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Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतअगर 182 से 6 सीटों पर आना चाहते हो तो हिंदू-मुस्लिम करते रहो- राम विलास पासवान

अगर 182 से 6 सीटों पर आना चाहते हो तो हिंदू-मुस्लिम करते रहो- राम विलास पासवान

10 दिसंबर 1998 को, हाजीपुर के तत्कालीन सांसद लोकसभा में कहा था, 'अगर हम 'अल्पसंख्यक' शब्द की सही व्याख्या करना सीख लें, तो हममें यह भावना विकसित हो जाएगी कि हम जिनके खिलाफ लड़ रहे हैं, उनका खून भी हमारे ही जैसा है.'

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सबसे पहली बात है कि जो ‘माइनॉरिटीज’ या ‘अल्पसंख्यक’ शब्द है, हम यदि उसकी सही व्याख्या करना सीख लें तो मैं समझता हूं कि यह नफरत का वातावरण नब्बे प्रतिशत दूर हो जाएगा.

आज इस देश में कौन माइनॉरिटीज के लोग हैं – मुसलमान, क्रिश्चियन, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन हैं. यदि इन कुछ माइनॉरिटीज के इतिहास में जाएंगे तो इनमें से कोई भी माइनॉरिटीज के लोग विदेशी नहीं हैं.

तब होता है जब देशी और विदेशी का मामला उत्पन्न हो. हम इस झगड़े को समझ सकते हैं. बाबर और इब्राहिम लोदी के बीच में झगड़ा हुआ था. उस समय इब्राहिम लोदी देश की गद्दी पर था और बाबर ने 1526 में चढ़ाई की थी. एक देशी और एक विदेशी था.

इस झगड़े को हम समझ सकते हैं लेकिन आज हिन्दू मुसलमान के बीच में झगड़े की बात करते हैं. इसमें कौन देशी हैं, कौन विदेशी हैं? विदेशी कौन होता है? विदेशी वह होता है जो अपने देश को चला जाता है. जो जिस देश की मिट्टी में मिल जाता है, वह विदेशी नहीं रहता.

आज एक भी अंग्रेज भारत देश में नहीं है, जो थे, वे सब अपने-अपने देश को चले गए तो वे विदेशी हैं. लेकिन जो लोग देश में आकर इसी देश को संवारने, बनाने में लग गए और यदि हम उनके 500 साल के इतिहास में जाएंगे, तो फिर हमें 5000 साल पुराने इतिहास में जाना पड़ेगा, जो बड़ा दुखदायी होगा.

यदि आप पांच-छह पीढ़ी पीछे चले जाइए, एक भाई हिन्दू तो एक भाई मुस्लिम मिलेगा. गूजर की बस्ती में चले जाइए तो छह भाई हिन्दू तो एक भाई मुस्लिम मिलेगा. कश्मीर में चले जाइए, वहां आज भी नब्बे प्रतिशत मुसलमान हैं, लेकिन वहां आज भी एक साथ “पंडित पन्ना मौलाना” का टाइटल चलता है.

जहां जाट हैं तो जाट के यहां भी मुसलमान बना है. कहीं बुनकर के यहां मुसलमान बना है, कहीं दलित है तो दलित के यहां मुसलमान बना है, इसलिए यह कहना कि मुसलमान बाबर की औलाद है, गलत है. जब इस तरह की भाषा का प्रयोग होता है, चाहे आवेश में प्रयोग होता है, तो मैं यह समझता हूं कि यह सही नहीं है.

हम ठंडे दिमाग से सोचें और सात-आठ-नौ-दस पीढ़ी पीछे जाकर देखें. बाबर जब देश की धरती पर आया था तो उस समय इब्राहिम लोदी राज कर रहा था, वह हिन्दू नहीं था. उसके पहले खिलजी वंश का राज था, उसके पहले तुगलक वंश का राज था, उसके पहले गुलाम वंश का राज था, उसके पहले मोहम्मद गोरी का राज था.

इस्लाम राज 1200 ईस्वी से चले आ रहे हैं. आज जो क्रिश्चियन हैं, यहां संगमा साहब हैं, अगर कोई क्रिश्चियन को कह दे कि अंग्रेज की औलाद है तो कौन बर्दाश्त करेगा? क्रिश्चियन आदिवासी हैं, 60 प्रतिशत क्रिश्चियंस में दलित क्रिश्चियंस हैं.

महोदय, सुंदरू की घटना घटी लेकिन कोई आदमी नहीं जान पाया कि वह दलित क्रिश्चियन था. हम वहां से न्याय ज्योति लेकर चले थे. क्या एक भी गोरा आदमी क्रिश्चियन है? सारे के सारे क्रिश्चियन कनवर्टेड हैं, आदिवासी से कनवर्टेड हैं या बैकवर्ड क्लास से कनवर्टेड हैं और अपर क्लास से भी कनवर्टेड हो सकते हैं.

आज हम जिस उद्देश्य को लेकर लड़ाई लड़ रहे हैं, जैसे क्रिश्चियनिटी यहां विदेशी हो गई हो. सिख धर्म की स्थापना केश, कंघा, कच्छा, कृपाण और कड़ा को लेकर हुई थी. इस तरह की स्थापना से परिवार में सबसे बड़ा भाई सिख होता था तथा छोटा भाई हिन्दू होता था.

जैसे टोहरा जी, बादल जी और बरनाला साहब एक ही कम्युनिटी के हैं या फिर कोई मजहबी सिख है- जैसे बूटा सिंह जी हैं. इसमें कौन विदेशी है? यहां हिन्दू और सिख का झगड़ा हुआ, हमने देखा था. हमारा घर 12, राजेंद्र प्रसाद रोड पर था. कर्पूरी ठाकुर जी भी थे लेकिन हम लोग एक सिख को बचा नहीं पाए, किसी तरीके से हम लोग बच गए.

मेरा डेढ़-दो साल का बेटा था उसको हमने नीचे फेंक दिया था. मेरा घर जलाया गया था जब बाबरी मस्जिद का मामला आया था, मैं तिलक नगर थाने में दस हजार दलित लोगों के साथ बंद था. मेरे घर को पुनः जलाने का काम किया गया. हम दलित वर्ग से आए हैं.

मंडल कमीशन के कारण मैंने बहुत गाली सही लेकिन मंडल कमीशन से हमें कोई फायदा होने वाला नहीं है, क्योंकि वह पिछड़ी जाति के लिए था. लेकिन यह कमिटमेंट पिछड़ी जाति के लिए था. हम पिछड़ी जाति के लिए नारा लगाते थे- “पिछड़ा पावे सौ में साठ, राज-पाट है किसके हाथ, अंग्रेजी और ऊंची जात, ऊंची जात की क्या पहचान, गिट-पिट बोले करे न काम; छोटी जात की क्या पहचान, करे काम और सहे अपमान.”

यह नारा लगाने का काम करते थे. यह मुसलमान के लिए कमिटमेंट है. याद रखिए देश में जब तक कमिटमेंट नहीं होगा, हमेशा सोचना चाहिए कि यदि औरत और मर्द में झगड़ा हो तो औरत की लाख गलती होने पर भी उसका साथ देना चाहिए. यदि हथियार वाला और बिना हथियार वाले में झगड़ा हो तो बिना हथियार वाले की लाख गलती होने पर भी उसका साथ देना चाहिए.

जनता और सरकार के बीच में झगड़े हो तो जनता की लाख गलती हो तो भी जनता का साथ देना चाहिए, क्योंकि जिसके पास पावर होती है वह ज्यादा एट्रोसिटीज करता है और जिसके पास पावर नहीं होती है वह कम करता है.

मैंने शुरू में कहा कि यदि हम इस शब्द की व्याख्या करना सीख जाएं कि माइनॉरिटीज कौन हैं, उसके आधार पर हम चलने का काम करें तो मैं समझता हूं कि हमारे में स्वयं एक भावना पैदा होगी कि हम जिसके खिलाफ लड़ रहे हैं, यह हम और वे एक ही खून है.

नकवी और पासवान में कोई डिफरेंस नहीं है. छः सात पीढ़ी के ऊपर एक ही मां-बाप के हम दो संतान होंगे. उसी तरीके से हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का मामला है.

जब भी मुसलमान का मामला आता है तो पाकिस्तान क॑ साथ में जोड़ दिया जाता है. याद रखिए, यहां डिफेंस मिनिस्टर नहीं हैं हम उन्हें बताएंगे कि प्रत्येक साल 25,000-30,000 करोड़ रुपया हम हथियार पर खर्च करते हैं और इतना ही पाकिस्तान भी हथियार पर खर्च करता है.

दोनों देशों का 40,000-50,000 करोड़ रुपए अमेरिका के यहां जा रहा है. आज कोई रूस भी नहीं है. एक देश अमेरिका है जो उसको देता है F-16 और हमें कहता है कि आप F-17 ले लो. आपने एटम बम बनाया है अगर हिम्मत है तो एक बार पाकिस्तान को उड़ा दीजिए, लेकिन आप ऐसा नहीं कर सकते हैं.

पाकिस्तान भी हिंदुस्तान को नहीं उड़ाएगा और एटम बम कभी सेल्फ डिफेंस के लिए नहीं बनता है. एटम बम पर हम जितना भी गर्व करें वह चाहे इस्लामाबाद में गिरे तो भी दिल्ली साफ हो जाएगी और वह दिल्ली में गिराएगा तो उनका इस्लामाबाद भी साफ होने वाला है.

हम इस बात को जानते हैं कि न हिन्दुस्तान पाकिस्तान को खत्म कर सकता है और न पाकिस्तान हिन्दुस्तान को खत्म कर सकता है. जिस देश में 6 लाख गांवों में से 2 लाख गांवों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है, जहां सबसे ज्यादा अंधे, लंगड़े, लूले, सबसे ज्यादा गरीबी जिस देश में हैं, जहां बेरोज़गारी की समस्या भयावह है, हम उस देश में युद्ध का वातावरण क्रिएट करते रहेंगे दोनों तरफ से? और मैं यह भी जानता हूँ की न हिन्दुस्तान का नागरिक युद्ध चाहता है और न ही पाकिस्तान का नागरिक युद्ध चाहता है.

जब हमारे पेट में दर्द होता है तो हम दस गाली पाकिस्तान को दे देंगे और जब पाकिस्तान को कुछ होता है तो वह दस गाली हिन्दुस्तान को दे देगा. हम देश की जनता को मूर्ख बनाने का काम कर रहे हैं. मैं सरकार की बात कर रहा हूं, कोई पार्टी की बात नहीं कर रहा हूं.

जर्मनी और जापान के पास एटम बम नहीं है तो क्या उसका वीटो किसी देश से कम चलता है? याद रखिए जो देश खुशहाल होता है, उसी का वीटो चलता है. हम चाहे लाख एटम बम बना लें, अगर हमारा देश कमजोर रहेगा तो उस एटम बम की कोई कीमत रहने वाली नहीं है.

हमारी सीमा चारों तरफ से माइनॉरिटीज से घिरी है. जम्मू-कश्मीर में मुसलमान हैं, पंजाब में सिख हैं, लद्दाख -में बुद्धिस्ट हैं और नॉर्थ ईस्ट में, मिजोरम, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा में क्रिश्चियन हैं.

जब तक सीमा मजबूत नहीं होगी तब तक देश मजबूत नहीं होगा और वहां से विदेशियों के घुसने का खतरा रहेगा और सीमा तब तक मजबूत नहीं होगीं जब तक माइनॉरिटीज के मन में विश्वास की भावना पैदा नहीं होगी, उन्हें जब तक एक नम्बर का नागरिक नहीं माना जाएगा तब तक देश मजबूत नहीं हो सकता. हमने अमेरिका में बहुत अच्छी चीज देखी.

आडवाणी जी भी अमेरिका जाते हैं. भाषण करते हैं. अमेरिका में चाहे हिन्दुस्तान मूल का कोई व्यक्ति हो या दूसरे-किसी देश का नागरिक हो, वह अमेरिकन होने पर गर्व करता है क्योंकि वहां की सरकार ने उनके मन में यह पैदा नहीं होने दिया कि आप हिन्दू हो या मुसलमान हो. उसे यही महसूस होता है कि सभी चीजों में उसे बराबर का हक मिला है.

मैं जैन साहब का बहुत आदर करता हूं. वह कल बहुत सी बातें कह रहे थे. मैं दलित परिवार में पैदा हुआ हूं. बाबा अंबेडकर को जब बुरा-भला कहा जाता था तो एक बार महात्मा गांधी ने कहा था कि अंबेडकर साहब जो कहते हैं, उसे उनके दृष्टिकोण से देखो.

अगर तुम अंबेडकर की जगह होते तो तुम्हारे मन पर क्या गुजरती? इस बारे में सोचो. माइनॉरिटीज की एक साइकोलॉजी होती है. वह अपने अधिकारों को मांगने की कोशिश करते हैं. उस अधिकार को मेजॉरिटी के आधार पर तोलना शुरू कर देंगे कि हम 85 प्रतिशत हैं या हमने रहम करने का काम किया है तो यह ठीक नहीं होगा.

याद रखिए, परिवार में बड़ा भाई छोटे भाई पर एहसान जताने की कोशिश करता है तो उसका गलत परिणाम निकलता है. इसलिए यह बात मन में नहीं आनी चाहिए कि हम मेजॉरिटी में हैं और हम माइनॉरिटीज पर एहसान कर रहे हैं. मुझे इस बात की खुशी है कि कल आडवाणी जी ने इस बात को क्लैरिफाई किया.

उन्होंने कहा कि यह मेजॉरिटी और माइनॉरिटी का सवाल नहीं है, यह भारत के संविधान का सवाल है. संविधान के अनुसार उन्हें हक मिला है. आप अणु बम पर गर्व कर रहे हैं. क्या उसमें डॉक्टर कलाम का कम हाथ है? जब देश की आजादी के लिए लड़ाई लड़ी जा रही थी तो खुदीराम बोस जो हिंदू थे, ने फांसी के फंदे को चूम लिया.

सरदार भगत सिंह जो सिख थे, उन्होंने फांसी के फंदे को चूम लिया. फांसी के फंदे को अशफाक उल्ला खां जो मुसलमान थे, उन्होंने कहा था कि “सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है, जोर कितना बाजू-ए-कातिल में है.” इतना कहकर उन्होंने फांसी के फंदे को चूम लिया.

मैं एक घटना का जिक्र करना नहीं चाहता था लेकिन मुझे करना पड़ रहा है. मैं जब रेल मंत्री था, एक उद्घाटन के समय अब्दुल हमीद की पत्नी ने आकर कहा कि आप मेरे ऊपर एक मेहरबानी कीजिए. उसने कहा कि मुझे सेकेंड क्लास का पास दिला दीजिए क्योंकि मुझे एक स्टेशन जाना पड़ता है और मेरे पास टिकट के लिए पैसे नहीं हैं.

मैंने कहा कि माता जी, आपके बलबूते पर हम राज कर रहे हैं और आपको एक सेकेंड क्लास का पास चाहिए. जब हमने पूछा कि आपके बच्चे क्या करते हैं तो उन्होंने बताया कि दो बच्चे हैं, एक मैट्रिक पास है और दूसरा पोस्ट ऑफिस में प्यून का काम करता है.

महीने में 10 दिन काम मिलता है और बाकी 20 दिन घर पर बैठा रहता है. हमने उसी समय उनके लिए ए.सी. फर्स्ट क्लास का पास जारी करने का आदेश कर दिया और कहा कि चाहे जो हो, आप जिंदगीभर के लिए आराम से रह सकते हो.

उनके दोनों लड़कों को रेलवे में नौकरी दिलवाई. मैं सब साथियों से कहना चाहता हूं कि कोई हिंदू मुसलमान को लड़ाकर या मुसलमान के कंधे पर चढ़कर राजनीति नहीं कर सकता.

देश को मजबूत करने के लिए राजनीति होती है, देश को टुकड़े-टुकड़े में बांटने के लिए राजनीति नहीं होती, सिर्फ हिंदू-मुसलमान के नाम पर, जाति या धर्म के नाम पर राजनीति नहीं चलती है.

हम कला क्षेत्र में देखते हैं कि मोहम्मद रफी या मुकेश या सुरैया, नूरजहां, लता मंगेशकर या आशा भोसले किसी से कम नहीं रहे हैं.

खेल क्षेत्र में अजहरुद्दीन, गावस्कर और नया सितारा सचिन किसी से कम नहीं हैं. गांधी जी के साथ पं. जवाहर लाल नेहरू काम करते थे लेकिन मौलाना आजाद भी उन लोगों के साथ काम करते थे. इसलिए सब चीज में धर्म को नहीं घसीटना चाहिए.

सभापति महोदय, यहां बार-बार हिन्दू धर्म की बात होती है लेकिन मैं उस बहस में नहीं जाना चाहता क्योंकि हमारे उधर बैठे हुए भाई ज्यादा पढ़े-लिखे हैं, वे संस्कृत और वेद पढ़ने वाले हैं, हमारी तरफ कम हैं. हमने वेद में हिन्दू शब्द कहीं नहीं पढ़ा.

दो-दो रामायण लिखी गई- एक वाल्मीकि ने लिखी तो दूसरी तुलसीदास ने लिखी. दोनों रामायण में कहीं भी हिन्दू शब्द का उल्लेख नहीं किया गया है. जो आप कहें मैं दंड भुगतने के लिए तैयार हूं यदि आप बतला दें कि वेद के अतिरिक्त उपनिषद, गीता या महाभारत में हिन्दू शब्द का कहीं जिक्र है.

यहां सहनशीलता की बात की गई लेकिन हर चीज में हिंदुत्व आता रहा है. जब हिन्दू शब्द ही नहीं तो हिंदुत्व कहां से आया? हम बचपन में नवीं कक्षा में पढ़ते थे कि कुछ विदेशी लोग सिन्धु आये थे और वे सिन्धु से उसको हिन्दू कहने लगे थे. हिन्दू शब्द की उत्पत्ति सिन्धु से हुई है.

आप किसके लिये यह सब झगड़ा कर रहे हैं? मान लीजिये आज हिन्दू राष्ट्र की घोषणा हो जाये, तो किसे क्या मिलेगा? क्या हमारे प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी हिन्दू नहीं हैं, उनके पहले वाले प्रधानमंत्री क्या हिन्दू नहीं थे, हमारे राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, लीडर ऑफ द हाउस के अध्यक्ष हिन्दू नहीं हैं?

दूसरी तरफ जो ले लीजिये. उड़ीसा के मुख्यमंत्री श्री नवीन पटनायक, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री श्री ज्योति बसु, बिहार की मुख्यमंत्री श्रीमती राबड़ी देवी और उत्तर प्रदेश के कल्याण सिंह सिर्फ मुख्यमंत्री…

मैं कह रहा था कि जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री डा. फारुख, पंजाब के मुख्यमंत्री श्री बादल को छोड़कर बाकी सभी राज्यों के मुख्यमंत्री हिन्दू हैं, इसलिये हिन्दू राष्ट्र कहने से क्या फायदा? याद रखिये पानी मुसलमान के लिये ठंडा है तो हिन्दू के लिये भी ठंडा है.

आग में हिन्दू जलता है तो मुसलमान भी जलता है. जैसे पानी और आग का कोई धर्म नहीं, उसी तरह राष्ट्र का भी कोई धर्म नहीं है. राष्ट्र न हिन्दू होता है और न मुसलमान. राष्ट्र का एक काम होता है- लोगों का कल्याण करना, लोगों को रोजी-रोटी देना.

धर्म और जाति का नारा वही लोग लगाते हैं जिनके पास आर्थिक मुद्दा नहीं होता. इस देश में धर्म और जाति का मुद्दा एक बार चल सकता है. लोगों के लिए परमानेंट मुद्दा उनके लिये आर्थिक विकास और रोजगार देना है. हम लोगों ने मंडल कमीशन लागू किया.

उस समय यह सोचा कि अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक 85 प्रतिशत हमारे साथ आ जायेगा और सारा राजपाट हमारे साथ चलेगा परन्तु, हम 140 से 6 पर चले आये. यदि वही 6 पर जाना है आपको धर्म का नारा लगाते हुए तो हिन्दू-मुसलमान करते चलिए.

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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