल’ का विस्तार नहीं करना चाहिए

चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का चयन सेवारत या सेवानिवृत्त सेनाध्यक्षों से बाहर जाकर करने की छूट लेने का फैसला राजनीतिक नेतृत्व को प्रभावित करने के फेर में सेना के अंदर महत्वाकांक्षाओं और प्रतिद्वंद्विता का जहरीला वातावरण बना सकता है.

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नरेंद्र मोदी सरकार ने चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) के पद के लिए आवश्यक योग्यता के फ्रेमवर्क में बदलाव करने के लिए पिछले दिनों थलसेना, नौसेना और वायुसेना के सेवा नियमों में संशोधन कर दिया. इससे पहले 28 दिसंबर 2019 को इसमें संशोधन करके यह व्यवस्था की थी कि सीडीएस का चयन सेवारत तीन सेनाध्यक्षों में से ही किया जाएगा. अब जो ताजा संशोधन किया गया है उसके बाद उक्त पद के लिए चयन का दायरा बढ़ा दिया गया है और उसमें उपरोक्त तीन की जगह करीब 180 सेना अधिकारियों को शामिल कर लिया गया है.

अब सभी सेवारत थ्री-स्टार और सेवानिवृत्त थ्री-स्टार अधिकारी सीडीएस के पद के लिए योग्य माने जाएंगे, बशर्ते नियुक्ति की तारीख पर उनकी उम्र 62 साल से कम हो. पहला संशोधन तो जनरल बिपिन रावत को प्रथम सीडीएस बनाने के लिए पर्याप्त था लेकिन ऐसा लगता है कि यह पुनर्विचार करके फैसला किया गया है कि चयन का दायरा बढ़ाने से यह प्रक्रिया बेहतर हो जाएगी.

यह मान कर चला जा रहा है कि चीफ के लिए योग्यता की शर्तें यथावत रहेंगी, और उस पद पर स्थापित व्यक्ति का चयन थ्री-स्टार वाले सेवारत कमांडर्स-इन-चीफ (सी-इन-सी) के पेनेल में से किया जाएगा. सीडीएस पद के लिए योग्यता के आधार को परिमाण के हिसाब से बड़ा करने से, जैसा कि अब कर दिया गया है, कई समस्याएं खड़ी होती हैं जिनमें से कुछ तो काफी उलझाऊ साबित हो सकती हैं.

प्रधानमंत्री मोदी कह चुके हैं कि सीडीएस ऐसा पद है जिस पर भारतीय सेना के आधुनिकीकरण की भारी ज़िम्मेदारी है. इस प्रक्रिया में मूलभूत संरचनात्मक बदलाव शामिल है, जिसके तहत संयुक्त/थिएटर कमांड की व्यवस्था लागू की जाएगी. इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि ये सुधार बिगड़ते भू-राजनीतिक माहौल में किए जाएंगे, जबकि अर्थव्यवस्था भी भारी दबाव में है. इसलिए, सीडीएस पद पर नियुक्त होने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए चुनौती जबरदस्त होगी.

जबरदस्त चुनौती

उपयुक्त व्यक्ति की खोज अब एक राजनीतिक चुनौती बन गई है, खासकर इसलिए कि चयन ‘एनुअल कोंफिडेंशियल रिपोर्ट’ (एसीआर) और पेशेगत क्षमता के दस्तावेजों पर निर्भर नहीं रह सकता. इसलिए राजनीतिक नेतृत्व को खुफिया ब्यूरो समेत दूसरे स्रोतों से हासिल रिपोर्टों और मतों पर निर्भर रहना होगा. व्यवहार में, बात प्रधानमंत्री की निजी पसंद और संभवतः रक्षा मंत्री एवं राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार समेत उनके सलाहकारों की सलाह पर आकर टिकेगी.

जनरल रावत को किस आधार पर नियुक्त किया गया था, यह कार्म्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) और रक्षा मंत्रालय (एमओडी) की चालू फाइलों में मिल सकता है. यह तीन में से एक को चुनने का मामला था. अगर योग्यता की नयी शर्तों का ख्याल रखा जाएगा तो फाइल पर विकल्पों की संख्या काबू लायक करने का काम भयानक होगा. एसीआर के अभाव में कसौटी की समानता बनाए रखने के लिए क्या मानक शामिल किए जाएं कि एक पेनेल चुना जा सके और राजनीतिक नेतृत्व उसके आधार पर अंतिम फैसला करे? व्यवहार में, यह अपेक्षा की जा सकती है कि पेनेल उच्च स्तर से तैयार किया जाएगा और कागजी काम इस तरह से होंगे कि सब कुछ प्रक्रिया की वैधता और शुद्धता का आभास देगा.

जब केवल तीन सेनाध्यक्ष ही प्रतिस्पर्द्धा में नहीं होंगे तब राजनीतिक नेतृत्व को कही-सुनी ख्याति और अफवाहों पर ही भरोसा कर्ण पड़ेगा. अब खतरा यह है कि अगर कही-सुनी ख्याति ही काम कर गई, तो निर्णय इस पर निर्भर होगा कि आप किसकी सुन रहे हैं. यह इस संभावना को खारिज करने के लिए नहीं कहा जा रहा है कि माहौल का जायजा लेकर उपयुक्त व्यक्ति की खोज की जा सकती है. लेकिन तब यह सवाल उठता है कि चयन पूल को केवल सेवारत या सेवानिवृत्त (चार स्टार वाले) सेनाध्यक्षों या तीन स्टार वाले सी-इन-सी तक क्यों नहीं सीमित रखा जा सकता था? अब चूंकि सभी व्यावहारिक दृष्टियों से, पहली नियुक्ति की उम्र सीमा 62 साल राखी गई है तो सभी पूर्व सेनाध्यक्ष अयोग्य हो जाएंगे, बशर्ते वह तीन साल तक सेनाध्यक्ष रहने के बाद 62 साल का होने से पहले सेवानिवृत्त हुआ हो, जो कि असंभव ही है.


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असली बात है मंशा

यह उम्मीद करना कि सीडीएस के लिए बेहतर विकल्प उपरोक्त दायरे से बाहर से उभर सकता है, दरअसल अनुभव को एक मूल्यवान कसौटी मानने से इनकार करना है. बुद्धिमानी यही कहती है कि दूसरी बातें समान हों तो अनुभव सबसे ज्यादा सेनाध्यक्षों और कुछ हद तक सी-इन-सी में पाया जा सकता है.

बशर्ते चयन के पीछे मंशा आज्ञाकारी व्यक्ति की तलाश की न हो, जो संविधान के प्रति उच्च स्तरीय पेशेगत ईमानदारी और निष्ठा की बजाय वफादार सेवक की भूमिका निभाए. अगर विचारधारागत/व्यक्तिगत निष्ठा रखने वाले की पहचान करने का राजनीतिक रास्ता अपनाया जाएगा तो यह भारतीय सेना को अ-राजनीतिक बनाए रखने के विचार पर ही कुठाराघात होगा. सीडीएस के चयन के पूल का विस्तार निश्चित ही एक स्वस्थ संकेत नहीं है. यह ने केवल सुरक्षा के लिए बल्कि एक लोकतांत्रिक भारत की नींव के लिए भी गंभीर खतरा है.

विशाल पूल सेना में महत्वाकांक्षाओं के दानव का कहर बरपा सकता है और राजनीतिक नेतृत्व उन महत्वाकांक्षाओं का फायदा उठाने की कोशिश कर सकता है. राजनीतिक नेतृत्व को प्रभावित करने, गंदे खेलों और गलाकाट होड़ की संभावनाएं भी बढ़ सकती हैं. यह सेना के नेतृत्व के सांस्कृतिक तथा सामाजिक तानेबाने को भारी नुकसान पहुंचा सकता है. एक सेवा के अंदर हानिकर आंतरिक होड़ को बढ़ावा देने के अलावा विभिन्न सेवाओं के बीच के रिश्ते भी खराब हो सकते हैं. मिलकर काम करना ही थिएटर कमांड का प्राथमिक लक्ष्य है लेकिन इसकी भी क्षति हो सकती है.

प्रथम सीडीएस जनरल रावत की असामयिक और दुखद मृत्यु के बाद तीनों सेनाध्यक्षों को सेवानिवृत्त होने दिया गया जबकि वे सीडीएस के पद के लिए योग्य थे. चयन प्रक्रिया न शुरू होने के कारण शक की सुई राजनीतिक तथा अफसरशाही की मिलीभगत की ओर मुड़ती है, जो ईमानदारी और अनुभव को परे करके चयन की अलग कसौटी को तरजीह दे रही है.

नए नियमों की खामियों के बावजूद राजनीतिक नेतृत्व अगले सीडीएस का अच्छा चयन कर सकता है, जिसे बदकिस्मती से इस संदेह के साये में रहना पड़ेगा कि उसे अनुचित राजनीतिक संरक्षण के तहत नियुक्त किया गया है. यह तात्कालिक कमजोरी मानी जा सकती है जिसे संविधान के प्रति पेशेगत ईमानदारी और निष्ठा के साथ काम करके दूर किया जा सकता है. लेकिन योग्यता की नई कसौटी के कारण संभावित दीर्घकालिक नुकसान को निश्चित ही टाला जा सकता है.

आगे की बात करें, तो थिएटर कमांडों के गठन के बाद सीडीएस का चयन थिएटर कमांडरों में से किया जा सकता है. तब तक, मोदी सरकार को सलाह दी जा सकती है कि वह चयन पूल को छोटा करे, उम्र सीमा बेशक रखी जा सकती है. आदर्श तो यही होगा कि चयन केवल सेवारत सेनाध्यक्षों में से ही किया जाए और ऐसे व्यक्ति को चुना जाए जो बहुप्रतीक्षित सैन्य सुधारों को आगे बढ़ाए. इस तरह का कदम महज एक संशोधन का मोहताज है.

(लेफ्टिनेंट जनरल (डॉ.) प्रकाश मेनन (रिटायर) तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में स्ट्रैटजिक स्टडीज के डायरेक्टर हैं; वे नेशनल सेक्यूरिटी काउंसिल सेक्रेटेरिएट के पूर्व सैन्य सलाहकार भी हैं. उनका ट्विटर हैंडल @prakashmenon51 है. विचार निजी है.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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