ताली-थाली वादन के नाम पर देश भर में कैसी-कैसी मूर्खतापूर्ण और हास्यास्पद हरकतें सामने आयीं, उनसे शायद ही कोई अनजान हो? सैकड़ों वीडियो वायरल हुए हैं जिसमें नजर आ रहा है कि जनता कर्फ्यू के बीच लोगों ने भीड़ में जमा होकर जश्न मनाया. अब इसके लिए हम किसे दोष दें- भारतीयों के उस बदले जा चुके चरित्र को जिसमें बुद्धि और दिमाग से काम लेने का स्वभाव ख़त्म किया जा चुका है या फिर समाज का नेतृत्व करने वाले उन लोगों को जिन्होंने हर चीज़ को ‘इवेंट मैनेज़मेंट’ की नज़र से ही देखने की संस्कृति स्थापित कर दी है?
कोरोनावायरस का नया अवतार है ‘कोविड-19’
नोवल कोरोनावायरस से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें. लेकिन ये बातें भी सिर्फ़ उन लोगों के लिए हैं जो आज भी समझने-बूझने की क्षमता बचा पाए हैं. कोरोना, वायरसों का एक ज्ञात परिवार है. इस परिवार के सदस्य हमेशा से सर्दी, जुकाम जैसी साधारण और मौसमी बीमारियों के अलावा सांस और आंतों से जुड़े रोगों की वजह बनते रहे हैं. इन्हें कोरोना इसलिए कहा गया क्योंकि माइक्रोस्कोप से देखने पर इस वायरस-परिवार के सदस्यों का स्वरूप सूर्यग्रहण के वक़्त दिखने वाले कोरोना की आकृति जैसा है. कोरोना परिवार के अन्य वायरसों के नाम हैं- 229ई अल्फा कोरोनावायरस, एनएल63 अल्फा कोरोनावायरस, ओसी43 बीटा कोरोनावायरस और एचकेयू1 बीटा कोरोनावायरस.
मौजूदा कोरोनावायरस ‘कोविड-19’ अपने परिवार का नया सदस्य है. नवम्बर 2019 के दूसरे सप्ताह में चीन के वुहान शहर में इसकी उत्पत्ति के पहले संकेत मिले. शुरुआत में डॉक्टरों ने इसके लक्षणों के आधार पर मरीज़ों का वैसे ही उपचार किया जैसे फ़्लू और निमोनिया के मामलों में सारी दुनिया में किया जाता है. लेकिन अचानक 31 दिसम्बर 2019 को जब दर्ज़नों लोग निमोनिया से मिलते-जुलते लक्षणों के साथ अस्पतालों में जा पहुंचे, तब डॉक्टरों का शक़ किसी नये वायरस के हमले की ओर गया. 7 जनवरी तक चीनी वैज्ञानिकों ने निर्धारित कर लिया कि कोरोना परिवार में एक नये सदस्य ने अवतार ले लिया है. इसकी पहचान के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी मदद मांगी गयी. उसने भी इसे अवतार ही पाया और कोविड-19 (कोरोनावायरस डिजीज 19) का नाम दिया. हालांकि, आम बोलचाल में इसे कोरोनावायरस ही कहा जा रहा है.
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‘कोविड-19’ की तेज रफ्तार और निपटने की चुनौती
कोरोना को लेकर रोचक तथ्य ये भी है कि भले ही इसने अभी-अभी अवतार लिया है, लेकिन ये भी पहले से मौजूद ऐसे क़रीब दो सौ वायरसों जैसा ही है जो फ़्लू और इन्फ़्लूएंजा का सबब बनते हैं. फ़र्क़ सिर्फ़ इतना है कि कोविड-19 में संक्रमण से फ़ैलने का जोश काफ़ी ज़्यादा है. दुनिया को सिर्फ़ इसके जोश पर काबू पाना है. वरना, तमाम वायरसों की तरह कोविड-19 भी अल्पआयु वाला ही है. इसकी भी उम्र अन्य वायरसों की तरह कुछ दिन (ये कुछ दिन कितने दिन हैं, इस बारे में वैज्ञानिकों में मतभेद है) से ज़्यादा नहीं होती. यदि कुछ दिन तक इसे एक संक्रमित व्यक्ति से दूसरे स्वस्थ व्यक्ति तक पहुंचने से रोक लिया जाए तो इससे भी वैसे ही मुक्ति पायी जा सकती है, जैसे इससे भी कहीं ज़्यादा ख़तरनाक सार्स और मर्स जैसे वायरसों से मिली थी.
कोविड-19 से मुक्ति के दो तरीक़े हैं. पहला, संक्रमित व्यक्ति को अलग-थलग करके संक्रमण की आशंका को ख़त्म करना. इसमें संक्रमित व्यक्ति को 14 दिन के लिए क्वारेंटाइन (अलग-थलग) करने का तरीक़ा अपनाया जाता है. संक्रमित व्यक्ति से किसी और के चपेट में आने या नहीं आने का पता लगने के लिए 14 दिन की मियाद पर्याप्त है. इसे यूं समझिए कि एक व्यक्ति यदि आज संक्रमित हुआ है तो उसमें कोरोना के लक्षणों को उभरने में तीन-चार दिन या कुछ खास केस में ज्यादा दिन लग सकते हैं. अगले तीन-चार दिनों में इस संक्रमण का असर ख़त्म हो जाएगा. यानी, पहले हफ़्ते के दौरान यदि इससे कोई और व्यक्ति संक्रमित हो गया और उसके लक्षणों को भी उभरने में यदि तीन-चार दिन लगे तो कुल अवधि नौ-दस दिन की हो गयी. अब यदि संक्रमित व्यक्ति के सम्पर्क में आये लोग भी संक्रमण-रहित बने रहे तो 14 दिन के चक्र से ये सुनिश्चित हो जाता है कि संक्रमण आगे नहीं फैला.
कोविड-19 से बचाव ही उपचार
कोविड-19 से मुक्ति का दूसरा पक्ष है– बचाव. सोशल डिस्टेंसिंग और टोटल लॉकडाउन. इसी का तरीका है. इसका उद्देश्य भी संक्रमण को फैलने से पहले ख़त्म करना ही है. इसके लिए लोगों को समूह नहीं बनाने और परस्पर दूरी रखने की सलाह दी जाती है. साफ़-सफ़ाई का ख़ास तौर-तरीका अपनाना भी बचाव का ही हिस्सा है. ऐसा करके वायरस के सम्पर्क में आने वाला व्यक्ति भी ना सिर्फ़ ख़ुद संक्रमित होने से बचता है, बल्कि औरों को भी बचाता है. मास्क भी इसी श्रेणी का उपाय है. इसके इस्तेमाल की सलाह सिर्फ़ उन लोगों को दी जाती है, जो या तो ख़ुद संक्रमित हैं या फिर जिन्हें किसी भी वजह से संक्रमित लोगों के बीच रहना पड़ता है.
कोरोना या कोविड-19 के सिलसिले में ये जानना जरूरी है कि ये सिर्फ़ सीधे सम्पर्कों से फ़ैलता है. इसीलिए सम्पर्क के सबसे बड़े तरीके यानी हाथ को बार-बार साबुन से धोते रहने, अस्वच्छ हाथ को मुंह-नाक-कान और आंख से दूर रखने और हाथ-मिलाने या गले-मिलने जैसे सम्पर्कों से सख़्त परेहज़ करने की सलाह दी जाती है. दूसरी बड़ी ग़लतफ़हमी है इसे जानलेवा समझना. सच तो ये है कि कोरोना का संक्रमण तब तक जानलेवा नहीं है, जब तक ये गम्भीर बीमारियों से जूझ रहे या बुजुर्ग या कम प्रतिरोधक क्षमता वाले किसी मरीज़ तक ना पहुंच जाए. यही वजह है कि कोरोना से पीड़ित 100 में से 97 व्यक्ति इससे उबर जाते हैं. कोरोना, महामारी बनकर सिर्फ़ वहीं कहर बरपा रही है जहां इसे नये व्यक्तियों को संक्रमित करने से नहीं रोका जा सका है.
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भारत ने 25 मार्च से टोटल लॉकडाउन करके इस बीमारी को रोकने की दिशा में निर्णायक कदम बढ़ा दिया है. भारत के पास कोरोना को फैलने से रोकने के अलावा कोई उपाय भी नहीं है क्योंकि हमारे यहां इलाज की सुविधाएं बेहद बुरे हाल में हैं और भारत ऐसी किसी महामारी के लिए तैयार ही नहीं हैं, जिसमें लाखों लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की नौबत आ जाए.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक प्रेक्षक हैं. यह उनके निजी विचार हैं)