हालिया महामारी और वैश्विक मंदी के कारण दुनियाभर में बेरोजगारी बढ़ रही है. हरियाणा भी इससे अछूता नहीं रहा है. हाल यह है कि राज्य में स्थानीय लोगों की कुशल श्रम शक्ति उपलब्ध होने के बावजूद निजी क्षेत्र में रोजगार पाने में तमाम कठिनाइयां सामने आ रही हैं.
ऐतिहासिक रूप से हरियाणा एक कृषि प्रधान समाज यानी कृषि आधारित अर्थव्यवस्था रहा है, जो उद्योग आधारित अर्थव्यवस्था का आकार लेने की दिशा में बढ़ रहा है. इस कारण हो रहे शहरीकरण, औद्योगीकरण और राज्य के एक बड़े हिस्से को एनसीआर में शामिल किए जाने से बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहण हुआ. इसने कृषि क्षेत्र में विकास और रोजगार के अवसरों को घटा दिया. दूसरी ओर, राज्य के अंदर निजी क्षेत्रों/उद्योगों/कारखानों में रोजगार के अवसर तेजी से बढ़े. ऐसे में महसूस किया गया कि स्थानीय बेरोजगार आबादी, जो परंपरागत रूप से खेती-किसानी के कार्यों में लगी थी, के कल्याण के उद्देश्य के साथ राज्य सरकार की तरफ से उनके कौशल विकास और निजी क्षेत्र में रोजगार सुनिश्चित करने के लिए ठोस सकारात्मक पहल किए जाने की जरूरत है. हाल में लागू हरियाणा स्टेट एम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडीडेट एक्ट, 2020 के पीछे मंशा यही थी.
इस अधिकार के रूप में हमारी सरकार ने स्थानीय उम्मीदवारों का भला करने की जो कोशिश की है, वह पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान मेरा वादा था. चौधरी देवीलाल की विरासत और आदर्शों पर चलते हुए मैं अपने लोगों से किए गए हर वादे को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध हूं.
व्यापक स्तर पर जनता के हित में यह कानून लागू होने के साथ हरियाणा सरकार राज्य में सभी नियोक्ताओं को स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देने और राज्य की अर्थव्यवस्था सुधारने के लिए प्रोत्साहित करने जा रही है. ये कानून नियोक्ताओं को योग्य और प्रशिक्षित स्थानीय कार्यबल के माध्यम से प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से जबर्दस्त लाभ प्रदान करता है. उपयोगी कार्यबल स्थानीय स्तर पर ही उपलब्धता होना निश्चित तौर पर उद्योगों की दक्षता बढ़ाएगा क्योंकि औद्योगिक संगठन/फैक्टरी के विकास में कार्यबल एक अहम भूमिका निभाता है. यह गैरहाजिरी, प्रवासी मजदूरों पर निर्भरता और समाज में अपराध दर को कम करेगा.
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यही नहीं हमारी नई उद्यम और रोजगार प्रोत्साहन नीति के तहत हरियाणा में राज्य के किसी व्यक्ति को नौकरी देने पर हर वर्ष 48000 रुपये का शानदार प्रोत्साहन भी दिया जाता है. इसके अलावा, हमने राज्य के आंतरिक ब्लॉक में लगने वाले उद्योगों को अच्छा-खासा प्रोत्साहन दिया है. हमने रोजगार गारंटी बिल तैयार करते समय उद्योग प्रतिनिधियों के साथ आठ दौर की चर्चा की और उनके फीडबैक के आधार पर कई प्रावधान जोड़े. हम एक साथ दो मोर्चों पर आगे बढ़ रहे हैं, यानी, एक तरफ राज्य में निवेश हासिल कर रहे हैं और और दूसरी तरफ युवाओं के लिए रोजगार के अवसर पैदा कर रहे हैं.
गौरतलब है कि हरियाणा न तो केवल अकेला और न ही पहला राज्य है जिसने स्थानीय लोगों के रोजगार को प्राथमिकता दी है. जहां तक मेरी जानकारी है मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात और महाराष्ट्र सहित कई राज्य पहले ही निजी क्षेत्र की नौकरियों को स्थानीय लोगों के लिए आरक्षित करने संबंधी नीतियां बना चुके हैं.
वस्तुत: महाराष्ट्र ने तो राज्य की भाषा के आधार पर नौकरियों में आरक्षण की व्यवस्था की है जबकि हमारा कानून किसी को भी जाति, पंथ, लिंग, भाषा और उनकी सामाजिक स्थिति के आधार पर अवसर से वंचित नहीं करता है. हमने मूल निवास के आधार पर वर्गीकरण किया है जो संविधान के किसी भी प्रावधान का उल्लंघन नहीं करता. ‘डोमिसाइल के आधार पर लाभ’ के मुद्दे को माननीय सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने फैसलों में विचारणीय माना, मान्यता दी और बरकरार रखा है. मुख्यत:, किसी नागरिक या नागरिकों को उसके/उनके डोमिसाइल के आधार पर लाभ प्रदान किए जाने को ‘जन्म स्थान’ या ‘निवास स्थान’ के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है.
एक अन्य पहलू जिस पर गौर करने की जरूरत है, वह ये है कि इस अधिनियम में एक ‘सनसेट क्लॉज’ है जिसका मतलब है कि यह कानून अपने नियमन के 10 साल बाद निष्क्रिय हो जाएगा. हमारा दृढ़ विश्वास है कि हमारी सरकार जिस तेजी और प्रतिबद्धता के साथ अपने नागरिकों के कल्याण के लिए काम कर रही है, अगले एक दशक में राज्य में पुख्ता बुनियादी ढांचा, कुशल श्रमशक्ति और सभी के लिए रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे. ऐसे में आज की तरह सकारात्मक ढंग से इन्हें मजबूती प्रदान करने की जरूरत नहीं रहेगी.
हमने ऐसे मामलों में पूरी राहत दी है जहां किसी नौकरी के लिए उपयुक्त दक्षता रखने वाले लोग नहीं मिल पाते. उद्योग आसानी से जिला आयुक्त से संपर्क कर सकते हैं और अन्य राज्यों से लोगों को भर्ती करने की अनुमति ले सकते हैं. यही नहीं उद्योगों को किसी एक जिले से भर्ती को 10% तक ही सीमित रखने का अधिकार भी दिया गया है, जैसा कि गुरुग्राम स्थित एक शीर्ष ऑटो उद्योग की तरफ से सुझाया गया था.
हरियाणा कारोबार में आसानी के लिहाज से सबसे अच्छे राज्यों में से एक है और हम राजकोषीय और नीतिगत प्रोत्साहन के जरिये से नैसर्गिक वातावरण बनाने को प्रतिबद्ध हैं. लेकिन क्या फायदा होगा यदि हम राज्य के युवाओं को ही रोजगार न दे पाएं. परस्पर संतुलन होना चाहिए. संसाधनों के आवंटन का लाभ रोजगार सृजन के रूप में परिलक्षित होना चाहिए. हरियाणा ने एक कृषि प्रधान राज्य होने के नाते संतुलित आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के लिए अपने संसाधन उद्योगों के हवाले किए हैं. इस पर हमारे अपने अधिकार की भावना रखे बिना विकास के लिए प्रतिबद्धता संभव नहीं है. गुरुग्राम में रहने वाले एक तिहाई वोट ही शहर में पंजीकृत हैं. उनका अपना वोट उनके मूल राज्यों में होता है. इस तरह की व्यवस्थाओं से प्रति व्यक्ति आय तो बढ़ सकती है लेकिन प्रति व्यक्ति खर्च इनसे नहीं बढ़ता है. यदि हम समाजवाद के दर्शन, जो भारतीय संविधान का आधार है, की बात करें तो हर आंख से आंसू पोंछने और अपने मूलवासियों को गुणवत्तापूर्ण जीवनशैली प्रदान करने के लिए राज्य वचनबद्ध हैं, ऐसे में इसके संसाधनों पर सबसे पहला अधिकार वहां रहने वाले लोगों का है.
अनुच्छेद-21 जब आजीविका का अधिकार प्रदान करता है, तो फिर इसका अतिक्रमण कौन कर सकता है. इस तरह की नीति कुछ अर्थशास्त्रियों को भले ही बेतुकी लग सकती है, लेकिन समाजिक उपाय और कल्याण की दृष्टि से देखें तो यह राज्य के मूल निवासियों की सामाजिक और आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया एक कदम है.
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लेखक हरियाणा के वर्तमान उप मुख्यमंत्री हैं. यहां व्यक्त विचार निजी हैं.
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