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Friday, 3 May, 2024
होमदेशना लोहा, ना सीमेंट- रिटायर्ड IAS नृपेंद्र मिश्रा का राम मंदिर को चिरायु बनाने का फार्मुला

ना लोहा, ना सीमेंट- रिटायर्ड IAS नृपेंद्र मिश्रा का राम मंदिर को चिरायु बनाने का फार्मुला

नृपेंद्र मिश्रा, जो पीएम मोदी के प्रमुख सचिव के पद पर सेवारत थे, पिछले साल श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास के अध्यक्ष नियुक्त किए गए हैं.

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नई दिल्ली: अयोध्या में भगवान राम के जन्मस्थान पर बन रहे राम मंदिर के निर्माण में लोहे का इस्तेमाल नहीं किया जाएगा, क्योंकि उसका एक सीमित जीवन होता है. निर्माण सदियों तक क़ायम रहे ये सुनिश्चित करने के लिए हो सकता है कि मंदिर बिना सीमेंट के ही बनाया जाए. इस क्षेत्र में वही वृक्ष रोपित किए जाएंगे, जिनका प्राचीन ग्रंथों में उल्लेख किया गया है, जिससे कि वहां मौजूद रहे मूल स्वरूप को दोहराया जा सके.

ये सब जानकारी नृपेंद्र मिश्रा से किए गए, एक ख़ास इंटरव्यू से हासिल की गई है, एक ऐसे लो प्रोफाइल पूर्व सिविल सर्वेंट, जो अपने कार्यकाल के दौरान कुछ बेहद महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रहे, जिनमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रमुख सचिव पद की ज़िम्मेदारी भी शामिल थी.

1967 बैच के उत्तर प्रदेश काडर के भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी, मिश्रा ने उत्तर प्रदेश के दो मुख्यमंत्रियों के साथ भी नज़दीकी रूप से काम किया- बीजेपी के कल्याण सिंह और समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह यादव.

उन्हें पिछले साल श्री रामजन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र न्यास का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, जो मंदिर निर्माण की निगरानी का काम कर रहा है. इस ट्रस्ट का गठन सरकार ने नवंबर 2019 में रामजन्मभूमि विवाद पर, सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद किया था.

मिश्रा को पर्दे के पीछे रहकर काम करने वाला माना जाता है, और वो कोई इंटरव्यू नहीं देते. लेकिन साप्ताहिक पत्रिका पाञ्चजन्य के ताज़ा विशेष संस्करण में दिए एक विस्तृत इंटरव्यू में उन्होंने काफी व्यापक विषयों पर बात की.

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ये पूछे जाने पर कि ट्रस्ट कैसे सुनिश्चित करेगा कि अयोध्या का मंदिर 500-1,000 वर्षों तक क़ायम रहे, मिश्रा ने कहा, ‘हम स्टील का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं और कुछ लोगों ने कहा है कि सीमेंट का जीवन काल भी, क़रीब 100 साल तक सीमित होता है, इसलिए हमने अभी तक फैसला नहीं किया है कि हमें सीमेंट इस्तेमाल करना चाहिए कि नहीं’.

उन्होंने आगे कहा, ‘बुनियाद में इस्तेमाल किए जाने वाले मिश्रण पर बहुत से विशेषज्ञ और टाटा कंसलटेंसी जैसी कंपनियां फैसला कर रही हैं. एलएनटी ने भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई के साथ एक समझौता किया है, चूंकि उनके पास मटीरियल मैनेजमेंट के विशेषज्ञ मौजूद हैं. हम प्राचीन मंदिरों का भी अध्ययन कर रहे हैं’.

‘हमने इसका ज़िम्मा भारत की सबसे बड़ी निर्माण कंपनी को दिया है. टाटा कंसलटेंसी के पास भी, कम से कम 2,000 इंजीनियर्स हैं’.


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‘एक न्यायोचित क़दम’

मिश्रा ने कहा कि मंदिर निर्माण योजना के अंतर्गत, क़रीब 70 एकड़ क्षेत्र में वृक्षारोपण किया जाएगा.

उन्होंने आगे कहा, ‘ये मांग उठती रही है कि वहां पर, वही विशेष पेड़ लगाए जाने चाहिए जिनका वाल्मीकि की ‘रामायण’ और तुलसी दास की ‘रामचरितमानस’ में उल्लेख किया गया है. लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति उद्यान ने कुछ साल पहले, इस ख़ास विषय पर शोध किया था. हम पूरी कोशिश करेंगे कि देश की भावनाओं का सम्मान किया जाए, और हम उसी हिसाब से इस योजना को कार्यान्वित करेंगे’.

ये पूछे जाने पर कि वो 6 दिसंबर 1992 को कैसे याद करते हैं- जब अयोध्या में बाबरी मस्जिद को गिराया गया था- मिश्रा ने, जो उस समय उत्तर प्रदेश में एक सिविल सर्वेंट के तौर पर सेवारत थे, कहा कि वो ‘एक न्यायोचित क़दम’ था.

उन्होने आगे कहा, ‘दिसंबर से तीन महीना पहले, मैं ग्रेटर नोएडा का चेयरमैन बन गया था. जब ये घटना हुई तो मैं लखनऊ में नहीं था. लेकिन पहले भी, अयोध्या से जुड़ी कुछ घटनाएं हुईं थीं. एक मायने में हर किसी का मानना था कि यहां पर एक राम मंदिर बनाया ही जाना चाहिए’.

‘वो एक न्यायोचित क़दम था. यही कारण है कि जो कोई भी इसका मूल्यांकन करेगा, वो इसी संदर्भ में मूल्यांकन करेगा, कि देश की इच्छा थी कि यहां एक मंदिर बनाया जाए…लोगों का सपना साकार हो गया है’. वो ज़्यादा खुलकर नहीं बोले जब उनसे, बतौर मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के कम ज्ञात पहलुओं पर, रोशनी डालने के लिए कहा गया जिनके साथ उन्होंने निजी सचिव के तौर पर काम किया था’.

उन्होंने आगे कहा, ‘मैं क्षमा चाहता हूं, मैंने इस बारे में अभी तक किसी से बात नहीं की है. पहले भी कुछ लोगों ने मुझे, एक आत्मकथा लिखने के लिए कहा था और मैंने स्पष्ट कर दिया है कि मैं, अपने ऊपर कभी कोई किताब नहीं लिखूंगा’.

प्रधानमंत्री मोदी के साथ बतौर प्रमुख सचिव काम करने के अपने अनुभव के बारे में पूछे जाने पर मिश्रा ने कहा, ’आदरणीय प्रधानमंत्री उस दिन तक मुझसे परिचित नहीं थे, जिस दिन मुझे ये ज़िम्मेदारी लेने के लिए कहा गया. मैं अपने मौजूदा कार्य को भगवान का उपहार मानता हूं, क्योंकि इस समिति का अध्यक्ष बनाकर, इसने मुझे देशभर की आकांक्षाओं के साथ जोड़ दिया है’.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(लेखक विचार विनिमय ट्रस्ट के रिसर्च डायरेक्टर हैं, उन्होंने आरएसएस पर दो किताबें लिखी हैं)

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