scorecardresearch
Friday, 12 December, 2025
होममत-विमतभारत हमेशा ऐसा नहीं था, हालात आज जितने खराब हैं, पहले कभी नहीं रहे

भारत हमेशा ऐसा नहीं था, हालात आज जितने खराब हैं, पहले कभी नहीं रहे

क्या भारत की व्यवस्था हमेशा इतनी लापरवाह थी कि नेता लोगों को ज़हर खाए, फंसे हुए या ज़िंदा जलते देखते रहें और कुछ भी न हो?

Text Size:

क्या आपको कभी लगता है कि एक मिडिल-क्लास भारतीय के तौर पर आपका अपनी लाइफ पर से कंट्रोल खत्म हो गया है? कि आज, पहले से कहीं ज्यादा, आप ऐसी परिस्थितियों की दया पर हैं जो पूरी तरह आपके बस में नहीं हैं? और कि पहले से ज्यादा टैक्स देने के बावजूद, सरकार की तरफ से आपको कम से कम मिल रहा है? यहां तक कि आपकी सेहत और सुरक्षा भी खतरे में है.

मुझे तो अब ऐसा महसूस होने लगा है. बहुत कम बार ऐसा हुआ है कि मुझे लगा हो मैं एक कॉर्क की तरह गंदे पानी की बाढ़ में बिना किसी दिशा के इधर-उधर बह रहा हूं.

ये शुरुआत हवा से होती है. मैं काफी यात्रा करता हूं और एक वक्त था जब मैं दिल्ली लौटने के लिए बेचैन रहता था. खासकर सर्दियों में दिल्ली के खिलते फूल, पेड़-पंक्तिवाली सड़कें और हवा की हल्की सी ठंडक सबकी याद आती थी.

अब ऐसा नहीं है.

मुझे पता चल जाता है कि मैं दिल्ली पहुंच गया हूं, जैसे ही मेरी आंखों में जलन शुरू होती है और गला ऐसे लगता है जैसे किसी ने सैंडपेपर रगड़ दिया हो. मेरी पत्नी, जिन्हें अस्थमा की प्रॉब्लम है, उन्हें रात में सांस लेने और सोने में तकलीफ होती है.

‘कोई समाधान नहीं है’

हम जानते हैं कि दिक्कत क्या है. मैं तीन दशकों से ज्यादा समय से दिल्ली में रह रहा हूं और मैंने डर के साथ देखा है कि कैसे हवा में धीरे-धीरे और ज्यादा ज़हर घुलता गया. अब दिल्ली दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर है और यह धुंधभरी चादर एक गंभीर स्वास्थ्य खतरा है.

दिल्ली में बढ़ता प्रदूषण कई वजहों से है—जैसे भौगोलिक स्थिति और हवा की दिशा, लेकिन एक झूठ हमें लगातार सुनाया गया है: कि कोई समाधान नहीं है. “सब कोशिश कर ली, कुछ काम नहीं करता”—यही कहानी हमें सुनाई जाती है.

नेताओं को यह झूठ सुनाना फायदेमंद लगता है, लेकिन सच यह है कि हमारी जैसी हालत वाले लगभग हर शहर ने असल में समाधान ढूंढ लिए हैं. सबसे बड़ा उदाहरण चीन है, जहां हवा हमारी तरह ही ज़हरीली थी, जब तक कि सरकार ने उसे साफ करना शुरू नहीं किया.

और ये समाधान कोई मुश्किल भी नहीं हैं. कुछ हफ्ते पहले अमिताभ दुबे ने दिप्रिंट के लिए लिखे अपने कॉलम में कुछ उपाय बताए थे. दूसरों ने भी समझदारी भरे सुझाव दिए हैं, लेकिन इनमें से कोई भी लागू नहीं किया जाएगा, हालांकि, बीजेपी अब केंद्र, राज्य और नगर निगम तीनों जगह सरकार चलाती है.

प्रदूषण से लड़ने की राजनीतिक इच्छा ही नहीं है. बल्कि, जो उपाय पहले से हैं, उन्हें भी कमज़ोर करने की कोशिश होती है. GRAP जल्दी ही CRAP बन जाता है, एयर पॉल्यूशन के आंकड़े घुमा दिए जाते हैं और नागरिकों से कहा जाता है कि “क्योंकि कोई समाधान नहीं है, हमें इसी जहरीली हवा में जीना पड़ेगा.”

कुछ हिस्सा तो मूर्खता का है: दिल्ली का एक्यूआई, दिल्ली के मंत्रियों के आईक्यू से तीन-चार गुना ज्यादा है, लेकिन इसमें लालच भी जुड़ा हुआ है. प्रदूषण नियंत्रण के कदम उठाने से ठेकेदारों, बिल्डरों, ट्रांसपोर्टरों और प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को नुकसान होगा. इसलिए नेताओं के लिए यही आसान है कि हमें बताते रहें कि कुछ नहीं किया जा सकता और अपनी मलाई चलाते रहें.

इंडिगो संकट

आप चाहें तो दिल्ली से भागने की कोशिश कर सकते हैं. पर इससे भी और परेशानियां सामने आ जाती हैं. कई दिनों से इंडिगो, जो भारत की सबसे बड़ी एयरलाइन है, पूरी तरह ठप पड़ी है. दिल्ली से फ्लाइट मिलनी मुश्किल हो गई है.

सरकार आपको बताएगी कि इंडिगो बहुत बुरी है, गैर-जिम्मेदार है, लेकिन मामला इससे थोड़ा ज्यादा जटिल है. असल दिक्कत ये है कि जब पायलटों के फ्लाइट-ड्यूटी नियम बदले गए, तब साफ हो गया कि सभी एयरलाइनों को पहले जितने प्लेन उड़ाने हैं, उसके लिए ज्यादा पायलट रखने होंगे.

ज्यादातर एयरलाइनों ने नए पायलट रख भी लिए, लेकिन इंडिगो ने नहीं रखे और यह बात छुपी नहीं रही. जब देश की सबसे बड़ी एयरलाइन (इंडिगो अकेली ही बाकी सब एयरलाइनों से बड़ी है) पर्याप्त पायलट नहीं रखती, तो लोग पूछते हैं कि आखिर हो क्या रहा है.

सिविल एविएशन मंत्रालय (MoCA) के रेगुलेटरों को ये बात दिखी ही होगी, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया. इसलिए जब नए नियम लागू हुए, इंडिगो के पास उड़ान भराने लायक पायलट नहीं थे और नतीजतन पूरा सिस्टम गड़बड़ा गया.

अब मंत्रालय अपनी खराब छवि सुधारने के लिए इंडिगो को ही बुरा-भला कह रहा है, लेकिन वे वो एक काम नहीं करेंगे जो यात्रियों के लिए मददगार हो—इंडिगो को आदेश देना कि जिनकी फ्लाइट अचानक रद्द हुई, उन्हें मुआवज़ा दिया जाए. इसके अलावा, जिन रेगुलेटरों ने यह सब होने दिया, उनमें से किसी को भी नौकरी से नहीं हटाया गया.

इंडिगो संकट जहां रेगुलेटरों ने आंखें बंद कर लीं—भारतीय सिस्टम का ही एक प्रतीक है. पिछले एक दशक से, गोवा की स्थिति को करीब से देखने वाले लगभग सभी लोग कहते आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि सही लोगों को पैसा दो, तो कुछ भी गैर-कानूनी काम कराया जा सकता है. कोई भी नियम ईमानदारी से लागू नहीं होता और पर्यटन सीज़न हमेशा किसी बड़े हादसे का इंतज़ार करता हुआ लगता है.

क्या हमेशा ऐसा था?

पिछले हफ्ते, एक घटिया नाइटक्लब में लगी आग में 20 से ज्यादा लोग मारे गए. फायर नियमों का पालन नहीं किया गया था और जिन लोगों को आग लगी, उनके लिए बाहर निकलने का रास्ता भी पर्याप्त नहीं थे.

थोड़ी बहुत बात हो रही है कि नाइटक्लब के मालिकों को थाईलैंड से वापस लाया जाए, जहां वे भाग गए, लेकिन एक भी सरकारी अधिकारी को गिरफ्तार नहीं किया गया. वे आगे भी रिश्वत लेने के लिए पूरी तरह से आज़ाद हैं.

जब हर दिन ऐसी-ऐसी खबरें आती हैं, तो मैं सोचता हूं—क्या हमेशा से ऐसा ही था? क्या हमारी व्यवस्था इतनी ढीली थी कि नेता आराम से बैठे रहें और नागरिकों को ज़हर खाते, फंसे रहते या ज़िंदा जलते देखते रहें? और क्या वे हमेशा बिना किसी सज़ा के बच निकलते थे?

शायद मैं अतीत को ज़्यादा अच्छा दिखा रहा हूं, लेकिन मेरा मानना है कि हालात पहले कभी आज जितने खराब नहीं थे. हम हमेशा भ्रष्ट नेताओं की दया पर रहे हैं, लेकिन वे आज जितने बेपरवाह और खुलेआम नहीं थे. यह पार्टी की राजनीति का सवाल नहीं है. 2014 में हमने यूपीए को हटाया. लेकिन ऊपर दिए सभी उदाहरण एनडीए की जिम्मेदारी हैं.

अधिकतर गलती हमारी है. हम अब ऐसा समाज बन गए हैं जो संसद में 10 घंटे राष्ट्रगीत पर बहस करता है, न कि उन असली समस्याओं पर जिनसे भारत जूझ रहा है.

नेता ऐसा क्यों करते हैं? क्योंकि हम उन्हें करने देते हैं. हम शिकायत करेंगे, बड़बड़ाएंगे, लेकिन जब वोट डालने जाएंगे, इनमें से कुछ भी मायने नहीं रखेगा.

और हमें वही सरकारें मिलेंगी, जिनके हम हकदार हैं.

(वीर सांघवी एक प्रिंट और टेलीविजन पत्रकार हैं और टॉक शो होस्ट हैं. उनका एक्स हैंडल @virsanghvi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: इंडिगो का संकट खराब मैनेजमेंट का नतीजा है, पायलटों को इसके लिए दोष देना गलत है


 

share & View comments