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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतअंदाज़ा लगाइए कि कोविड में उछाल के लिए इमरान ख़ान सरकार किसे दोष दे रही है? पाकिस्तान के 'जाहिल' आवाम को

अंदाज़ा लगाइए कि कोविड में उछाल के लिए इमरान ख़ान सरकार किसे दोष दे रही है? पाकिस्तान के ‘जाहिल’ आवाम को

कोविड से निपटने में पाकिस्तान की नाकामी स्वीकार करने की बजाय, पीएम इमरान ख़ान और उनके पीटीआई मंत्री, अपने ही लोगों को क़सूरवार ठहरा रहे हैं.

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पाकिस्तान में कोरोनावायरस इन्फेक्शन और मौतों में हुए हालिया इज़ाफे के बाद इमरान ख़ान की अगुवाई वाली पाकिस्तान सरकार को, दोष मढ़ने के लिए बलि का एक और बकरा मिल गया है.

पंजाब की स्वास्थ्य मंत्री यासमीन रशीद के मुताबिक़, अपनी मौत के लिए हम ख़ुद ही ज़िम्मेदार हैं, क्योंकि हम बहुत ही ग़ैर-गंभीर और जाहिल हैं और हालात की गंभीरता को नहीं समझते.

दुनिया में कितनी सरकारें हैं, जिन्होंने कोविड-19 संकट से निपटने में देरी का ज़िम्मा, अपने सर लेने की बजाय अपने ही लोगों को बस के नीचे धकेल दिया हो? मैं तो बस एक ही नाम सोच सकती हूं.

कोरोनावायरस बस एक ‘फ्लू’ है

हम यहां कैसे पहुंचे? ये बात साफ है कि लम्बे समय तक विपक्षी पार्टियों को दोष देने के बाद, घर के भीतर कोई नया विलेन तलाशना था और सामने आ गए जाहिल अवाम, जो बहुत समय से अपने वज़ीरे आज़म और उनकी टीम को, कोरोनावायरस की अहमियत को हल्का करते हुए सुनते आ रहे हैं.

वज़ीरे आज़म इमरान ख़ान ने हमें बताया कि कोरोनावायरस ज़्यादा से ज़्यादा एक फ्लू है, जो देखते ही देखते ग़ायब हो जाएगा. ये एक ऐसी चीज़ थी जो हमारे यहां के सूखे और गर्म मौसम में मर जाएगी. उनके पीछे बने रहिए और बस घबराना नहीं है.

मौतें, कैसी मौतें? संघीय योजना मंत्री असद उमर के मुताबिक़, इससे कहीं ज़्यादा लोग सड़क हादसों में मारे जाते हैं. क्या किसी ने कारों को बैन करने की बात की है? जानलेवा? नहीं, ये बस ख़तरनाक था. किसने कहा ऐसा? विडम्बना ये है, कि ये पाकिस्तान के सूचना मंत्री फिरदौस आशिक़ आवान थे.

सिंध में पाकिस्तान पीपल्स पार्टी (पीपीपी) की सरकार सिर्फ कोविड-19 की संख्या को ‘बढ़ा चढ़ा कर’ पेश कर रही थी, अगर आप अस्पतालों का दौरा करें, तो वहां आपको कुछ नहीं मिलेगा. ओह, पाकिस्तान में तो ये बस एक ‘टाइप सी’ वायरस है. हम इसे हरा रहे हैं, हम इसे मार रहे हैं और संचार मंत्री मुराद सईद के मुताबिक न्यूयॉर्क के गवर्नर भी इमरान ख़ान की नक़ल करने जा रहे हैं. ये अलग बात है कि गवर्नर एण्ड्र्यू कुओमो ने पाकिस्तान या इमरान ख़ान का कभी ज़िक्र ही नहीं किया. हमें देखिए ज़रा हम अकेले मुस्लिम मुल्क हैं, जिसने मस्जिदें तक बंद नहीं कीं.


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लॉकडाउन सिर्फ एक फैशन स्टेटमेंट है. इमरान ख़ान हमें याद दिलाते हैं कि लॉकडाउन सिर्फ ऊंचे तबक़े के लिए है. इन लॉकडाउन्स से कुछ अच्छा नहीं होने वाला है. लोग भूख से मर जाएंगे, वही लोग जो अब अपनी मौत के ख़ुद ज़िम्मेदार होंगे. पाकिस्तान ऐसे मुल्कों के पीछे क्यों चले, जहां लॉकडाउन ही एक अकेला रास्ता था, उस वायरस को क़ाबू करने का, जिसका कोई इलाज नहीं था. पाकिस्तान की तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) जानती है कि लॉकडाउन की वकालत कर रहे डॉक्टर्स दरअसल डॉक्टरों के कोट में सियासतदां थे. लॉकडाउन की वजह से न्यूयॉर्क ‘दिवालिया’ हो गया. हालांकि, न्यूयॉर्क के दिवालिया होने की फर्ज़ी ख़बर अभी पाकिस्तान पहुंची नहीं है.

एक नई गिरावट

लेकिन फिर भी, लोग ‘जाहिल’ हैं, चलिए पहले दिन से ही इमरान सरकार की कनफ्यूज़्ड और ख़राब मैसेजिंग के लिए, पाकिस्तान के अवाम को क़सूरवार ठहरा देते हैं.

लेकिन ये सिर्फ ख़राब मैसेंजिंग नहीं थी. पहले तो कोई लॉकडाउन था ही नहीं, फिर जो कुछ लॉकडाउन सरकार को लगा भी, उसने उसे भी उठा लिया. सभी मार्केट्स, बाज़ार शॉपिंग मॉल्स, पार्क्स और दूसरे कारोबार फिर से खोल दिए गए.

पब्लिक ट्रांसपोर्ट, घरेलू हवाई सफर, यहां तक कि इंटरनेशनल फ्लाइट्स भी 20 जून से शुरू होने जा रही हैं. सोशल डिस्टेंसिंग, मास्क पहनने, किसी दूसरे एसओपी जैसे सख़्त क़दम उठाए बिना, सब कुछ खोल दिया गया. दिक़्क़त ये है कि पीटीआई सरकार ने पाकिस्तान में कभी सख़्ती से लॉकडाउन लागू किया ही नहीं था और अब जब वायरस का फैलाव अपने चरम पर पहुंच गया है, तो वो दुम दबाए हुए है.


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सरकार का एक नुमाइंदा कहता है कि उनका मुल्क वायरस इन्फेक्शन और मौतों को कम बता रहा है, एक दूसरा मिनिस्टर है जिसे लगता है कि पाकिस्तान भारत से बेहतर कर रहा है. इमरान ख़ान और उनके लोगों ने बार-बार लोगों से कहा है कि पाकिस्तान की तुलना न्यूजीलैंड, यहां तक कि वियतनाम से भी न करें. लेकिन फिर भी वो अपनी तुलना भारत से करते हैं, तो चलिए तुलना करते हैं. इस इलाक़े में हर दस लाख की आबादी पर, पाकिस्तान के अंदर कोरोनावायरस के मामले और मौतें सबसे ज़्यादा हैं. भारत से ज़्यादा, जिससे ज़ाहिर होता है कि यहां, कोविड-19 के लिए कोई निर्णायक नीति नहीं है. पीएम ख़ान की भाषणबाज़ी, कि वो अपने कैश ट्रांसफर प्रोग्राम को भारत के साथ साझा करेंगे, और उस पर भारत का जवाब, कि ‘हमारा स्टिमुलस पैकेज इतना बड़ा है, जितनी पाकिस्तान की जीडीपी’ सिर्फ इस सरकार के छिछोरेपन को ही दिखाता है.

और इसलिए ये महा कनफ्यूज़न, जिसे पाकिस्तान सरकार कोविड-19 के खिलाफ अपना रेस्पॉन्स समझती है, अब पाकिस्तान के लोगों के ऊपर डाल दिया जाना है और अपनी जिंदगी और मौत के लिए, उन्हें ख़ुद ही जवाबदेह होना है. उस देश के लिए आसार अच्छे नज़र नहीं आते, जो मदीना की तरह एक कल्याणकारी स्टेट बनना चाहता है.

अपने मुल्क के लोगों, ख़ासकर लाहौरियों को, ‘जाहिल’ और ‘अजीब मख़लूक़’ (प्राणी) कहना, सिर्फ इसलिए कि बतौर सियासतदां, आप अपनी नाकामियों की ज़िम्मेवारी नहीं ले सकते. किसी भी पॉलिटिकल लीडर के लिए बहुत गिरी हुई बात है. कुछ भी हो, ये वही लोग हैं जिनके आगे वादों के नाम पर आप वोटों के लिए इल्तिजा करते हैं. लेकिन, ये कोई नई गिरावट नहीं है- पीएम इमरान ख़ान ने नवाज़ शरीफ का स्वागत कर रहे इन लोगों को ‘गधा’ कहा था.

पाकिस्तान के आवाम को जानते हैं, कि अस्ली मायनों में ‘जाहिल’ कौन है.

(लेखिका पाकिस्तान की एक स्वतंत्र पत्रकार हैं. उनका ट्विटर हैंडल @nailainayat है. व्यक्त विचार उनके निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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