scorecardresearch
Monday, 23 December, 2024
होममत-विमतराहुल ने रघुराम राजन का जैसा इंटरव्यू लिया वैसा अर्णब गोस्वामी और तबलीगी जमात वालों का लें तो बात बने

राहुल ने रघुराम राजन का जैसा इंटरव्यू लिया वैसा अर्णब गोस्वामी और तबलीगी जमात वालों का लें तो बात बने

राहुल को ऐसे और भी इंटरव्यू लेने चाहिए ताकि लोगों में यह बेहतर समझ बने कि हम किस वक़्त में जी रहे हैं. और उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार उन इंटरव्यू को सुने.

Text Size:

कोरोना महामारी हो या और कोई संकट, जरूरी सवालों के जवाब देने के लिए प्रेस कांफ्रेंस करने से चूंकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तो हमेशा मना करते रहे हैं, लेकिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी के साथ एक ‘वीडियो चैट’ में रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन सरीखे एक्सपर्ट के विचार सुनना बहुत अच्छा लगा. आज के दौर में भारत के लिए आर्थिक मोर्चे पर आगे क्या कुछ होने वाला है, कोरोना महामारी के कारण उभरीं भीषण समस्याओं से निबटने के लिए मोदी सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए, ऐसे मसलों पर राजन के विचारों का वे सभी लोग स्वागत ही करेंगे जो लॉकडाउन बढ़ाए जाने से चिंतित हैं, जिसके चलते भारत की लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था को और खतरा दिख रहा है.

आधे घंटे के इस चैट में आर्थिक प्रश्नों पर दूरदर्शितापूर्ण ज्ञान तो मिला ही, राहुल को राजन का इंटरव्यू करते देखना दो कारणों से भी सुखद लगा.

एक तो इसलिए कि भारत का राजनीतिक तबका इतना अहंकारी है कि वह आम लोगों को चिंतित कर रही समस्याओं पर सार्वजनिक तौर पर किसी से सलाह लेते हुए शायद ही दिखना चाहता है. लेकिन यह इंटरव्यू सर्वज्ञानी होने के तेवर से, जिसे हम सत्ताधारी भाजपा के खेमे में उभरते हुए प्रायः देखते हैं, एकदम हट कर था. जरा कल्पना कीजिए कि जो प्रधानमंत्री किसी सेना में कभी काम करना तो दूर, सेनाओं के मामलों से दूर-दूर तक भी न जुड़ा रहा हो वह वायुसेना को यह सलाह दे कि उसे दुश्मन पर कैसे हमला करना चाहिए, जैसा कि मोदी ने बालाकोट हवाई हमले के समय वायुसेना को ‘बादलों की ओट’ लेने की सलाह देने का दावा किया था.


यह भी पढ़ें: अर्णब गोस्वामी के हमले जारी हैं, राहुल और प्रियंका की ‘बस अब बहुत हुआ’ की प्रतिक्रिया आखिर कब आएगी


राजन का इंटरव्यू इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि कम-से-कम इसके जरिए देश के लोगों को यह अंदाजा मिला कि हमारी अर्थव्यवस्था किस अंधे और गहरे रसातल में जा रही है, और मोदी सरकार हम सबको जोखिम में डालते हुए इस बात को कबूल करने से किस तरह इनकार कर रही है. रोजगार और सरकारी खर्चों के मामले में आगे क्या सामने आने वाला है, इसका ज्ञान एक विश्वप्रसिद्ध अर्थशास्त्री से हासिल करने के बाद भारत के लोग भविष्य के कठिन दिनों के लिए खुद को मानसिक तौर पर तैयार कर सकते हैं. सजग होना खास तौर से इसलिए जरूरी है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी में हैरतअंगेज़ घोषणाएं करने की कुछ विकृत-सी रुझान है, जबकि ऐसी घोषणाएं प्रायः अनर्थकारी ही रही हैं, चाहे वह 2016 में नोटबंदी की घोषणा हो या कोरोनावायरस के कारण देशव्यापी लॉकडाउन की.

और भी इंटरव्यू हो सकते हैं : दरअसल, राहुल को ऐसे और भी इंटरव्यू लेने चाहिए ताकि लोगों में यह बेहतर समझ बने कि हम किस वक़्त में जी रहे हैं. और उम्मीद की जानी चाहिए कि मोदी सरकार उन इंटरव्यू को सुने.

मनमोहन सिंह : हाल में प्रकाशित अपने एक लेख में पूर्व प्रधानमंत्री ने उस बेहद संकरे रास्ते के सबसे अहम पहलू का खुलासा किया जिस पर भारत भारी जोखिम उठाते हुए आगे बढ़ रहा है. उन्होंने लिखा—’भारत सामाजिक विद्वेष, आर्थिक मंदी और वैश्विक महामारी के तिहरे खतरे से रू-ब-रू है… मुझे गहरी चिंता इस बात की है कि इन खतरों का मेल कहीं भारत की आत्मा को कुचलने के साथ-साथ एक आर्थिक व लोकतान्त्रिक शक्ति के तौर पर दुनिया में हमारी छवि को ही न धूमिल कर दे.’

यह आशंका वह शख्स व्यक्त कर रहा है, जो प्रधानमंत्री के तौर पर भारत को एक दशक तक संभाल चुका है (भले ही कुछ लोग उसे ‘रिमोट कंट्रोल’ से चलने वाला कहते रहे हों), जो शख्स भारत सरकार का पांचवां आर्थिक सलाहकार रहा, भारतीय रिजर्व बैंक का 15वां गवर्नर रहा, योजना आयोग का 14वां उपाध्यक्ष, देश का 22वां वित्त मंत्री और कार्म्मिक, जन शिकायत एवं पेंशन मंत्रालय का 16वां मंत्री रहा. वे ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालयों के छात्र रहे और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के अंतरराष्ट्रीय व्यापार विभाग में प्रोफेसर रहे.

वास्तव में वे सब कुछ देख चुके हैं, संभाल चुके हैं. अफसोस की बात तो यह है कि उनकी योग्यताओं का पूरा लाभ नहीं उठाया जा रहा है. भारत को अपनी ज़हीन हस्तियों के मूल्य की पहचान नहीं है. शायद पंजाब के मुख्यमंत्री को इसकी पहचान है, तभी उन्होंने कोरोना संकट के कारण प्रदेश और पूरे देश पर आए वित्तीय संकट के बाद अपने राज्य की अर्थव्यवस्था को उबारने के लिए उनको अपनी सरकार का मार्गदर्शक नियुक्त किया है.

तबलीगी जमात वाले: कांग्रेस पर अक्सर ‘मुस्लिम पार्टी’ का ठप्पा लगाया जाता है कि वह इस समुदाय का तुष्टीकरण करती है. अच्छी बात यह है कि ध्रुवीकरण के इस दौर में पार्टी की इस तरह की घातक छवि के बावजूद राहुल ने इसका प्रतिवाद करने के लिए अपने ‘जनेऊ’ का सहारा नहीं लिया. बल्कि उन्हें तो तबलीगी जमात के उन लोगों का भी इंटरव्यू करना चाहिए, जिन्होंने कोविड-19 के मरीजों के लिए अपने खून का प्लाज्मा दान किया. यह इंटरव्यू जमात के उन लोगों से आम लोगों की पहचान कराएगा जिन पर जानबूझकर कोविड-19 वायरस फैलाने का आरोप लगाया जा रहा है और जो तमाम नफरत का सामना करते हुए प्लाज्मा दान कर रहे हैं. तब यह साफ हो सकेगा कि यह दान उन्होंने अपनी छवि सुधारने के लिए किया या फर्ज़ और परोपकार समझकर?

एक मनोवैज्ञानिक : सिडनी से लौटे पंजाब के 23 वर्षीय एक छात्र ने दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल की सातवीं मंजिल से कूद कर जान दे दी. उसे बुखार और सिरदर्द की शिकायत के कारण अस्पताल में लाया गया था. बाद में पाया गया कि उसे कोविड-19 वायरस का संक्रमण नहीं था. नोएडा में एक 60 वर्षीय बुजुर्ग बीच रात में अचानक जाग जाते हैं और अपने उस पोते का नाम लेकर चीखने लगते हैं, जो यूरोप में कोरोना महामारी से ग्रस्त देश में फंसा हुआ है. ऐसे मामलों के लिए राहुल किसी मनोवैज्ञानिक का इंटरव्यू कर सकते हैं लेकिन उससे वे अवसाद या चिंता आदि के बारे में सवाल न करें क्योंकि पत्रकार कई मनोवैज्ञानिकों से ऐसे सवाल कर चुके हैं.

राहुल तो मनोवैज्ञानिकों से यह जानने की कोशिश कर सकते हैं कि कुछ राजनीतिक नेता अजीबोगरीब तरह का आचरण क्यों करते हैं, कि वे लोगों की आर्थिक समस्याओं से हमेशा इनकार क्यों करते रहते हैं, कि लोगों की मदद करने की स्थिति में होने के बावजूद उन्हें समस्याओं से उबारने के लिए शायद ही कुछ करते हैं, कि वे जरूरी सवालों का सामना क्यों नहीं करते जबकि इनके जवाब से काफी फर्क पड़ सकता है.

अर्णव गोस्वामी: राहुल अगर रिपब्लिक टीवी के होस्ट अर्णव गोस्वामी का इंटरव्यू करें तो वह इस दौर का सबसे ज्यादा देखा गया वीडियो साबित हो सकता है. लेकिन यह बातचीत रिपब्लिक टीवी वाली स्टाइल में हो, जिसमें राहुल की माइक अर्णव की माइक से दोगुना ज्यादा तेज हो, और कांग्रेस नेता को ऐसी सुई लगाई गई हो कि वे अपनी शांत मुद्रा छोड़कर वैसे आवेश में हों जिसमें आकर अर्णव एक ही सवाल बार-बार पूछते रहते हैं जबकि जवाब देने वाला व्यक्ति उस सवाल का जवाब दे चुका होता है. राहुल अर्णव की आवाज़ बंद करने वाले बटन का जी भर के इस्तेमाल कर सकते हैं और उनसे बार-बार यह कहते रह सकते हैं कि ‘देश जानना चाहता है अर्णव…’.


यह भी पढ़ें: जब भारत कोरोनावायरस से जूझ रहा है, मैं प्रधानमंत्री मोदी से ये पांच सवाल पूछना चाहूंगी


कांग्रेस-शासित राज्यों के मुख्यमंत्री: हालांकि राहुल अभी नेतृत्व के उस पद पर नहीं हैं कि वे यह जायजा ले सकें कि उनकी पार्टी के शासन वाले राज्यों में इस महामारी के दौरान कैसा कामकाज किया गया, लेकिन वे सभी कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के साथ एक वीडियो कन्फरेंस कर सकते हैं. इससे लोगों को यह मालूम हो सकेगा कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद पंजाब, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पुडुचेरी और महाराष्ट्र तक में राज्य सरकार आर्थिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए क्या करने वाले हैं.

ऐसी बातचीत भाजपा सरकारों के कामकाज का भी सीधे खुलासा कर सकती है. यह काँग्रेस नेतृत्व के क्षमताओं को लेकर जनता की धारणाओं को भी बदल सकती है, जबकि हर मामले में मोदी और अमित शाह के मुक़ाबले कहीं बेहतर होने के बावजूद हमेशा उस पर संदेह किया जाता रहा है.

(लेखिका एक राजनीतिक विश्लेषक हैं. व्यक्त विचार उनके निजी हैं.)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments

3 टिप्पणी

  1. लगता है की आप मोदी गवर्नमेंट बहुत जल रहें हैं, और दुसरा ए की ए रघुरामराजनने भारतीय विद्यार्थीयों कभी को पढाया है क्या ? की ज्यादा पैसे के लिए विदेश में ही अपना ज्ञान बेच रहे हैं,

Comments are closed.