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Wednesday, 13 August, 2025
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INDIA गठबंधन: विकल्प से उम्मीद तक, लोकतंत्र की आखिरी लड़ाई

अगर कांग्रेस साझा नेतृत्व और ज़मीनी संघर्ष को प्राथमिकता दे, तो INDIA गठबंधन अब भी भाजपा-आरएसएस की सत्ता-प्रधान राजनीति के खिलाफ लोकतंत्र का सबसे मज़बूत प्रहरी बन सकता है.

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जब 2023 में भारतीय राजनीति में 26 विपक्षी दलों ने एकजुट होकर INDIA (Indian National Developmental Inclusive Alliance) गठबंधन की नींव रखी, तो देश के लोगों के अंदर एक उम्मीद जगी कि यह मंच न सिर्फ भारतीय लोकतंत्र की रक्षा करेगा, बल्कि सत्तारूढ़ दल भाजपा के फासीवादी निरंकुश रुख के खिलाफ एक मजबूत विकल्प भी प्रस्तुत करेगा, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनावों के परिणाम और उसके बाद के घटनाक्रम ने इस गठबंधन की दिशा और सबसे बड़े दल कांग्रेस की भूमिका और विपक्ष की रणनीतिक स्पष्टता को लेकर कई सवाल खड़े कर दिए हैं. INDIA गठबंधन की मौजूदा स्थिति चिंता का विषय है, लेकिन अगर कांग्रेस अपने नेतृत्व को साझा नेतृत्व में बदलती है तो यह गठबंधन अब भी भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा रक्षक बन सकता है. कांग्रेस को गठबंधन धर्म निभाना होगा और हर राज्य में क्षेत्रीय राजनीतिक यथार्थ के अनुसार सहयोगियों को सम्मान देना होगा. इसके अलावा भाजपा और आरएसएस की रणनीतियों को टक्कर देने के लिए सिर्फ संसद नहीं बल्कि सड़क और जनमानस के बीच एक नई साझा विपक्षी ऊर्जा का संचार करना होगा. तभी देश की संस्था और लोकतंत्र को बचाया जा सकता है और INDIA गठबंधन एक विकल्प नहीं, एक आंदोलन का रूप ले सकता है.

INDIA गठबंधन में सहयोग या संघर्ष?

INDIA गठबंधन में कांग्रेस के साथ प्रमुख क्षेत्रीय दल जैसे आप (दिल्ली/पंजाब), सपा (उत्तर प्रदेश), एन सी पी (शरद पवार), शिवसेना (महाराष्ट्र), डीएमके (तमिलनाडु) और झामुमो (झारखंड) शामिल हैं. हालांकि, इन दलों के साथ कांग्रेस के रिश्ते अलग-अलग राज्यों बहुत भिन्न हैं. पश्चिम बंगाल में टीएमसी ने बार-बार कांग्रेस से दूरी बनाई, विशेषकर जब कांग्रेस ने वाम दलों के साथ गठबंधन किया. पंजाब में आप और कांग्रेस के बीच संबंध कटु हैं जो चुनावी रणनीति में सामने आ गए. उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन बाकि राज्यों के अपेक्षाकृत बेहतर रहा, लेकिन सीटों के बंटवारे में दोनों दलों में असहमति रही. इन अंतर्विरोधों का परिणाम यह हुआ कि कई राज्यों में INDIA गठबंधन प्रभावशाली मुकाबला नहीं कर सका, जिससे भाजपा को सीधा फायदा हुआ.

कांग्रेस का ‘नेतृत्व बनाम लचीलापन’ संकट

कांग्रेस पार्टी ने भारत की स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक केंद्र में अकेले दम पर सरकार चलाई, लेकिन गठबंधन की राजनीति की शुरुआत कांग्रेस के लिए तब मजबूरी बन गई , जब 1991 में नरसिंह राव की सरकार पूर्ण बहुमत (232 सीटें मिली थीं) हासिल नहीं कर पाई. तब कांग्रेस ने कुछ छोटे दलों और निर्दलीय उम्मीदवारों के समर्थन से सरकार बनाई. इसे गठबंधन की शुरुआत का पहला चरण माना जा सकता है. हालांकि, वह औपचारिक गठबंधन नहीं था. कांग्रेस स्वाभाविक रूप से गठबंधन में सबसे पुरानी और संसदीय दृष्टि से सबसे बड़ी पार्टी है. 2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस 99 सांसद जीत कर आए जबकि अन्य घटक दलों के सांसदों की संख्या कम है. कांग्रेस गठबंधन की धुरी बनने की पात्र है, लेकिन उसकी रणनीति कई बार सहयोगी दलों की इच्छाओं और आत्मनिर्भरता के खिलाफ प्रतीत होती है. कांग्रेस की ओर से सीट बंटवारे में आक्रामक रुख और राज्यों में नेतृत्व थोपने की प्रवृत्ति ने सहयोगियों को असहज किया. संसद में विपक्ष की संयुक्त रणनीति के बजाय कांग्रेस कई बार एकतरफा निर्णय लेती दिखी, जैसे कि लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष की घोषणा से पहले सहयोगी दलों से गहन विमर्श की कमी. विपक्ष की सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते संसद में सभी राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों पर सहयोगी दलों के साथ समन्वय बनाना कांग्रेस पार्टी कि ज़िम्मेदारी है, लेकिन यह द्वंद्व इस प्रश्न को जन्म देता है कि क्या कांग्रेस गठबंधन का नेतृत्व लोकतांत्रिक साझेदारी से कर रही है या सत्ता-साझेदारी की तुलना में सत्ता-प्रधानता को प्राथमिकता दे रही है?

भाजपा की संस्थागत अतिक्रमण नीति और INDIA की कमजोरी

बीते एक दशक में भाजपा शासन के दौरान देश की लोकतांत्रिक संस्थाएं – संसद, न्यायपालिका, चुनाव आयोग, मीडिया लगातार दबाव में रही हैं. संसद में विपक्षी सांसदों का निलंबन, विधेयकों पर बहस का गला घोंटना और बिना विमर्श के फैसले. विपक्ष कई बार इन हमलों के खिलाफ आवाज उठाने में असफल या बिखरा हुआ नज़र आया और अगर इसका विरोध भी किया तो इनका विरोध प्रतिक्रियात्मक ही रहा है. रचनात्मक विरोध या वैकल्पिक रोडमैप देने में INDIA गठबंधन असफल रहा. मीडिया में भाजपा के पक्ष में झुकी रिपोर्टिंग के बावजूद कांग्रेस और सहयोगी दलों ने स्वतंत्र सूचना तंत्र या सोशल मीडिया रणनीति को उतनी ताकत से नहीं अपनाया जितना अपेक्षित था. हालांकि, कांग्रेस पार्टी ने सोशल मीडिया पर अपनी पकड़ को बेहतर किया है लेकिन पार्टी के एक तंत्र के रूप में स्थापित करना अभी बाकी है.

इंडिया गठबंधन: एकता की घोषणाएं और व्यवहार में कमी

INDIA गठबंधन बनने के तुरंत बाद ही घटक दलों ने समय-समय पर एक दूसरे के खिलाफ बयान देना शुरू कर दिया था. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था ‘हम कांग्रेस के अधीन नहीं चलेंगे’. INDIA गठबंधन का नेतृत्व सामूहिक होना चाहिए. उसी समय पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कह दिया ‘अगर कांग्रेस हमारे खिलाफ पंजाब में लड़ती है, तो गठबंधन का क्या मतलब?’ गठबंधन बनने से कुछ महीने पहले अखिलेश यादव कहा कि ‘कांग्रेस को अपने अहम से बाहर आना होगा. उत्तर भारत की राजनीति सिर्फ दिल्ली से नहीं चलेगी’. इन सभी कारणों से भी गठबंधन की विश्वसनीयता में कमी आई. 2024 लोकसभा चुनाव के बाद साफ तौर पर नेताओं के बयान और सड़क से लेकर संसद तक राजनीतिक ताल मेल से संकेत मिलने लगे थे कि INDIA गठबंधन में सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है, जबकि कांग्रेस के वरिष्ट ने पी. चिदंबरम — हाल ही में कहा कि भाजपा एक “formidable” शक्ति है और INDIA गठबंधन “frayed (खिंच चुका)” प्रतीत होता है. यह साफ करता है कि कांग्रेस का नेतृत्व क्षेत्रीय दलों को बराबरी का भागीदार नहीं लगता.

आंकड़ों की रोशनी में INDIA गठबंधन

2024 लोकसभा में कांग्रेस ने पिछले दो आम चुनाव से बेहतर प्रदर्शन किया उसे 99 सीटों के साथ 21% वोट मिले और मुख्य विपक्षी पार्टी बनी. साथ ही पिछले 10 साल में अधिकारिक रूप से नेता प्रतिपक्ष कांग्रेस को मिला, जबकि सपा को 37 सीट, 5.5% वोट मिले, DMK 22 सीट, 3% वोट मिले, टीएमसी 29 सीट, 4.5%, आप 3 2% इन आंकड़ों से साफ़ है कि कांग्रेस को अपनी ताकत का प्रयोग सामूहिक नेतृत्व में परिवर्तित करना चाहिए न कि वर्चस्व स्थापित करने के लिए। विपक्ष की साझा रणनीति नहीं होना संसदीय राजनीति में INDIA गठबंधन की सबसे बड़ी कमजोरी का कारण है. कई बार कांग्रेस और अन्य दलों की कार्यशैली अलग रही (जैसे लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष पर सहयोगियों से कम सलाह-मशविरा, वक्फ बिल पर इंडिया गठबंधन के नेताओं के साथ कोई बातचीत नहीं). संसद में संख्या बल में कांग्रेस मुख्यविपक्षी दल है उसके पास सबसे अधिक सीटें हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रीय दल केवल अपने राज्यों में सीमित हैं – यह असमानता संसद में सामूहिक शक्ति में बाधा बनती है. संसद में NDA के पास 290 से अधिक सांसद हैं जबकि INDIA गठबंधन के पास लगभग 230 सांसद हैं, लेकिन इनमें से कई दल बाहर से समर्थन देते हैं, एकजुटता नहीं दिखाते, जबकि कांग्रेस पार्टी को संसद के अंदर मज़बूत और प्रभावशाली गठबंधन को पेश करना चाहिए.

BJP की लचीली गठबंधन नीति

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने पिछले दो दशकों में एक व्यापक और रणनीतिक गठबंधन राजनीति अपनाई है. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के तहत भाजपा ने अलग अलग राज्यों में क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन किया है तथा कई सहयोगी दलों को राज्य सरकारों और केंद्र सरकार दोनों मंत्रिमंडल में भागीदारी भी दी है. जैसे बिहार में जदयू, उत्तर प्रदेश में आर एल डी, अपना दल, आंध्र प्रदेश की तेलुगु देशम पार्टी (TDP) , PMK (पट्टाली मक्कल काची), IJK (इंदु मक्कल काची), ये सभी दल विपक्षी के खिलाफ मिलकर चुनाव लड़ते हैं और छोटे दलों को शामिल कर सामूहिक वोट बैंक को मजबूत रूप से सक्रिय करते हैं. भाजपा ने राज्य-केंद्र में बेहतर संतुलन बनाया है. NDA में राज्य सहयोगियों को मुख्यमंत्री पद, मंत्रीपद, या सत्ता में प्रतिनिधित्व मिलता है. जैसे बिहार में नीतीश कुमार, महाराष्ट्र में शिंदे-अजित पवार गुट, असम में असम गण परिषद, यूनाइटेड पीपल्स पार्टी लिबरल). भाजपा सहयोगियों को वोट बैंक के अनुसार भूमिका देती है और सहयोगी दलों के साथ बेहतर तालमेल के लिए NDA की नियमित रणनीति बैठकें होती हैं.

BJP-RSS को कमजोर करना ज़रूरी

राजनीतिक आंदोलन, बेरोज़गारी, महंगाई, सामाजिक न्याय जैसे विषयों पर राष्ट्रीय स्तर के अभियान यात्राएं जैसे राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा, इसे अब गठबंधन यात्रा और प्रदेश यात्रा आंदोलन में बदलने की ज़रूरत है क्योंकि भाजपा और आरएसएस सभी गैर संवैधानिक, अलोकतांत्रिक एजेंडे पर देश की बहुत बड़ी आबादी के साथ भावनात्मक खेल, खेल रही है. भाजपा-आरएसएस के सांप्रदायिक एजेंडे के खिलाफ धर्मनिरपेक्ष, प्रगतिशील आंदोलम खड़ा करना, युवाओं, छात्रों, मजदूरों और किसानों को जोड़ने वाले साझा मंचों को तैयार करना होगा. गठबंधन को चाहिए कि वे संयुक्त रूप से गांव से लेकर संसद में INDIA गठबंधन की मज़बूती को पेश करे.

एकजुटता ही विकल्प

आज हमारा देश जिस मोड़ पर खड़ा है, वहां विपक्ष की भूमिका मात्र सत्ता-विरोध की ही नहीं, बल्कि उस पर लोकतंत्र की रक्षा का संवैधानिक दायित्व भी है. कांग्रेस को INDIA गठबंधन में सहभागिता आधारित नेतृत्व को अपनाना चाहिए. इसके अलावा राज्यों में सहयोगियों की स्वायत्तता का सम्मान और संसद में एक सुसंगठित, तथ्यात्मक, और दूरदर्शी रणनीति के साथ भाजपा के खिलाफ खड़ा होना चाहिए. अगर ऐसा होता है तो न केवल गठबंधन की विश्वसनीयता बढ़ेगी, बल्कि भाजपा के लोकतंत्र-विरोधी, संविधान विरोधी एजेंडे को रोकने का एक मजबूत विकल्प जनता के सामने पेश किया जा सकता है. INDIA गठबंधन की कोर कमेटी को सक्रिय करना होगा और गठबंधन को राज्य, जिले से होते हुए पंचायत स्तर तक सक्रिय आंदोलन की रूपरेखा बनानी होगी, तभी भाजपा और आरएसएस की नींव को कमज़ोर किया जा सकता है.

(लेखक भारत सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री के प्रथम निजी सचिव रहे हैं. लेख में व्यक्त विचार निजी हैं)


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