जब तक मैं यह लेख पूरा करूंगा, जम्मू, पठानकोट और जैसलमर में फिर से लड़ाई शुरू हो गई होगी. पाकिस्तान ने अप्रत्याशित रूप से कबूल किया है कि उसके दो जेएफ-2 लड़ाकू जेट विमान मार गिराए गए हैं, जबकि भारतीय सूत्रों का मानना है कि उन्होंने एक एफ-16 विमान को मार गिराया है. घटनाएं बहुत तेज़ी से घट रही हैं इसलिए मैं आंखो देखा हाल बताने की जगह वर्तमान संकट के कारण उभरे प्रमुख मसलों के बारे में चर्चा करूंगा.
पहलगाम में 22 अप्रैल को हुए हमले के बाद से हमारी चर्चाओं में आपस में जुड़ी तीन बातें उभरती रही हैं. ये तीन बातें हैं — ‘काइनेटिक’ (गतिशील) जवाबी कार्रवाई, ‘एस्केलेटरी लैडर’ (संघर्ष बढ़ाने वाली सीढ़ी) और ‘ऑफ-रेंप’ (निकासी मार्ग).
वैसे, इन तीनों से पहले भी एक शब्द आता है जिसका इन दिनों शायद ही इस्तेमाल किया जाता है, जो कुछ अनजाना-सा है. और वह शब्द है — ‘केसस बेली’ (युद्ध का बहाना). मैं इस लैटिन शब्द को यूज़ कर रहा हूं. हालांकि, मेरे पहले सम्मानित न्यूज़ एडिटर स्वर्गीय डी.एन. सिंह का आदेश होता था कि अगर अंग्रेज़ी में कोई समानार्थी शब्द है तो हम किसी ‘विदेशी’ शब्द का प्रयोग न करें. बहरहाल, किसी संघर्ष या युद्ध का कारण बताना विश्वसनीय नहीं लगता.
इस मामले में ‘केसस बेली’ पहलगाम है, और यह हैरानी और निराशा की बात है कि अंतर्राष्ट्रीय और हमारी घरेलू मीडिया में भी इसे किस तरह ओझल कर दिया गया है. अगर वे हत्याएं न की जातीं तो आज हम ये बातें न कर रहे होते. इसलिए पहलगाम संघर्ष की सीढ़ी का पहला पायदान है. पाकिस्तानी सत्ता तंत्र और उसके भाड़े के लोगों ने यह कांड क्यों किया इसका विश्लेषण हम अगले लेख में करेंगे. यह कहानी तो अभी खत्म नहीं होने जा रही है.
जिस सीढ़ी पर पैर रखे जा चुके हैं उसके ऊपरी पायदानों से हम परिचित हैं. दूतावासों के कर्मचारियों की संख्या में कटौती की जाएगी, दोनों देशों के नागरिकों के बीच संपर्क टूटेगा और वीज़ा बंद हो जाएंगे, एक-दूसरे के हवाई मार्ग से विमान ले जाने पर रोक लगा दी जाएगी और अंत में भारत ने जबकि सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है तो पाकिस्तान जवाब में यह धमकी दे चुका है कि वह शिमला समझौते को ‘रद्द करने का अधिकार’ रखता है. संघर्ष को तेज़ करने वाले इन कदमों के साथ अक्सर यह सवाल उठाया जाता था कि क्या कोई गतिशील कार्रवाई की जाएगी? अगर की जाएगी तो कब और कैसी?
गतिशील कार्रवाई का अर्थ यह माना जाता है कि अपना मकसद पूरा करने और अपना संदेश देने के लिए सैन्य ताकत का इस्तेमाल किया जाएगा; जो कूटनीतिक, सूचना केंद्रित, आर्थिक, कानूनी, प्रतिबंध केंद्रित आदि-आदि संघर्षों से अलग होगा. भारत ने 6 और 7 मई की दरमियानी रात उस सीढ़ी के इस पायदान पर कदम रख दिया था.
इसकी अगली रात पाकिस्तान ने उत्तरी और पश्चिमी सीमा के पास भारतीय हवाई अड्डों को अचानक महत्वाकांक्षी निशाना बनाने की कोशिश की. वह अभी कोई बड़ा नुकसान पहुंचाने या विमानों पर हमला करने की कोशिश नहीं कर रहा था. वह जिस तरह का आक्रमण कर रहा था, जिन हथियारों का इस्तेमाल कर रहा था और जो निशाने चुन रहा था उन सबके कारण एक और शब्द उभर रहा था जिससे आपका परिचय ज़रूरी है. यह शब्द है — ‘सीड’ (एसईएडी) यानी दुश्मन की हवाई सुरक्षा को कमज़ोर करना. कभी-कभी इसे ‘डेड’ (डीईएडी) कहा जाता है जिसमें कमजोर करने की जगह नष्ट करने की बात की जाती है.
अगर आप दुश्मन की हवाई सुरक्षा को थोड़ा भी कमजोर कर लेते हैं तो आपकी हवाई शक्ति (फाइटर विमान और मिसाइल) को कार्रवाई करने की ज्यादा आज़ादी और सुरक्षा हासिल हो जाती है. सनद रहे कि भारत ने 6/7 मई की रात जो हमले किए उससे पहले ‘सीड’ वाली कार्रवाई नहीं की गई थी. यह कार्रवाई की गई होती तो भारतीय वायुसेना के हमलावरों की कार्रवाई को ज्यादा सुरक्षा हासिल होती, लेकिन वह हवाई हमले के अलार्म जैसा होता जो पाकिस्तानियों को जगा देता. इससे हम समझ सकते हैं कि हमारे हमलावरों को कितनी मुश्किल और खतरे का सामना करना पड़ रहा था.
दरअसल, पाकिस्तान ने पिछली रात ‘सीड’ वाली कार्रवाई करने की कोशिश की. अगर इसमें उन्हें थोड़ी भी सफलता मिलती तो वह और बड़े हमले करता. भारत ने ड्रोन के हमलों के जरिए उसका ‘इस्तकबाल’ किया. हर कार्रवाई एक लक्ष्य ‘सीड’ के लिहाज़ से की गई. अब पाकिस्तान अगर इस रात जवाब देता है तो यह उपरोक्त सीढ़ी का अगला पायदान होगा.
यह हमें ‘निकासी मार्ग’ के मोड़ पर ला खड़ा करता है. यह ऐसा ही है जैसे आप किसी हाइवे पर जाते हुए थोड़ी देर आराम करना और स्नैक्स आदि लेना चाहते हैं. सामरिक विमर्श में इसे लड़ाई को विराम देना या अमन के लिए वार्ता की मेज़ पर आना कहा जाता है. इसे इस तरह भी देखा जा सकता है कि शेयर बाज़ार लगातार गिर रहा है फिर भी तेजड़िया लगातार निवेश करता जा रहा है, लेकिन एक समय ऐसा भी आता है जब उसका सब्र टूट जाता है या उसमें विराम देने की बुद्धिमानी जाग जाती है. या रैंप से उतर जाया जाता है.
भारत-पाकिस्तान के मामले में रैंप से उतरने की कार्रवाई या तो विदेशी मध्यस्थता के कारण होती है (जैसे कारगिल में महीनों की लड़ाई के बाद या ऑपरेशन पराक्रम के दौरान दोनों सेनाओं की आमने-सामने की लंबी तैनाती के बाद हुआ था) या फिर तब होती है जब ऐसी स्थिति बन जाए कि दोनों पक्ष अपनी-अपनी जीत का दावा कर सकें. पुलवामा को याद कीजिए. भारत ने जब पहली बार पाकिस्तान में घुसकर आतंकवादी अड्डों पर हमला किया था तब पाकिस्तान ने एक भारतीय पायलट को युद्धबंदी बना लिया था. भारत के दबाव के बाद उस पायलट की वापसी दोनों के लिए रैंप से उतरने का बहाना बनी.
अब जो कुछ चल रहा है उसमें किसी नाटकीय सुलह का संकेत नहीं दिखता. बल्कि हर रात संघर्ष को और तेज़ करने वाली सीढ़ी के अगले पायदान पर कदम रखा जा रहा है. देर रात में की जाने वाली कार्रवाइयों को देखते हुए मैं उन लोगों को, जो इस घटनाक्रम पर हमेशा नज़र रखे रहना चाहते हैं, यही सलाह दूंगा कि दिन में थोड़ी नींद ले लिया करें. यह वह सफर है जिसमें आपको ‘सीट बेल्ट हमेशा बांधे रखना’ होगा.
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