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Thursday, 21 November, 2024
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विकलांग छात्रों के लिए बेहतर ऑनलाइन कक्षाओं के लिए लिखा गया एक पत्र दो मंत्रालयों के बीच कैसे खो गया

सरकार की सहायता के बिना, जावेद आबिदी फाउंडेशन ने 284 विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को बताया कि कैसे विकलांग छात्र ऑनलाइन शिक्षा सहित कई मुद्दों की जानकारी दी.

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कोई नौकरशाह जब आपसे ये सवाल करे तो आप क्या कहेंगे, ‘आप इतना अधिक आरटीआई क्यों दायर करते हैं?’. मुझे हैरत हुई जब मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय, जोकि अब शिक्षा मंत्रालय है, के फोन कॉल में ये सवाल पूछा गया. विकलांगों और विकलांगता रहित युवाओं के बीच कार्यरत दबाव समूह जावेद आबिदी फाउंडेशन (जेएएफ) के संयोजक के रूप में युवाओं की दृष्टि से दिव्यांगजनों के अधिकारों की आवाज उठाना मेरी ज़िम्मेदारी है.

इस खास क्षेत्र में काम करने का मेरा अनुभव मिलाजुला रहा है – मेरे ‘विरोधी’ मुझसे बच्चे जैसा व्यवहार करते हैं. उन्हें लगता है कि मैं ज़िद्दी नखरे करता हूं, भले ही मैं सरकार को शिकायती पत्र लिखकर विकलांग युवाओं की समस्याओं को उठाने का काम कर रहा हूं.

सर्वाधिक ज़रूरतमंदों के लिए बुनियादी मानवाधिकारों की मेरी मांग की प्रतिक्रिया में अधिकारी अक्सर मुझे ‘लॉलीपॉप’ – काले-नीले अक्षरों वाला कागज का टुकड़ा, यानि उच्च अधिकारियों के नाम पत्र – थमा कर शांत करते हैं जो नौकरशाही के हलकों, मंत्रालयों और विभागों के बीच अधर में झूलता रहता है. ये ऐसा ही है मानो मुझे एक चर्खी झूले में बिठा दिया गया हो और मैं सवाल पूछते और जवाबों का इंतजार करते विभिन्न मंत्रालयों के बीच चक्कर खा रहा हूं, पर कभी ठोस जवाब नहीं मिलता.

नौकरशाहों से अक्सर मैं इतना ही कहता हूं: ‘सर मुझे बस अब जवाब चाहिए.’ इस सरकार से मेरी इतनी भर अपेक्षा है: थोड़ी सी जवाबदेही.


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एक अप्रिय अनुभव

दो मंत्रालयों और एक पत्र से जुड़ा मेरा हालिया अनुभव नौकरशाही की लालफीताशाही के प्रति मेरी निराशा को उजागर करता है. यह कोविड-19 महामारी का दौर शुरू होने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा मुझे और 85,877 दिव्यांग छात्रों को चकरघिन्नी कटाने का एक उदाहरण है.

जेएएफ ने 24 मार्च से 3 अप्रैल के बीच विभिन्न विकलांगताओं से प्रभावित छात्रों, विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के साथ कई ऑनलाइन परामर्श सत्र आयोजित किए. 25 अप्रैल को हमने ऐसे छात्रों के सम्मुख मौजूद चुनौतियों की एक सूची तैयार कर उसे सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय के दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग (डीईपीडब्ल्यूडी) के तहत मुख्य दिव्यांगजन आयुक्त (सीसीपीडी) के कार्यालय को सौंपने का काम किया.

पत्र में विकलांग छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं की अगम्यता के मुद्दे पर प्रकाश डाला गया था. मौजूदा ऑनलाइन कक्षाएं बधिर छात्रों के लिए बिल्कुल अनुपयोगी हैं क्योंकि अधिकांश संस्थान संकेत भाषा (साइन लैग्वेज) की कोई सुविधा उपलब्ध नहीं करा रहे हैं. इसके अलावा, ठीक से सुन पाने में असमर्थ छात्रों को भी कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि वीडियो कॉल के माध्यम से होठों को पढ़ना (लिप रीडिंग) मुश्किल होता है, और पाठों के लिए कैप्शन या ट्रांसक्रिप्शन भी उपलब्ध नहीं कराया जाता है. नेत्रहीन छात्रों को दिए जाने वाले इमेज या चित्र आधारित असाइनमेंट ऑप्टिकल कैरेक्टर रिकॉग्निशन (ओसीआर) के अनुकूल नहीं होते हैं, और इस कारण किसी की सहायता के बिना उनके लिए उन्हें पूरा करना असंभव होता है. चैट बॉक्स के माध्यम से संवाद में असमर्थता के कारण कृत्रिम अंगों वाले या कतिपय अस्थि विकलांगता वाले छात्रों को कक्षा के दौरान सवाल पूछने में कठिनाई होती है. सरकार के लिए जेएएफ ने एक साधारण सा अनुरोध किया था: सभी शैक्षणिक संस्थानों को दिव्यांगजन अधिकार कानून 2016 (आरपीडब्ल्यूडी) अनुरूप उचित उपायों की व्यवस्था करते हुए विकलांग छात्रों के लिए ऑनलाइन कक्षाओं को सुलभ बनाना चाहिए.

हमें 29 अप्रैल को एक जवाबी पत्र मिला, जिसके अनुसार डीईपीडब्ल्यूडी के निदेशक केवीएस राव ने उच्च शिक्षा विभाग के संयुक्त सचिव जीसी होसुर को विकलांगता से प्रभावित तमाम छात्रों को समान अवसर उपलब्ध कराने के वास्ते सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों, और शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक एडवाइजरी जारी करने को कहा था.

डीईपीडब्ल्यूडी के इस त्वरित निर्देश के बावजूद, हमें शिक्षा मंत्रालय द्वारा उठाए जा रहे कदमों का कोई संकेत नहीं दिखा. इसलिए, प्रक्रिया में तेजी लाने के इरादे से जेएएफ ने शिक्षा मंत्रालय के लिए सिफारिशें तैयार करने के वास्ते परामर्श सत्रों का एक और दौर आयोजित किया और ये सिफारिशें 5 मई 2020 को जीसी होसुर को भेज दी गईं.

हमने होसुर को 6, 8 और 18 मई को इस बारे में स्मरण पत्र भी भेजे. जब कोई जवाब नहीं मिला तो हमने उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे से मिलने का प्रयास किया, साथ ही हमने 12 मई को उस समय तक के तमाम पत्र और प्रतिक्रियाएं अन्य संबंधित नौकरशाहों को भी उपलब्ध कराने का भी काम किया.

इस बीच छात्रों के उत्तरोत्तर बेचैन होते जाने के कारण, जेएएफ के स्वयंसेवकों ने तय किया कि अब शिक्षा मंत्रालय में जिससे भी संभव हो संपर्क करने की कोशिश की जाए. शुरुआती असफलताओं के बाद, हम स्कूल और साक्षरता विभाग के डिजिटल शिक्षा निदेशक रजनीश कुमार से संपर्क करने में कामयाब हुए. मुझे एक और सरकारी ‘लॉलीपॉप’ सौंपते हुए, उन्होंने 12 मई को हमारा अनुरोध रवि कात्याल को अग्रसारित कर दिया, जो दिव्यांगजनों से संबंधित विषयों के प्रभारी हैं. हमने 13 और 16 मई को उन्हें फॉलोअप ईमेल भी भेजे, लेकिन इस बार भी हमें कोई जवाब नहीं मिला. हम सरकारी चर्खी झूले पर घूम रहे थे, जिसके दौरान तीन नौकरशाहों ने हमें देखा और मुस्कुराते हुए हमारी ओर हाथ हिलाया.

उसके बाद जेएएफ ने 18 मई, 2020 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के अध्यक्ष, अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) के अध्यक्ष, यूजीसी के उपाध्यक्ष और सचिव, शिक्षा मंत्रालय के निजी सचिव को पत्र लिखने का फैसला किया. जब इनमें से किसी का कोई जवाब नहीं मिला तो 21 मई को हमने विकलांगता से जुड़े व्यापक समुदाय के सामने अपनी बात रखी, तथा #NothingAboutUs और #GAAD हैशटैग का उपयोग करते हुए ट्विटर के माध्यम से आवाज़ उठाई और विकलांगों के लिए ऑनलाइन शिक्षा सुलभ कराने की की मांग की. यह वैश्विक अभिगम्यता (एक्सेसिबिलिटी) जागरूकता दिवस (जीएएडी) का भी मौका था. आखिर में, 27 मई 2020 को कात्याल को एक बाऱ फिर स्मरण पत्र भेजा गया.

जावेद आबिदी फाउंडेशन की आयशा शर्मा द्वारा बनाई गई कृति/ स्पेशल अरेंजमेंट
जावेद आबिदी फाउंडेशन की आयशा शर्मा द्वारा बनाई गई कृति/ स्पेशल अरेंजमेंट

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चर्खी झूले से उतरने का समय

सरकारी मदद के लिए एक महीने से अधिक समय तक कोशिशें कर चुकने के बाद थक हारकर जेएएफ ने अपने बूते प्रयास करने का फैसला किया. जून और जुलाई महीने के दौरान हमने 284 विश्वविद्यालयों और कॉलेजों को लिखा. इसके लिए ईमेल पते यूजीसी की वेबसाइट से लिए गए थे, जिनमें से 44 पते गलत होने के के कारण ईमेल गंतव्य तक पहुंचे ही नहीं, जबकि 239 विश्वविद्यालयों ने जवाब नहीं दिए. सिर्फ पंजाब विश्वविद्यालय से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली. ये देखना दुखद था कि जिन संस्थानों से छात्रों की शिक्षा और कल्याण की उम्मीद की जाती है वे दिव्यांग छात्रों को ज़रूरी सुविधाएं उपलब्ध कराने को लेकर कितने उदासीन थे.

एक प्रकार से, शुरू से ही हम ‘आत्मनिर्भर’ थे, लेकिन सरकारी झूले के चक्करों से हम अंतत: ऊब गए. हमने प्रधानमंत्री के पोर्टल के ज़रिए लिखने के अपने अधिकार का उपयोग करते हुए 13 जुलाई को एक शिकायत दर्ज कराई. साथ ही, 22 जुलाई को एक बार फिर आरटीआई दायर करके जीसी होसुर को लिखे चार ईमेल से संबंधित जानकारियों की मांग की.

मज़े की बात है कि प्रधानमंत्री कार्यालय ने हमारी शिकायत को वापस डीईपीडब्ल्यूडी के निदेशक केवीएस राव को सौंप दिया, जिन्होंने 29 अप्रैल को इस मामले में हमें पहला ‘लॉलीपॉप’ पत्र जारी किया था. ठीक तीन महीने बाद 29 जुलाई को राव ने हमारी मांग/शिकायत शिक्षा विभाग को अग्रसारित कर दी, एक बार फिर हमें नाउम्मीदी के झूले का टिकट बेचने की कोशिश की गई जिसका कि अब तक हमें अच्छा-खासा अनुभव हो चुका था.


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(लेखक जावेद आबिदी फाउंडेशन (जेएएफ) के संयोजक हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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