कोरोनावायरस से दुनिया भर में फैली महामारी की वजह से चमगादड़ इन दिनों काफ़ी सुर्खियों में हैं. ऐसा माना जा रहा है कि यह वायरस चमगादड़ से ही मनुष्य के शरीर में आया है. चूंकि चमगादड़ को लेकर विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और समाजों में पहले से ही एक नकारात्मक छवि बनी हुई है. इसलिए ऐसी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि इस महामारी के बाद की चमगादड़ को लेकर नकरात्मकता बढ़ सकती है, जिससे इस जीव के अस्तित्व पर ख़तरा भी उत्पन्न हो सकता है.
इस लेख में चमगादड़ से जुड़े कई सवालों को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से समझने की कोशिश की गयी है? मसलन, चमगादड़ क्या है? मनुष्य के शरीर में चमगादड़ से वायरस के आने की आशंका ज़्यादा क्यों होती है? चमगादड़ मनुष्य के लिए लाभदायक कैसे हैं और भविष्य में किन बातों का ध्यान देना चाहिए, जिससे कि ऐसी बीमारियों की रोकथाम हो सके?
चमगादड़ क्या है?
चमगादड़ हमारे आस-पास रहने वाला एक एक स्तनधारी जीव (मैमल) है. अब तक हुए खोज के अनुसार दुनियाभर में स्तनधारी प्रजातियों की संख्या लगभग 6,495 हैं, जिसमें से लगभग 1,400 के आस-पास चमगादड़ है. रहन-सहन और खान-पान के आधार पर चमगादड़ को दो उपसमूहों- फल खाने और कीट खाने वाली प्रजातियों में विभाजित किया जाता है. पहले उपसमूह के चमगादड़, जिनकी प्रजातियों की संख्या 186 है. मुख्य रूप से पुराने, लम्बे, छायादार पेड़, घनी पत्तियों और पुराने घरों की छतों में रहते है. दूसरे उपसमूह के चमगादड़, आकार में छोटे होते हैं जो पुराने घर, खंडहर, पेड़ और दीवार की दरारों आदि में रहते हैं. इस समूह के चमगादड़ की आंखें नहीं होती हैं. इसलिए ये अपना शिकार और सफ़र अपने शरीर द्वारा उत्पन्न तरंगों की मदद से करते हैं.
दुनियाभर में पाये जाने वाले सभी जीव-जन्तुओं में, चमगादड़ ही एकमात्र स्तनधारी जीव है, जो उड़ने में सर्वाधिक सक्षम है. ये एक रात में लगभग 160 किलोमीटर तक की दूरी, खाने के लिए तय करते हैं और लगभग 1,500 किलोमीटर की दूरी मौसमी प्रवास के समय करते हैं.
चमगादड़ से जुड़ी मान्यताएं और अंधविश्वास
चमगादड़ रात्रिचर जीव होने के कारण रात में ही सभी क्रियाओं के लिए सक्रिय होते हैं. इनसे जुड़ी नकारात्मक मान्यताओं की बात की जाए तो इन्हें बुरी आत्माओं का साया, भूत-प्रेत और एक रहस्यमय जीव माना जाता है. कहीं-कहीं ऐसी भी मान्यता है कि जहां इनका निवास होता है, वहां खजाना छुपा होता है. भारत के कुछ हिस्सो में इनको खाने के लिए फल-फूल भी दिये जाते हैं, जिसके पीछे मान्यता है कि ऐसा करने से घर में सुख और समृद्धि बनी रहती है.
मनुष्य में चमगादड़ से वायरस के आने की आशंका क्यों?
चमगादड़ में तरह-तरह के वायरस पाए जाते हैं. शोध से पता चला है कि अकेले चमगादड़ के शरीर में लगभग 61 वायरस होते हैं जो कि मनुष्यों के साथ अन्य जीवों को संक्रमित करते है. ऐसा इनके निवास स्थान में लगातार होने वाले परिवर्तन की वजह से होता है क्योंकि इससे इनके मेटाबॉलिज्म में कई प्रकार का फेरबदल होता रहता है, जो कि वायरस के लिए बहुत अनुकूल होता है. झुंड में रहने की वजह से चमगादड़ एक दूसरे के शरीर में वायरस को तेज़ी से फैलाते हैं. चूंकि ये ऐसे जीव हैं जो मनुष्यों आस-पास रहते हैं, इसलिए इनसे मनुष्यों में वायरस के फैलने की आशंका ज़्यादा होती है.
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चमगादड़ भी मनुष्य की तरह ही मैमल होता है. मैमल उन जीवों को कहा जाता है जो स्तनधारी होते हैं, जिनका दिमाग़ और तंत्रिका तंत्र पीठ की तरफ़ पीछे होता है और जो प्रायः झुंड में रहते हैं. चमगादड़ के कुछ जीन भी मनुष्य से मिलते हैं, इसलिए भी इससे मनुष्य में वायरस के आने की आशंका ज़्यादा होती है.
कोरोनावायरस से फैली बीमारी कोविड-19 के बारे में शुरू-शुरू में दावा किया गया कि यह चमगादड़ से मनुष्य के शरीर में पहुंचा. अफ़वाह तो इसकी भी फैली कि इसे चीन की किसी प्रयोगशाला में तैयार किया गया है. हालांकि, शोध में ऐसे बातें ग़लत साबित हुई हैं. वायरस के अध्ययन के लिए किए जाने वाले जेनॉमिक सीक्वेंस एनालिसिस से यह बात सामने आयी है कि कोविड-19 का जिनैटिक कॉम्बिनेशन, लगभग 40 साल पूर्व के ख़ोजे जा चुके कोरोना वायरस से मिलता जुलता है. इस वायरस का मनुष्य के शरीर में प्रवेश सीधे चमगादड़ से न होकर, पंगोलियन नाम के एक जीव माध्यम से हुआ है. एक शोध में मनुष्य के शरीर में ऐसे ज़ीन्स और रिसेप्टर के पाए जाने की संभावना व्यक्त की जा रही है जो कोरोनावायरस के ज़ीन्स और रिसेप्टर से बिलकुल मिलता-जुलता है, जिसकी वजह से ही शायद यह मनुष्यों को आसानी से संक्रमित कर रहा है.
चमगादड़ मनुष्य के लिए लाभदायक कैसे हैं?
रात्रिचर स्वभाव होने के कारण ये रात में फलने और फूलने वाले लगभग सवा पांच सौ प्रजातियों के पेड़ों के परागकण और बीज़ को अलग-अलग प्राकृतिक वास में फैलाते हैं, जिससे जंगल को प्राकृतिक रूप से स्थापित होने में मदद मिलती है. इसलिए इनको ‘प्राकृतिक जंगल को स्थापित’ करने वाले के साथ-साथ, ‘जंगल का रक्षक’ भी कहा जाता है.
चमगादड परागण के साथ ही विभिन्न प्रकार के कीट-पतंगों का शिकार करते हैं, जिन कीट-पतंगों की वजह से मनुष्य और फसलों को तरह-तरफ़ का रोग होता है. चमगादड उनको खाकर फसलों के लिए जैविक कीटनाशक का काम करते हैं. एक अध्ययन से यह भी पता चला है कि एक मादा चमगादड़, गर्भावस्था के दौरान अपने शरीर के तीन गुना ज़्यादा वजन तक कीटों का भक्षण कर सकती है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि एक चमगादड़, अपने जीवन काल (लगभग 30 वर्ष) में कितने कीट खाता होगा?
चमगादड़ तिलचट्टे, मेढ़क, मक्खियों और मुख्य रूप से मच्छरों को खाते हैं. एक छोटा सा चमगादड़, एक घंटे में 1,200 से भी ज़्यादा मछरों को खाता है. इन मच्छरों की वजह से मलेरिया, टायफायड, डेंगू, चिकनगुनिया जैसी बीमारियां फैलती हैं, जिनकी रोकथाम के लिए सरकार को करोड़ों रुपए प्रतिवर्ष खर्च करना पड़ रहा है.
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इन सबके अलावा चमगादड़ की सुनने की क्षमता बहुत ज़्यादा होती है, जिसकी वजह से ये प्राकृतिक आपदा जैसे तूफान, भूकंप आदि के आने पर अपने व्यवहार में परिवर्तन करते हैं, जिससे मनुष्य को भी इन ख़तरों की कई बार समय से पहले जानकारी हो जाती है.
भारत में चमगादड़ पर शोध का अभाव
चमगादड़ भले ही विभिन्न तरीक़े से मनुष्य के लिए लाभदायक हैं, लेकिन भारत में इस पर शोध बहुत ही कम है, जिसकी वजह से अर्थव्यवस्था, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण में इनके योगदान पर वैज्ञानिक ज्ञान का अभाव है. चूंकि चमगादड़ को लेकर समाज में एक नकारात्मक दृष्टिकोण पहले से ही बना हुआ है, जो कि शिक्षण संस्थाओं और शोध संस्थाओं तक में चला गया है, इसलिए इस पर विभिन्न आयाम से शोध करने में भी काफ़ी मुश्किलें आती हैं. ख़ुद मुझे इस विषय पर शोध करने के लिए चार बार राजीव गांधी राष्ट्रीय फेलोशिप से वंचित होना पड़ा था.
चूंकि, अब जंगल तेज़ी से कट रहे हैं, जिसकी वजह से चमगादड़ जैसे तमाम वन्य जीव तेजी से या तो समाप्त हो रहे हैं या फिर मनुष्यों के सम्पर्क में आ रहे हैं. इसलिए कोरोना जैसी तमाम और बीमारियों का ख़तरा बढ़ता जा रहा है. अतः समय रहते भारत सरकार को सचेत हो जाना चाहिए और चिकित्सा के साथ-साथ, वन्य जीवों पर भी शोध को बढ़ावा देना चाहिए.
(लेखक श्रीवेंकटेश्वर यूनिवर्सिटी में जीव विज्ञान के सहायक प्रोफ़ेसर हैं. उन्होंने बाबासाहेब अम्बेडकर विश्वविद्यालय, लखनऊ से चमगादड़ पर पीएचडी की है.)
Insaano kho sirf Apne ichaaye se matlab hain. Iske liye animals birds gods trees inko Bali ka Bakra banadethe hain. Agar kuch na mile tho Insaan bats kho iska dhoshi thaan Liya.
Thank you Dr. Ram Kumar for sharing this very informative article.
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हर्षु और खिल्ली उडा राहुलजी का उन्होने तेरे बाप को 22फरवरी को आगाह कर दिया था 24फरवरी को ट्रंप अमेरिका से गुजरात में लाया था उसके लिए 100करोड़ जनता का पैसा भी खर्चा किया था ।