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गुरूवार, 15 मई, 2025
होममत-विमतभारत ने पाकिस्तान के लिए केवल संघर्ष विराम का बटन ही दबाया है, उसे तौर-तरीके बदलना होंगे

भारत ने पाकिस्तान के लिए केवल संघर्ष विराम का बटन ही दबाया है, उसे तौर-तरीके बदलना होंगे

जब भी ज़रूरत पड़ेगी, सैन्य ताकत का ज़रूर इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन यह कुल योजना का हिस्सा होगा ताकि पाकिस्तान के तौर-तरीकों में बदलाव लाया जा सके.

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तोपें शांत हो गई हैं और पश्चिमी मोर्चे पर एक असहज शांति पसरी है. कितनी उथल-पुथल से भरा रहा पिछला हफ्ता, जो पाकिस्तान और उसके कब्ज़े वाले कश्मीर में आतंकवादी अड्डों और तामझाम पर भारत के प्रहारों और जवाबी हमलों से शुरू हुई जिनके कारण उधर का आसमान कौंधने लगा था. गंभीर नतीजों की आशंका की जा रही थी और फिर पूरे पश्चिमी मोर्चे पर सैन्य गतिविधियों के बंद होने की नाटकीय घोषणा हुई, जो 10 मई की शाम पांच बजे से लागू मानी गई. इस अवधि में भारतीय सेना ने मौके की मांग के मुताबिक, केवल आतंकवादी अड्डों पर ही नहीं बल्कि पाकिस्तान फौजी तंत्र पर भी निर्णायक प्रहार किए और साफ संदेश दिया कि भारत “आतंकवाद को किसी भी रूप में ज़रा भी बर्दाश्त नहीं करेगा”.

नेपथ्य में किए गए कई प्रयासों ने सैन्य कार्रवाइयों को बिना शर्त बंद करने का रास्ता साफ किया. अब आगे और वार्ताओं से ज्यादा स्थायी और टिकाऊ संघर्ष विराम का स्वरूप तय किया जाएगा. अभी तो केवल अस्थायी रुकावट का बटन दबाया गया है, अभी काफी काम बाकी है. छाती ठोकने की गैर-ज़रूरी कार्रवाई किए बिना हमारी सेनाओं ने खुद को विश्वसनीय रूप से बरी किया और ऑपरेशन के सभी लक्ष्य पूरे किए. इस तरह उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि भारत उपयुक्त स्थान और वक्त पर सैन्य कार्रवाई समेत राष्ट्रीय शक्ति के सभी उपायों को इस्तेमाल करने का अधिकार रखता है. जब भी ज़रूरत पड़ेगी, सैन्य ताकत का ज़रूर इस्तेमाल किया जाएगा, लेकिन यह ‘डीआईएमई’ की कुल योजना का हिस्सा होगा ताकि पाकिस्तान के तौर-तरीकों में बदलाव लाया जा सके. कूटनीति, सूचना तंत्र, सेना और अर्थव्यवस्था, सबको अपनी-अपनी भूमिका निभानी होगी, बारी-बारी से और एक साथ मिलकर.

क्या‘ डीआईएमई’ के तहत की गई कार्रवाइयों से तौर-तरीकों में बदलाव लाया जा सकता है? इसके नतीजे मिले-जुले होते हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय समर्थन के स्तर पर निर्भर करते हैं. दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की समाप्ति इसका एक सफल उदाहरण है. हालांकि, इसमें तीन दशक से ज्यादा समय लग गया. अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं ने दक्षिण अफ्रीका का बहिष्कार किया, उसका सांस्कृति और खेलकूद के क्षेत्रों से बायकॉट किया गया. रंगभेद विरोधी अफ्रीकी नेशनल कांग्रेस जैसे समूहों को सैन्य सहायता दी गई और दक्षिण अफ्रीका पर व्यापक प्रतिबंध लगाए गए. अंतर्राष्ट्रीय ‘डीआईएमई’ वाले दबाव के साथ आंतरिक प्रतिरोध के कारण वार्ताएं की गईं जिनके फलस्वरूप 1994 में रंगभेद का खात्मा हुआ, लेकिन असली मोड़ तभी आया जब अमेरिका और ब्रिटेन दोनों रंगभेद विरोधी अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन में शामिल हो गए.

ताइवान को तमाम देशों के बीच अलग-थलग करने के लिए और उसे औपचारिक आज़ादी से वंचित करने के लिए चीन इसी तरीके का इस्तेमाल कर रहा है. उसने तमाम देशों पर ताइवान की मान्यता रद्द करने और ‘डब्लूएचओ’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी भागीदारी पर रोक लगा दी. ताइवान और पूरी दुनिया में चीनी मीडिया और साइबर माध्यमों से जनमत को प्रभावित करने के लिए उसने ऑपरेशन्स चलाए हैं. सैन्य वर्चस्व जताने के लिए सेना, हवाई क्षेत्र के नियमित उल्लंघन, नौसैनिक अभ्यासों और प्रतिबंधों का सहारा लेता रहा है. आर्थिक मोर्चे पर उसने व्यापार के माध्यम का इस्तेमाल करके ताइवानी उत्पादों पर रोक लगा दी है और ताइवान के दर्जे को खारिज करने वाले देशों को वह पुरस्कृत करता रहा है. नतीजतन, चीन ने ताइवान को कूटनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया है और उसे अपनी आज़ादी की घोषणा करने से रोक रखा है, लेकिन वह उसकी लोकतांत्रिक ताकत को तोड़ने में विफल रहा है, जो यह संकेत देता है कि ‘डीआईएमई’ के ज़रिए किसी देश को प्रतिबंधित तो किया जा सकता है लेकिन उसे हमेशा बदला नहीं जा सकता.


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‘डीआइएमई’ का रास्ता

इन स्थितियों में पाकिस्तान के तौर-तरीके में अपेक्षित बदलाव लाने के लिए भारत के पास क्या उपाय उपलब्ध हैं? इसके लिए निम्नलिखित मोर्चों पर राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक अभियान चलाने की ज़रूरत है.

कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान को संयुक्त राष्ट्र, एससीओ, ओआइसी जैसे बहुपक्षीय मंचों पर पाकिस्तान को अलग-थलग करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय गठबंधनों की अगुआई करने की ज़रूरत है. ‘एफएटीएफ’ में पाकिस्तान की ब्लैकलिस्टिंग करने के निरंतर पैरवी करते रहने की ज़रूरत है. खाड़ी देशों, आसियान और अफ्रीकी देशों के गठजोड़ों को मजबूती देने की ज़रूरत है ताकि इस्लामी मुल्कों के बीच पाकिस्तान की बढ़त को कमजोर किया जा सके. पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जांच में वृद्धि और उस पर कूटनीतिक दबाव डालने का कुछ असर पड़ सकता है, जबकि भारत को गुप्त माध्यमों के जरिए वार्ताओं में बढ़त हासिल हो सकती है. वक्त की पाबंदी के साथ आतंकवादी ढांचों को नष्ट करने के प्रयासों के सबूत देने पर ज़ोर दिया जाना चाहिए. हम अगले आतंकवादी हमले का चुपचाप इंतज़ार नहीं करते रह सकते.

सूचना के क्षेत्र में वैश्विक अभियान छेड़ कर पाकिस्तान के आतंकवादी ढांचे का खुलासा किया जाना चाहिए, खासकर उन तस्वीरों को प्रचारित करना चाहिए जिनमें पाकिस्तानी फौजी अधिकारी कुख्यात आतंकवादियों के जनाजे में शरीक होते और ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ तक देते दिख रहे हैं. मीडिया से जुड़ी कूटनीति और प्रवासियों के नेटवर्क का इस्तेमाल करके विश्व जनमत को स्वरूप प्रदान किया जा सकता है, अपने ही सूबे बलूचिस्तान में पाकिस्तानी दमन को और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान से मिले झटके को उजागर किया जा सकता है. भारत के आतंकवाद विरोधी प्रयासों और फौजी कारवाई के लिए पश्चिमी लोकतांत्रिक देशों का समर्थन हासिल करने के मकसद से पाकिस्तान के तर्कों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कमजोर करने के प्रयास किए जाने चाहिए.

सैन्य मोर्चे पर आगे और सोचे-समझे हमलों के लिए तैयारी रहनी चाहिए और फौजी कार्रवाई का विकल्प हमेशा खुला रहना चाहिए. अभी युद्ध को केवल विराम दिया गया है. आतंकवादी नेटवर्क और अड्डों को नष्ट करने के लिए हर उपाय अपनाए जाएं. एलओसी पर सुरक्षा और मजबूत की जानी चाहिए और खुफिया गतिविधियों, निगरानी और टोही क्षमताओं को और मजबूत किया जाए. इससे पाकिस्तान पर बोझ बढ़ेगा और वह कारगिल जैसा कोई दुस्साहस या खुली कार्रवाई करने से डरेगा. इस सब से अनुकूल शर्तों पर कूटनीतिक तनाव घटाने की गुंजाइश बनेगी.

आर्थिक मोर्चे पर पहले ही किए जा चुके उपायों के अलावा पाकिस्तान के आतंकवादी तत्वों के खिलाफ वैश्विक प्रतिबंधों को आगे बढ़ाने पर ज़ोर दिया जा सकता है. उसके साथ व्यापार और सीमा पार के कारोबार के स्थगन को जारी रखा जाना चाहिए. आईएमएफ द्वारा उसे दिए गए राहत के ताज़ा पैकेज के बावजूद आईएमएफ और विश्व बैंक पर ज़ोर देना चाहिए कि वह इन पैकेजों के साथ आतंकवाद-रोधी पहल की शर्त लगाएं. पाकिस्तान को दरकिनार करते हुए भारत-मध्यपूर्व-यूरोप कॉरीडोर जैसे प्रयासों के जरिए आर्थिक एकजुटता को बढ़ावा दिया जाए. इसका असर यह होगा कि पाकिस्तान के कुलीन तबके और उसकी संस्थाओं पर वित्तीय दबाव बढ़ेगा और छद्म युद्ध या किराए के समूहों का समर्थन करने की उसकी क्षमता घटेगी.

हमेशा जवाबी तेवर ज़रूरी नहीं

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, इन उपायों के नतीजे मिलने में समय लगेगा. तब हम सबसे अच्छी उम्मीद क्या रख सकते हैं?

  • अल्पकालिक नतीजे : पाकिस्तान का कूटनीतिक अलगाव और उस पर वित्तीय दबाव. आक्रामक आतंकवादी गतिविधियों पर सीमित रोक. भारत ने किसी भी आतंकवादी गतिविधि को युद्ध के रूप में लेने का जो नया फैसला किया है उसका बड़ा असर होगा.
  • मध्यकालिक नतीजे : भारत के आतंकवाद रोधी तर्कों को ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और नागरिकता विहीन तत्वों के जरिए पाकिस्तान की रणनीतिक क्षमता का कमजोर होना.
  • दीर्घकालिक नतीजे : पाकिस्तान पर निरंतर दबाव के साथ उसकी आंतरिक अस्थिरता या नेतृत्व परिवर्तनों के मेल से उसके आचरण में सशर्त परिवर्तन.

लेकिन अलग-थलग किया जा चुका और प्रतिशोधी पाकिस्तान ज्यादा खतरनाक हो सकता है. इन उपायों के साथ हालात से निकासी के अव्यक्त रास्ते जुड़े होने चाहिए जो अच्छे आचरण के एवज में उपलब्ध कराए जाएं. यह पेशकश किसी तीसरे पक्ष द्वारा करवाई जा सकती है. इसमें दबाव से सशर्त राहत की तब पेशकश की जा सकती है जब पाकिस्तान आतंकी नेटवर्क को ध्वस्त करता है और इसके प्रामाणिक सबूत देता है. व्यापार कॉरीडोर के लिए समर्थन तब दिया जा सकता है जब पाकिस्तान अपनी विदेश नीति को छद्म युद्ध के विचार से मुक्त करता है और द्विपक्षीय वार्ताओं में गतिरोध पैदा होने पर तीसरे पक्ष के जरिए कूटनीतिक रिश्ते को सामान्य बनाने की खामोश कोशिश करता है.

आतंकवाद का पाकिस्तान द्वारा इस्तेमाल उसके रणनीतिक गणित से, खासकर कश्मीर और अफगानिस्तान के मसले से जुड़ा है. जबकि पहलगाम कांड का बदला लिया जा चुका है, तब देखने वाली बात यह होगी कि इस तरह की नियंत्रित दीर्घकालिक नीति सबसे अच्छा विकल्प है या नहीं. तोपें शांत हो गई हैं, लेकिन कब तक के लिए? पाकिस्तान को अपेक्षित निकासी मार्ग की ओर धकेलने के लिए गतिशील जवाबी रणनीति के हिस्से के रूप में सोच-समझी सैन्य कार्रवाई की जरूरत पड़ सकती है. हमें हमेशा जैसे को तैसा जवाब देने की मुद्रा में रहने की ज़रूरत नहीं है. आतंकवादी गिरोहों या अड्डों की मौजूदगी ही सक्रिय सुरक्षात्मक उपायों की पर्याप्त वजह बन सकती है.

(जनरल मनोज मुकुंद नरवणे, पीवीएसएम, एवीएसएम, एसएम, वीएसएम, भारतीय थल सेना के सेवानिवृत्त अध्यक्ष हैं. वे 28वें चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ थे. उनका एक्स हैंडल @ManojNaravane है. व्यक्त किए गए विचार निजी हैं.)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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