मेरे कई जैन दोस्त पहले हर साल एक पोस्टकार्ड भेजते थे माफ़ीनामे का. कई तो रायपुर में अख़बार में इश्तेहार भी छपवाते थे. अब व्हाट्सऐप पर कम आते हैं. पर उन माफ़ियों का कोई मतलब नहीं होता. वे रस्मी होती हैं. उनके पीछे किसी साफ़ भूल, ग़लती, जुर्म, गुनाह का इक़बाल नहीं होता. वे अंग्रेज़ी की ‘सॉरी’ और ‘थैंक यू’ की तरह होती हैं. बड़प्पन और तमीज़ दिखाने के लिए ज़्यादा. बेवजह. कहने के लिए ज्यादा, दिल पर हाथ रखकर कम.
ऐसे माफ़ी मांगने, अफ़सोस जताने से क्या माफ़ी मिल भी जाती है, मुझे शक है. इतिहास की तरफ़ देखें तो कई ऐसी माफ़ियां हैं, जो मांगी गईं पर जिनका कोई बहुत मतलब नहीं था. कई ऐसी भी, जो काग़ज़ पर लिखी गईं पर दिल से महसूस नहीं की गईं.
नरेन्द्र मोदी ऐसे शख़्स नहीं है जिन्हें ग़लतियां करने, उन्हें स्वीकारने, उनसे सबक़ लेने के लिए जाना जाता है. बहुत से लोग ये मानते हैं, वे कुछ ग़लत कर ही नहीं सकते. जो भी कुछ ग़लत हुआ, मोदी जी के पहले हुआ. और जब तक मोदी जी हैं, लोगों को पूरा यक़ीन है कि कुछ ग़लत हो ही नहीं सकता. वह एक कड़क प्रशासक, एक निर्णायक नेता, एक हृदय सम्राट, एक चतुर रणनीतिक की तरह समूचे देश और पूरी दुनिया में जाने जाते हैं और ये उन्हें कहीं से मिला नहीं है, ये उन्होंने बहुत हार्ड वर्क कर के, बहुत संघर्ष, बहुत साधना से कमाया है.
मोदी की माफी के मायने
मोदी जी तो सब कुछ ठीक करने के लिए ही बने हैं. कोरोनावायरस से निपटने के लिए भारत को उनसे बेहतर नेता मिल ही नहीं सकता. पिछले इतवार को मन की बात के दौरान नरेन्द्र मोदी ने ऐसा कुछ कहा, जिसकी न उनके कट्टर समर्थकों को उम्मीद थी, न उन्हें न चाहने वालों को. उन्होंने मन की बात करते हुए ‘क्षमा’ शब्द का इस्तेमाल किया.
पीएम मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम के दौरान देशवासियों से कहा, ‘मुझे कुछ ऐसे फ़ैसले लेने पड़े हैं, जिनसे ग़रीबों को परेशानी हुई. सभी लोगों से क्षमा मांगता हूं.’
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वह माफी मांगकर ही नहीं रुके, आगे उन्होंने कहा, ‘मैं आप सबकी परेशानी को समझता हूं, लेकिन कोरोना के ख़िलाफ़ लड़ाई में इसके सिवाय कोई चारा नहीं था. किसी का ऐसा करने का मन नहीं करता, लेकिन मुझे आपके परिवार को सुरक्षित रखना है. इसलिए दोबारा क्षमा मांगता हूं.’
लॉकडाउन तो पूरी दुनिया के बहुतेरे देशों में हो रहा है, पर वहां के राष्ट्राध्यक्ष माफ़ी नहीं मांग रहे. दरअसल ये माफ़ी मांगने की ज़रूरी और पर्याप्त वजह है भी नहीं. कोरोनावायरस का संक्रमण रोकना नरेन्द्र मोदी के हाथ में नहीं है. पर ये देश, यहां की सरकार, मशीनरी, पुलिस, कर्मचारी, अस्पताल उनके नीचे हैं, और उनमें से बहुत से अपना काम ठीक से करते हुए नहीं देखे गये. लॉकडाउन के पीछे जो मंशा थी, उसी को पराजित होने में देर नहीं लगी. मोदी जी कोरोना के साथ करूणा की बात कर रहे थे, उधर दिल्ली और यूपी की सरकारें, उनकी पुलिस अपनी निरंकुश क्रूरता की मिसालें क़ायम करने का कोई मौक़ा नहीं छोड़ रही थी. देश मुश्किलों के लिए तैयार था, पर ज़्यादतियों के लिए नहीं.
मांगनी ही थी, तो माफ़ी की सही वजहें ये थीं-
1. बहुत ही ख़राब तैयारी और योजना
2. उस से भी बहुत ज्यादा ख़राब तरीक़े से लागू किया जाना.
3. फ़ैसले करने में बहुत देर करना
4. तीन घंटे के नोटिस पर देश को लॉक डाउन करना, जबकि ख़तरा तीन माह से मंडरा रहा था
5. कोई अंदाज़ा नहीं कि कितने ग़रीब लोगों को ख़र्चा, पानी, रसद और छत की ज़रूरत पड़ेगी
6. ग़रीब और असहाय लोगों पर विद्रूप पुलिस की नारकीय क्रूरताएं
7. मध्य वर्ग पर ही केंद्रित अभियान (बालकनी में आओ, घंटा बजाओ)
8. पुलिस, मेडिकल और सिविल मशीनरी में तालमेल की भयानक कमी
9. डॉक्टरों और स्वास्थ्य कर्मियों को बुनियादी किट्स के बिना झोंकना (समय होने के बाद भी तैयारी नहीं)
10. टेस्टिंग किट्स ही नहीं जुटा पाना. प्राइवेट अस्पतालों को इस अभियान में शामिल करने को लेकर भ्रमित रहना.
11. डेटा को लेकर पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी (संक्रमण की संख्या अपडेट करने में लगातार कोताही, सवालों के जवाब देने में टालमटोल)
12. पीएम रिलीफ फंड में अंडे देते 3800 करोड़ रुपये के बाद भी एक और फंड के लिए पैसे जुटाना
13. हिन्दूत्व एजेंडा घुसेड़ने की कोशिश ( नवरात्रि, थाली, घंटा, रामायण)
14. जनता के नाम सरकारी एकालाप जारी करते रहना, संवाद नहीं बिठाना, जवाब नहीं देना
15. केरल जैसे राज्य से जो सबसे प्रभावी तरह से कोरोना से लड़ रहा है, सबक़ नहीं लेना
16. मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा अजीबोग़रीब ट्वीट लगाना, हटाना और फिर लीपा-पोती करना
जिन लाखों गरीब लोगों को हुई तकलीफ़ के कारण मोदी जी माफ़ी मांग रहे थे, उनमें क़रीब 20 बड़े शहरों से अपने गांव लौट चुके हैं. इस वक़्त हर वह शख़्स जो इंडिया से अपनी गठरी उठा के भारत की तरफ़ लौटा है, सरकार की बदइंतज़ामी और ग़ैर-ज़िम्मेदाराना रवैये के ख़िलाफ़ हलफिया बयान है. उनके सपने चकनाचूर हो चुके थे, उम्मीदें मुरझा चुकी थीं. वे हार कर लौट रहे थे. इस सबका ज़िम्मेदार, जवाबदेह, दोषी कौन था.
दिल पर हाथ रख कर सही कारणों, भूल, चूक मानते हुए माफ़ी मांगना सही होता. जब माफ़ी किसी हलकी, और ग़लत वजह से मांगी जाए, तो न उसका मान रहता है, न मतलब. माफ़ी मांगने के लिए दिल को छाती से थोड़ा ज़्यादा बड़ा करना होता है. माफ़ी मांगने से कोई छोटा नहीं हो जाता. और मांगने पर मिल जाए तो.
देश से प्रधानमंत्री का माफ़ी मांगना एक बड़ी ख़बर तो है, पर ज़रूरत उन मसलों को क़रीब से देखने की है, जहां तकलीफ़ों से दो चार होते लोग, ज़्यादतियों के शिकार न होने लगें.
(लेखक एक पत्रकार और कवि हैं और ये उनके निजी विचार हैं)