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Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतहनुमान के संजीवनी लाने का इंतज़ार करते आईआईटी की उपज केजरीवाल कोविड के आंकड़ों में उलझे

हनुमान के संजीवनी लाने का इंतज़ार करते आईआईटी की उपज केजरीवाल कोविड के आंकड़ों में उलझे

बड़े-बड़े आंकड़ों ने केजरीवाल की राजनीति को निर्धारित किया है, चाहे 2जी घोटाले के आंकड़ों पर केंद्रित उनका भ्रष्टाचार विरोधी अभियान हो या कोविड पर अपनी सरकार की उपलब्धियों संबंधी उनके दावे.

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लगता है आईआईटी खड़गपुर के पूर्व छात्र अरविंद केजरीवाल का अब आंकड़ों की वैधता में भरोसा नहीं रहा- खासकर जब वे उनकी राजनीति में बाधक बनते हों.

वरना दिल्ली में कोरोनावायरस से मौतों की आधिकारिक संख्या और कोविड के लिए निर्दिष्ट अस्पतालों, श्मशानों और कब्रिस्तानों से मिले आंकड़ों में भारी विसंगति क्यों दिखती? या फिर कंटेनमेंट ज़ोन की संख्या में मनमानी वृद्धि या कमी का ही मामला लें– जो अप्रैल के अंत में 102 से घटकर गत गुरुवार को 64 रह गई थी, लेकिन दो दिनों के बाद बढ़कर 86 हो गई. कंटेनमेंट ज़ोन की संख्या में ये उतार-चढ़ाव तब हो रहा है जब राष्ट्रीय राजधानी में कोरोनावायरस संक्रमण की संख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है.

आंकड़ों का खेल

याद रहे कि केजरीवाल ने इस महीने की शुरुआत में एक टीवी इंटरव्यू में दावा किया था कि दिल्ली में 60 प्रतिशत मौतें केवल तीन कंटेनमेंट ज़ोन में हुई हैं.

लेकिन जब इस दावे को प्रमाणित करने के दिप्रिंट के आग्रह की बात आई तो वो स्वयं या उनका दफ्तर संबंधित विवरण उपलब्ध कराने में नाकाम रहे.

वैसे सच कहा जाए तो केजरीवाल कोई अकेले मुख्यमंत्री नहीं है, जो कोरोनावायरस के प्रसार संबंधी तथ्यों और आंकड़ों को लेकर गोलमोल बातें कर रहे हैं. कोई भी मुख्यमंत्री महामारी को नियंत्रित करने में विफल होते दिखना नहीं चाहता और इस कारण उनमें से कई मुख्यमंत्रियों ने संक्रमण की टेस्टिंग के आक्रामक अभियान को हतोत्साहित करने का काम किया है.

गत सप्ताह केजरीवाल सरकार ने भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के निर्देशों के विरुद्ध जाते हुए शवों पर कोविड टेस्ट करने के खिलाफ़ आदेश जारी किया था. कोविड से मौत की दर को भला क्यों बढ़ाने दिया जाए, जोकि शनिवार को 1.78 थी, यानि कुल 12,910 पॉजिटिव मामलों पर 231 मौतें?


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सच्चाई तो ये है कि मृत्यु दर के आंकड़े यों ही बढ़ जाएंगे यदि कोविड के लिए निर्दिष्ट अस्पतालों, श्मशानों और कब्रिस्तानों से प्राप्त मौत के आंकड़ों को शामिल किया जाए. साथ ही, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तरह केजरीवाल ने भी मौतों से संबंधित एक लेखा समिति का गठन किया है जो मौत की उन्हीं घटनाओं की गिनती करती है जिनमें प्राथमिक कारण कोरोनावायरस संक्रमण हो, सहरुग्णता से जुड़ी मौतों को शामिल नहीं किया जाता है. हालांकि, केंद्रीय टीम द्वारा मामलों से जुड़े चिकित्सा रिकॉर्ड मांगे जाने के बाद पश्चिम बंगाल सरकार की समिति एक तरह से निष्क्रिय हो चुकी है, लेकिन केजरीवाल ने ऐसा नहीं किया है. ये सारे कारण दिल्ली में मौत की कम दर के पीछे की कहानी को उजागर करते हैं.

आरोप-प्रत्यारोप का खेल

ये आंकड़े तथाकथित ‘क्रांति’ (अन्ना हज़ारे का भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन) की इस संतान की प्रशासनिक कुशलता को भी दर्शाता है. जन-स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था से जुड़ी भारी चुनौतियों से सामना होने पर केजरीवाल दूसरों पर दोष मढ़ने की कोशिश में जुट गए– आनंद विहार बस टर्निमल पर प्रवासी श्रमिकों की भीड़ जुटने, जो जाहिर तौर पर राजनीतिक फ़ैसले से जुड़ा मामला था, पर दिल्ली सरकार के चार अधिकारियों के खिलाफ़ केंद्र की कार्रवाई को मौन समर्थन देने से लेकर मौत के आंकड़ों में विसंगतियों के लिए परोक्ष रूप से अस्पतालों और अन्य संस्थानों को दोषी ठहराने तक.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा राष्ट्र को ये बताने के दो सप्ताह बाद कि महाभारत का युद्ध 18 दिनों में जीता गया था, लेकिन कोरोनावायस के खिलाफ़ लड़ाई में 21 दिन लगेंगे, केजरीवाल ने दिल्लीवासियों को आश्वस्त किया कि भगवान हनुमान के आशीर्वाद से, मानव जाति शीघ्र ही वायरस के इलाज की ‘संजीवनी’ ढूंढ निकालेगी. कुछ दिनों बाद उन्होंने लोगों को रोज़ आधा घंटा गीता के पाठ में लगाने की सलाह दी थी.

ये सब करते हुए वह एक और आंकड़ा भी पेश करते हैं- अपनी सरकार के राहत प्रयासों का. उनका कहना है कि दिल्ली सरकार एक करोड़ लोगों यानि दिल्ली की आधी आबादी को मुफ्त राशन उपलब्ध करा चुकी है.

ये दावा भोजन के अधिकार के लिए काम करने वाले संगठन दिल्ली रोज़ी रोटी अधिकार अभियान द्वारा 28-29 अप्रैल को किए गए सर्वे के निष्कर्ष से मेल नहीं खाता है, जिसके अनुसार नगर में उचित मूल्य की दुकानों में से मात्र 30 प्रतिशत का ही संचालन हो रहा था. दिल्ली उच्च न्यायालय में दायर अपनी याचिका में इस एनजीओ ने सरकार द्वारा पारदर्शिता नहीं बरते जाने की भी शिकायत की है. याचिका में कहा गया है कि सरकार अपने पोर्टल पर सिर्फ राशन कार्ड धारियों की संख्या बताती है, उनके नाम या उन्हें दिए गए राशन की मात्रा का उल्लेख नहीं करती.

केजरीवाल ने केंद्रीय खाद्य मंत्री रामविलास पासवान के मई के पहले सप्ताह के इस दावे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी कि प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत दिल्ली के लिए आवंटित 36,367 टन अनाज में से ‘1 प्रतिशत से भी कम’ -सिर्फ 63 टन- का 12,600 लाभार्थियों में वितरण किया गया था.


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लेकिन, उसके बाद भी केजरीवाल आंकड़ेबाज़ी से पीछे नहीं हटे. उन्होंने 12 मई की दोपहर लोगों से लॉकडाउन में संभावित छूट से संबंधित सलाह आमंत्रित की और इसके लिए अगले दिन पांच बजे शाम तक का ही समय दिया, यानि 24 घंटे से थोड़ा अधिक और, 14 मई को मुख्यमंत्री ने बताया कि 5 लाख सुझाव आ भी चुके थे. इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात ये हुई कि अगले दो दिनों में सरकार ने सभी पांच लाख सुझावों का अध्ययन करने के बाद केंद्र को अपनी सिफारिश भी सौंप दी. इसे जादू कहें, या केजरीवाल की अद्भुत प्रतिभा.

केजरीवाल की राजनीति में संख्याओं की प्रमुख भूमिका

बड़े-बड़े आंकड़ों ने इंजीनियर-से-आयकर अधिकारी-से-कार्यकर्ता-से-नेता बने केजरीवाल की राजनीति को निर्धारित किया है. भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता के अपने तीसरे अवतार में वह बड़े-बड़े नेताओं और व्यवसायियों से जुड़े हज़ारों करोड़ों के घोटालों का ज़िक्र किया करते थे. हालांकि, वो ऐसा दौर था जब बड़ी-बड़ी संख्याएं, खासकर कथित घोटालों से जुड़ी हुई, आपको राजनीति में नायक का दर्जा दिला सकती थीं. सीएजी विनोद राय द्वारा उल्लिखित ‘1.76 लाख करोड़ के 2जी घोटाले’ की बात याद ही होगी? अंतत: उस मामले में कुछ भी नहीं निकला, लेकिन आगे चलकर राय को सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त प्रशासकों की समिति के प्रमुख के रूप में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड चलाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई, जिससे उनका बैंक बैलेंस ज़रूर बढ़ा, लेकिन क्रिकेट का कोई कायापलट नहीं हुआ.

इसी तरह केजरीवाल द्वारा लगाए गए आरोपों में भी कुछ नहीं निकला. लेकिन वे आगे चलकर दिल्ली का मुख्यमंत्री बने. और, 2018 आते-आते वह मुसीबत से बचने के लिए अरुण जेटली, नितिन गडकरी, कपिल सिब्बल के बेटे और बिक्रम सिंह मजीठिया आदि से माफ़ी मांगते घूम रहे थे. इसके बाद वह मुफ्त पानी, बिजली आदि के आंकड़े जारी करने में जुट गए.

कोरोनावायरस के कारण अब आंकड़ों की उनकी राजनीति उनके लिए परेशानी का कारण बन गई है और वह संख्याओं को कम दिखाने की जद्दोजहद में लगे नज़र आते हैं, भले ही इसके लिए उन्हें कोविड प्रबंधन का ‘ममता बनर्जी मॉडल’ अपनाना पड़े. ऐसा लगता है कि यह आइआइटियन संख्याओं के अपने ही खेल में उलझ गया है. हालांकि, वह नरेंद्र मोदी सरकार की मदद पर भरोसा कर सकते हैं. मोदी सरकार ने पूरे प्रचार के साथ केंद्रीय टीम भेजकर कोविड संबंधी आंकड़ों को दबाने के ममता बनर्जी के प्रयासों की पोल खोल दी. लेकिन केजरीवाल सरकार के कोविड डेटा पर कहीं अधिक सवाल उठने के बावजूद, केंद्र ने इस मुद्दे को नज़रअंदाज़ करने का विकल्प अपनाया है. तभी तो दिल्ली के मुख्यमंत्री ने ‘छोटा मोदी’ की उपाधि अर्जित कर ली है और उनकी पार्टी को अक्सर ‘भाजपा की बी टीम’ कहा जाता है.

(व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)

(इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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