एक आज़ाद देश के रूप में भारत के 75 साल के रिकॉर्ड का आकलन हम कैसे करें? सबसे स्पष्ट बात तो यह है कि उसने आजादी से पहले के 90 साल के औपनिवेशिक शासन और उससे भी पहले 100 साल के औपनिवेशिक शोषण की गिरफ्त से एकदम नाटकीय दिशा परिवर्तन किया. करीब दो सदी तक तेज पतन और फिर ठहराव, जबकि (अगर एक संकेतक का हवाला दें तो) 1947 में भारतीयों का औसत जीवन-काल मात्र 32 वर्ष था, के बाद भारत अपनी आजादी से उभरी गतिशीलता और लक्ष्य को लेकर संकल्प के बूते उभरकर अपनी सामाजिक एवं आर्थिक प्रगति में जुट गया.
सेलिग हैरीसन जैसे पश्चिमी टीकाकारों ने भविष्यवाणी कर दी थी कि भारत में भी पाकिस्तान की तरह फौजी हुकूमत आ जाएगी या वह टूट जाएगा; अपने साम्राज्यवादी-नस्लवादी पूर्वाग्रहों से अंधे हो चुके विंस्टन चर्चिल ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘भारत भूमध्य रेखा से ज्यादा एकजुट देश नहीं है.’ लेकिन भारत इन गंभीर चेतावनियों को झूठा साबित करते हुए एकजुट बना रहा और उन गिनती की राज्य-व्यवस्थाओं में शुमार है जो औपनिवेशिक गुलामी से आजाद होने के बाद लोकतांत्रिक बनी हुई हैं. ये अपने आप में उल्लेखनीय उपलब्धियां हैं.
आर्थिक मोर्चे पर शुरू में नया सवेरा लाने की उम्मीदें जगाने के बाद उसने चिंताजनक रूप से कमजोर प्रदर्शन किया लेकिन पिछले तीन दशकों में उसने खुद को बेहतर प्रदर्शन करने वाली अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करके काफी सुधार दर्ज किया. अब वह इस स्थिति में है कि निकट भविष्य के लिए सबसे तेज वृद्धि करने वाली अर्थव्यवस्था बन जाए.
इस साल वह दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगी. एक दशक पहले वह ‘टॉप टेन’ में भी नहीं गिनी जाती थी. अंतरराष्ट्रीय रूप से, भारत ‘हाई टेबल’ पर अपनी जायज जगह बनाने के सिवा पूरी तरह यथास्थितिवादी रहा है. यह देश दुनिया के नक्शे में निरापद देश बना हुआ है. यह स्थिर है, इसकी नीतियां स्पष्ट हैं, और यह एक जिम्मेदार परमाणु शक्ति है. दो पड़ोसी देशों के साथ अनसुलझी समस्याओं के बावजूद दुनिया के सभी महत्वपूर्ण देशों के साथ इसके संबंध सकारात्मक हैं. यह अपनी जमीन वापस लेने के मंसूबे नहीं रखता और प्रायः समस्या न बनकर समाधान का हिस्सा बनता है, जैसे जलवायु परिवर्तन के मामले में.
वैश्विक आर्थिक वृद्धि में योगदान देने वाला यह तीसरा सबसे बड़ा देश है. लेकिन इसका रेकॉर्ड कमजोर रहा है. 75 साल बीत जाने और विकासशील अर्थव्यवस्था के संसाधनों के बावजूद भारत तीन प्रमुख मोर्चों पर विफल रहा है- मैट्रिक के स्तर तक सबको स्कूली शिक्षा देने, बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा के जरिए सबको स्वास्थ्य सेवा देने, और रोजगार की तलाश करने वालों को रोजगार देने के मोर्चों पर. थोरो की बात लें तो ‘अधिकतर भारतीय खामोश हताशा का जीवन जीते हैं.’
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