महिलाएं समाज की वास्तविक शिल्पकार होती हैं. इस वाक्य को उत्तर प्रदेश की महिलाओं ने कोरोना वैश्विक महामारी के समय में सार्थक किया है. इस महामारी के दौरान महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों की सामूहिक ताकत सामने आई है. प्रदेश के अधिकतर जिलों में, शहरों की सुर्खियों से दूर, महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों ने फेसमास्क और पीपीई किट्स के उत्पादन के साथ-साथ सामुदायिक रसोईघर चला कर आवश्यक खाद्य आपूर्ति प्रदान की. इस संकट के समय में ये महिला समूह, स्वास्थ्य और स्वच्छता के बारे में भी जागरुकता फैला रहे हैं.
आत्मनिर्भर बन रहीं महिलाएं
लाॅकडाउन में इन महिलाओं ने एक बड़ी संख्या में सूती मुखौटे (मास्क) का उत्पादन किया है, जो पुलिसकर्मियों और स्वास्थ्यकर्मियों की मदद कर रही हैं. यह सब योगी सरकार के सहयोग एवं समर्थन के कारण ही हो रहा है. कुछ जिलों में महिलाओं के समूह सामुदायिक रसोई चला रहे हैं. औद्योगिक क्षेत्रों में कारखाने बंद होने के दौरान बड़ी संख्या में अनौपचारिक श्रमिकों को अपनी आजीविका खोने के कारण, महिलाओं के समूह ने प्रवासी श्रमिकों और गरीबों को भोजन खिलाने के लिए अधिक संख्या में प्रदेश सरकार के सहयोग से सामुदायिक रसोई स्थापित की हैं.
स्वयं सहायता समूहों को प्रोत्साहित देने में योगी सरकार की भूमिका अहम रही है. सरकार ने इन महिला समूहों को डायरेक्ट पैसा ट्रांसफर किया, जिसके कारण गावों में मास्क, सैनिटाइज़र और सुरक्षात्मक उपकरणों का सफल उत्पादन इन महिलाओं के द्वारा हो रहा है, जिनमें से कई सरकार द्वारा समर्थित रोज़गार के माध्यम से गरीबी को शिकस्त दे रहे हैं वहीं ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाएं स्व-सहायता और एकजुटता के द्वारा आदर्श जीवन यापन का मार्ग प्रशस्त कर रही हैं.
मास्क और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) की कमी को पूरा करने के लिए प्रदेश भर में महिला समूह काम कर रहे हैं. उदाहरण के लिए गरीब ग्रामीण महिलाएं, जो कभी स्कूल यूनिफॉर्म सिलाई करने में व्यस्त थीं, अब मास्क की सिलाई कर रही हैं.
बुलंदशहर के मरगूबपुर गांव की मोहसीना बताती हैं कि एक दिन में वह 1050 मास्क बना लेती हैं. ये मास्क सरकार के सहयोग से कई शहरों में जाते हैं. इसका पेमेंट उनके अकाउंट में आ जाता है. मोहसीना की तरह हजारों महिलाएं इस वक्त मास्क बनाकर ‘आत्मनिर्भर’ बन रही हैं.
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महिलाओं को बैंकिंग से जोड़ने का प्रयास
सरकार के सहयोग से ग्रामीण महिला समूह बैंकिंग और पेंशन सेवाओं से भी जुड़ गई हैं. लॉकडाउन के दौरान इन समूहों ने लोगों को दूर-दराज़ के इलाकों में बैंकों को वित्त सेवा पहुंचा कर बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. सेल्फ हेल्प ग्रुप की महिलाएं, जो बैंकिंग संवाददाताओं, ‘बैंकिंग सखी’ के रूप में भी काम करती हैं, एक महत्वपूर्ण संसाधन बनकर उभरी हैं.
इन बैंक साखियों ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) के माध्यम से पेंशन को वितरित करने और सबसे अधिक जरूरतमंदों को अपने खातों में क्रेडिट का उपयोग करने के लिए सक्षम करने के अलावा, दूर-दराज के समुदायों के लिए दरवाजे तक बैंकिंग सेवाएं प्रदान करना जारी रखा है. प्रदेश में बैंकों ने इन महिलाओं को विशेष उन्मुखीकरण दिया है और सरकार ने उन्हें वित्तीय प्रोत्साहन प्रदान किया है ताकि उन्हें लॉकडाउन के दौरान काम करना जारी रखने में सक्षम बनाया जा सके. योगी सरकार ने इन बैंक सखियों को 4 हज़ार रूपए मासिक वेतन तथा उपकरण के लिए 50 हज़ार तक की राशि देना तय किया है, जो की सरकार द्वारा बहुत बड़ा प्रोत्साहन है.
प्रदेश सरकार महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता, कन्या शिक्षा, नेतृत्व संवर्धन तथा सामाजिक सशक्तिकरण के लिए मार्ग प्रशस्त कर रही है ताकि एक ऐसे परिवेश का निर्माण किया जा सके जिसमें महिलाएं अपनी पूर्ण क्षमता का उपयोग कर सकें. स्पष्ट रूप से इस प्रकार का व्यवहार महिलाओं के जीवन, उनके शैक्षिक अनुभव के साथ-साथ काम और सामाजिक गतिविधियों में भाग लेने की क्षमता पर प्रभाव डालेगा.
महिलाओं पर बजट में खर्च
मुझे लगता है कि यूपी की योगी सरकार ने गरीब ग्रामीण महिलाओं को सरकार की विभिन्न महिला कल्याण योजनाओं द्वारा सशक्त किया है. सरकार ने अपने चौथे बजट में आधी आबादी का पूरा ख्याल रखा है. सरकार ने आगामी वित्तीय वर्ष के लिए कुल 9690.94 करोड़ रुपये का बजट दिया है. वर्तमान वित्तीय वर्ष के मुकाबले यह 72.80 करोड़ रुपये अधिक है.
उत्तर प्रदेश सरकार ने मुख्यमंत्री कन्या सुमंगला योजना के लिए 1200 करोड़ रुपये का बजट दिया है. इसमें बेटियों के पैदा होने के बाद से उनकी डिग्री तक की पढ़ाई के लिए अलग-अलग चरणों में सरकार आर्थिक मदद करती है. योजना इस तरह से बनाई गई है ताकि माता-पिता बेटी के पैदा होने पर उत्सव मनाएं. उन्हें बोझ न समझें. गर्भवती महिलाओं व बच्चों को कुपोषण से बचाने के लिए शबरी संकल्प योजना में भी सरकार ने 100 करोड़ रुपये का बजट दिया है.
सरकार ने निराश्रित महिलाओं के पेंशन का भी बजट बढ़ा दिया है. इस योजना में सरकार ने 1432 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है. यह पिछले बजट के मुकाबले करीब 200 करोड़ रुपये अधिक है. सरकार इससे करीब 27 लाख से अधिक निराश्रित महिलाओं को 500 रुपये महीना पेंशन देगी.
प्रदेश सरकार द्वारा राज्य महिला सशाक्तिकरण मिशन के अंतर्गत विभिन्न कल्याण तथा मदद के माध्यम सुनिश्चित किये हैं. जैसे आपकी सखी- आशा ज्योति केन्द्रों का संचालन, यूपी रानी लक्ष्मीबाई महिला एवं बाल सम्मान कोष, 181 महिला हेल्पलाइन आदि. इसके अलावा महिला समाख्या कार्यक्रम-महिला संघ, नारी अदालत, नारी शिक्षा, संजीवनी केन्द्र, महिला स्वयं सहायता समूह आदि हैं.
सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए बनाये गए कानूनों में भी समय के साथ संशोधन कर रही है जिससे महिलाओं को सुरक्षा के साथ प्रोत्साहन भी मिल सके. चुनौती की व्यापक प्रकृति को देखते हुए प्रदेश में इन महिलाओं ने सरकार के सहयोग से अपने प्रयासों को तेज़ कर दिया है और अब राज्य भर में बड़ी संख्या में महिलाएं सेवा एवं सहयोग के उच्च मापदंड स्थापित कर रही हैं. सबसे महत्वपूर्ण यह है की महामारी समाप्त होने के बाद आर्थिक गति के निर्माण में उत्तर प्रदेश की ग्रामीण महिलाओं की ताकत जरूरी बनी रहेगी.
(लेखिका अधिवक्ता व सामाजिक कार्यकर्ता हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
यह पढ़कर ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि भारत की पाँच ट्रिलियन अर्थव्यवस्था में उत्तरप्रदेश का एक ट्रिलियन का लक्ष्य इसमें निर्णायक भूमिका निभाएगा।