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Saturday, 16 August, 2025
होममत-विमतनेशनल इंट्रेस्टIAF बनाम PAF की रणनीति: पाकिस्तान आंकड़ों में उलझा रहा, भारत ने जोखिम उठाया और जीता

IAF बनाम PAF की रणनीति: पाकिस्तान आंकड़ों में उलझा रहा, भारत ने जोखिम उठाया और जीता

अब जबकि मई की 87 घंटे लंबी जंग में IAF और PAF दोनों ने एक-दूसरे के विमान गिराने का औपचारिक दावा किया है, तो बड़ा सवाल यह उठता है: क्या ऐसे आंकड़े वाकई मायने रखते हैं?

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अब जबकि भारतीय वायुसेना (IAF) और पाकिस्तानी वायुसेना (PAF) ने मई महीने में 87 घंटे की मुख्यतः हवाई लड़ाई में एक-दूसरे के मार गिराए गए विमानों की संख्या के अपने-अपने औपचारिक दावे पेश कर दिए हैं, तब हम कुछ व्यापक मसलों पर चर्चा कर सकते हैं. क्या इन संख्याओं का वास्तव में कोई महत्व है भी? इनका क्या महत्व है?

मैं इस पहेली की शुरुआत इस सवाल के साथ कर सकता हूं कि युद्ध में अगर पक्ष के 13 लड़ाकू विमान गिरा दिए गए और दूसरे के सिर्फ 5 विमान गिराए गए, तो जीत किसकी हुई?

भारत-पाकिस्तान के बीच सारे युद्ध और संघर्ष छोटी अवधि के रहे हैं. सबसे लंबी लड़ाई 22 दिन की चली थी, 1965 में. ऑपरेशन सिंदूर महज तीन दिन तक चला. जिस भी लड़ाई में हार मान लेने या सामूहिक आत्मसमर्पण जैसा निर्णायक नतीजा नहीं निकलता, उसमें दोनों पक्षों द्वारा अपनी-अपनी जीत के दावे करने की गुंजाइश रहती है.

वैसे, कुछ मामलों को लेकर नजरिया साफ रहा है. हम भारतीय लोग यह मानते हैं कि हमने हर छोटी-बड़ी लड़ाई जीती है, लेकिन हम यह कबूल करते हैं कि 1962 में हम चीन से हार गए थे. इसी तरह पाकिस्तान वाले यह कबूल करते हैं कि 1971 में उनकी हार हुई थी. पूर्वी सेक्टर में उनकी हार के साथ हथियार डालने वाले 93,000 सैनिकों को युद्धबंदी भी बनाया गया था.

Pakistan's Lt Gen AAK Niazi signing Instrument of Surrender on 16 December 1971; sitting next to him is India's Lt Gen Jagjit Singh Aurora | Commons
16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के लेफ्टिनेंट जनरल एएके नियाज़ी आत्मसमर्पण के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करते हुए; उनके बगल में भारत के लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा बैठे हैं | कॉमन्स

अब आप पूछिए कि 1971 में किसकी वायुसेना के कितने विमान पूर्वी सेक्टर में मार गिराए गए?

प्रतिद्वंद्वी इतिहासकारों ने भी संख्याओं का विमानों के टेल नंबरों और पाइलट के नामों के साथ संख्या का खुलासा कर दिया है कि भारत को 13 और पाकिस्तान को 5 विमान गंवाने पड़े थे. ये नुकसान लड़ाई में हुए थे, किसी हादसे के कारण नहीं, या युद्ध के पांचवें दिन PAF के पायलट 11 सेबर विमानों को छोड़कर एक असैनिक परिवहन साधन का इस्तेमाल करते हुए बर्मा भाग गए थे.

यह भी हमें उस पहेलीनुमा सवाल के सामने ला खड़ा करता है कि 13 बनाम 5 के आंकड़े के हिसाब से IAF ने जब पूर्वी सेक्टर में PAF के मुकाबले करीब तीन गुना ज्यादा विमान गंवाए, तो लड़ाई जीता कौन?

क्या यह अब भी कोई सवाल है?

और IAF ने 13 विमान कैसे गंवाए? दो विमान हवाई युद्ध में गंवाए, जैसे पीएएफ ने 5 विमान गंवाए. बाकी विमान जमीन से छोटे हथियारों द्वारा निशाना बनाकर मर गिराए गए. यहां भी सवाल उठाया जा सकता है, क्योंकि हमने अभी बताया कि PAF के पायलट अपना विमान छोड़कर भाग गए थे.

IAF के लिए युद्ध पीएएफ की हर के साथ समाप्त नहीं हो गया था. वह जीत को जल्दी से पक्की करने और कम से कम सैनिकों के हताहत होने के लिए जमीनी सेना की सहायता में जुट गया. गिराए गए 13 में से 11 विमान नीची उड़ान भरते हुए जमीनी हमले के शिकार हुए. दोनों देशों की वायुसेनाओं में यही मूल अंतर है. एक वायुसेना सुरक्षात्मक हवाई युद्ध पर ज़ोर देती है, तो दूसरी व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के हिस्से के रूप में पूर्ण आक्रामक कार्रवाई पर ज़ोर देती है. जैसा कि एयर मार्शल ए.के. भारती ने एक प्रेस वार्ता में कहा, युद्ध में नुकसान तो होता ही है. PAF आंकड़ों पर ज़ोर देती है, IAF नतीजे पर ज़ोर देती है.

PAF और पाकिस्तानी जनमत के लिए सिर्फ यह महत्वपूर्ण है कि उसने कितने विमान मार गिराए. इसलिए आश्चर्य नहीं कि ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान में हुए एक जनमत सर्वे ने यह जाहिर किया कि 96 फीसदी पाकिस्तानी यह मानते हैं कि ‘वार’ उन्होंने जीत ली है. लोगों के जोश का यह हाल है कि पाकिस्तानी लोग जबकि यह मान रहे हैं कि उनकी वायुसेना ने उन्हें ‘वार’ में जीत दिलाई है, उसके आर्मी-चीफ को हास्यास्पद रूप से पांचवें स्टार से सुशोभित कर दिया गया है. कार्यकाल बढ़ाए जाने के कारण उसकी वायुसेना के चीफ जिनका कार्यकाल पहले ही बढ़ाया जा चुका था, उसे उसी पद पर अनिश्चित काल के लिए बढ़ाकर उन्हें सांत्वना पुरस्कार दिया गया है. अब आप नौसेना चीफ के लिए सहानुभूति महसूस कर रहे होंगे.

यह दोनों वायुसेनाओं में मूल सैद्धांतिक अंतर को उजागर करता है. PAF एक ‘सुपर डिफ़ेंसिव’ बॉक्सर जैसी है, जो दस्तानों के बीच अपना चेहरा छिपाए प्रतिद्वंद्वी बॉक्सर के हमले का इंतजार करता चहलकदमी करता रहता है कि कब मौका मिले और वह घूंसा जमाए. इसके विपरीत आइएएफ ऐसे बॉक्सर की तरह है जो कुछ घूंसे खाने की परवाह न करते हुए प्रतिद्वंद्वी पर टूट पड़ने के सिद्धांत पर चलता है. पीएएफ अगर जोखिम से बचने में यकीन करती है, तो आइएएफ जोखिम उठाने में. और यह वह शुरू में अक्सर कुछ नुकसान उठाकर अपने प्रशंसकों को निराश करने की कीमत पर भी करती है. लेकिन अंततः भारत की ही जीत होती है. एअर मार्शल भारती ने बड़ी शांति यह कहकर इस सोच को रेखांकित किया कि युद्ध में नुकसान तो उठाना ही पड़ता है.

Lashkar-e-Taiba HQ at Muridke struck by Indian armed forces during Op Sindoor | Courtesy: PIB
ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा मुरीदके स्थित लश्कर-ए-तैयबा मुख्यालय पर हमला | सौजन्य: पीआईबी

ऑपरेशन सिंदूर के बाद यह गौर की जाने वाली महत्वपूर्ण बात है. इतिहास बताता है कि PAF अपने प्रदर्शन को हवाई जंग में हासिल किए गए अपने ‘स्कोर’ के आधार पर आंकती रही है, चाहे जंग का जो भी नतीजा निकला हो. उसका सोच सीमित है, IAF के खिलाफ ऐसी रक्षात्मक लड़ाई लड़ो कि उसे ज्यादा नुकसान हो. इतिहास बताता है कि उसका अपना लक्ष्य सीमित रहा है, जबकि बड़ा लक्ष्य प्रायः ओझल होता रहा है.

लंबी हो या सीमित हो, कोई भी जंग हो कोई भी वायुसेना या थलसेना या नौसेना केवल अपने दुश्मन वायुसेना या थलसेना या नौसेना से ही नहीं लड़ती. मुख्य बात यह होती है कि आपके राष्ट्र के लक्ष्य क्या हैं, और क्या आपने उन्हें हासिल करने के लिए सेनाओं को सक्षम बनाया?

भारत के ऑपरेशन सिंदूर के तीन लक्ष्य थे. एक, लाहोर के पास मुरीदके में लश्कर-ए-तय्यबा के कुख्यात मुख्यालय और बहावलपुर में जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को नेस्तनाबूद करना. दूसरे, पाकिस्तानी सेना की ओर से किसी जवाबी हमले को रोकना और अपनी रक्षा करना. और तीसरे, अगर पाकिस्तान डटा रहता है तो उसे प्रदर्शनीय जवाब देना. आइएएफ ने तीनों लक्ष्यों को पूरा किया. जैसा कि सेना के कई आला अधिकारियों ने कहा, शुरू में कुछ नुकसान उठाना पड़ा. पहले और तीसरे लक्ष्यों के मामले में साफ-साफ तस्वीरें और स्थानीय वीडियो प्रमाण के रूप में उसके पास उपलब्ध हैं.

Cover of Fiza’ya: Psyche of the Pakistan Air Force (1991)
फ़िज़ा’या: पाकिस्तान वायु सेना का मानस (1991) का आवरण

PAF की मानसिकता इसी तरह बनती गई है. अगर आप उसकी प्रेस वार्ताओं को देखते रहे हों तो आपने गौर किया होगा कि ‘मौके के हालात की जानकारी’ उसका पसंदीदा मुहावरा होता है. इसलिए वह हवाई जंग के बारे में अपने दावे करती रही है. लेकिन बड़ी तस्वीर यह है कि 15 दिन पहले दी गई चेतावनी के बावजूद वह उन ठिकानों की रक्षा करन में विफल रही जिन्हें IAF ने निशाना बनाया. IAF को रोकना तो दूर, वह उसके हमलों में खलल भी नहीं डाल सकी.

8 मई को हारोप/हार्पी ड्रोनों के हमलों से कई अहम एअर डिफेंस तथा ‘एसएएम’ सिस्टम्स की रक्षा करने में भी विफल रही. उसकी एयर डिफेंस सिस्टम जोखिम से बचाव के लिए स्विच-ऑफ थी इसलिए 10 मई को मानो वह बंकर में सो रही थी. IAF के विमान सिंधु नदी के पूरब और उसके पार पूरे देश में जबकि पीएएफ के ठिकानों, एअर डिफेंस के स्थलों और अहम हथियारों के भंडारों पर मिसाइलों से हमले कर रहे थे, PAF उन्हें चुनौती तक देने के लिए कभी आगे नहीं आई. आप निश्चित मान सकते हैं कि अगर ये हमले एक दिन और जारी रहते तो सिंधु के पश्चिम में उसके सभी अड्डे निशाने पर आ जाते. PAF मुक़ाबले में कहीं नहीं थी.

वास्तव में, वह तभी हमलावर दिखी जब दो JF-17 विमानों ने आदमपुर में एस-400 रेडार को निशाना बनाने के लिए चीनी CM-400AKG एंटीरेडिएशन मिसाइलें दागी. यह बड़ा हमला था लेकिन आइएएफ ने उसे नाकाम कर दिया. कोई अधिक साहसी, आक्रामक और जोखिम पसंद वायुसेना ने सुरक्षा कवच को भेदने के लिए एक साथ कई विमानों से कई हमले किए होते. लेकिन जोखिम लेना पीएएफ की फितरत नहीं है.

भारतीय सैन्य विमानन के इतिहासकार और विश्लेषक पुष्पिंदर सिंह चोपड़ा, रवि रिख्ये और विमानन फोटोग्राफर पीटर स्टीनमैन ने इस अनूठी मानसिकता के बारे में अपनी 1991 की किताब ‘फ़िजाया : साइके ऑफ द पाकिस्तानी एयर फोर्स’ विस्तार से लिखा है. उन्होंने लिखा है कि पीएएफ की मानसिकता बलवान IAF से अकेले भिड़ने वाले निर्बल वाली है. मैं कहूंगा कि यह मानसिकता व्यापक तस्वीर और उसके अपने ही पसंदीदा जुमले ‘मौके के हालात की जानकारी’ से बिलकुल बेखबर दिखती है.

PAF के प्रति हमदर्द यह किताब अब बिक्री के लिए उपलब्ध नहीं है. रक्षा मामलों पर लिखने वाले और मेरे जैसे नौसिखुए अपने ज्ञान के लिए जिन पुष्पिंदर उर्फ पुषी के अविश्वसनीय रूप से आभारी हैं, उनका 2021 में निधन हो गया. मैं उनके पुत्र विक्रमजीत का शुक्रगुजार हूं कि उन्होंने उनकी किताब की अंतिम बची हुई प्रति मुझे पढ़ने के लिए दी. पुष्पिंदर इस किताब की अगली कड़ी पर काम कर रहे थे. विक्रमजीत बताते हैं कि वे इसे कुछ हफ्तों में ही प्रकाशित करवाएंगे, जिसमें ऑपरेशन सिंदूर पर भी एक अध्याय जोड़ा जाएगा.

Targets including PAF bases struck during Op Sindoor, 87-hour war | Courtesy: X / @detresfa_
ऑपरेशन सिंदूर, 87 घंटे के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना के ठिकानों सहित कई ठिकानों पर हमला | सौजन्य: X / @detresfa_

इसके लेखकों का कहना है कि पीएएफ की मानसिकता उसके अपने आकार की सीमाओं और मार गिराए गए प्रतिद्वंद्वी के विमानों की संख्या को अपनी सफलता का एकमात्र पैमाना मानने के अपने सोच से बनी है. इसके अलावा वह काल्पनिक अंतिम जंग के लिए भी अपनी ताकत बचाए रखना चाहती है. इसका अर्थ यह हुआ कि पीएएफ आइएएफ से एक ही पहलू में मुक़ाबला करती है और व्यापक राष्ट्रीय प्रयास के हाशिये पर बनी रहती है. मुल्क भले ही जंग हार जाए, पीएएफ अपनी जीत का दावा कर सकती है क्योंकि उसने “ज्यादा विमान मार गिराए”. यह प्रवृत्ति हम 1965 और 1971 की लड़ाइयों में और इनके बाद भी बालाकोट कांड के बाद भी देख चुके हैं.

ऑपरेशन सिंदूर ने एक के बाद एक, दो बातों को रेखांकित किया है. पहली यह कि भारत और पाकिस्तान के बीच जंग छोटी ही होगी, शायद 87 घंटे से भी कम की. इसमें एयर पावर की केंद्रीय भूमिका होगी. किसके कितने और कौन-से विमान मार गिराए गए, यह हिसाब-किताब 1950 के दशक की मिलिटरी कॉमिक बुक वाली मानसिकता ही दर्शाती है. दूसरी बात यह है कि आपने अपने राष्ट्रीय प्रयास में क्या योगदान दिया.

दूसरी बात के पक्ष में, PAF ने अपने दावों की पुष्टि के लिए तीन महिनी बाद भी कोई सबूत या तस्वीर नहीं पेश की है. व्यावसायिक उपग्रहों की नजर से जबकि कोई चीज छिपी नहीं है, तब यह चूक अक्षम्य है. आखिर पक्षपाती पाकिस्तानी निगाहों से एक भी तस्वीर नहीं बच सकती, चाहे वह कितनी भी छेड़छाड़ के साथ क्यों न बनाई गई हो.

फिर भी, पाकिस्तान जीत का जश्न मना रहा है. उसकी मुख्यधारा और सोशल मीडिया, सभी दलों के नेता, और बेशक सभी सेवारत व पूर्व सेना अधिकारी शानदार जीत की घोषणा कर रहे हैं. कुछ तो फूलती सांसों के साथ यह दावा कर रहे हैं कि 1971 का बदला ले लिया गया है, और वे खुद को प्रोमोशन, तमगे और सम्मान से सुशोभित कर रहे हैं. पाकिस्तान में यह धारणा व्यापक रूप से फैली हुई है, जबकि तथ्य यह है कि उसका ऑपरेशन ‘बुन्यान अल-मरसूस’ जब नाकाम हो गया तब सिंधु नदी के पूरब और कुछ पश्चिमी हिस्से में स्थित सभी आत्मप्रशंसित हवाई अड्डे आइएएफ के जवाबी हमले में ध्वस्त हो गए.

जैसी कि PAF के प्रवक्ता ने पुष्टि की, भारत की सभी मिसाइलें हवा से दागी गईं. IAF ने PAF के बहुप्रशंसित आत्मप्रशंसित हवाई अड्डों को बड़े आराम से निशाना बनाकर हमले किए. उसने कभी अपने अड्डों का बचाव नहीं किया क्योंकि वह नुकसान का जोखिम नहीं मोल लेना चाहती थी, खासकर इसलिए कि उसकी एयर डिफेंस सिस्टम को निष्क्रिय या खामोश कर दिया गया था. 6/7 मई की रात से जब आइएएफ ने युद्ध के काफी सीमित नियमों का पालन शुरू किया और उसे पाकिस्तानी एअर डिफेंस को कमजोर करने की छूट नहीं दी गई तब तस्वीर काफी बदल गई.

Ground and air situation map of Op Grand Slam – 1 to 3 September 1965 | By special arrangement
ऑपरेशन ग्रैंड स्लैम का ज़मीनी और हवाई स्थिति मानचित्र – 1 से 3 सितंबर 1965 | विशेष व्यवस्था द्वारा

इस सैद्धांतिक अंतर के कई उदाहरण हैं, इनका एक इतिहास है और इसके पीछे एक मानसिकता भी है. पाकिस्तानी जनमत PAF को भाले की नोंक के रूप में देखता रहा है, हालांकि इस उपमहादेश में हुई लड़ाइयों में उसकी भूमिका मामूली रही है. मैं तो कहूंगा कि उसकी भूमिका ‘आईटम नंबर’ वाली भूमिका से अलग नहीं रही है. इसकी वजह भी है, जो आंकड़ों में निहित है.

आगे मैं तथ्य आधारित कुछ बातें कहूंगा और आंकड़े दूंगा, जो पूर्वाग्रहग्रस्त भारतीयों को नाराज करेंगे और PAF के प्रशंसकों को खुश कर देंगे. इसके बाद मैं तथ्य आधारित और तार्किक विश्लेषण प्रस्तुत करूंगा कि पूर्वाग्रहग्रस्त पाकिस्तानी इन आंकड़ों से खुश तो हो रहे होंगे लेकिन वास्तव में यह एक लंबी दर्द भरी कहानी है. यह बात मैं डीजी-ISPR से उधार लेकर कह रहा हूं जिन्होंने शुरुआती हमलों के बाद भारत को धमकाया था कि “आपकी खुशी जल्दी ही लंबे दर्द में तब्दील हो जाएगी.” यह बयान मैं पाकिस्तानियों को संबोधित कर रहा हूं.

आईए हम इतिहास पर नजर डालें कि हमारी जो हवाई लड़ाइयां हुईं उनके आंकड़े क्या कहते हैं. हर लड़ाई में भारत पाकिस्तान की तुलना में अपने कहीं ज्यादा विमान गंवाता रहा. दोनों तरफ के इतिहासकारों ने यूनिट, टाइप, टेल नंबर, चालक दल के नामों, स्थान, और युद्धबंदी बनाए गए चालक दल आदि की कुल संख्याओं के आधार पर सूची तैयार करें तो यह ब्योरा सामने आएगा : 1965 में भारत ने 52 और पाकिस्तान ने 20 विमान गंवाए; 1971 में भारत ने 62 और पाकिस्तान ने 37 विमान गंवाए. ये शुद्ध रूप से युद्ध में हुए नुकसान हैं, जब दुश्मन वायुसेना ने हवा में या जमीन पर विमानों को नष्ट किया. PAF ने जो 11 सैब्रे विमान गंवाए और ढाका में उसने अपने जिन दो टी-33 विमानों को त्याग दिया या नष्ट कर दिया, उन सबको भी जोड़ लें तब भी IAF को हुआ नुकसान काफी बड़ा है. करगिल में आइएएफ को कंधे से दागी गईं पाकिस्तानी मिसाइलों के कारण अपने तीन विमान गंवाने पड़े. पीएएफ ने हवाई जंग नहीं की. वह भारत के एक पाइलट को बंदी बनाकर ही खुश होता रहा. इन लड़ाइयों में जीत किसकी हुई?

पाकिस्तान भारत से हर लड़ाई हारा. मुझे मालूम है कि पाकिस्तानी लोग यही मानते हैं कि 1965 में जीत उनकी हुई थी. मैं इसी व्यापक मत का हूं कि उस जंग का कोई फैसला नहीं हुआ था (‘मेरा कॉलम ‘नेशनल इंटरेस्ट’, 10 जुलाई 2015 : ‘’वार ऑफ म्यूचुअल इनकंपीटेंस’). वैसे, पाकिस्तान वह जंग हार गया था, क्योंकि उसने ही काफी लंबी योजना बनाने के बाद लड़ाई शुरू की थी. और उसका एक लक्ष्य था. ‘नाटो’ के काफी बेहतर हथियारों, और ट्रेनिंग के साथ उसने जंग शुरू की थी, जब भारतीय सेना 1962 की लड़ाई में मिले सदमे के बाद भारी बदलाव कर रही थी. पाकिस्तान का यह सोचना लाजिमी था कि कश्मीर को जीतने का यही सबसे अच्छा मौका है. यह उसके लिए अंतिम मौका भी था, जिसे उसने गंवा दिया.

हर साल 6 सितंबर को 1965 की जंग में कथित जीत का जश्न ‘डिफेंस ऑफ पाकिस्तान डे’ के रूप में मनाते हैं. इसमें PAF का एकआयामी तत्व भी शामिल है क्योंकि उनका मानना है कि उस दिन उन्होंने सरगोधा पर IAF के कई जोरदार हमलों को नाकाम कर दिया था और कई विमानों को मार गिराया था. उनकी दंतकथा इतनी दिलचस्प है और उनकी भावनाएं इतनी गहरी हैं कि तार्किक सोच वाले कई पाकिस्तानी भी पूछ बैठते हैं कि पीएएफ अगर इतनी ही मजबूत थी तो पाकिस्तान ने जंग कैसे नहीं जीती? यह एक अच्छा सवाल है.

ठोस हकीकत यह है कि 6 सितंबर वह तारीख है जब पाकिस्तान जंग हार गया था. बड़ी शान के साथ उसने कश्मीर को एक-दो झटके में जीतने के लिए जो ‘ऑपरेशन जिब्राल्टर’ और फिर ‘ग्रांड स्लेम’ का तूफान खड़ा किया था वह सब नाकाम रहा. भूमिकाएं उलट गईं, लक्ष्य खो गया. इसके बाद यह पूरी सीमारेखा पर पाकिस्तान की रक्षा करने की जंग में तब्दील हो गई. हवाई मोर्चे पर भी यही हाल था. इसलिए इसे ‘डिफेंस ऑफ पाकिस्तान डे’ कहा जाता है. लेकिन आपको मालूम है कि पाकिस्तानी जनमत क्या कहती है. यह कि नतीजा जो भी रहा हो, PAF ने शानदार लड़ाई लड़ी. यह मान्यता गहरे पैठी हुई है.

क्या ऐसी कोई बड़ी जंग हुई, जिसमें पीएएफ ने समीकरण को बदल दिया हो? दोनों देशों के बीच युद्ध के बारे में लिखा गया लगभग सब कुछ मैं पढ़ चुका हूं. बहुत खींचतान कर देखें तो एकमात्र उदाहरण वह है जब पीएएफ ने लाहौर सेक्टर में भारतीय सेना के 15 डिवीजन के आगे बढ़ने की रफ्तार को धीमा कर दिया था और अपनी सेना को अपनी ताकत मजबूत करने का मौका जुटाया था. 15 डिवीजन के कहानी भारत में अलग तरह से दर्ज है. 1965 की लड़ाई में दोनों पक्ष की जो अकुशलता सामने आई थी उसमें यह भी एक वजह थी.

PAF का इतना ही दबदबा था तो उसे असल उत्तर/खेमकरण सेक्टर में बुरी तरह पिटे बख्तरबंद वाहनों की शान की रक्षा करने में इतने नाटकीय रूप से नाकाम नहीं होना चाहिए था. हकीकत यह है कि 6 सितंबर को पीएएफ ने आदमपुर और हलवाड़ा में हमलों में अपने तीन सैब्रे विमान गंवाने के बाद आइएएफ के अड्डों पर दिन में कभी हमला करने की हिम्मत नहीं की. बॉक्सर मानो रिंग की घेराबंदी करने वाली रस्सी पर झूल रहा था और यह इंतजार कर रहा था कि IAF उसके हवाई क्षेत्र में अंदर ताक घुस आए और वह अपने घर में होने का फायदा उठा ले, और पीछा करते हुए ‘शिकार’ कर ले.

हलवारा हवाई अड्डे पर भारतीय वायुसेना के हंटर्स | विशेष व्यवस्था द्वारा

1971 के युद्ध के ब्योरे बेहतर तरीके से दर्ज हैं और इस पर कोई विवाद नहीं है कि उसमें जीत किसकी हुई थी. क्या पीएएफ इसलिए अपनी जीत का दावा कर सकती है कि एक्शन में उसे कम विमानों का नुकसान उठाना पड़ा? ईमानदारी से गौर करें तो पाकिस्तान के लोग यह सवाल उठा सकते हैं कि अपने बचाव की खातिर पीछे ही टिके रहने की जगह उसने अपने विमानों को लड़ने के लिए रवाना किया होता तो क्या उसने राष्ट्रीय प्रयासों में ज्यादा योगदान नहीं किया होता? एक भी ऐसा उदाहरण नहीं मिलता है जब पीएएफ ने किसी जंग का संतुलन बदल दिया हो. बल्कि उसने तो थलसेना और नौसेना को अपने हाल पर छोड़ कर अपनी इसी छवि को पुष्ट किया कि वह तो सिर्फ अपने लिए लड़ती है, और प्रायः सिर्फ अपने ही हवाई क्षेत्र में लड़ती है. वैसे, वह हवाई सुरक्षा के लिए काफी अच्छी तरह से लड़ती है. वह इसी सीमित भूमिका के लिए ही बनी है.

उस युद्ध में उसकी नाकामी ने पंगु बना दिया. IAF के हंटर चार दिनों तक दिन में भी कई बार बिना किसी चुनौती के कराची तक पहुंचते रहे और तेल के भंडारों को आग के हवाले करते रहे. केनबरा विमानों ने यही काम रातों में किया. IAF ने लगभग अपने बूते ही लोंगोवाला की लड़ाई जीती और एक आर्मर्ड ब्रिगेड को ध्वस्त कर दिया था. अगर PAF के दो लड़ाकू विमान भी ऊपर नजर आते तो उस लड़ाई का इतिहास कुछ और ही होता. IAF के पास केवल चार हंटर थे, जो जैसलमर के अग्रिम मोर्चे से न्यूनतम इन्फ्रास्ट्रक्चर के सहारे के बूते दो विमानों की रिले दौड़ लगा रहे थे.

Archived photos of targets including PAF aircraft struck during 1971 war | Courtesy: Indian Air Force
1971 के युद्ध के दौरान पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों सहित लक्ष्यों की संग्रहीत तस्वीरें | सौजन्य: भारतीय वायु सेना

तीन उदाहरणों वाले नियम को पूरा करते हुए बता दें कि पाकिस्तानी फौज जब फाजिल्का में जीत के करीब पहुंच गई थी और भारत इतने संकट में था कि उसने अपने 67 ब्रिगेड कमांडर को बदल दिया था, तब पीएएफ वहां से लगभग गायब थी. तीनों मामलों में उसके पास युद्ध को पलटने और नया इतिहास रचने का मौका था लेकिन उसने जो किया वह सिद्धांत सम्मत नहीं था.

उससे जंग में, IAF को पंजाब के फाजिल्का और सुलेमंकी सेक्टरों में जमीन से छोटे हथियारों की मार के कारण भारी नुकसान उठाना पड़ा था, जब उसने भारतीय सेना की घिरी हुईं टुकड़ियों के लिए समय उपलब्ध कराने की कोशिश की थी. उसने बड़े मकसद की खातिर नुकसान को कबूल किया. युद्ध में IAF को जिन 62 विमानों का नुकसान हुआ उनमें से 17 (सबसे बड़ी संख्या) बड़े आकार वाले और नीची उड़ान भरने वाले एसयू-7 विमान थे जो छोटे हथियारों के निशाने पर आ गए थे. धीमी गति वाले पांच ‘मिस्टेरेस’ भी इससे भूमिका में थे. आइएएफ कतई नहीं हिचकी क्योंकि उनके सामने एक मिशन था. वह जोड़-तोड़ करने में नहीं लगी.

Cover of Pakistan Air Force in the 1971 war, In The Ring And On Its Feet (2018)
1971 के युद्ध में पाकिस्तानी वायु सेना का कवर, इन द रिंग एंड ऑन इट्स फीट (2018)

इसके विपरीत, PAF हमेशा नुकसान और मौतों के बारे में सोचती रही. यह नकारात्मक सुरक्षा है. यह आपके जोखिमों को कम करती है और डींगें हांकने के मौके देती है. और आपके फैन बड़ी तस्वीर से बेखबर रहते हैं.

IAF इसके ठीक उलट है. वह आक्रामक, जोखिम उठाने वाली है और दुश्मन के इलाके में जाकर लड़ती है. दोनों पक्ष जिन आंकड़ों को प्रायः कबूल करते हैं वे बताते हैं कि 1965 में हवाई जंग या जमीनी हमले के कारण जो विमान हवा में खो गए उनमें IAF ने अपने इलाके में जितने विमान गंवाए उनसे चार गुना ज्यादा विमान पाकिस्तानी इलाके में गंवाए.

1971 में यह अनुपात 5:1 का था क्योंकि जंग के पहले दिन के बाद PAF ने कभी दिन में उन इलाकों में 50 किमी से ज्यादा अंदर आकर हमला नहीं किया जो इलाके भारतीय सेना की सुरक्षा में थे. वह सुरक्षा देने के लिए प्रायः अपने अड्डे पर बैठी रहती थी. कराची को कभी असुरक्षित नहीं छोड़ना था.

IAF को जो भी नुकसान हुआ वह पाकिस्तान नियंत्रित हवाई क्षेत्र में ही हुआ. आइएएफ को अपने इलाके में केवल फ्लाइंग अफसर निर्मलजीत सिंह शेखों को गंवाना पड़ा था क्योंकि वे पाकिस्तान के छह सैब्रे विमानों से अकेले भिड़ गए थे. उन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. पीएएफ के इतिहासकार, एयर कमोडोर (रिटायर्ड) क़ैसर तुफ़ैल ने उस अकेले योद्धा की लड़ाई का विवरण अपने ब्लॉग में ‘ए हार्ड नट टु क्रैक’ शीर्षक के अंतर्गत दिया है. इसी तरह, चूंकि PAF सुरक्षा की खातिर अपने घर में ही बैठी रहती थी, उसे ज़्यादातर नुकसान अपने ही हवाई क्षेत्र में उठाना पड़ा.

Banner headline from 5 December 1971 edition of Dawn claiming PAF downed 120 IAF aircraft
5 दिसंबर 1971 के डॉन संस्करण की बैनर हेडलाइन में दावा किया गया कि PAF ने 120 IAF विमान मार गिराए

1971 की लड़ाई के हमारे आधिकारिक इतिहास को कभी औपचारिक तौर पर जारी नहीं किया गया. लेकिन इसे ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ को लीक किया गया और इसे आप ‘भारत रक्षक’ वेबसाइट पर पूरा पढ़ सकते हैं. उस जंग के अंत में पीएफ पर एक खंड का समापन इस वाक्य से किया गया है : ‘इन द रिंग ऐंड ऑन इट्स फीट’ (मुक्केबाजी के रिंग मैं अपने पैरों पर). यह इतना माकूल था कि क़ैसर तुफ़ैल ने इसे 1971 की जंग के पीएएफ के संस्करण पर लिखी अपनी किताब का शीर्षक बना डाला. निष्कर्ष यह है कि आइएएफ तो हावी थी ही, 13 दिनों बाद युद्ध रुका तब पीएएफ में भी आगे भी युद्ध लड़ने की ताकत शेष बची हुई थी.

हवा में जंग काफी ध्यान आकर्षित तो करता है लेकिन उस जोश में एयर पावर के बड़े आयामों पर नजर नहीं पड़ती. किसने कितने विमान गिराए, इससे ज्यादा महत्वपूर्ण यह होता है कि युद्ध के व्यापक राष्ट्रीय प्रयास में एयर पावर की क्या भूमिका रही. जो भी हो, अगर आप केवल जोड़तोड़ में लगे रहेंगे तब आप मनमर्जी अतिशयोक्ति कर सकते हैं. 1971 में युद्ध के तीसरे दिन तक पाकिस्तान ने 120 भारतीय विमानों को मार गिराने का दावा कर दिया था. मैं आपके लिए पाकिस्तानी अखबार ‘डॉन’ के 5 दिसंबर संस्करण का बैनर हेडलाइन प्रस्तुत कर रहा हूं.

हमारे दोनों बड़े युद्धों में PAF हालांकि कुछ समय तक मौजूद रही लेकिन उसने कोई उल्लेखनीय असर नहीं डाला था कि उसके अपने इतिहासकार भी उसका कोई संज्ञान ले सकें. हवाई दबदबे के उसके दावे उसके अपने हवाई क्षेत्र में ही सिमटे रहे. और कोई भी सैन्य इतिहासकार यही कहेगा कि इसे कोई दबदबा नहीं माना जाएगा.

सेनाएं रूढिपंथी होती हैं और पीढ़ियों तक निश्चित सिद्धांतों से शायद ही डिगती हैं. यह हमने ऑपरेशन सिंदूर में PAF के मामले में भी देखा. IAF ने जब उस पर एक बार दबाव बनाया तब उसने लड़ाई को टालने के अपने पुराने तरीके को अपना लिया.

इसका नतीजा यह है कि पीएएफ कुछ विमानों को मार गिराने के अपने बचकाने सोच से संतुष्ट हो लेती है और आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करके युद्ध के अंत को लेकर अकेले में जश्न मनाती है. आइएएफ हमेशा जीतती रही है. मैं तथ्यों की खोज के लिए उसके इतिहास को खंगालता रहा और ऑपरेशन सिंदूर के बाद उछाले जा रहे तर्कों को निष्पक्ष, व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखने की कोशिश की है.

पोस्ट स्क्रिप्ट: अगर आप मसले की गहराई में जाना चाहते हैं तो यहां मैं उन किताबों की सूची दे रहा हूं जिन्हें मैंने पढ़ा है. मैंने प्रतिद्वंद्वी आंकड़ों को हासिल करने के लिए दोनों पक्ष के गंभीर इतिहासकारों के दावों पर गहराई से ध्यान डिया है. हवाई प्रदर्शनों के बारे में अतिशयोक्ति करना चूंकि पीएएफ की मानसिकता में पैठा हुआ है इसलिए मुमकिन है कि उनके आंकड़े मेरी ओर से पेश आंकड़ों से ‘बेहतर’ हों. फिर भी, इससे मेरे तर्कों को ही मजबूती मिलेगी. वे तो युद्ध हारे हुए पक्ष के हैं.

Cover of Eagles Over Bangladesh (2013)

ईगल्स ओवर बांग्लादेश (2013) का कवर

IAF's combat related losses in 1971 war
1971 के युद्ध में भारतीय वायुसेना की युद्ध संबंधी क्षति
IAF's non-combat related losses in 1971 war
1971 के युद्ध में भारतीय वायुसेना की गैर-युद्ध संबंधी क्षति
PAF losses in 1971 war
1971 के युद्ध में PAF की क्षति
Inventory of aircraft abandoned by PAF in Dhaka (then Dacca)
ढाका (तत्कालीन ढाका) में PAF द्वारा छोड़े गए विमानों की सूची
Cover of military historians PVS Jagan Mohan and Samir Chopra's 2005 book The India-Pakistan Air War of 1965
सैन्य इतिहासकार पी.वी.एस. जगन मोहन और समीर चोपड़ा की 2005 में प्रकाशित पुस्तक ‘द इंडिया-पाकिस्तान एयर वॉर ऑफ़ 1965’ का कवर
Cover of PC Lal's 1986 book My Years with IAF; Lal was Chief of Air Staff of the Indian Air Force during 1971 war with Pakistan
पीसी लाल की 1986 में आई पुस्तक माई इयर्स विद आईएएफ का कवर; लाल 1971 में पाकिस्तान के साथ युद्ध के दौरान भारतीय वायु सेना के चीफ ऑफ एयर स्टाफ थे.

(नेशनल इंट्रेस्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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