प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी औपचारिक और सार्वजनिक तौर पर साफ इरादा जाहिर कर चुके हैं कि पहलगाम में 26 बेकसूर नागरिकों की बर्बर हत्या करने वालों और उनके आकाओं को इसकी सजा दी जाएगी. 24 अप्रैल को बिहार के मधुबनी में एक जनसभा में उन्होंने कहा: “अब आतंकियों की बची-खुची जमीन को भी मिट्टी में मिलाने का समय आ गया है”.
अंतरराष्ट्रीय समुदाय की ओर मुखातिब होते हुए अंग्रेजी में उन्होंने कहा कि “आज, बिहार की धरती से मैं पूरी दुनिया से कह रहा हूं कि भारत हर आतंकवादी और उसके समर्थकों की पहचान और खोज करके उन्हें सजा देगा. हम इस पृथ्वी के अंतिम छोर तक उनका पीछा करेंगे… पूरे देश ने यह मजबूत संकल्प लिया है… सजा इतनी बड़ी और इतनी सख्त होगी कि उन आतंकवादियों ने उसकी कल्पना तक नहीं की होगी.”
प्रधानमंत्री ने सेना को राजनीतिक स्तर पर औपचारिक निर्देश देने के लिए 30 अप्रैल को एक उच्चस्तरीय बैठक की, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ अनिल चौहान, और तीनों सेनाओं के अध्यक्ष भी शामिल हुए. अखबार ‘इंडियन एक्सप्रेस’ ने सूत्रों के हवाले से खबर दी कि प्रधानमंत्री ने “सेना की पेशेवराना क्षमता में पूरा भरोसा” जाहिर करते हुए जोर देकर कहा कि “आतंकवाद को कुचल डालना हमारा राष्ट्रीय संकल्प” है. प्रधानमंत्री को यह कहते हुए जिक्र किया कि तीनों सेना को “हमारे जवाब का तरीका, उसका लक्ष्य, और उसका समय तय करने की पूरी स्वतंत्रता है”.
यानी, पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य कार्रवाई करने की तैयारी तो है. केवल यह तय करना बाकी रह गया है कि यह कार्रवाई कब, कैसी, और किस पैमाने पर होगी. और इन सबके बारे में फैसला सेना पर छोड़ दिया गया है. “कार्रवाई की स्वतंत्रता” के बारे में ‘सरकारी सूत्रों’ की मासूमियत अपनी जगह है, मुझे इस बात में कोई संदेह नहीं दिखता कि प्रधानमंत्री ने सैन्य नेतृत्व को अपने राजनीतिक लक्ष्य के अलावा कार्रवाई शुरू करने के समय, उसकी अवधि और पैमाने की राजनीतिक सीमा के बारे में औपचारिक निर्देश दे दिया है. आश्चर्य की बात यह है कि औपचारिक रणनीतिक निर्णय खुले तौर पर किया गया है, जिससे प्रतिद्वंद्वी के मन में अनिश्चितता और दुविधा समाप्त कर दी गई है.
राजनीतिक लक्ष्य
पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध या किसी सैन्य कार्रवाई से नीचे के स्तर की पहल का राजनीतिक लक्ष्य उसे जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के जरिए छद्म युद्ध और दूसरे किसी हिस्से में ऐसी किसी कार्रवाई करने से रोकना है. यह लक्ष्य हासिल करने का फैसला करते समय कई प्रधानमंत्रियों को इस दुविधा का सामना करना पड़ा है कि संपूर्ण आक्रामक कार्रवाई के मकसद से किए गए युद्ध की आर्थिक और सैन्य कीमत चुकाने को तैयार रहें, या परिस्थिति को काबू में करने के लिए यह सावधानी बरतते हुए सीमित कार्रवाई की जाए कि वह पूर्ण युद्ध का रूप न ले. नतीजे को लेकर अनिश्चितता और राजनीतिक रूप से नुकसानदेह झटके की आशंका इस दुविधा को बढ़ाती रही है.
यहां यह जिक्र करना उपयुक्त होगा कि 35 साल पहले जम्मू-कश्मीर में छद्म युद्ध शुरू होने के बाद से, युद्ध से नीचे के स्तर की जो सैन्य कार्रवाइयां की जाती रहीं उन्होंने पाकिस्तान को बाज आने को मजबूर नहीं किया. ये कार्रवाई हालात को काबू में करने के उपायों, हमलों, एलओसी के आसपास छोटे पैमाने पर गुप्त हमलों से लेकर मोदी के अधीन 2016 और 2019 में किए गए सर्जिकल हवाई हमलों के रूप में की गईं. लगभग उच्च स्तर का संघर्ष सीमित युद्ध (स्थान के लिहाज से) 1999 में करगिल युद्ध के रूप में लड़ा गया था. और दबाव डालने के लिए सेना की संपूर्ण पैमाने पर तैनाती 2002 में की गई थी, पूरे एक साल तक.
इन बातों के मद्देनजर कहा जा सकता है कि दिए जाने वाले जवाब का पैमाना हमेशा राजनीतिक फैसले से तय होता है. मौजूदा स्थिति में, सेना प्रधानमंत्री द्वारा तय किए गए राजनीतिक लक्ष्य को किस तरह हासिल करेगी, इसके बारे में अटकलें ही लगाई जा सकती हैं.
भारत की सैन्य रणनीति
भारत की कोई औपचारिक घोषित राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति नहीं है, और न इससे जुड़ी कोई राष्ट्रीय प्रतिरक्षा नीति है जिसके आधार पर इस रणनीति को लागू करने की क्षमता बनाई जाए और उसे कायम रखा जाए. पारंपरिक रूप से भारत ‘रणनीतिक प्रतिरक्षा’ की सैन्य रणनीति का पालन करता रहा है जिसमें युद्ध अपनी ओर से नहीं शुरू किया जाता, और प्रतिद्वंद्वी के आक्रमण का सामना करने के बाद जवाबी कार्रवाई की जाती रही है.
1986 में, जनरल कृष्णस्वामी सुंदरजी ने अगले 15 साल के लिए ‘इंडियन आर्मी पर्सपेक्टिव प्लान 2000’ नाम के ‘विजन पेपर’ तैयार किया था जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति, प्रतिरक्षा नीति, और सैन्य रणनीति के आयाम लगभग स्पष्ट किए गए थे. उन्होंने खुद इस पेपर पर दस्तखत किया था. किसी सेवारत सेनाध्यक्ष द्वारा तैयार किया गया यह इस तरह का पहला और अब तक का अंतिम दस्तावेज़ है. इसमें चीन के खिलाफ ‘निवारक प्रतिरोध’ और पाकिस्तान के खिलाफ ‘आक्रामक प्रतिरोध’ तैयार करने, उसे कायम रखने और जरूरत पड़ने पर लागू करने का फैसला किया गया था. भारतीय वायुसेना और नौसेना ने भी इसे स्वीकार किया था.
इसका अर्थ यह था कि चीन का प्रतिरोध प्रतिरक्षात्मक कार्रवाई करते हुए उसकी सैन्य कार्रवाई को सैनिकों और साजोसामान के मामले में बेहद कीमती बनाकर किया जाएगा, जबकि पाकिस्तान को उसकी अधिकतम जमीन पर कब्जा करके और उसकी सैन्य व आर्थिक क्षमता को अधिकतम नष्ट करके सजा दी जाएगी. वास्तव में, सुंदरजी ने इस रणनीति को 1986-87 में दोनों प्रतिद्वंद्वियों के खिलाफ सेना की आक्रामक तैनाती करके लागू किया, जबकि राजनीतिक अनिश्चय के कारण इसे तीखे युद्ध में नहीं बदला गया. परमाणु हथियारों की मौजूदगी, और सभी खिलाड़ियों की बढ़ी हुई सैन्य शक्ति के मद्देनजर यह रणनीति संशोधित रूप में अभी भी जारी है. रक्षा मंत्री ने सैन्य कार्रवाई के जो निर्देश दिए हैं, जो सेना को फिलहाल निर्देशित करते हैं, वे इसी सैन्य रणनीति पर आधारित हैं.
यह ‘निवारक प्रतिरोध’ हमारी भौगोलिक अखंडता को पारंपरिक रूप से खतरा पहुंचाते रहे चीन के खिलाफ काफी सफल रहा है, सिवा तब जबकि उसने हमें हमारे कब्जे से बाहर इलाके में हमें चौंकाया है. ऐसा उसने अप्रैल-मई 2020 में किया जब 1000 वर्गकिमी क्षेत्र पर हमने अपना नियंत्रण खो दिया. लेकिन यह प्रतिरोध कैलास पर्वत शृंखला में हमारी आक्रामक और भारी सैन्य तैनाती के साथ फिर से लागू हो गया था. सैन्य ताकत के मामले में चीन हमसे बहुत आगे है इसके बावजूद साढ़े तीन साल की तनावपूर्ण तैनाती के बाद अक्तूबर 2024 में लाज बचाने वाला एक समझौता हुआ.
1971 के बाद से पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ कोई सीधा पारंपरिक खतरा नहीं पेश किया है. 1989 से, वह चौथी पीढ़ी वाला छद्मयुद्ध छेड़ रखा है, जिसे वह मुख्यतः अपने ‘परित्यक्त’ नागरिकों के जरिए और जम्मू-कश्मीर के अपने सह-धर्मियों के समर्थन से लड़ता रहा है. लेकिन 1993 के बाद से जम्मू-कश्मीर में और आंतरिक भागों में समय-समय पर छद्म युद्ध के खिलाफ प्रतिरोधक रणनीति फिर से लागू किए जाने को लेकर रणनीतिक दुविधा पैदा होती रही है.
पाकिस्तान ने अपनी सेना को इस तरह तैयार किया है कि वह युद्ध से नीचे के स्तर की लड़ाई लड़ सके और इस मामले में भारत की कार्रवाइयों का बराबरी से जवाब दे सके. लेकिन परमाणु हथियार के इस्तेमाल के बगैर सीमित युद्ध में भारत के बेहतर संख्याबल को लेकर वह काफी चिंतित है.
भविष्य क्या है?
इस मुकाम पर ज्यादा से ज्यादा इलाके पर, खासकर जम्मू-कश्मीर में, कब्जा करने की आक्रामक रणनीति पर आधारित सीमित युद्ध करने और वायुसेना तथा नौसेना के इस्तेमाल से पाकिस्तान की आर्थिक तथा सैन्य शक्ति को नष्ट करने का विकल्प समाप्त हो गया है. यह तभी संभाव था जब राजनीतिक फैसला शुरू में ही कर लिया जाता, और तेजी से की गई कार्रवाई के बूते प्रतिद्वंद्वी को अपनी तैयारी करने का मौका दिए बिना चकित किया जाता. ऐसी कार्रवाई अब तक शुरू हो जानी चाहिए थी.
लेकिन, चौंकाने वाला मौका गंवा दिया गया है, और पाकिस्तान ने अपनी सेना को तैयार कर लिया है. अब कोई बड़ा हमला किया गया तो वह अंधाधुंध लड़ाई जैसी होगी. अब विकल्प यही रह गया है कि लंबे अंतराल के बाद हमले की पहल की जाए और प्रतिद्वंद्वी को रणनीतिक दृष्टि से चौंका दिया जाए. एक पहलू यह भी है कि भारतीय सेना को उलझाए रखने के लिए उत्तरी सीमा पर उसकी तैयारी के दौरान उसे चीन का प्रत्यक्ष समर्थन मिले. यह तैयारी नवंबर के अंत तक चल सकती है. वैसे, जिस साइबर और इलेक्ट्रोनिक युद्ध से इनकार किया जा सकता है उसमें, और रणनीतिक खुफियागीरी में चीन का ‘नॉन-काईनेटिक’ समर्थन उसे जारी है.
इसलिए, तात्कालिक लक्ष्य दंड देने की कार्रवाई तक ही सीमित रहेगा जिसे जनभावना को संतुष्ट करने के लिए नियंत्रित युद्ध तक पहुंचाया जा सकता है. यह हवाई, मिसाइल, ड्रोन, या स्पेशल फोर्स के हमलों का रूप ले सकता है, और एलओसी पर गोलाबारी और ‘पीजीएम’ (सटीक निशाने लगाने वाले गोलों) से हमले किए जा सकते हैं. इसके तहत सीमा पार कुछ चौकियों पर कब्जा भी किया जा सकता है. पाकिस्तान की ‘शाह रग’ में खरोंच भी उसे सबसे ज्यादा तकलीफ देगी. पाकिस्तान इन सभी कार्रवाइयों का जैसे को तैसा जवाब दे सकता है. यह काफी बराबरी की टक्कर होगी, जिसमें वही पक्ष बाजी मारेगा जिसके पास बेहतर टेक्नोलॉजी और युद्ध कौशल होगा.
एक चेतावनी
पाकिस्तान बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनवा में स्थानीय आतंकवाद से हलाकान है. उसका मानना है इसके लिए भारत जिम्मेदार है, जो इस काम के लिए तालिबान (अफगानिस्तान), तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, और बलूच आतंकवादी संगठनों का इस्तेमाल कर रहा है. बोलन सुरंग घेराबंदी, जिसमें बड़ी संख्या में सैनिक और उनके परिजन मारे गए थे, पाकिस्तानी सेना के लिए बड़ा झटका था. भारत लश्कर-ए-तैय्यबा और जैश-ए-मोहम्मद के नेतृत्व को जिस तरह निशाना बना रहा है वह भी पाकिस्तानी खुफिया संगठन आईएसआई के लिए बड़ी परेशानी का सबब है.
मेरे विचार से, पहलगाम हमला बदला लेने की सोची-समझी कार्रवाई थी, और इससे भी ज्यादा यह भारत को हड़बड़ी में सैन्य कार्रवाई के लिए उकसाने के लिए किया गया था. पिछले अनुभवों के आधार पर पाकिस्तान यह मान कर चल रहा है भारत की जवाबी कार्रवाई पूर्ण युद्ध से नीचे के स्तर की होगी. इस सोच के तहत वह न केवल भारत की कार्रवाइयों को बेअसर करने के लिए बल्कि ज्यादा बड़े पैमाने पर जवाब देने के लिए भी तैयार है. तब, आश्चर्य वाले पहलू से कमजोर स्थिति में पड़े भारत को संघर्ष को और तेज करना होगा.
इसलिए बुद्धिमानी तो इसी में है कि पाकिस्तान लंबे समय तक खौफ में रखा जाए. हम ‘भेड़िया आया, भेड़िया आया’ की रट तब तक लगाते रहें जब तक भेड़िया सच में नहीं आ जाता. और, भेड़िए का आना ऐसा होना चाहिए जैसे अचानक तेज़ बिजली गिरी हो.
लेफ्टिनेंट जनरल एच. एस. पनाग (सेवानिवृत्त), पीवीएसएम, एवीएसएम, ने 40 साल तक भारतीय सेना में सेवा की. वे उत्तरी कमान और केंद्रीय कमान के कमांडर रहे. रिटायरमेंट के बाद, उन्होंने सशस्त्र बल न्यायाधिकरण में सदस्य के रूप में काम किया. यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं.
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