scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतलॉकडाउन में भी दलितों पर बढ़े अत्याचार, कोरोना से लड़ेगा ये देश या जातिवाद से

लॉकडाउन में भी दलितों पर बढ़े अत्याचार, कोरोना से लड़ेगा ये देश या जातिवाद से

देश में कोई भी आपदा या महामारी हो उसकी सबसे ज्यादा कीमत देश के कमजोर वर्ग को ही चुकानी पड़ती है जैसे आज देशभर में फैले मजदूर चुका रहे हैं.

Text Size:

राष्ट्रीय आपदा के समय में देश के रूप में हमारी परीक्षा होती है, जब भी हमपर बाहरी हमला होता है या प्राकृतिक आपदा आती है तो हमें आपसी मतभेद भूल एकजुट होकर एक राष्ट्र बनकर उसका सामना करना होता है. यही एक राष्ट्र की कल्पना होती है. आज देश ही नहीं पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही है सभी देश आपसी मतभेद भूलकर एकजुट होकर इसका मुकाबला कर रहे है.

भारत में भी इस महामारी का बुरा प्रकोप पड़ा है, एक लाख से अधिक लोग संक्रमित हो चुके हैं. ऐसे समय में भारत को सामाजिक और राजनितिक एकता का परिचय देकर देश की एक मजबूत छवि पेश करनी चाहिए थी क्योंकि कई बार आपदाएं देश के आन्तरिक मतभेदों को खत्म करने में सहायक होती है. लेकिन हम आज भी जातिवाद में दलित और सवर्ण की लड़ाई लड़ रहे हैं.

भारत सामाजिक और आर्थिक रूप से काफी बंटा हुआ देश है और इसमें सबसे निचले पायदान पर दलित समाज खड़ा है. कोई भी आपदा या महामारी हो उसकी सबसे ज्यादा कीमत देश के कमजोर वर्ग को ही चुकानी पड़ती है जैसे आज देशभर में फैले मजदूर चुका रहे हैं.

जब महामारी के खिलाफ हमें सारे मतभेद भूलकर एक इंसान के रूप में एकजुटता दिखानी चाहिए थी ऐसे समय में भी भेदभाव की ऐसी कहानी आपको सुनने को मिलेगी जो आपकी मानवरूपी पहचान को शर्मसार कर देगी.  आप सोचने को मजबूर हो जायेंगे की कोरोना जैसी महामारी में भी लोग जातिगत भेदभाव की मानसिकता से नहीं उबर पाये हैं. बाबा साहेब ने देश के संविधान को ऐसे लिखा था जिससे हर नागरिक को बराबर का हक मिले पर आज भी इतने वर्षों बाद दलितों को बराबरी का हक नहीं मिला है!

देश की आज़ादी के इतने समय बाद भी दलितों को छुआछूत का सामना करना पड़ रहा है.

कोरोना बनाम जाति

कोरोनावायरस एक बीमारी है जल्दी ही इसका इलाज भी मिल जायेगा लेकिन सदियों से जातिगत भेदभाव का जो वायरस फैला है उसका इलाज खोजने में हम अबतक नाकाम रहे हैं. कोरोना महामारी जैसे संकटकाल में जब पूरे देश में लॉकडाउन लगाना पड़ा, ऐसे समय मे जातिगत उत्पीड़न कम होने की उम्मीद थी लेकिन जातिगत उत्पीड़न और भी बढ़ गया है. आज जब कोरोना महामारी लगातार लोगों की जिन्दगियां लील रही है ऐसे समय में भी मनुवादी मानसिकता के लोग अपनी जातिवादी मानसिकता नहीं छोड़ पा रहे है.


यह भी पढ़ें: लॉकडाउन के बीच आरक्षण समीक्षा की बात सुप्रीम कोर्ट की मंशा पर सवाल खड़े करती है


उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में सोमवार को कोरोनावायरस संक्रमितों और संदिग्ध मरीजों के लिए बनाए गए क्वारेंटाइन केन्द्र में रसोईया न होने से दलित समाज से चुनी गई प्रधान ने मानवता का परिचय देते हुए खुद ही खाना बनाया. ताकि मरीजों को खाने की कोई समस्या न आये लेक़िन जब भोजन परोसा गया तो उनमें से दो लोगों ने यह कहकर खाने से मना कर दिया कि वे दलित महिला के हाथों द्वारा तैयार भोजन नहीं खाएंगे. ये तो सिर्फ खाना न खाने की बात हुई, मध्य प्रदेश में तो एक दम्पत्ति को शौचालय में क्वारेंटाइन किया गया और भोजन भी वहीं दिया गया, मीडिया से खबर सामने आने के बाद उन्हें स्कूल भवन ले जाया गया.

विदेश वाले अपने, देश वाले प्रवासी

आज पूरे देश में लॉकडाउन की मार जिन लोगों पर सबसे अधिक पढ़ी है वो देश के मजदूर प्रवासी है. इनके पास जमीने नहीं है इसलिये मजदूरी के लिए अपना गांव छोड़कर दूसरे राज्यों में जाकर अपना पेट पालते हैं. देश में अधिकतर दलितों के पास जमीनें नहीं है इसलिए ये समझ आ जाना चाहिए की ये प्रवासी मजदूरों में अधिकतम संख्या दलितों की है. इस मुश्किल दौर में जब सब काम धन्धे बंद है लोग भूखे-पेट पैदल अपने घरों को जाने को मजबूर है.

जहां विदेशों से अमीर प्रवासियों को सरकार फ्लाइट से भारत ला रही है वहीं गरीब मजदूर प्रवासी अपने देश में ही विदेशियों जैसा महसूस कर रहा है जिनके लिए सरकार बसें भी उपलब्ध नहीं करवा रही है ये बेचारे सैंकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर किसी तरह गांव पहुंच रहे है. इनमें कोरोना संदिग्ध मिलने पर दलित समाज के लोगों को सरकारी विद्यालयों में यहां तक की शौचालयों तक में रखा जा रहा है वहीं सवर्ण जाति के लोगों को उनके घरों में क्वारेंटाइन किया जा रहा है.

इससे बड़ा जातिगत भेदभाव क्या हो सकता है लॉकडाउन मे दलितों पर हमलों की तो जैसे बाढ़ सी आ गयी है लॉकडाउन का फायदा उठाकर सामंती लोग लगातार दलितों पर हमले कर रहे है और ऐसे समय में सरकार का अपराधियों को अप्रत्यक्ष संरक्षण देना और ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण है. बिहार में सवर्ण जाति की लड़की से शादी करने वाले विक्रम की संदिग्ध परिस्थितयों में मौत और उसकी मौत की जांच की मांग करने वाले संतोष को पुलिस पीट-पीटकर मार देती है.

अपराधियों के साथ पुलिस की मिलीभगत अत्याचारों को और बढ़ावा दे रही है जातिवाद को खत्म करने के लिए एक तरफ सरकार अन्तर्जातीय विवाह करने वालों को प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा करती है दूसरी तरफ अन्तर्जातीय विवाह करने वालों को मारा जा रहा है.

हरियाणा में दलित परिवार पर लाइट बंद करने के पीएम के आह्वान का पालन नहीं करने पर दबंगों ने हमला कर दिया.
वहीं यमुनानगर में जेल में बंद वाल्मीकि समाज के रमन नामक व्यक्ति की संदिग्ध हालत में मौत ने लॉकडाउन में भी दलितों को सड़कों पर उतरकर न्याय के लिए आन्दोलन करने पर मजबूर कर दिया  तब जाकर हरियाणा सरकार को जांच के आदेश देने पड़े.

राजस्थान के टोंक में दलित लड़की के साथ बलात्कार की घटना और जोधपुर में दलित समाज के डूंगर राम मेघवाल को राजपूतों ने दिनदहाड़े मार दिया, देश के हर कोने से हमलों की खबरे आ रही हैं. मध्य प्रदेश के शिवपुरी में 7 मई को बुद्धपूर्णिमा मनाने की वजह से दलित समाज के गजराज जाटव की हत्या कर दी गई. मध्य प्रदेश के ही उज्जैन में एस०डी०एम० आदेश देते हैं कि दलितों को शादी से तीन दिन पहले पुलिस को सूचना देनी होगी. दलित संगठनो के विरोध के बाद ये आदेश निरस्त करना पड़ा है.

बढ़ा दलितों पर अत्याचार

कोरोनावायरस जैसी महामारी के दौरान भी दलितो के ऊपर अत्याचार कम नहीं हुए बल्कि और बढे हैं. यह बात उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक एक जैसी ही है. तमिलनाडु में एक महीने में दलितों पर अत्याचार के 25 मामले थे, ऐसे मामलों में 40% की वृद्धि हुई. एक एनजीओ के अध्ययन के अनुसार 25 मार्च से पहला राष्ट्रव्यापी बंद शुरू हुआ था, हर राज्य में जाति आधारित हिंसा की कम से कम 30 बड़ी घटनाएं हुई हैं. कुछ जगह तो पुलिस खुद इस उत्पीड़न में शामिल रही है. लॉकडाउन की आड़ में दलितों को अमानवीय रूप से पीटा गया है. यदि उन्होंने पुलिस की अधिसूचना का उल्लंघन किया है तो उनके खिलाफ नियमानुसार कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए. बल का इस तरह अमानवीय प्रयोग सरासर गलत है और इस तरह की बर्बरता तो बिल्कुल भी नहीं होनी चाहिए.

सफाई कर्मचारी और दलित

कोरोना महामारी के खिलाफ यह देश की साझी लड़ाई है जिसमें सभी लोग अपना योगदान दे रहे है कुछ घर में रहकर योगदान दे रहे है तो कुछ प्रत्यक्ष रूप से सामने आकर. इनमें एक महत्वपूर्ण कड़ी सफाई कर्मचारी हैं जो ज्यादातर दलित समाज से संबंध रखते है. क्योंकि भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां व्यवसायों को जाति के आधार पर बांटा गया है.

डॉक्टर्स और पुलिस के योगदान की सराहना करते हुए हम सफाई कर्मचारियों के योगदान को भूल जाते है उनके लिए कोई थाली नहीं बजाई जाती न कोई पुष्प वर्षा होती है. हॉस्पिटल में काम करने वाले सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा किट मिली हुई है लेकिन गांव देहात में क्वारेंटाइन किये लोगों का कचरा उठाने वाले सफाई कर्मचारी बिना सुरक्षा उपकरणों के फ्रंट पर लड़ने को मजबूर है.  इन्हे मिनिमम सैलेरी भी नहीं मिलती है.


यह भी पढ़ें: कोरोना संकट के दौरान नीतीश कुमार की बेफिक्री का राज क्या है


यूपी के रामपुर में एक सफाई कर्मचारी जो की गांव में सैनिटाइजर का छिड़काव करने गया था उसे दबंगों द्वारा सैनिटाइटर पीने के लिए मजबूर किया गया था जिसके परिणामस्वरूप बाद में एक अस्पताल में उनकी मृत्यु हो गई. पांच लोगों को इस जघन्य अपराध के लिए आरोपी बनाया गया है, ऐसी घटनायें दिल को दहलाने वाली है जो कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई को कमजोर करती हैं.

डॉक्टरों पर हमले की घटनाएं जहां सारे मीडिया का ध्यान आकर्षित करती है वहीं अपनी जान को जोखिम में डालकर बिना शिकायत काम करने वाले वाल्मीकि (दलित) समाज के साथ सौतेला व्यवहार किया जा रहा है.  बिना सफाई कर्मचारियों के सहयोग के आप कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई की उम्मीद भी नहीं कर सकते हैं. यदि सफाई कर्मचरी सहयोग करना बंद कर दें तो पूरे देश के हाथ पांव फूल जायेंगे ऐसे कोरोना वारियर्स का बिना जातीय भेद किये पूरे देश को सम्मान करना चाहिए.

भारत में दलित उत्पीड़न की घटनाएं होना ये दर्शाता है की हम अब भी मध्ययुगीन काल में जी रहे है.

(लेखक बहुजन आंदोलन के जानकार हैं और ऑल इंडिया बहुजन कॉर्डिनेशन कमेटी के संयोजक हैं.यह लेख उनके निजी विचार हैं)

share & View comments

4 टिप्पणी

  1. लेखक के पास दाग धब्बे लगा हुआ आईना है जिसमें सब कुछ गंदा ही नजर आता है वह कुछ भी अच्छा देखी नहीं पाता। जबकि कोरोनावायरस आपदा में राहत के लिए समाज का बहुत बड़ा हिस्सा अपनी जान पर खेलकर गरीब मजदूरों की राहत के लिए दिन रात मेहनत कर रहा है । इसी प्रकार वह दलित समझे जाने वाले स्वच्छता कर्मियों को कोरोना वारियर्स के नाते सम्मानित करने के अनेकों कार्यक्रम कर रहा है। उनका प्रोत्साहन भी कर रहा है। लेकिन लेखक को यह सब उज्जवल पृष्ठ नजर नहीं आ रहे हैं।
    जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत तिन देखी तैसी।

  2. maine jab bhi is website ko padha hai hameaha negativity ki khabhare , sirf muslim dalit hi inko dilhta hai, 16.5 lakh se jyada majdur traino ke madhyam se sakushal apne ghar pahuch gaye, kya usme koi dalit ya muslim nahi tha kya, ye satya hai hamare samaj me abhi bhi thodi bahut gandagi hai par iska matlab nahi ki sabhi log dalito ke sath galat hi karte..aapki patrakarita aapko hi mubarak..

Comments are closed.