scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होममत-विमतमोदी के नेतृत्व में 'सबसे सक्षम' लोगों के देश के रूप में बदला भारत लेकिन जरूरत 'दोस्ताना लोगों' को बचाने की है

मोदी के नेतृत्व में ‘सबसे सक्षम’ लोगों के देश के रूप में बदला भारत लेकिन जरूरत ‘दोस्ताना लोगों’ को बचाने की है

एक खुला समाज अपने सभी वासियों के प्रति जितना दोस्ताना होगा और लोग सम्मिलित तथा बहिष्कृत के बीच की रेखा को जितनी धुंधली करेंगे उतना ही यह सहकारी एकता के लिए बेहतर होगा.

Text Size:

आज़ादी के बाद आज से पहले ऐसा शायद ही कभी हुआ होगा कि कैबिनेट रैंक के किसी अधिकारी ने पुलिसवालों को सिविल सोसाइटी के खिलाफ जंग छेड़ देने के लिए कहा हो. इस मामले में एकमात्र अपवाद इंदिरा गांधी के राज में इमरजेंसी के दौर को माना जा सकता है. यह कल्पना करना तो और भी मुश्किल है कि इमरजेंसी समेत कभी भी चार सितारा वाले, अति अनुशासित माने जाने वाले किसी फौजी जनरल ने ‘आतंकवादियों’ की पीट-पीट कर की जाने वाली हत्या या ‘लिंचिंग’ का स्वागत किया हो. इस तरह का बयान पूरी गंभीरता से दिया जाना बताता है कि नरेंद्र मोदी के राज में भारत किस कदर बदल गया है.

भारत का हिंसा का लंबा इतिहास रहा है, चाहे वह आक्रमणकारियों की ओर से हुई हो या दूसरों की ओर से. आज़ादी की लड़ाई में प्रयोग किए गए अहिंसक तरीके ने इस हिंसा पर परदा डाल दिया था मगर आज़ादी मिलते ही जो मारकाट मची उसने हिंसक पक्ष को फिर उजागर कर दिया. इन वर्षों में दलितों के खिलाफ व्यवस्थित तरीके से भारी हिंसा हुई है, निर्बल आदिवासियों को उनके पारंपरिक ठिकानों से सामूहिक रूप से विस्थापित करने के लिए हिंसा की गई है. और आज अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक क्षेत्र को नुकसान पहुंचाने के लिए लाखों लोगों के रोजगार को जिस क्रूर ढंग से खत्म किया गया और जिसका जश्न औपचारिक अर्थव्यवस्था की जीत के रूप में मनाया जा रहा है वह भी हिंसा का ही एक पूरक रूप ही है.

जैसा कि सभी समाजों में होता है, हिंसा प्रायः ताकतवर की ओर से होती है- कमजोर के खिलाफ, वर्दीधारियों द्वारा फटेहाल कपड़े वालों के खिलाफ, बहुसंख्यकों द्वारा किसी-न-किसी अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ. और राज्यतंत्र, जिसके बारे में माना जाता है कि हिंसा पर उसका एकाधिकार है, या तो हिंसा करता है या हिंसा का निष्क्रिय भागीदार बनता है. आप इसे डार्विन के सिद्धांत का नतीजा या ‘जिसकी लाठी उसकी भैंस’ कह सकते हैं.

वैसे, ‘जो सबसे सक्षम है वही बचेगा’ वाली मान्यता के समानांतर एक सिद्धांत है, जिसे पति-पत्नी ब्रायन हेअर और वेनेसा वूड्स की जोड़ी ने पिछले साल गढ़ा है. ‘सर्वाइवल ऑफ द फ्रेंडलिएस्ट : अंडरस्टैंडिंग अवर ओरिजिन्स ऐंड रीडिस्कवरिंग अवर कॉमन हयूमनिटी ’ (वही बचेगा जो सबसे दोस्ताना है: अपनी जड़ों और अपनी साझा मानवता का पुनराविष्कार) में वे कहते हैं कि अस्तित्व का जो सिद्धांत डार्विन ने दिया है उसे दोस्ताना और सहकारी आचरण की क्षमता के संदर्भ के साथ भी देखा जाना चाहिए, क्योंकि इसी ने मनुष्य के साथ विकसित हुए स्तनपायी प्राणियों की प्रगति और समृद्धि में मदद की है. यह जितना समाजों के लिए लागू होता है उतना ही कॉर्पोरेट संस्कृति, क्रिकेट टीमों और व्यक्तियों के लिए भी लागू है. और पशुओं के लिए भी. हेअर और वूड्स अपनी पिछली किताब ‘द जीनियस ऑफ डॉजीएस: हाउ डॉग्स आर स्मार्टर दैन यू थिंक ’ के लिए भी खूब जाने जाते हैं, जिसमें उन्होंने कहा है कि कुत्तों का दोस्तानापन एक तरह की उनकी बुद्धिमत्ता भी है.

ये सब भारत के लिए भी प्रासंगिक है, जहां नफरत भरी बयानबाजी खूब चल रही है, जहां किसी लक्षित समुदाय, एक तरह का खाना खाने वालों, प्रतिकार में अक्षम लोगों या असहमति जाहिर करने वालों के खिलाफ कानूनी और सड़कों वाली हिंसा की जा सकती है. यह इसलिए भी प्रासंगिक है क्योंकि सहकारी आचरण का भी एक काला पक्ष हो सकता है. लोग अलग तरह के लोगों के खिलाफ हमला करने के लिए भी सहकारी आचरण कर सकते हैं. ‘मिस्सीसिपी इज़ बर्निंग ’ फिल्म यही सबक देती है. लेकिन इस तरह की हिंसा प्रायः कयामत वाले दिन देखी जाती है, खासकर तब जब संस्थागत या नैतिक पाटन के साथ व्यापक सामाजिक पंगुता हावी हो जाती है. उदाहरण के लिए अमेरिका इसलिए एक स्वस्थ या सुरक्षित समाज नहीं है कि वहां आबादी के अनुपात से सबसे ज्यादा लोग जेल में बंद हैं और उनमें अश्वेतों का अनुपात काफी बड़ा है.

कभी-कभी, एक दिशा में की गई हिंसा अप्रत्याशित दिशाओं में फूट सकती है. मनमोहन सिंह माओवादी बगावत (मूलतः जनजातीय विद्रोह) को देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे खतरनाक समस्या बताते थे. कश्मीर के अब्दुल्ला परिवार ने उस दमनकारी कानून के तहत कैद किए जाने की उम्मीद नहीं की थी, जिसे उन्होंने ही बनाया था. न ही कांग्रेस ने ‘यूएपीए’ नामक कानून बनाते समय यह कल्पना की थी कि आगे क्या होगा. गैरकानूनी गतिविधियों की परिभाषा के विस्तार और मूलतः एक कानून विहीन कानून के तहत कार्रवाई करने के लिए अधिकृत अधिकारियों की श्रेणियां बदलने के साथ इस कानून का दायरा भी फैल गया था.

इसलिए, यह बड़ी सीधी-सी बात है. एक खुला समाज अपने सभी वासियों के प्रति जितना दोस्ताना होगा और लोग सम्मिलित तथा बहिष्कृत के बीच की रेखा को जितनी धुंधली करेंगे उतना ही यह सहकारी एकता के लिए बेहतर होगा. और लोगों के बहिष्कार पर आमादा समूहों की मौजूदगी जितनी बढ़ेगी, लिंचिंग जैसी जंग जितनी बढ़ेगी, ‘सबसे सक्षम’ नहीं बल्कि सबसे दोस्ताना लोगों के अस्तित्व की रक्षा के लिए संस्थागत उपायों की जरूरत उतनी बढ़ेगी.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: कृषि कानूनों की घर वापसी से साफ है कि दादागिरी से कानून पास करना समझदारी नहीं


 

share & View comments