कोरोनावायरस महामारी को काबू में करने में जुटे, और इसके बाद बनने वाली विश्व व्यवस्था में अपने मुल्क की स्थिति के बारे में फिक्र कर रहे नेताओं से हमदर्दी ही रखी जा सकती है. इसकी वजह यह है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान लगातार तुर्क टीवी सीरियल देखते रहे हैं और हमें अपने सुझाव पेश करते रहे हैं.
आपके बदले कोई मुल्क का कारोबार चला रहा हो, इससे ज्यादा सुकून की बात क्या हो सकती है.
इमरान खान ऐतिहासिक कहानी पर आधारित सीरियल ‘दिरिलिस: एर्तुग्रुल’ के मुरीद हो गए हैं और उसकी तारीफ करते थकते नहीं हैं, और हालत यह है कि पाकिस्तानी फ़िल्मकार परेशान हैं कि काश वजीरे आजम उनकी फिल्मों की तारीफ में भी दो लफ्ज कह देते. लेकिन इस ऐतिहासिक-रोमांचक सीरियल, जिसे ‘गद्दी के लिए तुर्कों का खेल’ कहा जा रहा है, के लिए इमरान का लगाव एक सांस्कृतिक मामला है.
उनका कहना है कि ‘हमारे बच्चों और नौजवानों को’ यह सीरियल इसलिए देखना चाहिए कि वे समझ सकें कि असली इस्लामी तहजीब और हॉलीवुड-बॉलीवुड के जरिए पाकिस्तान में पहुंचने वाली ‘थर्ड हैंड’ इस्लामी तहजीब में क्या फर्क है. ‘इसमें रोमांस भी है, इतिहास भी… और इस्लामी मूल्य भी हैं.’ वजीरे आज़म की ओर से यह इस सीरियल की एक पांचतारा समीक्षा थी, जिस पर तुर्की ने पूरा गौर किया.
In the name of our nation I kindly thank to The Prime Minister @ImranKhanPTI and @PTVHomeOfficial for airing @DirilisDizisi in Urdu. https://t.co/kg89m2EFhb
— Ali ŞAHİN ? ?? (@AliSahin501) April 25, 2020
लेकिन जरा ठहरिए, ‘दिरिलिस: एर्तुग्रुल’ सीरियल को देखने के बाद आप सीधे फिर अपना पसंदीदा हॉलीवुड-बॉलीवुड शो मत देखने लग जाइए. प्रधानमंत्री आपसे एक और तुर्क टीवी सीरियल ‘यूनुस एम्रे : अस्कीं योलकुलुगु’ देखने की सिफ़ारिश कर रहे हैं. अगर आपको सब-टाइटल देखना पसंद नहीं है, तो वजीरे आज़म ने इसे आपके लिए उर्दू में डब करवाने का फैसला कर लिया है. जल्दी ही वे कुछ और सुझाव दे सकते हैं.
एर्तुग्रुल के जरिए इस्लामी इतिहास
आखिर ‘दिरिलिस: एर्तुग्रुल’ का मामला क्या है? इसका डब किया हुआ सीरियल ‘ग़ाज़ी एर्तुग्रुल’ के नाम से पाकिस्तान टीवी पर दिखाया जा रहा है. यह 12वीं सदी के ओगुज़ तुर्क एर्तुग्रुल के जीवन पर आधारित है, जिसके बेटे उस्मान गाज़ी ने ओटोमन साम्राज्य की स्थापना की थी. यह सीरियल मंगोलों, ईसाइयों, अनातोलिया में नाइट टेंपलरों (धार्मिक सेनापतियों) पर हमले करने वाले मुस्लिम ओगुज़ तुर्कों की बहादुरी की कहानी पर आधारित है.
यह कई देशों में ऐतिहासिक-रोमांचक शो के दीवानों के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है. पाकिस्तान में इसने इमरान खान को इसलिए सम्मोहित कर लिया क्योंकि वे अक्सर ‘साझा इस्लामी इतिहास’ (अगर ऐसी कोई चीज़ है तो) की बात करते रहे हैं.जब से उन्होंने इसकी सिफ़ारिश की है, पाकिस्तान में यह सीरियल काफी हलचल पैदा कर रहा है.
लेकिन जिस मुल्क के लोग हमेशा इस बहस और उलझन में फंसे रहते हैं कि उनके नेशनल हीरो कौन हैं, उस मुल्क के लिए इस नयी दीवानगी को कितना अच्छा माना जाएगा? इस शो ने नेशनल हीरो की उनकी लिस्ट में एक नया नाम जोड़ दिया है ग़ाज़ी एर्तुग्रुल का. अभी पिछले हफ्ते पाकिस्तानी लोग यह तय करने में जुटे थे कि मुहम्मद बिन कासिम को नेशनल हीरो मानें कि राजा दाहिर को.
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हम तो अफगान बादशाहों को पूजते हैं, हमने अपने परमाणु मिसाइल गोरी, अब्दाली और गजनवी के नाम उनके नाम पर ही रखे लेकिन अपने अफगान मूल पर गर्व करने वाले पश्तूनों की हम अभी भी बुराई करते हैं. और यह कहना तो ईशनिन्दा के बराबर ही माना जाएगा कि पाकिस्तान की जड़ें भारत में हैं, क्योंकि पहले तो हम अरब या तुर्क हैं और उसके बाद ही पाकिस्तानी हैं. राष्ट्रीय बहसों में विरासत एक धुंधली चीज़ है, और साझा धार्मिक इतिहास के विचार को मानने वाले कई हैं.
इसलिए आश्चर्य नहीं कि पाकिस्तानियों ने एर्तुग्रुल को अपना बना लिया है. अब आगे क्या होगा? एर्तुग्रुल कश्मीर को उनकी खातिर आज़ाद कराएगा. दरअसल, हमारी ख़्वाहिश यही होती है कि हमारा काम कोई और कर दे, और वह काम हो जाए तो हम उस पर फख्र करें.
एर्तुग्रुल के साथ
जैसा कि कहा भी गया है, प्रचार कोई बुरी चीज़ नहीं है. इसलिए पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (‘पीटीआइ’) पार्टी की हुकूमत इमरान खान को पाकिस्तान के एर्तुग्रुल के रूप में पेश करने पर आमादा है. और खान साहब को न तो सियासी विरोधियों से खुद लड़ने की जरूरत है और न छिपे हुए दुश्मनों से; उनका ज़्यादातर काम तो वे लोग कर रहे हैं, जो सचमुच में देश को चलाते हैं. लेकिन यह 2020 है, एर्तुग्रुल और उनका चुनाव करने वालों का एक ही तरफ होना जरूरी है.
संसदीय मामलों के राज्यमंत्री अली मुहम्मद खान ने मामले को कुछ ज्यादा ही खींच डाला, उन्होंने एक फोटो ट्वीट कर दी जिसमें अल्लाह से गुजारिश की जा रही है कि वे ‘मुसलमानों का स्वर्णयुग वापस ला दें.’ फोटो में इमरान को एर्तुग्रुल के रूप में पेश किया गया है और उनके साथ आर्मी चीफ जनरल क़मर जावेद बाजवा और आइएसआइ के डीजी फैज हमीद भी दिख रहे हैं. दूसरे मंत्री पीछे खड़े हैं. इस पोस्ट को हटा लिया गया क्योंकि कुछ लोगों को लगा कि पोस्टर में हस्तियों को इस क्रम से रखा गया था जो शायद वास्तविकता को नहीं बताता है.
पीएम रिलीफ़ फंड में दान की लगातार अपील करने के बाद ऐसा लगता है कि ‘पीटीआई’ सरकार के पास तुर्क टीवी सीरियल का प्रचार ही एकमात्र काम रह गया है.
यह कोई तुर्क जलवा नहीं
किसी तुर्क टीवी को पाकिस्तानी दर्शकों की खातिर कोई पहली बार डब नहीं किया गया है. 2012 में ‘इश्क़-ए-ममनून’ (अश्क-ए-मेम्नू) ने पाकिस्तान में खूब धूम मचाई थी. उसकी कहानी एक आधुनिक परिवार के इर्दगिर्द घूमती है और इसमें दिखाए गए स्वच्छंद सम्बन्धों ने टीवी दर्शकों की दुनिया बदल दी थी. इसमें पश्चिमी पोशाकों में सजे आधुनिक नजरिए वाले तुर्कों को देखना पाकिस्तानी दर्शकों के लिए एक नई बात थी.
@ImranKhanPTI sir I believe in this economic crisis we were not supporting imports .then why cultural imports are open . Why Ptv showing imported dramas believe in your own talent and history .With your supportive policies we can bring ??? on the entertainment map of the world
— Shaan Shahid (@mshaanshahid) April 28, 2020
इसी तरह, भावी ऐतिहासिक शो ‘मेरा सुलतान’ (‘मुहतेसेम यूजील’) या सामूहिक बलात्कार की एक शिकार की कहानी पर कम बजट वाले सीरियल ‘फातिमा गुल’ ने यहां सीरियलों की दुनिया बदल दी थी. इसके बाद स्थानीय उद्योग की मांग पर तुर्क प्रोडक्सनों पर रोक लगा दी गई. तब की तरह आज भी स्थानीय आर्टिस्ट इस बात से खुश नहीं हैं कि पाकिस्तान अपने सीरियलों को आगे बढ़ाने की जगह विदेशी सीरियलों को आयात कर रहा है, जबकि पाकिस्तानी सीरियलों को देश-विदेश के दर्शक बहुत पसंद करते रहे हैं. ऐक्टर शान शाहिद ने इस बात पर चिंता जाहिर की कि प्रधानमंत्री इमरान खान अपने कलाकारों और अपने नेशनल हीरो को आगे बढ़ाने की जगह तुर्क सीरियलों की सिफ़ारिश कर रहे है और उन्हें आयात करने में मदद कर रहे हैं.
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वैसे तो किसी को भी अपनी पसंद का कार्यक्रम देखने की आज़ादी है लेकिन सरकार जब विदेशी सीरियलों को आगे बढ़ाने लगे और अपने तंग नजरिए को आगे बढ़ाने के लिए सरकारी ब्रॉडकास्टर का इस्तेमाल करे तो इससे मुश्किल पैदा हो जाती है. बहरहाल, पाकिस्तान के लोगों ने एर्तुग्रुल के इतिहास को दिल से कबूल कर लिया है और यह यकीन करने लगे हैं कि 12वीं सदी के तुर्क उनके ही लोग थे. अगर इंस्टाग्राम पर प्रमुख अभिनेताओं के नैतिक संदेशों को देखा जाए, तो हलीम हातून अब हलीमा बाजी हैं और अस्तगफिरुल्लाह को 12वीं सदी की मुस्लिम औरत जैसा व्यवहार करना चाहिए.
और कहीं जो आप चूक गए हों, तो एर्तुग्रुल अपने कुत्ते के साथ हाजिर है. आप पूछेंगे, यह कैसे मुमकिन है? क्या आपको पता नहीं है कि इस्लाम में कुत्तों को हराम माना गया है? लेकिन पाकिस्तानियों को इस सबकी परवाह नहीं है. जैसा कि इमरान खान ने एक बार हमसे कहा था कि वे ‘आधे मुहाजिर’ हैं, उनके समर्थक दो कदम आगे बढ़ गए हैं, वे ‘मुकम्मिल एर्तुग्रुल’ बनने के रास्ते पर हैं.