उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ. जुबान तालू से चिपक गई और गला सूख गया. वह समझ नहीं पा रही थी कि कैसे रियेक्ट करे. पद्मावती के हाथ कांपने लगे. उसे लगा जैसे सामने खड़ी डाक्टरनुमा औरत उसका बलात्कार कर रही है. लगा जैसे उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है. सामने खड़े सभी डॉक्टर उसे महिला की तरह भी नहीं, सिर्फ एक मादा की तरह देख रहे थे. एक ऐसी मादा जिसके पास इज्जत नाम की कोई चीज होती है और जिसे जब चाहे कुचला जा सकता है.
लेकिन पद्मावती की हालत से लापरवाह अनुभवी डॉक्टर जोशी ने आगे कहा- खुद को साध्वी कहती हो और चरित्र ऐसा है, तो किस आधार पर उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पर आरोप लगाती हो.
जबरदस्ती उठाया पद्मावती को अनशन से
क्षणभर में साध्वी के सामने प्रोफेसर जीडी अग्रवाल की छवि उभरी. डेढ़ साल पहले इसी तरह अस्पताल में उन्हें जबर्दस्ती भर्ती किया गया था जहां उनकी मौत हो गई थी. सामने रखा जांच रिपोर्ट का कागज साध्वी को उसकी औकात बता रहा था.
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उसकी मुट्ठियां भिंच गईं, अपनी सारी ताकत एकत्र कर वह जोर से चीखी.
पद्मावती समझ गई कि यह उनके आश्रम मातृ सदन और गंगा आंदोलन को कुचलने की एक घिनौनी कोशिश है.
गंगा आंदोलन अब अनशन और मध्यस्थता से आगे साजिश, बलात्कार, हत्या और औरत की पहचान से ही नफरत करने वाले दौर में पहुंच गया है.
तकरीबन 45 दिन से अनशन कर रही साध्वी पद्मावती को बंसत पंचमी यानी 31 जनवरी की रात को पुलिस ने उठा लिया. पुलिस और डाक्टरों की एक टीम ने उन्हें स्वास्थ्य जांच के नाम पर देहरादून में भर्ती कराया. उनके स्वास्थ्य की जांच करने वाले डॉ भंडारी जांच के परिणामों को लेकर पहले ही आश्वस्त थे. शायद इसीलिए उन्होंने यह भी ध्यान नहीं दिया कि जिस महिला का पिछले 45 दिन में कई बार यूरिन टेस्ट हो चुका है उसे गर्भवती बताने को साबित कैसे करेंगे.
चूक का एहसास होते ही एक बार फिर उनका टेस्ट किया गया और इस बार सब नार्मल था.
मानहानि का नोटिस
इस खेल की डोर मुख्यमंत्री निवास से जुड़ी नजर आती है. पद्मावती और मातृ सदन के स्वामी शिवानंद ने सीधे तौर पर इसमें उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत के शामिल होने का आरोप लगाया है. उनका मानना है कि यदि डॉक्टर और पुलिस अधिकारियों का कॉल रिकार्ड जांचा जाए तो पता चलेगा कि उन्हे निर्देश सीधे देहरादून से मिल रहे हैं. खुद मुख्यमंत्री रावत भी कई मंचों से पद्मावती के खिलाफ बोल चुके हैं.
टेस्ट रिपोर्ट नॉर्मल आने के बाद भी शिवानंद को कहा गया कि पद्मावती को कोई गंभीर बीमारी है और इलाज के लिए एडमिट करना होगा. लेकिन गंगा आंदोलन में कई संतों की आहूति देख चुके शिवानंद ने एडमिट कराने से साफ इंकार कर दिया. उन्होंने कहा पहले बीमारी बताइए क्या है और उसका इलाज हम अपनी देखरेख में आश्रम में ही कराएंगे. इसके बाद लाचार प्रशासन ने पद्मावती को आश्रम वापस भेज दिया. सक्रियता दिखाते हुए शिवानंद ने अस्पताल को चिट्ठी लिख सीसीटीवी फूटेज से छेड़छाड़ ना करने की चेतावनी दी और उन्हे सौ करोड़ रुपए मानहानि का नोटिस भी भेज दिया.
यह भी सवाल उठता है कि अनशन के दौरान लगातार उनकी जांच करने वाली डॉक्टरों की टीम का रवैया केंद्रीय जल सचिव यूपी सिंह के हरिद्वार दौरे के बाद अचानक क्यों बदल गया. जो डॉक्टर एक दिन पहले तक पद्मावती को स्वस्थ्य घोषित कर रहे थे वे यह क्यों कहने लगे कि इन्हें देहरादून एडमिट करने की आवश्यकता है.
बहरहाल इसी समय गंगा एक और घटना का गवाह बन रही थी.
गंगा यात्रा
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पांच दिवसीय गंगा यात्रा निकाली गई. अलग-अलग रास्तों से चली यात्रा में राज्यपाल से लेकर कई केंद्रीय मंत्री भी शामिल थे. यात्रा की शुरुआत में योगी ने दावा किया कि गंगा पूरी तरह साफ हो चुकी है. इस यात्रा के पक्ष में बड़े-बड़े लेख लिखे गए और विज्ञापन जारी किए गए. पूरी कोशिश की गई कि देश में संदेश जाए कि गंगा सफाई मुकम्मल हो चुकी है. यह दीगर बात है कि सभी नेता सड़क मार्ग से ही गंगा यात्रा कर रहे थे और शाम को आयोजित आरती के दौरान ही गंगा तट पर जाते थे.
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कुछ दिन पहले एक अधिकारी को मातृ सदन भेज समर्थन जताने वाले योगी आदित्यनाथ और दूसरे मंत्रियों ने इस बात का विशेष ध्यान रखा कि यात्रा के दौरान गलती से भी पद्मावती का जिक्र ना आने पाए. कोई आश्चर्य नहीं कि पद्मावती के साथ घटी इस घटना का जिक्र उत्तराखंड के कुछ आंचलिक अखबारों तक सिमट कर रह गया. दिल्ली के मीडिया में वैसे भी योगी ही बिकते हैं, साध्वी नहीं.
कुल मिलाकर गंगा बांध पर रोक लगाने, पर्यावरणीय बहाव को सुनिश्चित करने, नालों को रोकने, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाने जैसे मामूली कामों को छोड़कर घाट सजाने वाले काम हो चुके हैं, उन सीढ़ियों को भी तोड़ कर दोबारा बना दिया गया है जिन पर प्रधानमंत्री लड़खड़ाए थे.
इस बीच साध्वी का अनशन जारी है और योगी ने गंगा बेसिन की दूसरी नदियों को भी इसी तरह साफ करने का वादा किया है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. यह लेख उनके निजी विचार हैं)