वज़ीरे आजम इमरान खान के नए पाकिस्तान को महज 14 महीने के भीतर ही जमीअत उलेमा-ए-इस्लाम-फज़ल के मौलाना फजलुर रहमान की अगुआई में जनांदोलन का सामना करना पड़ गया है. इस्लामाबाद तक के लिए यह ‘आज़ादी मार्च’ 27 अक्टूबर को निकाला जाएगा और इसका मकसद पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी की सरकार को उखाड़ फेंकना है.
किसी भी दूसरे देश में इस तरह के विरोध प्रदर्शनों को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती लेकिन नए पाकिस्तान में कुछ सत्ताधारी नेताओं की मानें तो यह जम्हूरियत के खिलाफ जंग से कम नहीं है. हैरत की बात यह है कि जो सरकार कई प्रदर्शनों और धरनों के बाद वजूद में आई वह एक मौलाना पर पाबंदी लगा रही है और दावा कर रही है कि मौलाना अपनी ‘डूबती’ सियासत बचाने के फेर में हैं. कभी अराजकता के समर्थक रहे लोग अचानक 27 अक्टूबर के धरने को रोकने की मजाकिया कोशिश कर रहे हैं. कंटेनर वाले अब प्रदर्शनकारियों से डर क्यों गए हैं? उनके ऊपर मदरसों में हाज़िरी से लेकर समलैंगिकता तक के तमाम आरोप उछाले जा रहे हैं.
रहमान सत्तातंत्र, नौकरशाही, और पुलिस से अपील कर रहे हैं कि वे इमरान के गैरवाजिब सरकार का समर्थन न करें. पीटीआई सरकार के खिलाफ आरोप पत्र में कहा गया है कि उसे चुनावी धांधली करके, कश्मीर मसले पर समझौता करके, आर्थिक मोर्चे पर बुरे काम, और विरोधी नेताओं को जेल में बंद करके गद्दी पर बिठाया गया.
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कल के धरना उस्ताद
2014 में पीटीआई ने इस्लामाबाद में 126 दिनों का जो लंबा धरना दिया था उसे कौन नहीं याद करता. राजधानी में तालाबंदी हो गई थे और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का पाकिस्तान दौरा रद्द कर दिया गया था. वही शी आज इमरान को पाकिस्तान में 500 ‘भ्रष्ट’ लोगों को जेल में डालने की प्रेरणा दे रहे हैं. वजीरे आज़म क्या भूल गए हैं कि उनके लोगों ने पाकिस्तान टीवी की इमारत और संसद पर हमले किए थे? बिजली के बिलों को जलाते हुए उन्होंने सिविल नाफरमानी का आह्वान किया था. उन्होंने ट्रकों-कंटेनरों के ऊपर खड़े होकर भाषण दिए थे. और सुप्रीम कोर्ट के ऊपर सलवार-कमीज़ सुखाने की घटना भला कौन भूल सकता है? ये तमाम चीज़ें नवाज़ शरीफ को गद्दी से उतारने के लिए की गई थीं.
अब ट्रक-कंटेनर, बिरयानी और प्रदर्शनकारी डी-चौक पर जमा हो रहे हैं मगर इमरान इस बार वहां नहीं हैं. ट्रकों-कंटेनरों के धरने इमरान के लिए महंगे साबित हो रहे हैं. सरकार इस विरोध ब्रिगेड को रोकने की पूरी कोशिश कर रही है. इसका नेतृत्व आंतरिक सुरक्षा मंत्री ब्रिगेडियर (रिट.) इजाज शाह कर रहे हैं. उन्होंने ‘खुदकशी’ के लिए सीट-इन का आह्वान किया है, इस उम्मीद में कि मौलाना और उनके समर्थक इस्लामाबाद की तरफ नहीं बढ़ेंगे. शाह ने इससे पहले धमकी दी थी कि सीट-इन करके जो भी सड़क बंद करने की कोशिश करेगा उसके खिलाफ पुलिस कड़े कदम उठाएगी और लाठीचार्ज भी करेगी.
बीते सालों के धरनावीर अब जेयुआई-एफ प्रदर्शनकारियों के खिलाफ फर्जी चिट्ठियां और सूचनाएं जारी करेंगे. एक फर्जी खत में कहा गया कि यह सब विरोध की तैयारी के लिए किया जा रहा है— ‘भाग लेने वाले लोग अमीर की इजाजत के बिना ‘सोडोमी’ का सहारा नहीं लेंगे.’ इसे साइंस और टेक्नोलोजी मंत्री फवाद चौधरी ने भी ट्वीट किया. एक फर्जी सूचना में कहा गया— ’27 अक्टूबर के बाद इस्लामाबाद में समलैंगिकता की लहर पैदा करने की कोशिश की जा रही है’ ‘इस्लाम में इसकी सख्त मनाही है इसलिए इसे किसी भी तरह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे यह सियासी जलसे में हो या निजी बैठकों में.’
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आज़ादी मार्च पर रोक
आज़ादी मार्च के खिलाफ इस्लामाबाद हाइकोर्ट में अर्ज़ी दाखिल की गई है. फिलहाल जज ने इसे कच्चा बताया है और सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी है. पीटीआई के नेता मदरसों के छात्रों के स्कूल नागा करने और धरनों में शामिल होने को लेकर पहले कभी इतने फिक्रमंद नहीं हुए था. लेकिन आज उसका हर शख्स और उसके अंकल मदरसों के छात्रों के लिए चिंतित हैं. जब ये छात्र 2014 के सीट-इन में ताहिरुल कादरी के साथ धरने पर बैठे थे और राजधानी को बंद कर दिया था या स्कूल से गायब हो गए थे तब क्या उन्हें कोई चिंता हुई थी?
इस बीच, कश्मीर मामलों के वज़ीर अली अमीन गंडापुर ने पूरे मामले को भारी गंभीरता से लेते हुए मौलाना फजलुर रहमान के खिलाफ ‘सरकार और वजीरे आज़म इमरान खान के खिलाफ निंदा करने वाले बयान देने के लिए’ 50 अरब रु. का नोटिस भेज दिया है. गंडापुर का कहना है कि उनके पास इस बात के सबूत हैं कि मौलाना विदेशी एजेंडा पर काम कर रहे हैं. यह कोई नई बात नहीं है, पाकिस्तान में हर किसी पर किसी-न-किसी का एजेंट होने का आरोप लगाया जाना आम है.
एजेंट की बात करें तो फजलुर रहमान और इमरान के बीच होड़ तब से जारी है जब उन्हें रहमान ने ‘यहूदी एजेंट’ कहा था. हाल के उनके अमेरिकी दौरे और यहूदी अरबपति जॉर्ज सोरोस से उनकी मुलाक़ात पर कोई ध्यान नहीं गया. रहमान कहते हैं, ‘इमरान पाकिस्तान की शिक्षा को पश्चिम का ग़ुलाम बनाना चाहते हैं.’ लेकिन हैरत की बात यह है कि यह कैसे होगा जबकि इमरान खुद ही अंग्रेजों पर पाकिस्तान की शिक्षा को बर्बाद करने के आरोप लगा रहे हैं.
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सरकार आज़ादी मार्च को रोकना चाहती है और इमरान को उम्मीद है कि मौलाना फजलुर रहमान ‘मजहब के पत्ते’ का फायदा नहीं उठा पाएंगे. हो सकता है कि 2018 में इमरान ने जो चुनावी मुहिम चलाई थी और उसमें ईश निंदा के मसले और पैगंबर के फैसले को अंतिम बताने की जो घोषणा की थी उसकी वजह से आज मजहब के पत्ते को भुनाने की बात नहीं की जा रही है.
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(लेखिका पाकिस्तान में एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. ये इनके निजी विचार हैं. इनका ट्विटर हैंडल है- @nailainayat.)