scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतचीन के मुकाबले भारत को खड़ा करना होगा अपना बुनियादी ढांचा, सिर्फ बायकॉट से नहीं बनेगी बात

चीन के मुकाबले भारत को खड़ा करना होगा अपना बुनियादी ढांचा, सिर्फ बायकॉट से नहीं बनेगी बात

टिकटॉक पर थिरकते हुए हम हाल के वर्षों में चीनी तकनीक के गुलाम हो गए, हमें यहां से अपना रास्ता बदलना होगा और अपनी बुनियादी संरचना खड़ी करनी होगी. वरना चीन की जगह हम किसी और पर निर्भर हो जाएंगे.

Text Size:

अब चीन से हमारा मुकाबला सिर्फ सैन्य शक्ति पर निर्भर नहीं है. 1990 के बाद चीन तमाम क्षेत्रों में भारत से आगे बढ़ा है. प्रति व्यक्ति आमदनी में वह विकसित देशों से मुकाबला कर रहा है. वहीं भारत इलेक्ट्रॉनिक्स, इलेक्ट्रिकल्स, ऐप, सोलर पैनल, बल्क ड्रग्स सहित ढेर सारे क्षेत्रों में चीन पर निर्भर हो गया है. इस स्थिति को बदलने के लिए ये जानना जरूरी है कि हम कहां चूक गए.

भारत 1947 में स्वतंत्र हुआ और 1950 को संविधान लागू हुआ. इसी के साथ पड़ोसी देश चीन ने 1949 को नए प्रशासनिक युग में प्रवेश किया. भारत की जिम्मेदारी जवाहरलाल नेहरू ने संभाली, जबकि चीन माओत्से तुंग के शासन में आया.

सकल घरेलू अनुपात (जीडीपी) के हिसाब से प्रति व्यक्ति आमदनी देखें तो विश्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक भारत की स्थिति 1990 तक चीन से बेहतर रही है. 1990 में भारत की प्रति व्यक्ति आमदनी 368 डॉलर थी, जबकि चीन की 318 डॉलर. उसके बाद चीन आगे निकला और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा. आज चीन के एक औसत आदमी की सालाना आमदनी एक भारतीय से पांच गुना ज्यादा है.

जीडीपी के आकार के हिसाब से देखें तो 1987 में दोनों देश बराबर थे. वहीं 2019 में चीन की जीडीपी भारत से लगभग 5 गुना बड़ी है.


यह भी पढ़ें: ओबीसी पर वज्रपात की तैयारी में बीजेपी, लाखों वेतनभोगी आरक्षण से बाहर होंगे


चीन का विकास बनाम भारत का ठहराव

ऐसे में यह देखना जरूरी हो जाता है कि आखिर भारत कहां चूका. 1978 में माओत्से तुंग की मृत्यु हो गई. तब तक बड़ी जनसंख्या के बोझ से कराहते चीन की आर्थिक प्रगति हाशिये पर थी. उसके बाद देंग श्याओ पिंग के नेतृत्व में चीन ने विदेशी निवेश मंगाने और अर्थव्यवस्था को खोलने की कवायद शुरू की और खासकर तटीय इलाकों में यह काम हुआ जिससे आयात-निर्यात सरल हो सके. वहीं भारत में परंपरागत सिद्धांत चलता रहा और बड़े निजी घरानों को प्रोत्साहन नहीं दिया जाता था. 1991 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद भारत की अर्थव्यवस्था खुलनी शुरू हुई.

बाजार खोलने के बाद चीन ने कारोबार व प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, ज्यादा बचत दर, मानव व भौतिक संसाधनों में भारी निवेश और मजबूत सूक्ष्म वित्त नीतियों के हिसाब से तेजी से प्रगति की है. चीन ने विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए और निर्यात केंद्रित उद्योगों पर जोर दिया. कारोबार के नियमों का पालन करते हुए इन क्षेत्रों में कारोबार पर ढील दी गई. चीन ने सबसे ज्यादा बुनियादी ढांचे पर खर्च किया. उसने अपने सस्ते श्रम का लाभ उठाया और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में आगे निकल गया.

इस दौरान भारत में भी बदलाव हुआ लेकिन वह चीन के पीछे-पीछे भागने लगा. भारत में भी श्रम सस्ता था. लेकिन भारत में कभी विशेष आर्थिक क्षेत्र बनाए जाते, कभी तटीय आर्थिक क्षेत्र. चीन की नकल में भारत पीछे छूटता गया. भारत ने श्रम आधारित क्षेत्र पर ध्यान देने के बजाय पूंजी आधारित क्षेत्रों पर जोर दिया. ऐसे में यहां रोजगार का संकट भी लगातार बना रहा. आर्थिक वृद्धि व राजस्व संग्रह उस रफ्तार से नहीं बढ़ पाया जितना चीन में बढ़ा.

2018 में भारत का आयात 61,800 करोड़ डॉलर रहा है और निर्यात 32,200 करोड़ डॉलर रहा है. आयात और निर्यात दोनों हिसाब से भारत चीन से बहुत पीछे है. इसके बावजूद भारत को वैश्विक व्यापार में 30,000 करोड़ रुपये का कारोबारी घाटा उठाना पड़ता है.


यह भी पढ़ें: सीएम बघेल की नजर जोगी के गढ़ मरवाही पर, लेकिन ‘टारगेट 70’ कांग्रेस के लिए आसान नहीं है


तकनीक की रेस में आगे बढ़ गया चीन

चीन ने तकनीक के मामले में भी बहुत प्रगति की है. भारत ने तनाव बढ़ने पर चीन के 59 एप पर प्रतिबंध लगाया है. भारत में प्रचलित शीर्ष एप में चीन सबसे आगे है. वहीं इलेक्ट्रॉनिक्स के क्षेत्र में चीन बहुत आगे है और 2019 में चीन ने 1.4 लाख करोड़ रुपये के सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स सामान भारत को बेच डाले.

नरेंद्र मोदी सरकार के कार्यकाल में बड़े पैमाने पर चीनी सामान के आयात को बढ़ावा दिया गया. सरकार की महत्त्वाकांक्षी सौर बिजली परियोजना चीन से 80 प्रतिशत पैनल आयात के आधार पर बनाई गई. मोबाइल व इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार पर चीन का कब्जा हो गया. टिकटॉक, हेलो, वीचैट, यूसी न्यूज जैसे चीनी एप भारत में छा गए थे.

भारत के प्रमुख स्टार्टअप बिग बॉस्केट, बैजू, देलहीवैली, ड्रीम, फ्लिपकार्ट, हाइक, ओला, ओयो, पेटीएम मॉल, पेटीएम डॉट कॉम, रिविगो, स्नैपडील, स्विगी, उड़ान, जोमैटो, मेक माई ट्रिप में चीन ने भारी निवेश किया है, जो भारत में लोकप्रिय हैं. यानि पिछले 6 साल में भारत इस स्थिति में आ गया है कि कुछ भी ऐसा नहीं है, जहां चीन की मौजूदगी न हो. हमने देखा है कि ब्लैक ऐंड व्हाइट मोबाइल से एंड्रायड मोबाइल तक और ब्लैक ऐंड व्हाइट टीवी से स्मार्ट टीवी का सफर कितना तेज चला है और वैश्विक तकनीक का विकास कितनी तेजी से हुआ है. वहीं हम हाल के वर्षों में तकनीक के मामले में चीन के गुलाम की तरह हो गए हैं.


यह भी पढ़ें: कोरोना संकट में ईश्वर की सत्ता का कुछ नहीं बिगड़ा, तस्लीमा नसरीन गलत साबित हुईं


सिर्फ बहिष्कार से नहीं बनेगी बात

ये समझना जरूरी है कि बहिष्कार से चीन का मुकाबला नहीं किया जा सकता है. चीन से आयात रोकने पर भी कोई असर नहीं पड़ने वाला है क्योंकि ऐसी स्थिति में किसी दूसरे देश से सामान का आयात करना होगा और भारत का कारोबारी संतुलन बिगड़ा रहेगा.

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए जरूरी यह है कि देश के भीतर बुनियादी ढांचे, तकनीक, शिक्षण एवं प्रशिक्षण का विकास हो. कच्चे व तैयार माल के आयात पर निर्भरता कम की जाए. खासकर ऐसी स्थिति में, जब अमेरिका व यूरोप के बड़े देश अपने आयात को डाइवर्सीफाई करके चीन पर निर्भरता घटाना चाहते हैं, ऐसे में भारत को एक विकल्प के रूप में पेश करने की जरूरत है, जिससे सीमा पर खतरा बन चुके चीन का आर्थिक मुकाबला किया जा सके.

(लेखिका राजनीतिक विश्लेषक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

share & View comments