scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतभारत को लगता है कि कूटनीति से दूर वन्यजीवन में भेजकर ज़्यादा आईएफएस अफसर बन जाएंगे

भारत को लगता है कि कूटनीति से दूर वन्यजीवन में भेजकर ज़्यादा आईएफएस अफसर बन जाएंगे

Text Size:

विदेश सेवाएँ यूपीएससी परीक्षा के हरफ़नमौला स्वभाव की सबसे बड़ी दुर्घटना हैं।

मोदी सरकार द्वारा नई दिल्ली में मुट्ठीभर संयुक्त सचिव पदों के लिए लेटरल एंट्री की शुरुआत करने के बाद इस महीने नौकरशाही मण्डलियों में सिविल सेवा सुधार के इर्द-गिर्द चर्चा का माहौल रहा है। लेकिन अभी के लिए लेटरल एंट्री पर बहस को एक तरफ छोड़ते हैं। भारतीय सिविल सेवकों की भर्ती कैसे की जाती है के साथ एक और मौलिक समस्या पर प्रकाश डालने का यह सही समय है: आज दुनिया में कोई भी बड़ा देश अपने राजनायिकों, कर संग्रहकर्ताओं, पुलिस अधिकारियों और रेलवे अधिकारियों को एक एकल आम परीक्षा के आधार पर नहीं चुनता है। और, कई वर्षों से, कई टिप्पणीकारों, शोधकर्ताओं और सभी विचारधाराओं के राजनेताओं ने इंगित किया है कि वे मानते हैं कि भारतीय सिविल सेवाओं के भीतर विशेषज्ञता और ताज़ा सोच की कमी है।

2015 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने “सरकार में नई ऊर्जा और विचारों के [संचार]” के लिए कहते हुए कहा था कि यह “नौकरशाहों के स्थान को पेशेवरों और क्षेत्र विशेषज्ञों से बदलने” का समय है। उसके अगले साल विदेश मामलों की संसदीय स्थायी समिति ने विदेश सेवा में क्षेत्र विशेषज्ञों की आवश्यकता पर गौर किया, यह बताते हुए कि  राजनायिकों को अब जलवायु परिवर्तन और साइबर सुरक्षा जैसे तकनीकी मुद्दों पर काम करने की आवश्यकता है।

अब, लेटरल एंट्री खोलने की अपनी नवीनतम अधिसूचना में कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने इन भावनाओं को दोहराया है और कहा है: लेटरल एंट्री के प्रस्ताव का उद्देश्य है शासन के लिए नए विचारों और नये दृष्टिकोणों को लाना और साथ ही जनशक्ति को भी बढ़ाना।

यूपीएससी, पुलिस सेवा और राजस्व सेवा से लेकर विदेश सेवा और यहाँ तक कि रेलवे यातायात सेवा तक कई अलग-अलग सेवाओं के लिए एक आम परीक्षा के माध्यम से अधिकारियों का चयन करती है। फिर भी, आधुनिक दुनिया की जटिलताओं का मतलब है कि इन एजेंसियों और विभागों में से प्रत्येक के पास कौशल और योग्यता में अपनी स्वयं की विशेषीकृत आवश्यकताएं हैं: कराधान के मुद्दे पुलिस और सुरक्षा के मुद्दों से अलग हैं; और रेलवे प्रबंधन के मुद्दे कूटनीतिक मुद्दों से थोड़ा-बहुत ही मेल खाते हैं।

सामान्यज्ञ परीक्षा उन उम्मीदवारों को सक्रिय रूप से निकाल फेंकती है जो हो सकता है एक सेवा की अपेक्षा दूसरी सेवा के लिए बेहतर अनुकूल हों। विदेश सेवा को ही ले लीजिये, जो कि तर्कसंगत रूप से एक सामान्यज्ञ परीक्षा की सबसे बड़ी शिकार है। अधिकांश लोग इस बात से सहमत होंगे कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों का एक छात्र वन्यजीवन अध्ययन के छात्र की तुलना में विदेश सेवा में करियर के लिए बेहतर अनुकूल है। फिर भी, 2014 में, यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीति पर मात्र चार प्रश्न ही पूछे गए थे जबकि भूगोल और वन्यजीवन पर 17 सवाल पूछे गए थे।

अगले साल, परीक्षा में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर मात्र 8 प्रश्न ही थे जबकि इसमें भूगोल और वन्यजीवन पर 16 प्रश्न शामिल थे; अतएव उस नौकरी के लिए बेहतर अनुकूल हो सकने वाले आकांक्षी राजनायिकों को वन्यजीवन का अध्ययन करने वाले छात्रों के सापेक्ष एक बड़ी हानि पहुंचाई थी।

प्रक्रिया के अगले चरण, मुख्य परीक्षा, में यह और भी खराब हो जाता है जहाँ अंतर्राष्ट्रीय सम्बन्ध एक वैकल्पिक विषय है जिसका प्रभावी ढंग से अर्थ यह है कि विदेश सेवा के लिए उम्मीदवार भू-राजनीति पर एक भी प्रश्न का उत्तर दिए बगैर इंटरव्यू तक संभावित रूप से आगे बढ़ सकता है।

भारत की कॉमन सिविल सेवा परीक्षा एक ऐसे युग से आती है जहाँ नीति निर्माण की आवश्यकताएं बहुत कम विशेषीकृत और जटिल होती थीं। 1800 के दशक में, कई पश्चिमी सरकारों ने नामांकन प्रणाली के माध्यम से सिविल सेवकों को नियुक्त किया था, जिससे नौकरशाही राजनीतिक छेड़छाड़ के अधीन थी।

सुधार के लिए पुकार जल्द ही ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में फैल गयी। 1855 में ब्रिटिश नौकरशाह सर चार्ल्स ट्रेवेलियन ने एक रिपोर्ट का सह-लेखन किया जिसमें ब्रिटिश संसद से नागरिक सेवाओं को एकजुट करने और कई विभागों और मंत्रालयों में भर्ती के लिए एक आम सामान्य परीक्षा आयोजित करने का आग्रह किया गया। नतीजतन, उसी वर्ष एक सिविल सेवा आयोग की स्थापना की गयी और भारतीय सिविल सेवा सहित कई अलग-अलग पदों में भर्ती के लिए लन्दन में एक वार्षिक परीक्षा आयोजित की गयी। यह सही मायने में एक ब्रिटिश विकास था; जब अमेरिका ने 1883 में स्वयं के सिविल सेवा आयोग की स्थापना की तो उसने सभी नौकरियों के लिए एक परीक्षा प्रणाली का अनुसरण करने से इनकार कर दिया। उदाहरण के लिए, 1900 में अमेरिकी आयोग ने विभिन्न विभागों और पदों के लिए 460 से अधिक परीक्षाएं आयोजित कीं।

वह 1800 का दशक था। 20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध तक, जैसा कि शासन के दायरे का विस्तार हुआ था, ब्रिटेन ने भी अपनी आम परीक्षा को समाप्त करना शुरू कर दिया था और इसके स्थान पर नौकरशाही में प्रवेश के कई चैनलों और डोमेन विशेषज्ञों के पृष्ठभूमि ज्ञान को महत्व देने की अनुमति दी थी।

आज, ब्रिटेन और अमेरिका दोनों भर्ती की एक विकेन्द्रीकृत संरचना का पालन करते हैं: प्रत्येक एजेंसी और विभाग उपयुक्त उम्मीदवारों को अपनी स्वयं की विशिष्ट आवश्यकताओं के आधार पर चुनता है, हालाँकि सामान्य दिशनिर्देशों के एक व्यापक समूह के अनुसार। विभाग सार्वजनिक नीति के क्षेत्रों में हाई स्कूल के मेधावी छात्रों को उनकी उच्च शिक्षा में सहूलियत के लिए फेलोशिप की भी पेशकश करते हैं और उसके बाद सरकार में उनके प्रवेश का प्रस्ताव देते हैं।

विकेंद्रीकरण के आलोचक तर्क देंगे कि भारत का आकार और आबादी अलग-अलग परीक्षाओं की अनुमति नहीं देता है; लेकिन फिर, चीन को ले लीजिए जो ब्रिटेन की आम परीक्षा प्रणाली के लिए मूल प्रेरणा है। जबकि चीन अभी भी सभी सिविल सेवा उम्मीदवारों के लिए स्क्रीनिंग टेस्ट के रूप में एक आम परीक्षा आयोजित करता है लेकिन भर्ती प्रत्येक विभाग द्वारा भिन्न-भिन्न रूप से अपनी स्वयं की विशेषीकृत परीक्षा और इंटरव्यू के माध्यम से की जाती है (और यूपीएससी प्रारंभिक परीक्षा के विपरीत, जहाँ प्रारंभिक स्क्रीनिंग टेस्ट देने वाले 25 प्रतिशत लोग अक्सर विशेषीकृत परीक्षाओं के लिए अर्हता प्राप्त कर लेते हैं)। यहाँ तक कि ब्रिटिश आम परीक्षा प्रणाली की साझा विरासत रखने वाले सिंगापुर में भी सिविल सेवकों को अब प्रत्येक विभाग द्वारा अपने विशेष कार्मिक बोर्ड के माध्यम से भर्ती किया जाता है, जबकि लोक सेवा आयोग अब बड़े पैमाने पर मध्यस्थता प्राधिकारी के रूप में कार्य करता है।

भारत की भर्ती प्रणाली अब सुधार के लिए परिपक्व है और चुनने के लिए कई व्यवहार्य विकल्प उपलब्ध हैं। सिंगापुर की तरह, प्रत्येक मंत्रालय स्वतंत्र कर्मियों के बोर्डों के माध्यम से अपने स्वयं के सिविल सेवकों की भर्ती कर सकता है। परीक्षा आधारित भर्ती की निष्पक्षता को वैधानिक दिशानिर्देशों को पारित करके कायम रखा जा सकता है। ये दिशानिर्देश विभागों और मंत्रालयों को परीक्षाएं बरकरार रखने के लिए बाध्य करते हैं जबकि उन्हें उनके नौकरियों, जिन्हें वे भरना चाहते हैं, के आधार पर परीक्षा की सामग्री चुनने की अनुमति देते हैं।

यहां तक कि सामान्य सिविल सेवा परीक्षा अस्थायी रूप से बरकरार रखी जा सकती है, जबकि विशेषज्ञ आवेदकों के अनुभव और शैक्षिक पृष्ठभूमि को महत्व देने के लिए भर्ती के वैकल्पिक चैनल खोले गये हैं। यह वह समस्या नहीं है जिसका समाधान नहीं है; यह वह समस्या है जिस पर चर्चा नहीं है।

लेखक कोलंबिया विश्वविद्यालय में अंतरराष्ट्रीय मामलों के विशेषज्ञ हैं और विदेश मामलों के एक समीक्षक हैं।

यह लेख मूल रूप से डेक्कन हेराल्ड में प्रकाशित हुआ था।

Read in English : India thinks it can produce IFS officers by testing them on wildlife more than geopolitics

share & View comments