scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतब्लॉगभारत में कोरोनावायरस के युग में दबंग पुलिस कैसे हर दिल अज़ीज़ बन गई

भारत में कोरोनावायरस के युग में दबंग पुलिस कैसे हर दिल अज़ीज़ बन गई

जब पुलिस गरीबों की मदद नहीं कर रही होती है या यूपी पुलिस की तरह मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए चलाई गई फेक खबरों का खंडन नहीं कर रही होती तो वो ग्राउंड पर गानें गाती हुई दिखाई देती है.

Text Size:

 देशव्यापी लॉकडाउन ने देशभर के नागरिकों की शारीरिक और मानसिक स्थिति पर बुरा असर डाला है. और इसके प्रकोप से देश की पुलिस और खासकर ग्राउंड पर तैनात अधिकारी नहीं बच सके हैं. लोगों को घरों में वापस खदेड़े के लिए रखने के लिए लाठी चार्ज करती पुलिस का क्रूर चेहरा हमारे सामने आया लेकिन इस दौरान पुलिस का मानवीय चेहरा भी हमने देखा.

केरल का एक पुलिस अधिकारी उत्तर भारत के प्रवासी मज़दूरों को कहते हुए नजर आया कि उन्हें किसी भी तरह की कोई चिंता करने की जरूरत नहीं है क्योंकि सरकार उनके खाने, पीने और रहने का सारा इंतजाम करेगी. जब तक वो अपने राज्यों में नहीं जा सकते. पंजाब में भी पुलिस बच्चों की कॉल्स तक का जवाब दे रही है. मज़दूरों को उनकी रोजाना की ज़रूरतों के लिए चिंता नहीं करने के लिए कह रही है. साथ ही पुलिस गरीबों के बीच खाना भी बांट रही है. महाराष्ट्र में भी अधिकारी फल-सब्जियां बेचने वालों को छाता बांटते हुए नजर आए.

और जब वो गरीबों की मदद नहीं कर रही होती है या यूपी पुलिस की तरह जानबूझकर मुस्लिमों के खिलाफ नफरत फैलाने के लिए चलाई गई फेक खबरों का खंडन नहीं कर रही होती है या फिर पंजाब पुलिस की तरह कोरोना से जुड़े झूठे तथ्य खारिज नहीं कर रही होती तो वो ग्राउंड पर अपनी क्रिएटिविटी दिखा रही होती है.

गाना सुनाने वाली पुलिस

स्पेन, पोलैंड, श्रीलंका और टर्की जैसे देशों में पुलिस ने लॉकडाउन के दौरान लोगों का दिल लगाए रखने के लिए गाने गाए और डांस भी किया. यूएस में पुलिस अधिकारियों ने म्यूजिकल सेशन रखे तो इटली के अधिकारियों ने कोरोना से बचने के उपायों को गीत गाकर समझाया.

हमारे देश की पुलिस भी इसमें पीछे नहीं रही है. पिछले हफ्ते से देश के कई राज्यों से पुलिस अधिकारियों की मधुर आवाज़ में गाना गाते हुए वीडियो वायरल हो रहे हैं. पुणे, मुंबई, कोलकाता, सूरत, बिहार और अन्य जगहों से कई अधिकारी बॉलीवुड के गाने गा रहे हैं. नागालैंड और आसाम से भी स्थानीय पुलिस ने ‘वी शैल ओवरकम’ गाना गाकर लोगों का उत्साहवर्धन किया.


यह भी पढ़ें: कोरोनावायरस ने बता दिया कि देश में पप्पू कौन है- हाशिए पर खड़ा आदमी


हमारे देश की पुलिस की ज्यादातर आलोचना रिश्वतखोरी और क्रूरता को लेकर होती रही है. ये रवैया आम लोगों की आंखों में पुलिस के प्रति कम भरोसा पैदा करता है. लेकिन कोरोना वायरस और लॉकडाउन ने पुलिस के दयालु पक्ष को भी उजागर किया है. खाकी वर्दी वाले जवानों के गीत गाते हुए वीडियो ही परेशान जनता के मन पुलिस की पारंपरिक छवि बदल सकते हैं.

एक टफ कॉप 

हमने नेटफ्लिक्स की सीरिज़ सेक्रेड गेम्स में मुंबई पुलिस इन्सपेक्टर सरताज सिंह को शहर को न्यूक्लियर बम के अटैक से बचाने के लिए एक मशीन की तरह काम करते देखा. शहर की तबाही के साथ-साथ सरताज के निजी जीवन में भी एक भयंकर विस्फोट हुआ है- उसकी शादी टूट गई है. लेकिन एक पुलिस वाले के लिए व्यक्तिगत पीड़ा की बजाय शहर की चिंता बड़ी हो जाती है. पीड़ा से मुंह मोड़ना ही मशीन बनने की तरफ मुड़ जाना है.

ये कोई इकलौता सीन नहीं है जब हमने पॉप्युलर कल्चर में एक पुलिस अधिकारी को कठोर, उदासीन और निर्दयी जीवन जीते देखा हो. बल्कि जिन फिल्मों में उन्हें भ्रष्ट नहीं दिखाया जाता है वहां उन्हें मशीन की तरह काम करते हुए चित्रित किया जाता है. अगर किसी एक सीन में वो अपने परिवार से साथ हंसते दिखाया जाता है तो अगले ही सीन में वो अपने परिवार की हत्या या अपहरण का बदला लेने की दुहाई देते हुए दिखाई देता है. आखिकार सारी बातों का अंत एक टफ कॉप बनने पर आकर होता है.

हम इन टफ कॉप्स से असली जीवन में भी मिलते हैं. मैं भी कई बार निर्भया गैंग रेप के धरनों के दौरान ऐसे पुलिस वालों से मिली हूं. मैं युवा पुलिस अधिकारियों को छात्रों को बेरहमी से लाठी से पीटता देख हैरान थी. ये पुलिस वाले खुद कुछ दिन पहले तक इन छात्रों की तरह ही तो रहे होंगे. लेकिन पुलिस वाला बनने के बाद गैंग रेप पीड़िता के लिए न्याय की मांग रहे इन छात्रों के गुस्से से इन्हें धेला फर्क नहीं पड़ा रहा था.

हरियाणा के कई अधिकारियों के साथ मेरी बातचीत के दौरान ये बात सामने आई है कि पुलिस सिस्टम होता ही ऐसा है. ये युवा लड़कों को जल्द ही टफ कॉप में बदलने की तैयारी शुरू कर देता है. जो कभी भी दोबारा से आम जनता के बीच पहले की तरह नहीं रह सकता.

एक सिक्के के दो पहलू

ऑस्कर वाइल्ड के मशहूर उपन्यास ‘द पिक्चर ऑफ डोरियन ग्रे’ का आखिरी सीन मुझे भारत की पुलिस के दो पहलू दिखाता है. आखिरी सीन में नायक ग्रे अपनी जवानी की एक पेंटिंग(आत्मा) देखता है. पेंटिंग भद्दी और क्रूर नजर आती है जबकि नायक जवां और खूबसूरत ही रहता है. दरअसल ग्रे द्वारा किए गए हर काम का असर उसकी पेंटिंग यानी कि आत्मा पर नजर आता है. कुछ ऐसा ही हमारी पुलिसिया सिस्टम के साथ है. इसमें भी खूबसूरती और क्रूरता एक साथ चलती रहती है.


यह भी पढ़ें: ये पुलिसवाले डंडे नहीं बरसा रहे बल्कि प्यार के नगमें गाकर कोरोनावायरस को भगाने में जुटे है


लॉकडाउन के दौर में भी हमने पुलिस के दोनों ही पक्ष देखे. एक टफ चेहरा जो राशन लेने जा रहे लड़कों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटता है और दूसरी ओर सॉफ्ट चेहरा, जो आम आदमी की मदद के लिए अपने पिता के अंतिम संस्कार तक को छोड़ने के लिए तैयार है. इसलिए समय समय पर पुलिस रिफ़ॉर्म की बहसें उठती रहती हैं कि पुलिस का वो चेहरा जनता के सामने आना चाहिए जिसमें वो मशीन कम और मानवीय ज्यादा नजर आएं.

और बिना किसी इन्स्टिट्यूशनल रिफ़ॉर्म के भी इस दौर ने पुलिस का मानवीय चेहरा कुछ हद तक दिखाया है. इसलिए पुलिस को भी अपनी रचनात्मकता और पैशन को दिखाने के अवसर दिए जाने चाहिए. वरिष्ठ अधिकारियों को भी अपने मातहतों को इस तरह के क्रिएटिवी होने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए ना कि टिकटोक बनाने पर उनपर कार्रवाई. और जैसा कि मुंबई पुलिस ने लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों के लिए गाना गाया- जिंदगी मौत ना बन जाए संभालो यारो. शायद भारत के पुलिस जवानों को भी बचाने का समय आ गया है.

share & View comments