scorecardresearch
Friday, 22 November, 2024
होममत-विमतप्रधानमंत्री के अपने राज्य में ही फंस गई है भाजपा

प्रधानमंत्री के अपने राज्य में ही फंस गई है भाजपा

पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी गुजरात में 26 में से 26 सीटें जीती थी. इसे दोहरा पाना उसके लिए काफी मुश्किल हो रहा है. 2017 के विधानसभा चुनाव में दिख गया कि मोदी का जादू वहां उतार पर है.

Text Size:

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 30 साल में सबसे शानदार चुनावी प्रदर्शन किया. उसके बाद हार्दिक पटेल कांग्रेस में शामिल हो गए हैं, जो विशाल जनसभाएं करके देश की मीडिया में सुर्खियों में आ चुके हैं. पटेल 2017 में 25 साल उम्र न होने के कारण चुनाव नहीं लड़ पाए थे, जो अब एक परिपक्व किसान नेता के रूप में विकसित हो चुके हैं. अब भाजपा में गुजरात का किला बचाने की घबराहट है और वह ओबीसी नेताओं को हर कीमत पर तोड़ने में लगी है, जिससे 2019 के लोकसभा चुनाव में उसकी स्थिति संतोषजनक रहे.

गुजरात की जमीन 2002 के दंगों के बाद से ही भाजपा के लिए मुफीद रही है. साम्प्रदायिक विभाजन से वोटबैंक तैयार हुआ और 2014 में कांग्रेस के खिलाफ सत्ता विरोधी गुस्से का लाभ उठाकर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी देश की राजनीति पर छा गए.


यह भी पढ़ेंः वादों की तहकीकात: नहीं चली बुलेट ट्रेन, महंगे हुए किराए


लेकिन मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद राज्य की स्थिति काफी बदली है. देश के अन्य इलाकों के लोगों की तरह गुजरात के लोगों को भी प्रधानमंत्री मोदी से ढेरों अपेक्षाएं थी. नोटबंदी और जीएसटी ने राज्य के लघु एवं कुटीर उद्योगों पर विपरीत असर पड़ा. गुजरात के व्यापारियों ने जीएसटी के खिलाफ काफी लंबा आंदोलन चलाया. औद्योगीकरण में किसानों की जमीनें औने पौने भाव ले ली गईं और उन्हें मुआवजा के सिवा रोजी रोटी का कोई अन्य साधन नहीं मिला. कृषि पर निर्भर भूमिहीनों का रोजगार भी छिना और कोई मुआवजा भी नहीं मिला.

कृषक समुदाय का यह असंतोष राज्य में आरक्षण की मांग के रूप में सामने आया. बेरोजगारों की फौज ने पूरे राज्य को अशांत कर दिया. साथ ही गोरक्षा के नाम पर दलितों पर हमले बढ़ गए. गोरक्षा भी एक रोजगार हो गया और दलित समुदाय का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हुआ. पहले से ही परेशान किसानों की मुश्किलें गोरक्षा ने और बढ़ा दीं.

भाजपा 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी 26 सीटें जीतने में सफल रही थी. वहीं 2017 में कांग्रेस को 8 लोकसभा क्षेत्रों- बनासकांठा, पाटन, मेहसाणा, साबरकांठा, सुरेंद्र नगर, जूनागढ़, अमरेली और आणंद में भाजपा की तुलना में ज्यादा मत मिले. अगर पोरबंदर में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का मत जोड़ दें तो वहां भी भाजपा पिछड़ रही है.

भाजपा ने भले ही 2017 के चुनाव में लगातार छठी बार गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की, लेकिन मोदी का आभामंडल खत्म होता साफ नजर आया. 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा 165 विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त पर थी, वहीं 2017 में सिर्फ 99 विधानसभा क्षेत्रों में उसे बढ़त हासिल हुई. भाजपा का मत प्रतिशत 2014 के लोकसभा चुनाव में 60.11 था, जो 2017 में घटकर 49.1 प्रतिशत रह गया.

गुजरात में 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को शहरी इलाकों ने बचा लिया. ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस के प्रति रुझान रहा. पाटीदारों का विरोध प्रदर्शन और किसानों का असंतोष ग्रामीण इलाकों में ज्यादा असरदार रहा, जहां किसानों की जमीनें छिनने का असर था. किसानों को अनाज के दाम उत्पादन लागत से कम मिलने का असर दिखा.

हार्दिक के चुनाव न लड़ पाने व कांग्रेस में न होने के कारण 2017 के चुनाव में पार्टी युवा नेता का भरपूर इस्तेमाल नहीं कर सकी थी. 2019 के चुनाव में वह कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं. आरक्षण आंदोलन के दौरान हार्दिक पर राजद्रोह, दंगा फैलाने सहित तमाम मुकदमे लादे गए. उसी में से एक में निचली अदालत ने दो साल के लिए दोषी भी करार दे दिया है और वह उस मामले में उच्च न्यायालय से राहत पाने की कवायद में हैं, जिससे चुनाव में पर्चा दाखिला कर सकें. 8 मार्च से लोवर कोर्ट के खिलाफ दायर याचिका पर 4 बार सुनवाई टालने के बाद अब उच्च न्यायालय ने राहत देने से इनकार कर दिया है.

घबराई भाजपा की एक ही रणनीति है कि जिन इलाकों में उसका प्रदर्शन खराब रहा है, वहां कांग्रेस के विधायकों व बड़े नेताओं को भाजपा के पाले में लाया जाए. मुख्य रूप से ओबीसी नेताओं को किसी भी कीमत पर भाजपा अपने पाले में लाने की कवायद कर रही है. इस अभियान के तहत राज्य के मजबूत ओबीसी नेता और 5 बार से कांग्रेस विधायक कुंवरजी बावलिया को पार्टी में शामिल कर भाजपा ने उन्हें कैबिनेट मंत्री बना दिया. वहीं कांग्रेस विधायक और अहीर नेता जवाहर चावड़ा को भी भाजपा में शामिल किया गया है. सौराष्ट्र की 4 लोकसभा सीटों पर अहीरों की अच्छी आबादी मानी जाती है, और चावड़ा गुजरात अहीर समाज के अध्यक्ष हैं.


यह भी पढ़ेंः वादों की तहकीकात: आखिर रोजगार देने में कितनी सफल रही मोदी सरकार


अल्पेश ठाकोर को भी भाजपा ने अपने पाले में लाने की कवायद की. लेकिन सुनी सुनाई बात यह है कि ठाकोर को मंत्री पद नहीं मिला, इसलिए वह कांग्रेस में रुक गए. माना जाता है कि उत्तरी गुजरात की 4 लोकसभा सीटों पर भाजपा कमजोर हुई है, वहां ठाकोर समुदाय की आबादी अच्छी खासी है.

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अहमद पटेल पहले केंद्र की राजनीति करते थे. 2017 के विधानसभा चुनाव से उन्हें पूरी तरह से गुजरात की राजनीति करने में लगा दिया गया और अब केंद्र में उनकी भूमिका सीमित कर दी गई है. कांग्रेस के गुजरात के अध्यक्ष अमित चावड़ा मानते हैं कि चुनाव के समय ओबीसी नेताओं को लालच देकर तोड़ लेने से अब राज्य का ओबीसी भाजपा की ओर नहीं जाने वाला है. कुल मिलाकर देखें तो गुजरात ने भाजपा को फंसा दिया है और भाजपा उस जाल में से निकलने के बजाय और उलझती जा रही है.

(लेखिका वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं.)

share & View comments