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Tuesday, 2 September, 2025
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ट्रंप के अमेरिका में ‘भारत सबसे बुरा’, इस यू-टर्न के पीछे की वजह क्या है

भारतीय सामान पर भारी-भरकम टैक्स लगाना दरअसल चीन को कड़ा संदेश देने की कोशिश है कि ‘देखो, अगर तुम हमारी बात नहीं मानोगे तो हम क्या कर सकते हैं.’

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“न्यूक इंडिया” — यही लिखा था उस हथियार पर जिससे एक हमलावर ने मिनियापोलिस के एक कैथोलिक स्कूल में हमला कर नफरत फैलाई. पिछले हफ्ते यह विचलित करने वाला संदेश अंतर्राष्ट्रीय खबर बन गया. डरावना यह संदेश ट्रंप के अमेरिका की तस्वीर पेश करता है. ‘हाउडी मोदी’ वाले दिन अब बीत चुके हैं. अब सोशल और मेनस्ट्रीम मीडिया पर “इंडिया इज़ द वर्स्ट” की लहर फैल रही है.

अगर आप शब्दों की परत के पीछे देखें, तो साफ होगा कि एक सोची-समझी कहानी बुनी जा रही है ताकि हाथी यानी भारत की बढ़ती ताकत को संतुलित किया जा सके. अब भारत सरकार का काम है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बदलते भू-राजनीतिक हालात को समझदारी से संभालना.

फ्लोरिडा के गवर्नर रॉन डेसैंटिस ने आग में घी डालते हुए कहा कि एच-1बी वीज़ा मॉडल पूरी तरह से धोखा है, जिससे ज़्यादातर भारतीय फायदा उठाते हैं और “पैसे कमाते” हैं. उन्होंने कहा, “ज़्यादातर लोग एक ही देश से आते हैं…इस सिस्टम से पैसे कमाने की एक पूरी इंडस्ट्री बन गई है.”

डेसैंटिस इस सच्चाई को नज़रअंदाज़ कर देते हैं कि ये पेशेवर अपनी रिसर्च, डेवलपमेंट, शिक्षा और कारोबार में विशेषज्ञता के ज़रिए अमेरिका को वास्तविक योगदान देते हैं.

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप के व्यापार सलाहकार पीटर नवारो ने रूस-यूक्रेन युद्ध को “मोदी का युद्ध” बताया और कहा, “शांति का रास्ता, कम से कम आंशिक रूप से, नई दिल्ली से होकर जाता है.”

इस ‘हाउडी दोस्ती’ से अचानक हुए इस यू-टर्न के संभावित कारणों की पड़ताल ज़रूरी है.

ट्रंप की नोबेल की ख्वाहिश

यह सबको पता है कि ट्रंप नोबेल शांति पुरस्कार पाने के लिए बहुत उतावले हैं.

व्हाइट हाउस की प्रेस सेक्रेटरी कैरोलिन लीविट ने कहा, “राष्ट्रपति ट्रंप ने अब थाईलैंड और कंबोडिया, इज़रायल और ईरान, रवांडा और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो, भारत और पाकिस्तान, सर्बिया और कोसोवो, और मिस्र और इथियोपिया के बीच झगड़े खत्म कर दिए हैं…अब तो बहुत देर हो चुकी है, राष्ट्रपति ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिल जाना चाहिए.”

भारत ट्रंप के नोबेल शांति पुरस्कार की दावेदारी का समर्थन करने में पीछे नहीं रहेगा, लेकिन नई दिल्ली ने भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्षविराम का श्रेय ट्रंप को देने की उनकी कोशिश को कड़ा खारिज किया है. हम सबसे पहले ट्रंप के नोबेल की दौड़ का समर्थन करेंगे—बशर्ते हमारी संप्रभुता और गरिमा का सम्मान किया जाए.

भारत इस समय अपनी जनता का पेट भरने और उनकी ज़रूरतें पूरी करने में व्यस्त है. जिसे भी भारतीय राजनीति की ज़रा भी समझ होगी, वह जानता है कि यहां किसी तीसरे पक्ष की दखलअंदाज़ी की कोई जगह नहीं है.


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अमेरिका और चीन

संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन 1980 के दशक से ही आर्थिक रूप से एक-दूसरे पर निर्भर रहे हैं. 1980 के दशक में देंग शियाओपिंग ने चीनी अर्थव्यवस्था को खोला और अमेरिकी कंपनियों को अपने सामान के लिए एक नया बाज़ार मिला, साथ ही बहुत सस्ता श्रम भी. आज यह विशालकाय ड्रैगन रोकने योग्य नहीं है. अमेरिका-चीन व्यापार का मूल्य करीब 700 अरब डॉलर है. 45 साल से भी ज़्यादा समय से अमेरिका ने चीन के साथ तकनीक भी साझा की है.

शोरगुल के बावजूद, अमेरिका चीन में बहुत गहराई से जुड़ा हुआ है—दोनों देश आर्थिक रूप से एक-दूसरे से चिपके हुए हैं. अमेरिकी कंपनियों के पास इतना कुछ दांव पर है कि वे चीन में बनी वस्तुओं पर बेहिसाब शुल्क लगाकर सोए हुए ड्रैगन को जगाने का जोखिम नहीं ले सकतीं, जबकि इनमें से कई वस्तुएं उन्हीं कंपनियों द्वारा बनाई जाती हैं जिनका मुख्यालय अमेरिका में है. ऑटो और इलेक्ट्रॉनिक सप्लाई चेन ठप हो जाएगी.

भारत का इस्तेमाल चीन को सतर्क रखने और व्यापार संतुलन को बराबरी पर लाने के लिए किया गया है. भारतीय सामान पर भारी-भरकम शुल्क लगाने का मकसद चीन को सख्त संदेश देना है: “देखो, अगर तुम हमारी बात नहीं मानोगे तो हम क्या कर सकते हैं.”

ध्यान देने वाली बात यह है कि इस अतिरिक्त शुल्क से कुछ उद्योग जैसे इस्पात, तांबा और दवाइयां बाहर रखे गए हैं, जहां-जहां अमेरिका को शुल्क असमानता से फायदा मिलता है, वहां की वस्तुओं को छूट दी गई है. दूसरी ओर, परिश्रम-प्रधान उद्योग जैसे कपड़े और गहने 50 प्रतिशत शुल्क की चुनौती से जूझ रहे हैं.

रूस-भारत गठबंधन

शीत युद्ध के दिनों से ही अमेरिका कभी रूस के खिलाफ खुलकर सैन्य शक्ति का प्रदर्शन नहीं कर सका. हाल ही में अलास्का में हुए शिखर सम्मेलन में पुतिन का भव्य स्वागत किया गया, लेकिन इस बैठक से बहुत कम उपलब्धियां हासिल हुईं. बैठक न तो शांति स्थापित कर सकी और न ही रूस-यूक्रेन युद्ध को समाप्त कर पाई. अमेरिका पहले से ही इस बात पर दोबारा सोच रहा है कि क्या यूक्रेन को नाटो में शामिल होने दिया जाए.

पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के बीच, रूस और भारत ने एक-दूसरे का साथ दिया ताकि अपने-अपने लक्ष्य पूरे कर सकें और अमेरिकी दबाव से रूस के तेल व ऊर्जा क्षेत्र को बचा सकें. भारत ने साहस दिखाते हुए अपने पुराने, ग्लासनोस्त से पहले के रूस के साथ गठबंधन से कोई समझौता नहीं किया. ट्रंप प्रशासन इस बहाने पुतिन को साफ और सख्त संदेश देना चाहता है—हमसे मत टकराओ, जिस किसी के साथ काम करोगे, हम उसे तोड़ देंगे.

अगर भारत, चीन और रूस जैसे मजबूत पूर्वी देश एक गठबंधन बना लें, तो अमेरिका इस दीवार को पार नहीं कर पाएगा और ये प्राचीन सभ्यताएं नई दुनिया को अपनी तिहरी ताकत दिखा पाएंगी. यही भू-राजनीतिक बदलाव है, जिस पर पूरी दुनिया की नज़र टिकी हुई है.

भारत का ‘बांग्लादेशीकरण’

क्या अमेरिका भारत पर ऊंचे टैरिफ लगाकर ऐसा दबाव बना रहा है कि भारत भी बांग्लादेश जैसी गिरावट की ओर चला जाए? सबूत तो यही इशारा करते हैं. जब भारत ‘विकसित भारत 2047’ का लक्ष्य हासिल करने के लिए मेहनत कर रहा है, तब कपड़ा, आभूषण और झींगा (श्रिम्प) जैसी श्रम-प्रधान इंडस्ट्रीज़ पर अतिरिक्त कर लगाकर भारत पर दबाव बनाया जा रहा है. इन टैरिफों की तुलना प्रतिबंध (एम्बार्गो) और भूकंप से की जा रही है.

अमेरिका में लोग सही सवाल पूछ रहे हैं और टैरिफ पर जनमत भी उठ रहा है. ट्रंप के टैरिफ की वजह से असल में अमेरिकी नागरिकों को ही ऊंचे दाम चुकाने पड़ रहे हैं.

अमेरिका पर असर

हाल ही में अमेरिका की यात्रा के दौरान मैंने देखा कि अमेरिकी डिपार्टमेंटल स्टोर्स में भारतीय सामानों की भरमार है. ट्रंप का मानना है कि उनके टैरिफ से भारत को चोट लगेगी, लेकिन लंबे समय में अमेरिका की ही आयात-निर्भर कंपनियां प्रभावित होंगी. वॉलमार्ट, टारगेट, होमगुड्स और वे होलसेलर जो भारत की सप्लाई चेन पर कपड़े, घरेलू सामान और आभूषणों के लिए निर्भर हैं, उन्हें सबसे ज्यादा झटका लगेगा क्योंकि महंगा आयात सीधे दाम बढ़ाएगा.

भारत में सौर और स्वच्छ ऊर्जा क्षेत्र तेजी से विकसित हो रहा है और यह एक विकल्प भी बन सकता है, लेकिन टैरिफ की वजह से सौर परियोजनाओं की रफ्तार धीमी हो सकती है, जिससे जलवायु लक्ष्यों को नुकसान होगा.

इंजीनियरिंग और फार्मा सप्लाई चेन भी प्रभावित होगी, क्योंकि भारत विशेष रसायन, एपीआई (दवाओं के मुख्य तत्व) और मशीनरी पार्ट्स की सप्लाई करता है. टैरिफ की वजह से कमी या महंगे कच्चे माल का खतरा बढ़ सकता है.

आगे का रास्ता

ट्रंप के टैरिफ का मकसद भारत को बड़ा झटका देना था, लेकिन हकीकत इससे अलग हो सकती है. अब यह देखने का वक्त निकल चुका है कि पहले कौन झपकता है. ट्रंप ने भारत के 1.3 अरब लोगों की ताकत और लचीलापन को कम आंका है. वे भूल गए हैं कि भारत वही देश है जहां मैकडोनाल्ड्स के 500 से ज्यादा आउटलेट हैं और यहां मजबूत शाकाहारी मेन्यू बिकता है. कोका-कोला इंडिया ने वित्त वर्ष 2023-24 में 4,713.38 करोड़ रुपये का राजस्व और 420.29 करोड़ रुपये का मुनाफा कमाया है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स से लेकर एफएमसीजी कंपनियों तक, कई अमेरिकी कंपनियां भारत में भारी राजस्व कमा रही हैं. हम सब जानते हैं कि व्यापार, टैरिफ और टैक्स आपस में जुड़े हुए हैं. भारत बहुराष्ट्रीय कंपनियों और देशों के साथ काम करके सभी के लिए लाभ पैदा करता है और 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है. भारत अच्छा करेगा तो पूरी दुनिया अच्छा करेगी, जैसा कि कोविड-19 महामारी के दौरान देखने को मिला.

भारत को आत्मनिर्भरता पर भी मजबूती से काम करना होगा और फॉरवर्ड व बैकवर्ड इंटीग्रेशन के ज़रिए इसे आगे बढ़ाना होगा. हमें अपने चिप्स और तकनीक पर ध्यान देना होगा. हमें अपने एआई मॉडल भी विकसित करने होंगे ताकि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट और ओपनएआई पर निर्भरता घटे. हम पहले ही ब्रह्मोस जैसी संयुक्त मिसाइल प्रणाली पर काम कर रहे हैं. डिफेंस सेक्टर में ‘मेक इन इंडिया’ ही आगे का रास्ता है.

इस बात पर मुझे हंसी से लेकर हैरानी होगी कि ब्राह्मणों को तेल व्यापार के लाभार्थी बताया गया! ट्रम्पोनॉमिक्स के लिए ही सही पर व्यापारी तो बनिया होते हैं, ब्राह्मण नहीं.

(मीनाक्षी लेखी भाजपा की नेत्री, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता हैं. उनका एक्स हैंडल @M_Lekhi है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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