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Saturday, 2 November, 2024
होमडिफेंसलंबे इंतज़ार के बाद 'तेजस' कैसे बना भारत के उभरते एयरोस्पेस सिस्टम की सफलता की कहानी

लंबे इंतज़ार के बाद ‘तेजस’ कैसे बना भारत के उभरते एयरोस्पेस सिस्टम की सफलता की कहानी

1983 में भारत ने रूसी मिग-21, जो चलन से बाहर होने के बावजूद अब तक उड़ान भर रहे हैं, की जगह लेने के लिए एक नए हल्के लड़ाकू विमानों के निर्माण की परियोजना शुरू की थी.

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भारत के तेजी से बढ़ते घरेलू एयरोस्पेस इकोसिस्टम को मजबूती देने के लिए सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) ने 13 जनवरी को 83 हल्के लड़ाकू विमान तेजस के लिए 48,000 करोड़ रुपये के सौदे को मंजूरी दे दी जिसमें 73 मार्क-1ए संस्करण शामिल हैं.

आने वाले सालों में भारतीय वायु सेना (आईएएफ) की रीढ़ साबित होने वाले तेजस के लिए मिला ऑर्डर सरकारी प्रतिष्ठान हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के लिए पहला बड़ा सौदा है और विमान की साढ़े तीन दशक की यात्रा में एक मील का पत्थर है.

यह अग्रणी लड़ाकू विमान बनाने के लिए भारत की तरफ से शुरू किए गए प्रयासों का नतीजा है जो 1950 के दशक में शुरू हुए थे. 1961 में पहली बार एचएएल के एचएफ-24 मारुत ने उड़ान भरी थी जिसे द्वितीय विश्व युद्ध में लुफ्टवाफ विमान का निर्माण करने वाले जर्मन एयरोनॉटिकल इंजीनियर कर्ट टैंक ने डिजाइन किया था.

और यही कारण है कि इस बार तेजस दिप्रिंट का न्यूजमेकर ऑफ द वीक है.

1983 में भारत ने रूसी मिग-21, जो चलन से बाहर होने के बावजूद अब तक उड़ान भर रहे हैं, की जगह लेने के लिए एक नए हल्के लड़ाकू विमानों के निर्माण की परियोजना शुरू की थी.

पहला विमान 1994 तक लाने की योजना थी. हालांकि, एलसीए का पहला प्रोटोटाइप परियोजना शुरू होने के 18 साल बाद यानी 2001 में ही उड़ान भर सका.

उस समय ही तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एलसीए को तेजस का नाम दिया था.

देरी का सबसे अहम कारण यह था कि भारत अपना खुद का जेट इंजन विकसित करना चाहता था लेकिन वह अब भी ऐसा करने में सक्षम नहीं हो पाया है.

जैसा कि दिप्रिंट के एडिटर-इन-चीफ शेखर गुप्ता बताते हैं, 1970 और 80 के दशक में, विशेष रूप से 1974 के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बाद प्रौद्योगिकी मिलने में मनाही के कारण भारत एक मुश्किल हालात में फंस गया था.

पश्चिम, खासकर अमेरिका ने भारत को कोई भी ‘संवेदनशील प्रौद्योगिकी’ हासिल करने से वंचित कर दिया था. इसके अलावा, अमेरिका ने मई 1998 में परमाणु परीक्षण किए जाने के बाद भारत पर प्रतिबंध भी लगा दिए थे.

दिसंबर 2013 में तेजस को इनिशियल ऑपरेशनल क्लीयरेंस मिला और 2019 में आईएएफ को फाइनल ऑपरेशनल क्लीयरेंस के साथ पहला विमान दिया गया.


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तेजस एमके-1ए कितना अलग

नया विमान एलसीए के मौजूदा संस्करण में चार प्रमुख क्षमताओं के साथ आता है, जिसे तेजस एमके-1 नाम से जाना जाता है.

इन सुधारों में हवा में ईंधन भरना, लड़ाकू क्षमता बढ़ाना और एक्टिव इलेक्ट्रॉनिकली स्कैन्ड एरे (एईएसए) रडार, इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर (ईडब्ल्यू) सूट और बियॉन्ड विजुअल रेंज (बीवीआर) मिसाइल क्षमताओं को शामिल करना शामिल है.

विमान घरेलू विमानन उद्योग को काफी बढ़ावा देगा क्योंकि इसमें निजी उद्योग और एचएएल के बीच व्यापक सहयोग शामिल है.

तेजस के नवीनतम संस्करण का अगला हिस्सा डायनामैटिक टेक्नोलॉजीज द्वारा बनाया जाएगा जबकि मध्य हिस्से को हैदराबाद स्थित वीईएम टेक्नोलॉजीज़ और रीयर सेक्शन को अल्फा डिजाइन टेक्नोलॉजीज, बेंगलुरू को आउटसोर्स किया गया है. तेजस एमके-1ए के लिए पंख का निर्माण लार्सन एंड टुब्रो करेगा.

विमान के विभिन्न हिस्सों के निर्माण में 70 से अधिक भारतीय आपूर्तिकर्ता शामिल हैं.

83 नए तेजस के लिए हुए इस सौदे में एचएएल के साथ एमएसएमई सहित कुल मिलाकर करीब 500 भारतीय कंपनियां काम करेंगी.


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क्षमताएं और भविष्य की योजनाएं

नए विमान में डर्बी मिसाइल जैसी बियॉन्ड विजुअल रेंज मिसाइलों को निशाना बनाने की इनबिल्ट क्षमता है और मौजूदा तेजस को पहले ही इसमें सक्षम बनाया जा चुका है.

एचएएल अधिकारियों ने कहा कि स्वदेश में विकसित बीवीआर मिसाइल (अस्त्र एमके-1) को एमके-1ए में भी लगाया जाएगा, जो भारतीय वायुसेना का एक पसंदीदा हथियार होगा. यह हथियार एलसीए तेजस को बीवीआर युद्धक क्षमता में चीन-पाकिस्तान के संयुक्त उपक्रम जेएफ-17 जैसे अपने समकक्षों से आगे रखेगा.

एलसीए एमके-1ए में पॉडेड सेल्फ-प्रोटेक्शन जैमर (एसपीजे) और एईएसए रडार होने से विमान के सरवाइव करने की क्षमता को और बढ़ाया गया है.

एईएसए रडार हवा से हवा, हवा से जमीन और हवा से समुद्र वाले मोड में एक साथ 16 लक्ष्यों को निशाना बनाने में सक्षम है.

आईएएफ अगली पीढ़ी के तेजस की खरीद पर भी विचार कर रहा है, जिसे तेजस एमके-2 के नाम से जाना जाएगा.

हालांकि, यह एलसीए के बजाये मध्यम भार वर्ग वाला एक विमान होगा.

रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) की एक लैब एयरोनॉटिकल डेवलपमेंट एजेंसी पांचवी पीढ़ी के लड़ाकू विमान को विकसित करने की योजना पर एचएएल के साथ मिलकर काम कर रही है जिसे एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट फाइटर एयरक्राफ्ट (एएमसीए) कहा जाता है.

तेजस सौदा भारतीय रक्षा उद्योग के लिए एक बहुत बड़ा घटनाक्रम है. एचएएल और एडीए को समय-समय पर इसकी आपूर्ति के साथ-साथ निर्धारित योजना के तहत भविष्य के संस्करणों का निर्माण करना भी सुनिश्चित करना चाहिए.

ऐसा इसलिए है क्योंकि स्वदेशी रक्षा प्रणालियां ही रणनीतिक तौर पर आत्मनिर्भरता का रास्ता साफ करेंगी.

(व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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