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Tuesday, 17 December, 2024
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भारतीय युवा कोरोना से लड़ने वाले योद्धा बनकर अर्थव्यवस्था को ला सकते हैं पटरी पर

लॉकडाउन में छूट देने के बाद बुज़ुर्गों का खास ख्याल रखना होगा लेकिन देश की युवा श्रमिक आबादी, जो दुनिया में सबसे बड़ी है, बन सकती है बड़ी पूंजी. 

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सरकार ने अर्थव्यवस्था के कई सेक्टरों को लॉकडाउन से मुक्त करने की योजना घोषित की है. ऐसे में देश की विशाल श्रमिक आबादी, जो दुनिया में सबसे युवा है, न केवल हमारी अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में मदद कर सकती है बल्कि कोविड-19 वायरस से लड़ने वाले योद्धा की भूमिका भी निभा सकती है.

एक-एक करके सेक्टरों को छूट देने के बाद खुदरा और असंगठित क्षेत्रों के कामगारों को छूट देने की योजना बनानी होगी. अर्थव्यवस्था को वापस अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए जरूरी है कि उपभोक्ता अपने घरों से बाहर निकलें. एक बार फिर कहना पड़ेगा कि हमारी युवा आबादी हमारी सबसे बड़ी पूंजी साबित होगी.

समूह की ताकत

जाने-माने महामारी विशेषज्ञ डॉ. जयप्रकाश मूलिईल ने हाल में एक इंटरव्यू में कहा कि समूहों की रोग प्रतिरोध क्षमता बढ़ाने की रणनीति बनाना जरूरी है. लॉकडाउन तो तैयारी के लिए समय लेने का एक उपाय भर है, इसे खत्म करने के बाद वायरस फिर हमला कर सकता है. डॉ. जयप्रकाश ने कहा कि हमें युवाओं को बाहर निकलने की छूट देते हुए बुज़ुर्गों का खास ख्याल रखना होगा. उन्हें अगर छह महीने तक सुरक्षित रखा जा सका, जब तक वायरस युवाओं को निशाना बनाए, तो वे भी सुरक्षित हो सकेंगे और वायरस संवेदनशील वाहकों के अभाव में एक से दूसरे व्यक्ति पर छलांग नहीं लगा सकेगा. चूंकि हम हमेशा के लिए लॉकडाउन नहीं रख सकते, न ही महीनों तक इसे चला सकते हैं जब तक कि इसका वैक्सीन तैयार नहीं हो जाता, तब तक रोग प्रतिरोध क्षमता मजबूत करना बेहद महत्वपूर्ण है.

हम नहीं जानते कि कोविड-19 के खिलाफ समूहों की प्रतिरोध क्षमता हासिल करने के लिए कितनी बड़ी आबादी की जरूरत पड़ेगी या किस सीमा के बाद ऐसा हुआ माना जाएगा. लेकिन एक सीमा के बाद, जब आबादी के करीब 85 प्रतिशत हिस्से यानी अधिकतर युवाओं को वायरस से सुरक्षित किया जा सकेगा तब उसका वाहक कोई नहीं होगा.

बुज़ुर्गों को सुरक्षित कर लेने से आपात उपचार की जरूरत घटेगी

बड़ा सवाल यह है कि जब ब्रिटेन जैसे देश सामूहिक सुरक्षा की कोशिश करने के बाद जल्दी ही लॉकडाउन की ओर फिर मुड़ गए, तब क्या भारत के लिए इस रणनीति को अपनाना संभव होगा? देशों की आबादी में उम्र के लिहाज से अनुपातों में अंतर के मद्देनज़र यह बिल्कुल संभव हो सकता है. ब्रिटेन, इटली, और चीन की आबादियों में 65 से ऊपर की उम्र वालों का अनुपात 20 से 25 प्रतिशत के बीच है और अमेरिका में यह 15 प्रतिशत है, जबकि भारत में यह 8.5 प्रतिशत ही है. इस वायरस के कारण गंभीर बीमार होने वाले या मारे जाने वालों में इसी आयुवर्ग के लोगों का प्रतिशत सबसे ज्यादा है.

सरकार इसी दिशा में सोचती दिख रही है. 14 अप्रैल के अपने सम्बोधन में प्रधानमंत्री ने लोगों से सात काम करने को कहा, जिसमें पहला काम बुज़ुर्गों को सुरक्षित रखना ही बताया. बुज़ुर्गों के लिए सलाह जारी करते हुए सरकार ने अनुमान लगाया है कि देश में 60 से ऊपर की उम्र के लोगों की आबादी 16 करोड़ होगी. इन सलाहों में निरंतर हाथ धोने से लेकर बाज़ार जाने से परहेज और किसी को गले न लगाने जैसे कई निर्देश दिए गए हैं और बताया गया है कि उन्हें क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए. इन पर अमीर-गरीब, सभी अमल कर सकते हैं.

भारत की मुख्य रणनीति यह रही है कि आपात स्वास्थ्य सेवा पर बोझ घटे, क्योंकि भारत के पास संसाधन की कमी है. इसके साथ ही मरीजों को क्वारेंटाइन करना और उनकी जांच करना, बुज़ुर्गों को सुरक्षा देना ही कोविड-19 के खिलाफ भारत की रणनीति का अहम पहलू होगा. इसे लागू करने से आपात स्वास्थ्य सेवा की जरूरत कम पड़ेगी.

भारत के प्रवासी मजदूरों को सघन आबादी वाली बस्तियों में 21 दिनों तक क्वारेंटाइन किया गया. उनके बीच सोशल डिस्टेंसिंग न होने के कारण उन्हें वायरस से खतरा बढ़ा. इन अधिकतर युवा मजदूरों में से कोरोना संक्रमण के मामले तो अब तक सामने नहीं आए हैं और दूसरी रुग्णता के भी काफी कम मामले ही उभरे हैं. जनसंख्या का लिहाज रखते हुए लॉकडाउन में छूट देने की रणनीति के तहत उन्हें अपने काम पर लौटने की मंजूरी दी जा सकती है.

‘युवा’ जिलों को जल्दी खोला जा सकता है

इस आधार पर एक-एक करके क्षेत्रवार लॉकडाउन खत्म करने की रणनीति अपनाई जा सकती है. 2011 की जनगणना के आधार पर हम देश के जिलों की आबादी का उम्रों के हिसाब से ब्यौरा तैयार किया जा सकता है. आज देश में 529 जिले ऐसे हैं जिनमें 85 प्रतिशत आबादी 60 से कम उम्र वाले लोगों की है. इनमें से ज़्यादातर जिले ‘ग्रीन ज़ोन’ वाले उन 353 जिलों में शामिल हैं जहां कोरोना का एक भी मामला नहीं मिला है. इन जिलों में युवाओं की आबादी का अनुपात काफी बड़ा होने के कारण उन्हें आपात स्वास्थ्य सेवा की काफी कम जरूरत होगी.

उन जिलों को दर्शाने वाला मानचित्र जहां 60 वर्ष से अधिक आयु के लोग 15 प्रतिशत से ऊपर या उससे कम हैं | चित्रण : इला पटनायक/दिप्रिंट

इन जिलों में भी बुज़ुर्गों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाना चाहिए. भारत में सेवानिवृत्ति की सामान्य उम्र 60 साल ही है. लॉकडाउन खत्म होने के बाद दफ्तर वगैरह जब खुलें तो उनमें युवाओं की संख्या ही ज्यादा हो, 60 से ऊपर की उम्र वालों को घर में ही रहने को कहा जा सकता है. 60 से कम उम्र वालों में अगर दूसरी रुग्णता हो तो उन्हें भी विकल्प चुनने का मौका दिया जा सकता है. इससे अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने में मदद मिलेगी. हो सकता है कि कुछ युवाओं को वायरस का संक्रमण हो जाए लेकिन उन्हें आपात स्वास्थ्य सेवा की कम ही जरूरत होगी और उन्हें जल्दी स्वस्थ किया जा सकेगा.

देश के 58 जिले ऐसे हैं जिनमें 60 से ऊपर की उम्र वालों की आबादी 10 प्रतिशत से भी कम है. उन जिलों को तुरंत खोला जा सकता है. 275 जिले ऐसे हैं जिनमें बुज़ुर्गों की आबादी 12.5 प्रतिशत से कम है, और इनका नंबर उनके बाद आ सकता है. बुज़ुर्गों की सबसे ज्यादा आबादी वाले अधिकतर जिले केरल में, और कुछ जिले तमिलनाडु में हैं. केरल में स्वास्थ्य सेवाएं सबसे उत्तम हैं और वहां मृत्युदर सबसे नीची और स्वास्थ्य लाभ की दर सबसे ऊंची है.

ब्रिटेन के, जिसकी आपात स्वास्थ्य सेवा व्यवस्था पर बोझ काफी पड़ा, मुक़ाबले भारत की स्थिति मुख्यतः इस दृष्टि से बेहतर है कि काफी जल्दी लॉकडाउन लगाए जाने के कारण लोग वायरस के बारे में ज्यादा जागरूक हुए और वे ज्यादा सावधानियां बरत सकते हैं. अंततः, आपसी शारीरिक दूरी बनाना, हाथ धोते रहना, बुज़ुर्गों द्वारा मास्क पहनना ऐसे उपाय हैं जो केवल पारिवारिक और व्यक्तिगत स्तर पर लागू किए जा सकते हैं.

लेकिन सबसे अहम सवाल आज यह है कि लोग अपनी आजीविका फिर से कैसे हासिल करें, जबकि अस्पताल लोगों की जान बचाने में लगे रहें. दीर्घकालिक सवाल यह है कि लोग कोरोनावायरस से लड़ने की ताकत कैसे हासिल करेंगे. वैक्सीन हासिल होने तक युवा ही कोरोना के खिलाफ लड़ने वाले योद्धा हैं. उनकी ताकत बढ़ाकर ही वायरस के फैलाव को रोका जा सकता है.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका एक अर्थशास्त्री हैं और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनान्स में प्रोफेसर हैं. ये उनके निजी विचार हैं.)

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