इन दिनों, कनाडा, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में ‘रॉ’ जैसी भारतीय खुफिया एजेंसियों की कथित गतिविधियों की खबरें सुर्खियों में रही हैं. इन खबरों ने मित्र देशों के अंदर खुफिया कार्रवाइयों जैसे विवादास्पद मसले को बढ़ावा दिया है. भू-राजनीति के एक बड़े खिलाड़ी भारत पर विभिन्न खुफिया नेटवर्कों की नज़र टिकी है और वो उसके साथ सहयोग करने की होड़ लगा रहे हैं.
इनमें सबसे विख्यात है खुफिया एजेंसियों का ‘फाइव आइज़’ नामक गठबंधन, जिसमें अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, न्यूजीलैंड, और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं. भारत जबकि वैश्विक खुफिया व्यवस्था में अपनी भूमिका तलाश रहा है, उसे ‘फाइव आइज़’ वाले देशों के तमाम तरह के हितों का सामना करना पड़ रहा है.
इस समूह के साथ भारत संबंधों का विश्लेषण करने और खुफिया मामलों में सहयोग की सहमति और असहमति के क्षेत्रों का पता लगाने की ज़रूरत है.
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सहमति के क्षेत्र
आतंकवाद का विरोध: ‘फाइव आइज़’ वाले देशों और भारत के बीच सहमति का एक क्षेत्र है आतंकवाद का विरोध. दुनिया भर में आतंकवाद और क्षेत्रीय स्थिरता पर उसके प्रभाव को लेकर हर पक्ष चिंतित है. आतंकवादी गतिविधियों, उनके जाल, उनके कारण आशंकित खतरों के बारे में खुफिया सूचनाओं का आदान-प्रदान रोकथाम की तैयारी और संयुक्त कार्रवाई करने के लिए बेहद ज़रूरी है. भारत की भौगोलिक स्थिति और आतंकवाद के उसके ऐतिहासिक अनुभव उसे आतंकवादी संगठनों से लड़ने के उसके ऐतिहासिक अनुभव उसे उग्रवादी संगठनों से लड़ने के ‘फाइव आइज़’ के प्रयासों का एक मूल्यवान सहयोगी बनाता है.
साइबर सुरक्षा: दुनिया में डिजिटल का जितना विस्तार हो रहा है उसके मद्देनज़र साइबर सुरक्षा दुनिया के तमाम देशों के लिए चिंता का प्रमुख कारण बन गया है. भारत और ‘फाइव आइज़’ वाले देश सूचना की सुरक्षा और साइबर खतरे को लेकर खुफिया सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहयोग, टेक्नोलॉजी क्षेत्र में प्रगति और संयुक्त अभ्यासों के महत्व को समझते हैं. भारत के मजबूत होते आईटी सेक्टर और साइबर सुरक्षा के मामले में उसकी विशेषज्ञता के मद्देनज़र यह सहयोग साइबर खतरों से निबटने की ‘फाइव आइज़’ गठबंधन की क्षमता में में वृद्धि ही करेगा.
समुद्री क्षेत्र की सुरक्षा: भारत का समुद्री किनारा जितना लंबा है और उससे उसके रणनीतिक हित जितने ज्यादा जुड़े हैं उनके चलते समुद्री सुरक्षा और कमज़ोर समुद्री मार्गों की सुरक्षा को लेकर भारत और ‘फाइव आइज़’ वाले देशों की चिंताएं समान हैं. समुद्री क्षेत्र को लेकर सजगता, नौसैनिक अभ्यासों और चोरी पर रोक लगाने की कार्रवाइयों में सहयोग अहम समुद्री मार्गों और समुद्री हितों की सुरक्षा करने की सामूहिक क्षमता को मजबूत करेगा.
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असहमति के क्षेत्र
रणनीतिक स्वायत्तता: भारतीय विदेश नीति का सिद्धांत रणनीतिक स्वायत्तता और गुट-निरपेक्षता पर ज़ोर देता है, जो प्रायः ‘फाइव आइज़’ गठबंधन के लक्ष्यों के प्रतिकूल बैठता है. भारत ‘फाइव आइज़’ वाले देशों समेत सभी देशों के साथ दोस्ताना रिश्ता रखना चाहता है, लेकिन कुछ भू-राजनीतिक मसलों पर गठबंधन के संयुक्त रुख से उसका रुख अक्सर अलग होता है.
क्षेत्रीय गति: अपने करीबी पड़ोसी देशों, खासकर चीन और पाकिस्तान के साथ भारत के जटिल रिश्ते ‘फाइव आइज़’ गठबंधन के लक्ष्यों के प्रायः प्रतिकूल बैठते हैं. गठबंधन कथित प्रतिद्वंद्वियों को कमजोर करने को प्राथमिकता दे सकता है, लेकिन क्षेत्रीय कूटनीति के मामले में भारत प्रायः तनाव बढ़ाए बिना अपने हितों की सुरक्षा करने के लिए सूक्ष्म रिश्ते बनाने और संतुलन साधते हुए आगे बढ़ने में विश्वास रखता है.
आंकड़ों की गोपनीयता और संप्रभुता: आंकड़ों की गोपनीयता और डिजिटल संप्रभुता ‘फाइव आइज़’ वाले देशों की नीतियों से अलग हो सकती है. डाटा लोकलाइजेशन के नियम और विदेशी टेक कंपनियों पर प्रतिबंध डाटा के खुले प्रवाह और बाज़ार की आसान पहुंच पर ज़ोर देने के गठबंधन के आग्रह से मेल नहीं खा सकते हैं.
इसलिए, असहमतियों के बावजूद एंग्लो केंद्रित ‘फाइव आइज़’ गठबंधन से टकराव से बचना कई वजहों से गठबंधन के लिए भी और भारत के लिए भी वैश्विक रूप से लाभकारी है.
सुरक्षा सहयोग में वृद्धि: टकराव से बचकर भारत और गठबंधन वाले देश भी आपसी हितों के क्षेत्र में सुरक्षा सहयोग बढ़ा सकते हैं, जैसा कि ऊपर कहा जा चुका है. आपसी हित के ये क्षेत्र हो सकते हैं — आतंकवाद का विरोध, साइबर सुरक्षा, समुद्री सुरक्षा. टकराव से भरोसा टूटेगा, सहयोग खत्म होगा, साझा खतरों को दूर करने के सामूहिक उपक्रम कमजोर होंगे और दुनिया को खतरा बढ़ेगा.
इंडो-पैसिफिक क्षेत्र की स्थिरता: इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति उसे स्थिरता और सुरक्षा बनाए रखने के मामले में एक प्रमुख भूमिका प्रदान करती है. भारत और ‘फाइव आइज़’ गठबंधन में टकराव से इस क्षेत्र में तनाव बढ़ सकता है और अस्थिरता पैदा हो सकती है जिससे व्यापार, निवेश और क्षेत्रीय सहयोग की पहल को चोट पहुंच सकती है.
प्रतिद्वंद्वी शक्तियों के बीच संतुलन: भारत और ‘फाइव आइज़’ देश चीन और रूस जैसे प्रतिद्वंद्वी देशों के बढ़ते दबदबे से समान रूप से चिंतित हैं. टकराव को टाल कर वे उनके प्रभाव को कूटनीतिक, आर्थिक, रणनीतिक साधनों के जरिए संतुलित करने के प्रयासों में बेहतर तालमेल बैठा सकते हैं और स्थिरता तथा सुरक्षा के लिए अनुकूल सत्ता संतुलन को बढ़ावा दे सकते हैं.
साझा मूल्यों को बढ़ावा: दृष्टिकोण और प्राथमिकताओं में अंतर के बावजूद भारत और ‘फाइव आइज़’ गठबंधन लोकतंत्र, कानून का शासन, मानवाधिकारों का सम्मान जैसे मूल्यों की साझेदारी करते हैं. टकराव से बचकर वे कूटनीतिक संबंधों, क्षमता निर्माण प्रयासों और दुनियाभर में लोकतांत्रिक संस्थाओं को समर्थन देकर इन मूल्यों को मजबूती दे सकते हैं. अंततः, मामला लोकतंत्र बनाम तानाशाही के द्वंद्व का है.
आर्थिक निर्भरता: भारत और ‘फाइव आइज़’ देशों के आर्थिक संबंध महत्वपूर्ण हैं और बढ़ रहे हैं. टकराव से आर्थिक रिश्ते को चोट पहुंचेगी और दोनों पक्षों के व्यवसाय, निवेशकों, और उपभोक्ताओं पर प्रतिकूल असर पड़ेगा. आर्थिक संबंधों में मजबूती से समृद्धि बढ़ेगी और व्यापक सहयोग की नींव मजबूत होगी. विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ रही अर्थव्यवस्था होने के नाते पश्चिमी देश भारत के साथ बुरा संबंध रखने का जोखिम नहीं उठा सकते.
रणनीतिक ढाल: इस अनिश्चित भू-राजनीतिक माहौल में खतरों को निबटाने और अवसरों में वृद्धि करने के लिए भारत और ‘फाइव आइज़’ वाले देश रणनीतिक ढाल तैयार करने की कोशिश करते हैं. टकराव से बचना उन्हें ऐसी लचीली तथा सूक्ष्म रणनीति बनाने की क्षमता देती है जो भिन्न प्राथमिकताओं और सरोकारों का ख्याल रखते हुए साझा हितों को महत्व दे सके. मुद्दा आधारित संबंध और सहयोग के कारण आपसी रूप से लाभकारी नतीजे मिल सकते हैं.
जटिल होते जा रहे वैश्विक वातावरण में सुरक्षा, स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा देने के लिए भारत और ‘फाइव आइज़’ वाले देशों के बीच टकराव से बचना ज़रूरी है. सहमति के क्षेत्रों पर ज़ोर देकर और मतभेदों को रचनात्मक रूप से संभालकर वे साझा चुनौतियों का निबटारा कर सकते हैं और आपसी लाभ के लिए अवसरों का लाभ उठा सकते हैं. इन प्रयासों के लिए साझा लक्ष्यों पर ज़ोर देने और राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के बीच नाजुक संतुलन बनाने की ज़रूरत होगी. भारत जबकि विश्व मंच पर अपना प्रभाव बढ़ा रहा है, ‘फाइव आइज़’ गठबंधन के साथ उसका संबंध उसकी व्यापक विदेश नीति के लिए महत्वपूर्ण पहलू बना रहेगा, जैसा कि भारत में ऑस्ट्रिया के राजदूत फिलिप ग्रीन के शब्दों से प्रकट होता है. ग्रीन ने खुफिया मामलों से जुड़े सवाल का जवाब देने से मना करते हुए स्वीकार किया था कि “किसी भी द्विपक्षीय रिश्ते को कभी-कभार स्पीडब्रेकर का सामना करना ही पड़ता है”.
(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)
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