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Sunday, 13 October, 2024
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राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सीधे प्रसारण की उम्मीद धूमिल

क्या अब अनुच्छेद 370 खत्म करने के मामले की सुनवाई के सीधा प्रसारण की उम्मीद की जाये?

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तमाम प्रयासों के बावजूद राजनीतिक दृष्टि से बेहद संवेदनशील राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद प्रकरण की सुनवाई का सीधा प्रसारण या फिर इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग कराने के प्रयास विफल हो गये. इस विवाद की सुनवाई पूरी होने में अब सात दिन का ही समय बचा है. ऐसी स्थिति में अनायास ही यह सवाल उठ रहा है कि 1985 में शाहबानों प्रकरण के बाद से ही लगातार देश की राजनीति का केन्द्र बिन्दु बने इस विवाद की संविधान पीठ के समक्ष हो रही सुनवाई का सीधा प्रसारण करने या फिर विभिन्न पक्षों की दलीलों की ऑडियो रिकार्डिंग का अवसर हमने क्यों गंवाया?
फिलहाल तो इस प्रकरण के सीधे प्रसारण या फिर ऑडियो रिकार्डिंग की संभावना लगभग खत्म हो गयी है लेकिन अभी ऐसे कई अवसर आएंगे जिनमें न्यायालय की कार्यवाही का सीधा प्रसारण या कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग कराई जा सकती है.

इस संबंध में जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म करने के खिलाफ संविधान पीठ में 14 नवंबर से होने वाली सुनवाई का जिक्र करना अनुचित नहीं होगा. इस मुकदमे की सुनवाई का सीधा प्रसारण अथवा कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग तो करायी ही जा सकती है.

अयोध्या प्रकरण की सुनवाई का अगर सीधा प्रसारण होता या फिर इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग होती तो भविष्य के लिये यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज बन सकता था जिसके अध्ययन से पता चलता कि हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों ने कैसी कैसी दलीलें दीं, न्यायाधीशों ने विवाद के तथ्यों की जानकारी हासिल करने के लिये उनसे कैसे कैसे सवाल किये और वकीलों ने उनके कैसे जवाब दिये?


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इस मामले में सुनवाई के दौरान जहां न्यायाधीशों ने रामलला विराजमान की कानूनी स्थिति और भगवान राम के जन्म स्थान के बारे में कई सवाल पूछे तो वहीं विवादित स्थल से मिले स्तंभों पर हिन्दू देवी देवताओं के चित्र बने होने और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की 2003 की रिपोर्ट से जुड़े कई सवाल किये.

इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि उच्चतम न्यायालय के 26 सितंबर, 2018 फैसले के बाद पहली बार किसी मुकदमे की कार्यवाही का सीधा प्रसारण करने या फिर इसकी ऑडियो रिकार्डिंग की व्यवस्था करने का अनुरोध किया गया था.

राम जन्म भूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई के सीधे प्रसारण या फिर इसकी ऑडियो रिकार्डिंग कराने का अनुरोध राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ के पूर्व विचारक केएम गोविन्दाचार्य ने शीर्ष अदालत से किया था.

शीर्ष अदालत में अगस्त में सुनवाई शुरू होने पर पहले तो न्यायमूर्ति एसए बोबडे की पीठ ने गोविन्दाचार्य का अनुरोध अस्वीकार किया और बाद में इस मामले की सुनवाई कर रही प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने इसकी अनुमति देने से इंकार कर दिया था.

हालांकि, बाद में एक अन्य पीठ ने इस बारे में गोविन्दाचार्य के आवेदन को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया था.

न्यायालय के निर्देश पर गोविन्दाचार्य के वकील ने ऐसा ही किया. गोविन्दाचार्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के समक्ष यह मामला रखा था. संविधान पीठ ने 16 सितंबर को न्यायालय की रजिस्ट्री को यह पता लगाकर सूचित करने का निर्देश दिया कि क्या इस मामले का सीधा प्रसारण किया जा सकता है?

चूंकि संविधान पीठ ने न्यायालय की रजिस्ट्री को अपनी रिपोर्ट पेश करने के लिये कोई समय निर्धारित नहीं किया था, इसलिए अब ऐसा लगता है कि फिलहाल इस प्रकरण की सुनवाई का सीधा प्रसारण या इसकी ऑडियो रिकार्डिंग की संभावना नहीं है.

इसमें कोई संदेह नहीं है कि किसी मुकदमे की कार्यवाही के सीधे प्रसारण या वीडियो रिकार्डिंग की व्यवस्था करना या अनुमति देना पूरी तरह न्यायालय के विवेक पर निर्भर करता है, लेकिन सवाल उठता है कि सीधे प्रसारण या ऑडियो रिकार्डिंग की अनुमति देने की शीर्ष अदालत की व्यवस्था के बाद न्यायिक कार्यवाही में पारदर्शिता की हिमायत करने के संकल्प का क्या हुआ?

फिलहाल तो ऐसा लगता है कि देशवासियों को अब फिर किसी अन्य सांविधानिक और राष्ट्रीय महत्व के ऐसे मुकदमे का इंतजार करना होगा जिसकी सुनवाई संविधान पीठ कर रही हो. ऐसे किसी मुकदमे के संदर्भ में काफी हद तक जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा खत्म करने के लिये संविधान के अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों के साथ ही अनुच्छेद 35-ए खत्म करने का मामला सीधे प्रसारण या फिर इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग के लिये उपयुक्त लगता है.


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न्यायालय के फैसले में निर्धारित पैमाने के अनुरूप इस प्रकरण के सीधे प्रसारण की स्थिति में वादकारियों, वकीलों, क्लर्कों और इंटर्न के लिये एक मीडिया कक्ष उपलब्ध कराने के साथ ही उच्चतम न्यायालय बार एसोसिएशन-लाउन्ज, सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकार्ड का कक्ष-लाउन्ज, अटार्नी जनरल, सॉलिसिटर जनरल और अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के शीर्ष अदालत परिसर में स्थिति आधिकारिक चैंबर, अधिवक्ताओं के चैंबर ब्लाक और प्रेस संवाददाताओं के कक्ष में आवश्यक व्यवस्था करने की संभावनायें तलाशी जा सकती थीं.

अयोध्या प्रकरण की सुनवाई का सीधा प्रसारण या इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग के प्रति अधिक दिलचस्पी नहीं दिखाये जाने से ऐसा लगता है कि शीर्ष अदालत के फैसले के एक साल बाद भी वह सांविधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मुकदमों के सीधे प्रसारण या फिर इनकी वीडियो रिकार्डिंग के लिये पूरी तरह तैयार नहीं है.

अयोध्या विवाद का मध्यस्थता के माध्यम से सर्वमान्य हल खोजने का प्रयास विफल हो जाने के बाद संविधान पीठ में छह अगस्त से रोजाना इस प्रकरण सुनवाई हो रही है और अब तक 33 दिन में निर्मोही अखाड़ा, रामलला विराजमान, राम जन्म भूमि न्यास, अखिल भारत हिन्दू महासभा, एम. सिद्दीक, सुन्नी वक्फ बोर्ड और अन्य पक्षकार अपनी दलीलें पेश कर चुके हैं. इस मामले की सुनवाई पूरी होने में अब सिर्फ नौ दिन ही शेष हैं.

संविधान पीठ पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि अयोध्या प्रकरण में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सितंबर, 2010 के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर 18 अक्टूबर तक सभी पक्षों को अपनी बहस पूरी करनी है ताकि न्यायाधीशों को भी फैसला लिखने के लिये करीब चार सप्ताह का समय मिल जाये.

बहरहाल, यदि सब कुछ संविधान पीठ के निर्देश के अनुरूप चला तो निश्चित ही 15 नवंबर तक 130 साल से भी अधिक समय से लंबित इस विवाद पर फैसला आ सकता है क्योंकि 17 नवंबर को प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई सेवानिवृत्त हो रहे हैं.

उच्चतम न्यायालय ने 28 सितंबर, 2018 को अपने फैसले में सांविधानिक और राष्ट्रीय महत्व के मुकदमों के सीधे प्रसारण की अनुमति प्रदान की थी. न्यायालय ने सीधे प्रसारण की व्यवस्था शुरू करने के पहले चरण के दौरान अपनाये जाने वाले तरीके को भी इस फैसले में इंगित किया था.

शीर्ष अदालत ने यह भी कहा था कि कार्यवाही के सीधे प्रसारण या फिर ऑडियो रिकार्डिंग के बारे में सभी पक्षकारों की पूर्व सहमति पर जोर दिया जाना चाहिए और यदि इसके लिये आमराय नहीं बनती है तो संबंधित न्यायालय सीधे प्रसारण के बारे में उचित निर्णय ले सकता है.

तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने तो यहां तक कहा था कि संबंधित न्यायालय किसी भी चरण में सीधे प्रसारण की अनुमति स्वतः ही या किसी पक्षकार के अनुरोध करने पर निरस्त कर सकता है.


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न्यायालय की इतनी स्पष्ट और लचीली व्यवस्था के बावजूद संविधान पीठ के समक्ष हो रही अयोध्या प्रकरण की सुनवाई के सीधे प्रसारण या फिर इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग की अनुमति अभी तक नहीं दिये जाने से ऐसा लगता है कि न्यायपालिका ने एक ऐतिहासिक दस्तावेज तैयार करने का अवसर गंवा दिया है.

उम्मीद की जानी चाहिए कि निकट भविष्य में उच्चतम न्यायालय सांविधानिक या राष्ट्रीय महत्व के किसी अन्य मुकदमे का सीधा प्रसारण करने या इसकी कार्यवाही की ऑडियो रिकार्डिंग करने के बारे मे समय रहते ही निर्णय लेगा ताकि एक और बहुमूल्य दस्तावेज शीर्ष अदालत के संग्रहालय की शोभा बढ़ा सके.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं .जो तीन दशकों से शीर्ष अदालत की कार्यवाही का संकलन कर रहे हैं. इस लेख में उनके विचार निजी हैं)

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