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Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतइमरान खान के 'नया पाकिस्तान ' के पास है पुरानी 'गटर' की समस्या, मगर पिक्चर अभी बाकी है

इमरान खान के ‘नया पाकिस्तान ‘ के पास है पुरानी ‘गटर’ की समस्या, मगर पिक्चर अभी बाकी है

करीब चार साल बाद रेहाम खान के बहुचर्चित संस्मरण का साया फिर उभर आया. लगता है उनकी किताब सदाबहार है

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कराची: पाकिस्तान में अवार्ड, टॉक शो, किताबें और गिरफ्तारियों से घपले-घोटालों के विवाद सिर उठाने लगे हैं. राष्ट्रपति साल की जरूर पढ़ने वाली किताबों को लेकर सलाह दे रहे हैं, जिसमें शर्तिया ‘50 शेड्स ऑफ ग्रे’ तो नहीं है. मगर रेहाम खान का खूब खंडन किया गया संस्मरण मौजूद है, जिसके साए करीब चार साल बाद फिर नमूदार हो गए हैं. लगता है, उनकी किताब बुकशेल्फ की शोभा बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि सदाबहार किस्म की है.

इस सब की शुरुतात कैसे हुई? ठीक उसी तरह जैसे नए पाकिस्तान में दूसरी चीजें शुरू हुईं. प्रधानमंत्री इमरान खान के अपनी कबीना में अच्छे कामकाज वाले ‘10 आला’ मंत्रियों के सर्टिफिकेट समरोह के साथ हुआ. इससे उन स्कूली दिनों की याद ताजा हो उठती है, जब कोर्स या क्लास खत्म होने के बाद सर्टिफिकेट बांटे जाते थे. ऊंचे अंक वाले टीचरों के पसंदीदा या चमचा होने के नाते खुशी से झूमा करते थे, तो पिछड़ने वालों को सारी दुनिया उनके खिलाफ साजिश करती नजर आती थी. पिछड़ने वालों के लिए पैमाना, अंक या तर्क मायने नहीं रखता, सिर्फ सियासत ही समझ आती थी और आज भी वैसा ही है. इसी वजह से टॉप-10 की फेहरिस्त में शुमार न हो पाने वाले नाखुश मंत्री शिकायत करते दिखे. मजेदार यह है कि विदेश, ऊर्जा, रक्षा और सूचना मंत्री पीएम के ‘दस रतन’ में शामिल नहीं हो पाए, जिनके उम्दा कामकाज हमारे गले से नीचे उतरते रहे हैं. लगता है, विजेता सब लूट ले गए और हारे हुए हाथ मलते रह गए.

कामकाज की समीक्षा

विजेताओं में गृह मंत्री भी हैं. कोई नहीं जानता क्यों. और मानवाधिकार मंत्री भी हैं, जिनका गायब ‘लोग बिल’ हाल में गायब ही हो गया. प्रधानमंत्री के लिए नंबर एक कामकाज वाले संचार मंत्री मुराद सईद बने हुए हैं. उन्हें टॉप मंत्री क्यों चुना गया, इस पर एक टॉक शो में चर्चा के दौरान मीडिया मालिक मोहसिन बेग ने कहा कि मुराद सईद से प्रधानमंत्री इमरान खान की खुशी की वजह रेहाम खान की किताब में लिखी है. दूसरे पैनलिस्टों ने इसे ‘खुद-ब-खुद बोलने वाली टिप्पणी’ बताया और ‘रजामंदी’ में सिर हिलाया तो एंकर इससे नावाकिफ बना रहा. चैनल केबल नेटवर्क से हटा लिया गया. पाकिस्तान इलेक्ट्रॉनिक रेगुलेटरी अथॉरिटी ने चैनल को बिना संपादकीय समीक्षा के फेडरल मंत्री के खिलाफ ‘अपमानजनक/नीचा दिखाने वाली टिप्पणियों’ के लिए कारण बताओ नोटिस दिया गया.

‘अपमानजनक टिप्पणियों’ और उल-जुलूल बातों के बाद मुराद सईद ने बेग के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. मंत्री की शिकायत के आधे घंटे के भीतर अचानक बेग को इस्लामाबाद के घर पर फेडरल इंवेस्टिगेशन एजेंसी ने एक छापेमारी में गिरफ्तार कर लिया. बाद में सेशन कोर्ट ने उस छापे को ‘गैर-कानूनी’ करार दिया, और अब सरकार उस सेशन जज के खिलाफ रेफरेंस फाइल करने की योजना बना रही है. यह संकेत है कि इमरान खान सरकार वह लड़ाई शुरू करने जा रही है, जिसे वह ‘अत्याचार जैसी असहमति’ कहती है. मोहसिन बेग से पीएम इमरान खान नावाकिफ नहीं हैं. वे कभी करीबी माना जाता था और ‘नया पाकिस्तान’ प्रोजेक्ट के हिमायती रहे हैं. अब वे ‘तब्दीली’ से निराश, विरोध में आवाज उठाने वाले और राज फास करने वालों की कतार में नए जुड़ गए हैं.


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रेहाम खान की किताब का 273 पेज

संचार मंत्री की शिकायत पर एक नजर डालने से ही उसमें टीवी मसाला दिख जाती है. आप एफआइआर को पढ़ लो और न्यूज टॉक शो या किताब को भी भमल जाओ. मंत्री और ‘सम्माननीय’ प्रधानमंत्री की ‘छवि’ को हुए नुकसान की चर्चा करते हुए ‘प्राकृतिक शख्स’ जैसे शब्द और ‘इस अफवाह को बिना जांचे-परखे एक प्राकृतिक शख्स को सेक्स में ज्यादा सक्रिय दिखाने की कोशिश’ जैसे जुमलों की बात की गई है. नहीं जानती कौन, मगर किसी को मंत्री को यह कहने की दरकार है कि शिकायत खुद-ब-खुद ही ‘प्राकृतिक शख्स’ पर भारी फिदायीन हमले की तरह है.

शिकायत में रेहाम खान की किताब के 273वें पेज में मुराद सईद के जिक्र की बात है. कहा गया है कि यह ‘लोगों में नस्लीय नफरत भडक़ा कर अमन-चैन बिगाडऩे के इरादे’ से लिखा गया है. समस्या एक ही है कि किताब के 273वें पेज में मुराद सईद का कोई जिक्र नहीं है. लेकिन इतिहास में पहली बार हर कोई उसी किताब और पेज को पढ़ रहा है. पिछली बार पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) के नेताओं ने सोचा था कि रेहाम खान की किताब के छपने से पहले ही उसके लीक हुए अंश का जोरदार खंडन काफी होगा, मगर उससे आग में घी पड़ गया. पीटीआइ के नेताओं फवाद चौधरी और फय्याजुल हसन चौहान ने दुनिया को बताया था कि किताब ‘पोर्नोग्राफी’, ‘3 एक्स फिल्म’ जैसी है. अब फिर समूचा प्रकरण ‘पेज 273’ से जी उठा है. इससे भी दिलचस्पी बढ़ गई कि मुराद सईद तकरीबन चार साल बाद रेहाम खान पर मुकदमा करने जा रहे हैं. पॉपकॉर्न का स्वाद लीजिए, क्योंकि पिक्चर अभी बाकी है.

गटर विवाद

पड़ोसियों और बाकी देशों को आईना दिखाने को उतावली सरकार के लिए डरावने कानून बनाना, गिरफ्तारियां करना, मुकदमों की धमकी देना और असहमत लोगों को ब्लैक लिस्ट करने जैसे कदम तो फासीवादी ही हैं. रेगुलटरी अथॉरिटी के जरिए उल-जलूल बातों के लिए जुर्माना ठोंकने का तरीका भी तो वही है, जिसे टीवी पर नहीं आना चाहिए था. ऐसा ही जुर्माना तो शेख राशीद पर ठोंका जाना चाहिए था, जब उन्होंने रेहाम खान को ‘तवायफ’, ‘बिकने वाली औरत’ टीवी पर कहा था. जब पीटीआइ के नेता और पीएम खान बिलावल भुट्टो और मरियम नवाज के खिलाफ उल-जलूल बातें कर रहे थे, आज के ‘इखलाकियत’ (नैतिकता) के पैरोकार कहीं छुप गए थे. जब ट्विटर पर ‘रैविंद की रंडी’, ‘हिजाब में लिपटी तवायफ’ या ‘जी फॉर गस्ती’ जैसे ट्रेंड आलोचकों और सियासी विरोधियों के चलते हैं, तो वह जाय है. मगर हैशटैग हुक्मरान के खिलाफ ज्यादा करीब पहुंच जाएं तो लोगों को गिरफ्तार कर लो. यह ‘गटर’ की भाषा है, यह दोनों तरफ है और एक जैसी बदबू फैलाती है. सियासी बातचीत में नैतिकता के खत्म होने पर काफी कुछ कहा जा सकता है मगर कैसे यह शुरू हुआ और हर वक्त कहां से शुरू होता है: ऊपर से.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखिका पाकिस्तान की फ्रीलांस पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल है @nailainayat. विचार निजी हैं)


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