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Friday, 17 May, 2024
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काला सागर बंदरगाह खोलने के लिए भारत को रूस पर दबाव डालना चाहिए, इस साल अफ्रीका को भारतीय चावल नहीं मिलेगा

भारत के नेपाल और बांग्लादेश में रणनीतिक हित हैं, इसलिए संभव है कि राजनयिक विचारों के आधार पर इन देशों को सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी जाएगी.

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जुलाई 2023 के पिछले दो हफ्तों में, गेहूं और चावल की वैश्विक आपूर्ति – सबसे अधिक खपत होने वाला अनाज – को अप्रत्याशित झटका लगा है. अफ़्रीका और पश्चिम एशिया के ग़रीब देशों पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा. हालांकि, आर्थिक सिद्धांतकारों सफेद, गैर-बासमती चावल (जुलाई 2023 में) और गेहूं (मई 2022 में) के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के भारत के फैसले में गलत मान सकते हैं, लेकिन सरकार विशाल जनता के हितों की अनदेखी नहीं कर सकती, जिनके लिए गेहूं और चावल प्रमुख भोजन हैं.

मार्च 2022 के बाद से, लगभग एक साल में, प्रतिकूल मौसम की घटनाओं से पता चला है कि भारत के पास बहुत थोड़ा फूड सरप्लस है और इसलिए प्रतिकूल परिस्थितियों में है. घरेलू खाद्य मुद्रास्फीति पर काबू पाने के लिए भारत हरसंभव कोशिश करेगा.

और केवल गेहूं और चावल ही नहीं हैं जिन्होंने खाद्य मुद्रास्फीति में योगदान दिया है. सब्जियों, खासकर टमाटर और दालों की कीमतें भी भारतीय उपभोक्ताओं की जेब पर असर डाल रही हैं.

खाद्य आपूर्ति और खपत का अनुमान

उत्पादन (आपूर्ति) और मांग (खपत) का अनुमान लगाकर भविष्य के फूड सरप्लस का अनुमान लगाया जा सकता है. भारत सरकार खाद्य पदार्थों की मांग का वार्षिक अनुमान जारी नहीं करती है.

जुलाई 2016 में, नीति आयोग ने चावल, गेहूं, मक्का, अन्य मोटे अनाज, दालें, खाद्यान्न, तिलहन, गन्ना, फल, सब्जियां और दूध, मांस, अंडा, मछली आदि जैसे पशु उत्पादों की आवश्यकताओं का अनुमान लगाने के लिए एक कार्य समूह का गठन किया. इसे घरेलू उपयोग और निर्यात की मांग का अनुमान लगाने का काम सौंपा गया था.

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कार्य समूह ने अपनी रिपोर्ट फरवरी 2018 में प्रस्तुत की. इसलिए, विभिन्न खाद्य पदार्थों की खपत का आधिकारिक अनुमान पांच साल से भी अधिक पहले लगाया गया था. डेटा उतना ही पुराना है.

2021-22 के लिए, चावल की मांग 109.28 मिलियन टन (mt) अनुमानित की गई थी, जबकि गेहूं की मांग 97.12 mt अनुमानित थी. अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ‘विश्व कृषि आपूर्ति और मांग अनुमान’ (डब्ल्यूएएसडीई) शीर्षक से एक मासिक रिपोर्ट प्रकाशित करता है जो विभिन्न देशों में गेहूं, चावल, मोटे अनाज आदि की आपूर्ति और मांग का अपना अनुमान देता है.

2023-24 के लिए, भारतीय गेहूं उत्पादन का WASDE अनुमान 113.5 मिलियन टन और खपत 108.10 मिलियन टन है.

चावल के लिए, अनुमानित उत्पादन 129.47 मिलियन टन है जबकि मांग 110.45 मिलियन टन है. WASDE ने 22.03 मिलियन टन चावल और 1 मिलियन टन गेहूं के निर्यात का अनुमान लगाया है.

यह स्पष्ट है कि WASDE को यह अनुमान नहीं था कि भारत द्वारा सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. प्रतिबंध से पता चलता है कि सरकार अनियमित मानसून और अल-नीनो के प्रभाव के कारण चावल के कम उत्पादन की वास्तविक संभावना से चिंतित है.

हालांकि, कृषि और किसान कल्याण विभाग द्वारा जारी आपूर्ति (उत्पादन) अनुमान पर व्यापार जगत में सवाल उठाए जाते हैं.

उदाहरण के लिए, 2022-23 में गेहूं उत्पादन का सरकार का तीसरा अग्रिम अनुमान (2023-24 में विपणन) 112.74 मिलियन टन है. यदि यह सही है, तो जून 2023 में 12.37 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर की व्याख्या करना मुश्किल है, भले ही गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध है और आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत स्टॉक सीमाएं लगाई गई हैं.

56.8 मिलियन टन चावल की रिकॉर्ड उच्च खरीद और केंद्रीय पूल में 41 मिलियन टन चावल के स्टॉक के बावजूद, जून 2023 में चावल की मुद्रास्फीति 11.78 प्रतिशत थी जिसकी वजह से सरकार ने गैर-बासमती सफेद चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बारे में सोचा होगा.


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भारत से निर्यात

गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध के बावजूद, 2022-23 में 4.69 मिलियन टन का गेहूं का निर्यात किया गया क्योंकि सरकार ने अनाज के निर्यात की अनुमति दी थी जिसके लिए मई 2023 में प्रतिबंध लगाने से पहले लेटर ऑफ क्रेडिट खोले गए थे. इस साल भी, राजनयिक स्तर पर विचार करके सरकार द्वारा कुछ निर्यात की अनुमति दी जा सकती है.

2022-23 में भारत ने 4.50 मिलियन टन बासमती चावल का निर्यात किया. 17.78 मिलियन टन गैर-बासमती चावल में से 7.8 मिलियन टन उबले हुए (भुजिया) चावल थे. कई गरीब देश अपनी खाद्य मांग के लिए भारतीय चावल पर निर्भर हैं.

ग्राफिक: प्रज्ञा घोष | दिप्रिंट

आगे की राह

प्रतिबंध के बावजूद, हम इस वर्ष भारत से लगभग 5 मिलियन टन बासमती चावल और लगभग 8 मिलियन टन उबले चावल के निर्यात की उम्मीद कर सकते हैं. हालांकि, अफ्रीका और पश्चिम एशिया के कई गरीब देशों को अभी भी अपनी आवश्यकता को पूरा करना मुश्किल हो सकता है क्योंकि वे भारतीय गैर-बासमती चावल पर बहुत अधिक निर्भर हैं.

भारत के नेपाल और बांग्लादेश में रणनीतिक हित हैं, इसलिए संभव है कि राजनयिक विचारों के आधार पर उन्हें सफेद गैर-बासमती के निर्यात की अनुमति दी जाएगी.

अब तक मानसून की बारिश अनियमित रही है लेकिन चावल की फसल अभी भी अच्छी हो सकती है क्योंकि पिछले 10 दिनों में दक्षिणी राज्यों में अच्छी बारिश हुई है. यदि अब से अगस्त तक वर्षा बहुत कम नहीं हुई है और अच्छी तरह से समान रूप से वर्षा हुई तो सरकार को चावल निर्यात के अपने प्रतिबंध पर पुनर्विचार करना पड़ सकता है.

चावल उत्पादन को लेकर सरकार सहज महसूस कर सकती है और निर्यात पर प्रतिबंध की समीक्षा की जा सकती है.

काला सागर के बंदरगाहों पर रूस की रोक से गरीब देशों के लिए यूक्रेन से गेहूं आयात करना मुश्किल हो जाएगा. पिछले साल के अनाज सौदे ने यूक्रेनी बंदरगाहों से लगभग 33 मिलियन टन खाद्य पदार्थों को निर्यात करने में सक्षम बनाया था.

इसलिए, यूक्रेन से काला सागर निर्यात पर रूसी नाकाबंदी अधिक गंभीर है और इसका कोई अंत नजर नहीं आ रहा है.

हम चाहते हैं कि भारत G-20 बैठकों में नेतृत्व प्रदान कर रूस को काला सागर निर्यात पर प्रतिबंध हटाने के लिए राजी करे ताकि गरीब देशों की खाद्य सुरक्षा से समझौता न हो.

(सिराज हुसैन पूर्व केंद्रीय कृषि सचिव हैं. सीमा बाथला क्षेत्रीय विकास अध्ययन केंद्र, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली में प्रोफेसर हैं. विचार व्यक्तिगत हैं.)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां पर क्लिक करें.)


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