भारत के नेता अभी भी समाज को सिर्फ दो लिंगों, मर्द और औरत में ही बांटकर देख रहे हैं. जबकि आधुनिक भारत में अन्य लिंगों को भी मान्यता मिल गई है.
औरतों को निम्नतर लिंग समझते हुए नेता भूल जाते हैं कि अलग सेक्सुअलिटी और लिंग के लोग भी कुछ वर्षों में संसद और विधानसभा में पहुंचने वाले हैं. तब भी क्या औरतों को ही निम्नतर समझे जाने की हिमाकत होती रहेगी या फिर सबको बराबरी का हक मिलेगा? इसको समझने के लिए हमें नेताओं के बयानों को देखना होगा.
केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े ने कुछ दिन पहले कहा कि जो हाथ हिंदू लड़कियों को छुयेंगे वो रहने नहीं चाहिए. बिहार के एक भाजपा नेता ने प्रियंका गांधी की राजनीति में एंट्री के बाद कहा कि ‘प्रियंका एक चॉकलेटी फेस हैं.’ कुछ साल पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने एक महिला नेता को ‘टंच’ माल कहा था. कुछ साल पहले ही समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव ने छेड़खानी और रेप के एक मामले पर कहा था कि ‘लड़कों से गलती हो जाती है.’
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देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब उन्होंने एक चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस नेता शशि थरूर के बारे में बोलते हुए उनकी प्रेमिका को ’50 करोड़ की गर्लफ्रेंड’ से संबोधित किया था. दो साल पहले यूपी चुनाव के दौरान भाजपा नेता दयाशंकर सिंह ने उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती को ‘वेश्या’ कहा था.
2019 का लोकसभा चुनाव आनेवाला है. अगर नेताओं के इतिहास को देखें तो प्रतीत होता है कि ऐसे बयान अभी और आयेंगे. ये रुकनेवाला नहीं है. पर प्रश्न ये उठता है कि ये नेता खुद को कितना अधिकारवादी समझते हैं?
अगर स्थिति को ज़रा पलट कर देखें तो ये पुरुषवादी नेता क्या जवाब देंगे?
सुप्रीम कोर्ट ने होमोसेक्सुएलिटी को मान्यता दे दी है. ज़ाहिर सी बात है कि बहुत सारे ‘गे’ भी राजनीति में आयेंगे. एक तरफ चाहे जितना भी हमारे नेता देश को मध्ययुगीन इतिहास में ले जाने की कोशिश कर रहे हों, टेक्नोलॉजी और ग्लोबलाइज़ेशन के सहारे सभ्यता भविष्य में भी जा रही है. उदाहण के लिए अगर कोई गे नेता केंद्रीय मंत्री अनंतकुमार हेगड़े को पसंद कर ले और ये कहे कि वो बस एक चॉकलेटी फेस हैं तो मंत्री जी क्या इस बात को स्वीकार कर पायेंगे?
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आप ज़रा सोचिए कि बयान देने वाला और जिसपर बयान दिया जा रहा है वो पात्र बदल जाये तो क्या होगा. यही नहीं, अगर समर्थन मिला तो गे नेता ये भी कह सकता है कि किसी हिंदू मंत्री या हिंदू लड़के को किसी लड़की ने छुआ तो वो हाथ नहीं रहना चाहिए. तो फिर हेगड़े जी क्या जवाब देंगे? अगर कोई गे नेता एक बड़े व्यापारी को किसी शीर्ष नेता का हज़ार करोड़ का बॉयफ्रेंड बता दे तो वो क्या जवाब देंगे? क्या हमारे माननीय नेता इस बात को स्वीकार कर पायेंगे?
अगर किसी गे पुरुष ने किसी नेता का बलात्कार कर दिया या उनके साथ छेड़खानी कर दी तो क्या मुलायम सिंह यादव कह पायेंगे कि लड़कों से गलती हो जाती है? अगर कोई गे नेता दयाशंकर सिंह को जिगोलो और पुरुष वेश्या कहकर संबोधित करे तो सिंह साहब क्या कहेंगे?
ऐसा तो नहीं है कि राष्ट्रवाद, धर्मवाद और सेक्सुआलिटी इन्हीं नेताओं की बपौती है. अगर मुंह खोलना है और भक्क से बोलना है तो कोई भी बोल सकता है. मर्यादा पुरुषोत्तम राम का नाम लेते हुए हर मर्यादा पार क्यों कर रहे हैं हमारे नेता.
मैंने गे पुरुषों का ही ज़िक्र पहले किया क्योंकि पहले तो ये पुरुष हैं. सेक्सुआलिटी तो बाद में आयेगी. ये बातें एक स्त्री नेता भी कह सकती है. अगर कोई स्त्री नेता अनंतकुमार हेगड़े को चॉकलेटी बताये और डिसमिस कर दे सोचा भी नहीं जा सकता कि भाजपा समर्थकों की क्या प्रतिक्रिया होगी. ये बातें एक दलित नेता भी कह सकता है. पर उस पर कितने जातिगत हमले होंगे, इसका अनुमान नहीं लगाया जा सकता.
हालांकि ये सारी बातें संवैधानिक और मानवीय अधिकारों के खिलाफ हैं. आप किसी के रंग रूप, रेस, जेंडर, सेक्सुआलिटी, धर्म, जाति के आधार पर कमेंट नहीं कर सकते. ये विकास की राजनीति से परे सबके विनाश की राजनीति है. चाहे अनचाहे आप समाज में एक कड़वापन भर देते हैं.
जबकि आपको पता है कि आपकी बातें महज बातों के अलावा कुछ नहीं है. आनेवाली पीढ़ियां इन झांसों में आनेवाली नहीं हैं. पर वर्तमान पीढ़ी से सावधान रहने की ज़रूरत है. ये नहीं समझ पा रहे कि आनेवाला समाज ज़्यादा विस्तृत और विसंगतियों से भरा रहेगा. हाल-फिलहाल तो हमारे नेता हर समुदाय और वर्ग को एक नया हथियार जुटाने में लगे प्रतीत होते हैं.