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Saturday, 20 April, 2024
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भारत की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार घटी, मगर मामूली कॉर्पोरेट मुनाफे ने इंजन चालू रखा

वृद्धि की अपेक्षाओं पर लगाम लगाना होगा, रिजर्व बैंक पूरे साल के लिए 7 फीसदी वृद्धि की भविष्यवाणी तो कर रहा है मगर विश्व बैंक 6.5 फीसदी का अनुमान लगा रहा है, जो ज्यादा वास्तविक लगता है.

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आर्थिक सुस्ती के संकेत बिलकुल साफ हैं. औद्योगिक उत्पादन हो या बिजली उत्पादन, निर्यात हो या जीएसटी से कमाई, सबकी गति सुस्त पड़ रही है. 14 फीसदी की वृद्धि के साथ बैंक क्रेडिट जैसे कुछ संकेतक धोखा दे रहे हैं. लेकिन थोक कीमत में जब 12.4 प्रतिशत की वृद्धि हो रही हो तब अधिकांश आर्थिक वृद्धि आम महंगाई को ही दर्शाती है.

व्यापारिक वस्तुओं के निर्यात को ही लें, इसमें पिछले वर्ष आई तेजी के कारण जो गति बनी हुई थी वह सितंबर में आकर खत्म हो गई और इस महीने में इसमें 3.5 फीसदी के कमी आ गई. इसके ब्यौरे और चिंताजनक है. इंजीनियरिंग माल के निर्यात में सितंबर में 17 फीसदी की कमी आई, जबकि कपड़े (धागे, सिले-सिलाए वस्त्रों आदि) के निर्यात में 31.5 फीसदी की गिरावट आई. इलेक्ट्रॉनिक सामान के निर्यात में 64 फीसदी की तेज वृद्धि ने कमी की पूरी भरपाई नहीं की. वैसे भी यह सेक्टर का घरेलू मूल्य वृद्धि में कम ही योगदान देता है.

इस सबका कुल नतीजा यह है कि पहले छह महीने में व्यापारिक वस्तुओं के मामले में व्यापारिक घाटा दोगुना बढ़ गया है. अनुमान लगाया गया है कि पूरे साल के लिए चालू खाते का घाटा (सेवाओं के व्यापार समेत) पूरे दशक के उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा.


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बिजली उत्पादन की कहानी भी निर्यातों की कहानी जैसी ही है. साल के शुरू के महीनों में आंकड़े ऊपर की ओर थे लेकिन अगस्त से वृद्धि में सुस्ती आई और आंकड़े सपाट हो गए. इसे वर्ष 2021-22 के बिजली उत्पादन के आंकड़े के संदर्भ में देखा जा सकता है, जो 2017-18 के आंकड़े से केवल 1 फीसदी अधिक थे.

औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक में जुलाई में 2.4 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि ‘कोर सेक्टर’ (इस्पात, सीमेंट, खाद, और ऊर्जा के अन्य व्यवसाय) में अगस्त में उत्पादन में वृद्धि 9 महीने के न्यूनतम स्तर 3.3 फीसदी पर पहुंच गई.

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जीएसटी के आंकड़े भी बहुत कुछ कहते हैं. अप्रैल में इससे 1.68 ट्रिलियन रुपये की कमाई हुई (जो मार्च में वार्षिक आउटपुट को दर्शाती है), लेकिन बाद के महीनों में आंकड़े 1.44 ट्रिलियन, 1.49 ट्रिलियन, 1.43 ट्रिलियन रहे. अनुमान है कि सितंबर में कमाई 1.45 ट्रिलियन की होगी. आंकड़े इससे ज्यादा सपाट नहीं हो सकते थे.

अगर अर्थव्यवस्था समतल हो रही है तब फिर प्रत्यक्ष कर उगाही में तेज वृद्धि की क्या वजह है? धुंधले होते क्षितिज से रोशनी की यह किरण इसलिए फूटी है कि कॉर्पोरेट मुनाफा बढ़ रहा है हालांकि लागत मूल्य में वृद्धि का अर्थ यह है कि मार्जिन को नौ तिमाहियों में सबसे निचले स्तर पर रखा गया है.

अप्रैल-जून में करीब 3,000 सूचीबद्ध कंपनियों ने मुनाफे में कुल 22.4 फीसदी की वृद्धि दर्शाई, लेकिन यह वित्त सेक्टर की सेहत में सुधार के कारण हुआ. इसे छोड़ दें तो आंकड़ा 16.3 फीसदी पर पहुंच जाएगा. इसके अलावा, मुनाफे में वृद्धि आधा दर्जन बड़ी कंपनियों में सीमित यहां जिन्होंने अधिकतम वृद्धि दर्ज की. याद रहे कि शेयर बाजार के प्रमुख सूचकांक आज पिछले साल के मुक़ाबले निचले स्तर पर हैं, जबकि रुपया अभी और कमजोर होगा.

सभी तो नहीं मगर अधिकतर बुरी खबरों के लिए बाहरी कारण जिम्मेदार हैं— तेल की ऊंची कीमतें, सप्लाई में बाधा, डॉलर की ओर झुकाव, और वैश्विक आर्थिक सुस्ती. हम एक मुश्किल वक़्त में है, और वृद्धि की अपेक्षाओं पर लगाम कसना होगा. भारतीय रिजर्व बैंक ने पूरे साल के लिए वृद्धि दर जो 7 फीसदी रहने का अनुमान लगाया है वह तमाम दूसरे आंकड़ों से बनती तस्वीर से मेल नहीं खाती. विश्व बैंक ने संशोधित अनुमान 6.5 फीसदी का लगाया है, जो अधिक वास्तविक लगता है.

इस बीच, केंद्रीय बैंक ऊंची मुद्रास्फीति और नीची आर्थिक वृद्धि के दो पाटों के बीच फंस गया है. दस साल वाले ट्रेजरी बॉन्डों से लाभ पिछले साल 6.27 फीसदी से बढ़कर 7.45 फीसदी हो गया और पिछले एक दशक में इनसे लाभ लगभग मध्य स्तर पर पहुंच गया. रिजर्व बैंक जबकि मुद्रास्फीति से जूझ रहा है तब अगर लाभ और बढ़ा तो आर्थिक वृद्धि की गति और धीमी हो जाएगी. इसका सामना करने और टैक्स से कमाई में वृद्धि की मदद से सरकार बाजार से कम उधार ले सकती है और ब्याज दरों को काबू में रख सकती है. लेकिन वित्त वर्ष के उत्तरार्द्ध में वृद्धि दर 4 फीसदी से नीची चली जाए, जो महामारी से पहले वाले साल में थी, तो आश्चर्य में न पड़िएगा.

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(बिजनेस स्टैंडर्ड से विशेष प्रबंध द्वारा)


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