दुनिया के साथ-साथ अपने देश को भी कोरोनावायरस से फैली महामारी ने हिला कर रख दिया है. इस समय देश में सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति है, ऐसी चुनौती देश के सामने शायद ही कभी आई होगी. जब इस तरह की चुनौती आती है तो उससे मुकाबला करने के लिए अलग-अलग स्तर पर नये-नये मापदंड भी तय करना पड़ते हैं. एक तरफ इस महामारी से निपटने की जिम्मेदारी डॉक्टर, नर्स और अन्य स्वास्थ्यकर्मियों ने बखूबी संभाल रखी है तो दूसरी ओर आपदा की इस घड़ी में देश की शान्ति व्यवस्था बनाये रखना पुलिस की अहम जिम्मेदारी है.
पुलिस महकमें की यह जिम्मेदारी इस लिए और बढ़ जाती है क्योंकि उसे मालूम है कि पुलिस प्रशिक्षण के दौरान ऐसे आपातकाल से कैसे निपटा जाये इसके बारे में उन्हें कोई दिशा-निर्देश ही नहीं दिए गए थे. इसी प्रकार लाॅकडाउन का प्रयोग भी नया है, जिससे निपटने की भी चुनौती से पुलिस को दो-चार होना पड़ रहा है.
इस विषम परिस्थिति में पुलिस नेतृत्व से यह अपेक्षा करना गलत नहीं होगा कि वह उपलब्ध सीमित संसाधनों से अधिक व्यापक सोच से कोरोना महामारी के समय आने वाली समस्याओं को मात देने में सफल रहेगी. पुलिस, किसी भी शासन-प्रशासन का एक ऐसा महत्वपूर्ण अंग है जो कि इस समय लाॅकडाउन, धारा-144, किसी इलाके को सील करने आदि की कवायद को मूर्त रूप दे रही है, इसके साथ-साथ कोरोनावायरस महामारी से देश को बचाने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग को महत्वपूर्ण बताया जा रहा है, जिसे लागू कराने की बड़ी जिम्मेदारी पुलिस विभाग की है. वह इसे बखूबी निभा भी रहा है लेकिन काम के बोझ के दबाव के चलते पुलिसकर्मी तनाव में तो आ ही रहे हैं, इसके अलावा तमाम पुलिसकर्मी कोरोना पाॅजिटिव भी होते जा रहे हैं, जो अलग से चिंता का कारण बना हुआ है.
उपरोक्त के क्रम में यह भी याद रखना होगा कि चिकित्सा कर्मचारी जब संक्रमित व्यक्तियों को आइसोलेशन अथवा क्वारेंटाइन में डालते हैं तब उनकी सहायता मौके पर मौजूद पुलिस ही करती है. यहां यह भी याद रखना है कि स्वास्थ्य कर्मचारियों के पास मानक रूप से सुरक्षात्मक वस्त्र होते हैं, परंतु पुलिस के पास ऐसा कुछ नहीं होता है. इसलिए पुलिस का कार्य ज्यादा जोखिम भरा है. उसे कोरोना पाॅजिटिव को पकड़ने से लेकर अस्पताल तक पहुंचाना होता है. इस दौरान वह सीधे यानी शारीरिक रूप से ऐसे मरीजों के टच में रहता है, जो काफी घातक होता है. ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि हमारी पुलिस उन देशों से सीख ले जहां कोरोना का संक्रमण अपने देश से पहले फैला था. यह भी विचारणीय है कि अन्य देशों के कानून एवं व्यवस्था का सम्पादन भारतवर्ष से भिन्न है. अतः पूरी तरह से तो चीन, जर्मनी, स्पेन अथवा इटली का उदाहरण यहां पर प्रयोग नहीं किया जा सकता है, फिर भी काफी कुछ सबक लिया जा सकता है.
अन्य देशों से भारत की तुलना की जाए तो चीन में पुलिस सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय के अधीन है तथा आंतरिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिए आदेशित है. चीन का सार्वजनिक सुरक्षा मंत्रालय चीनी कम्युनिस्ट पार्टी के सीधे नियंत्रण में है. अतः उन्होंने जिस प्रकार से हुबेई एवं वुहान में लाॅकडाउन किया था, उसको भारत में वैसे लागू नहीं किया जा सकता है. चीनी सुरक्षा व्यवस्था की चीन में कोई चर्चा भी नहीं करता जबकि भारत में ‘बातों के बताशें’ बनाए जाते हैं.
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ऐसा नहीं है कि लॉकडाउन के दौरान ईरान, इटली और जर्मनी में कानून व्यवस्था की समस्याएं उत्पन्न ही नहीं हुई थीं. आस्ट्रेलिया में समुद्री बीच पर बहुसंख्यक पर्यटक पहुंच गए थे, जिनको हटाना पड़ा. जर्मनी में भी लोग लाॅकडाउन के दौरान पार्कों में घूमने निकल पड़े थे. इस प्रकार यह स्पष्ट है कि केवल भारत में ही इस लाॅकडाउन का उल्लंघन नहीं हो रहा है, परंतु अन्य देशों में भी हो रहा है और इससे निपटने की जिम्मेदारी अंत में पुलिस के ही कंधों पर आती हैं.
चीन ने आधिकारिक रूप से यह प्रकाशित किया था कि कोरोनावायरस के दौरान 96 पुलिस अधिकारी संक्रमित होकर अपने जीवन से हाथ धो बैठे थे, लेकिन भारत में अभी ऐसे हालात नहीं बने हैं, जो सुखद है.
भारत में अभी तक प्राप्त रिपोर्ट के आधार पर सबसे पहला केस मुम्बई में जीआरपी का एक सिपाही था तथा दिल्ली में सीआरपीएफ के एक उच्च अधिकारी को कोरोनावायरस होना प्रकाश में आया है. दिल्ली के निजामुददीन थाने के कुछ पुलिसकर्मी भी कोरोना पाॅजिटिव हो गए हैं. यह वो लोग हैं जिन्होंने तबलीगी जमात खाली कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. भविष्य में अन्य पुलिस कर्मचारियों को भी उपरोक्त संक्रमण होने का भय बना रहेगा. चूंकि पुलिस के कार्य में सोशल डिस्टेन्सिंग का न होना ही आवश्यक होता है. अतः इसके फैलने की भी समस्या गंभीर हो सकती है. इस संबंध में भी पुलिस लीडरशिप को सजग रहना पड़ेगा. पुलिस वालों की लगातार कोरोना की जांच होती रहनी चाहिए ताकि यह सामूहिक रूप में सामने नहीं आ सके.
यहां एक और घटना का जिक्र जरूरी है जब 22 मार्च को प्रधानमंत्री के आह्वान पर पूरे देश में जनता कर्फ्यू लगाया गया था जो काफी सफल भी रहा, परंतु सांय पांच बजे प्रधानमंत्री के आह्वान पर कोरोना की लड़ाई लड़ रहे योद्धाओं के समर्थन में लोग शंखनाद, घंटे-घड़ियाल और थाली बजाते हुए कई जगह जुलूस के रूप में सड़क पर निकल आए तो स्थिति काफी खराब हो गई. जिस कारण से उपरोक्त कर्फ्यू लगाया गया था, उसका उद्देश्य ही खत्म कर दिया. इसके बाद 24 मार्च से 21 दिन का लाॅकडाउन घोषित किया गया है जो अभी भी जारी है, इसके दौरान भी कानून व्यवस्था अपरिचित कारणों से प्रभावित हो रही रही है, जो पुलिस के सामने एकदम नई चुनौती थी.
कोरोना की दहशत के चलते विभिन्न उद्योगों के श्रमिक जल्द से जल्द अपने-अपने घर लौट जाना चाहते थे. ट्रेनें बंद होने के कारण जो घर नहीं जा पाए हैं, वे पैदल अथवा अन्य साधनों से जाने की कोशिश करने लगे. सैकड़ों किलोमीटर की पैदल यात्रा कोई कैसे कर सकता है, जबकि इनके पास पैसे की भी किल्लत थी, दाने-दाने को मोहताज थे. इनके चलते सामाजिक दूरी बनाए रखने का तानाबाना टूट गया.
बहरहाल, अब इन लोगों को आगे जाने से रोक दिया गया है. परंतु इतने लोग लाॅकडाउन खुलने के बाद अचानक वापस आएंगे तो एक बार फिर देश में अशान्ति की स्थिति पैदा हो सकती है. इसी प्रकार कोरोना के चलते बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ने का भी अनुमान लगाया जा रहा है. अभी लोगों को आने-जाने से रोक दिए जाने के कारण क्राइम का रेट शहरों तथा देहात में कम है. परंतु जैसे ही लॉकडाउन हटाया जाएगा, अपराध में अप्रत्याशित वृद्धि देखने को मिल सकती है. इसके साथ ही चिकित्सा सेवाओं के सामने भी एक विषम परिस्थिति उत्पन्न हो सकती है.
बदले हालात में पुलिस को अपने रूटीन सोच से बाहर निकलकर अन्यत्र सोचना शुरू करना होगा एवं प्रशिक्षण में जो सिखाया गया है उससे अलग होना पड़ेगा. यह समय है जब कि सोशल मीडिया पर आक्रामक रूप से शान्ति व्यवस्था बनाये रखने के लिए अफवाह फैलाने वालों पर तत्काल कार्यवाही की जाए. पुलिस को स्थानीय स्तर पर आम जनता तथा स्थानीय अधिकारियों के बीच लगातार सामंजस्य तथा वार्ता करते रहना चाहिएं. यह भी संभव है कि पुलिस द्वारा किये जा रहे नियमित कार्य यथा विवेचना, अपराध रोकथाम इत्यादि के अतिरिक्त अन्य रूप से भी कुछ कार्य करना पड़े.
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ड्यूटी पर उपस्थित महिलाएं तथा पुरूषों को जितना संभव हो, उतना आराम भी देना पड़ेगा तथा उनके ड्यूटियों को बदलना भी पड़ेगा. फेस मास्क, हाथ धोने के लिए साबुन अथवा सेनेटाइजर तथा कुछ सुरक्षात्मक वीयर (सेफ्टी किट्स) यह हर हालत में सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को विभाग द्वारा देना होगा. यहां यह स्पष्ट रूप से राष्ट्रीय आपतकाल एवं आपदा है एवं हम सब एक अपरिभाषित एवं अज्ञात शत्रु के विरुद्ध लड़ रहे हैं, जिसमें कि समयावधि की कोई जानकारी नहीं है. सदैव ही हमें सतर्क एवं एक होकर इसका मुकाबला करना पड़ेगा तथा जो भी उपाय शरीर तथा समाज की रक्षा के लिए आवश्यक हो, उसका इस्तेमाल करना होगा.
भारत में पुलिस राष्ट्रीय कोरोनावायरस संकट के समय में कानून और व्यवस्था बनाए रखने का उल्लेखनीय काम कर रही है. स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ कंधे से कंधा मिलाकर, वे एक दुश्मन को नेस्तनाबूद करने के लिए तथा देश की रक्षा करने के लिए पूरे रूप से अपने कर्तव्य पर लगे हुए हैं. यह पूरे देश के लिए एक अज्ञात अनिश्चितता का समय है एवं इसकी गंभीरता को पुलिस ने बड़ी अहम तरीके से निभाने की कोशिश की है एवं कर रही है.
(लेखक यूपी के पूर्व डीजीपी रहे हैं, ये उनके निजी विचार हैं)