दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एनडीटीवी के कार्यक्रम ‘टाउनहॉल’ में कहा है कि ‘मेरे को 24 घंटे के लिए सीबीआइ और ईडी दे दो, आधी से ज्यादा भाजपा जेल में नहीं हो तो मेरे को कहना.‘ लेकिन इसके लिए उन्हें अभी कम से कम डेढ़ साल इंतजार करना पड़ेगा. इसके लिए सबसे पहले तो उन्हें 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरना पड़ेगा.
2011 के अन्ना आंदोलन के समय से केजरीवाल के साथ काम कर चुके प्रमुख लोगों से मैं और मेरे साथियों ने अगस्त 2018 में लंबी बातचीत की थी. हम केजरीवाल की विचारधारा को समझना चाहते थे लेकिन आज तक मैं नहीं समझ पाया हूं की उनकी विचारधारा या उनका अंतिम राजनीतिक लक्ष्य क्या है. जैसा कि हम पहले खबर दे चुके हैं, 2019 में केजरीवाल के पास प्रधानमंत्री निवास 7, लोक कल्याण मार्ग तक पहुंचने का साफ खाका तैयार था.
जैसा कि उनके पूर्व कॉमरेडों ने हमें बताया था, उस अलिखित खाके के अनुसार 7, लोक कल्याण मार्ग तक का मार्च केंद्रशासित प्रदेश दिल्ली की सत्ता पर कब्जे के साथ शुरू होना था. अगला पड़ाव 2017 के शुरू में पंजाब था, इसके बाद 2017 अंत में गुजरात और दिसंबर 2018 में राजस्थान बनने वाला था. ये चुनावी जीत केजरीवाल को 2019 के स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले के प्राचीर तक पहुंचाने वाले थे जहां से वे प्रधानमंत्री के रूप में देश को संबोधित करते.
अगस्त 2018 में जब ‘दिप्रिंट’ ने इस खाके का खुलासा किया था तब तक यह छिन्नभिन्न हो चुका था. आप राष्ट्रीय राजधानी में तो सत्ता में थी मगर पंजाब और गुजरात में चुनाव हार चुकी थी. मोदी 2019 में भी प्रधानमंत्री के रूप में लाल किले से भाषण देने के लिए तैयार थे.
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अपेक्षाएं
अब 2022 में आ जाइए. केजरीवाल उस खाके पर फिर से नजर डाल रहे होंगे. दिल्ली में वे मजबूती से जमे हैं, पंजाब को उन्होंने जीत लिया है. और आप अब ‘कट्टर ईमानदार और देशभक्त’ पार्टी के रूप में गुजरात में जनादेश हासिल करने की कोशिश में जुटी है.
गुजरात के मतदाता क्या सोच रहे हैं यह कोई नहीं समझ पा रहा है लेकिन आप के नेता ने, जो सबसे तेजतर्रार नेताओं में शामिल हैं, अपेक्षाएं पाल रखी होंगी. 2017 के गुजरात चुनाव में 29 सीटों पर लड़कर कुल 29,509 वोट हासिल करने वाली आप को वहां भाजपा को हराने के लिए बहुत ऊंची छलांग लगानी होगी. पांच साल पहले भाजपा ने वहां 1.5 करोड़ यानी कुल 49 फीसदी वोट हासिल किए थे.
इसमें शक नहीं कि आप ने गुजरात चुनाव में एक हलचल पैदा कर दी है लेकिन उस चौड़ी खाई को पाटना एक बड़ी चुनौती है. 2013 में, दिल्ली में एक जनांदोलन की लहर पर सवार होने के बावजूद आप बहुमत हासिल करने से चूक गई थी. इसके दो साल बाद हुए चुनाव में वह किसी तरह अपने विरोधियों को हराने में कामयाब हो गई थी. 2017 के पंजाब चुनाव में भी यही स्थिति रही. उसने हलचल तो काफी पैदा की मगर करीब 24 फीसदी वोट पाकर 117 सदस्यों वाली विधानसभा में वह केवल 20 सीटें जीत पाई थी.
इसके पांच साल बाद उसने पंजाब में अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराया, जिसका श्रेय कांग्रेस को दिया जा सकता है. इसलिए, जब गुजरात की बात आती है तब केजरीवाल अपने भाषणों में भले ऊंचे दावे करते हों, उनकी अपेक्षाएं बहुत ऊंची नहीं होंगी. वे सबसे अच्छे नतीजों की उम्मीद तो जरूर कर रहे होंगे लेकिन नतीजों में वे दूसरे या तीसरे स्थान पर ही नजर टिकाए होंगे. दूसरी सबसे अच्छी स्थिति यह हो सकता है कि आप गुजरात में मुख्य विपक्षी दल के रूप में उभरे. फिर भी रास्ता आसान नहीं है. 2017 में 41 फीसदी से ज्यादा वोट हासिल करने वाली कांग्रेस मैदान में अपनी मजबूती दिखा रही है.
सबसे बुरा क्या हो सकता है
इस महीने के शुरू में अपने गुजरात दौरे में मैंने आप के एक नेता से बात की तो उन्होंने मुझे एक आंतरिक सर्वे के नतीजे बताए, जिसके अनुसार गुजरात में कांग्रेस को 18 फीसदी, आप को 34 फीसदी और भाजपा को 36 फीसदी वोट मिलने वाले हैं. इस तरह के सर्वेक्षणों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जा सकता, खासकर तब जबकि वह सर्वे चुनाव मैदान में उतरी पार्टी ने करवाया हो. लेकिन अंतिम नतीजे इन दावों और इस सर्वे से मिलते-जुलते ही मिले, तो 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए आप खुद को भाजपा के एकमात्र राष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी के रूप में पेश करेगी. लेकिन मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरने के लिए केजरीवाल को 2023 में कांग्रेस का सहारा लेने की जरूरत पड़ेगी.
लेकिन इस स्थिति के बारे में चर्चा करने से पहले हम यह देखें कि आप के लिए तीसरी सबसे अच्छी स्थिति क्या हो सकती है. वह यह है कि चुनाव के बाद आप तीसरे नंबर पर आए लेकिन इतने वोट और इतनी सीटें जीते कि राष्ट्रीय स्तर की पार्टी का दर्जा हासिल कर सके. गुजरात की राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा हासिल करने लिए उसे केवल 6 फीसदी से ज्यादा और विधानसभा में दो सीटें ही चाहिए.
दिल्ली, पंजाब और गोवा में तो राज्य स्तरीय पार्टी है ही, अगर गुजरात यानी चौथे राज्य में भी वह यह दर्जा हासिल कर लेती है तो उसे राष्ट्रीय पार्टी के रूप में मान्यता मिल जाएगी. तब वह खुद को भाजपा के खिलाफ मुख्य प्रतिद्वंद्वी पार्टी के रूप में पेश कर सकती है. लेकिन केजरीवाल इसे सबसे बुरी इस स्थिति के रूप में ही देख रहे होंगे.
हम फिर से दूसरी सबसे अच्छी स्थिति पर गौर करें. वह यह कि गुजरात में भाजपा से हारने के बाद भी केजरीवाल मोदी के मुख्य प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरते हैं. लेकिन यह तभी हो सकता है जब आप को कांग्रेस का सहारा मिले. 2023 में कोई नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. इनमें से तीन— त्रिपुरा, मेघालय, और नगालैंड के चुनाव अगले साल फरवरी में होंगे, जबकि कर्नाटक के चुनाव मई में होंगे.
इन राज्यों में आप का शायद ही कोई वजूद है और समय इतना कम बचा है कि वह इनमें छलांग लगा सके, चाहे गुजरात में उसका प्रदर्शन जैसा भी रहे. बाकी पांच राज्यों— राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, और मिज़ोरम— में चुनाव 2023 के नवंबर-दिसंबर में होंगे. फिलहाल इन पांच राज्यों में भी आप का शायद ही कोई वजूद है. उसे इसके लिए कम-से-कम एक साल तैयारी करने पड़ेगी.
अगर गुजरात में इसे बड़ी बढ़त मिलती है तो वह इसके बूते इन राज्यों में अपनी स्थिति मजबूत करने की उम्मीद रख सकती है. यहीं उसे कांग्रेस के सहारे की जरूरत पड़ेगी.
तेलंगाना में भाजपा और तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीच सीधी टक्कर होने की संभावना है, बशर्ते कांग्रेस पीछे से उभरकर मुक़ाबले को तिकोना न बना दे. इसलिए आप के लिए खास संभावना नहीं बनती, भले ही वहां पार्टी प्रभारी बनाए गए विधायक सोमनाथ भर्ती उस राज्य का बार-बार दौरा कर रहे हैं.
बाकी तीन राज्यों— राजस्थान, मध्य प्रदेश, और छत्तीसगढ़—में आप की शायद ही कोई मौजूदगी है. लेकिन 2019 में केजरीवाल ने जो खाका बनाया था उसे याद कीजिए. इस खाके के मुताबिक वे उम्मीद कर रहे थे कि नवंबर-दिसंबर 2023 में राजस्थान उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर अहम स्थिति में पहुंचा देगा. लेकिन वहां अशोक गहलोत और सचिन पाइलट में जिस तरह की तलवारबाजी चल रही है उसके चलते कांग्रेस आलाकमान अलग ही दिशा में देख रहा है. वैसे, केजरीवाल यह उम्मीद कर सकते हैं कि कांग्रेस ने जो प्रयोग पंजाब में किया उसे इस मरु-प्रदेश में भी दोहरा सकती है.
और, राजस्थान ने लोकसभा चुनाव से चंद महीने पहले कोई चमत्कार कर दिया तो यह लाल किले से देश को संबोधित करने की दिल्ली के मुख्यमंत्री की जो आकांक्षा है उसे मजबूती मिल सकती है. वे जम्मू-कश्मीर में केंद्र सरकार के कदमों पर जरूर नजर रख रहे होंगे. आप उस केंद्रशासित प्रदेश में अपना संगठन खड़ा करने की कोशिश करती रही है. वैसे, जम्मू-कश्मीर को लेकर अपनी योजनाओं को वह गुप्त ही रखे हुए है. लेकिन वहां वह जो तैयारियां कर रही है उनसे लगता है कि अगर केंद्र ने वहां अगले साल कभी चुनाव कराने का फैसला किया तो वह अपने राजनीतिक विरोधियों को आश्चर्य में डाल सकती है.
बहरहाल, केजरीवाल अपनी तमाम तैयारियों के साथ अपनी उम्मीदें कांग्रेस और अपनी जीत को हार बदलने के उसके हाल के रेकॉर्ड पर भी जरूर टिकाए होंगे.
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अनुवाद- अशोक कुमार
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