हाल की हिंदू विरोधी सांप्रदायिक हिंसा से बांग्लादेश ने जिस तरह निपटा, वह भारत ही नहीं दुनिया भर के देशों के लिए एक सबक हो सकता है. बांग्लादेश ने सांप्रदायिकता से लड़ने को लेकर कोई किंतु-परंतु नहीं दिखाया, कोई पक्ष और विपक्ष नहीं रहा. हिंसा की निंदा सब ने की, एक स्वर में की, समाज के हर तबके ने की.
पिछले हफ्ते बांग्लादेश के कई जिलों में एक के बाद एक हिंदू विरोधी हिंसा भड़क उठी. हाल के वर्षों की ये सबसे भीषण हिंसा थी. दुर्गा पूजा के दौरान, पूजा पंडालों, मंदिरों और हिंदू बस्तियों पर हमले हुए. इन घटनाओं की शुरुआत कुमिल्ला में एक दुर्गा पूजा पंडाल में कुरान के कथित अपमान की पोस्ट फेसबुक के जरिए वायरल होने से हुई. बांग्लादेश के एक प्रमुख अखबार The Daily Star के मुताबिक, ‘इस दौरान 101 मंदिरों और 181 हिंदू स्वामित्व वाले घरों और दुकानों पर हमले हुए.’
कई लोगों के दिमाग में ये छवि है कि बंगाल के लोग शांत और शालीन होते हैं, लेकिन इतिहास की ये निर्मम सच्चाई है कि पूर्वी और पश्चिमी बंगाल यानी अब के बांग्लादेश और भारतीय राज्य पश्चिम बंगाल में विश्व इतिहास की सबसे क्रूर सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएं हुईं और हिंसा करने में न बंगाली हिंदू पीछे थे न बंगाली मुसलमान. बंगाल में ही भारत विभाजन की नींव पड़ी- मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा दोनों का यहां काफी असर रहा. आजादी से ठीक पहले और बाद में यहां हिंदू बहुल और मुस्लिम बहुल इलाकों में काफी बड़ी हिंसा हुई. इसी क्रम में बांग्लादेश के काफी हिंदू भारत भी चले आए.
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बांग्लादेश ने सांप्रदायिक हिंसा से कैसे निपटा
2021 में बांग्लादेश में हुई हिंसा को बांग्लादेश सरकार से जिस तरह से दबाया और इस काम में विपक्ष से लेकर मीडिया और सिविल सोसायटी संगठनों और तमाम विचार के बुद्धिजीवियों ने जिस तरह की भूमिका निभाई, वह प्रशंसनीय है. खास बात ये रही कि इस हिंसा का राजनीति से लेकर मीडिया में कोई समर्थक नहीं था. कम से कम सार्वजनिक तौर पर ये नजर नहीं आया.
यहां एक बार भारत का हाल देख लेना उचित होगा. पिछले तीस साल से खासकर बाबरी मस्जिद गिराए जाने के बाद से भारत का सांप्रदायिक तापमान लगातार ऊंचा है. गुजरात दंगों और 2014 में केंद्र में बीजेपी के शासन में आने के बाद सांप्रदायिक हिंसा को शासकीय पार्टी और विचारधारा वाले संगठनों का समर्थन भी मिल रहा है. माहौल इतना विषाक्त हो चुका है कि कठुआ में एक बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या होती है तो सिर्फ धार्मिक और जातीय पहचान के आधार पर अभियुक्त ( जिसका दोष बाद में कोर्ट में सिद्ध हुआ) के पक्ष में तिरंगा यात्रा निकाली गई. दिल्ली में 2020 में हुए दंगों के दौरान प्रशासन ने दंगा भड़काने वाले भाषणों पर कार्रवाई नहीं की और मीडिया और सोशल मीडिया का दंगा भड़काने में खूब इस्तेमाल हुआ. टीवी चैनलों ने दंगों की जांच शुरू होने से पहले ही उसमें विदेशी और आईएस का हाथ देख लिया और टीवी पर इसके लिए कार्यक्रम भी हो गए.
यहां तक कि जब देश कोविड-19 के विराट संकट से जूझने की तैयारी ही कर रहा था, तब देश में चर्चा इस बारे में चल रही थी कि तबलीगी जमात ने कोरोना फैलाने में कितना बड़ा रोल निभाया. मीडिया ने इस सांप्रदायिक विचार को खूब हवा दी. जबकि इस दौरान और बाद में तबलीगी जमात की तुलना में कई गुना बड़े जमावड़े हुए और चुनावी सभाएं और रैलियां तक हो गईं, जिन्हें खुद प्रधानमंत्री ने संबोधित किया. लव जिहाद हो या गाय का मामला, पूरा देश एक स्वर में कभी कुछ नहीं बोलता. सांप्रदायिक मुद्दा हमेशा हम बनाम वो की तरह होता है और राष्ट्रीय एकता के दर्शन कम से कम इस बिंदु पर नहीं होते. अब तो संकट और बड़ा है क्योंकि खुद शासक पार्टी की मंशा सांप्रदायिक तापमान को कम करने की नहीं होती.
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बांग्लादेश में हिंसा की समवेत निंदा
बांग्लादेश सरकार ने हिंसक घटनाओं की सूचना मिलने के बाद ही स्पष्ट कर दिया कि वह हिंसा के खिलाफ है और दोषियों को ढूंढ निकाला जाएगा और कानून के तहत दंडित किया जाएगा. प्रधानमंत्री शेख हसीना ने कहा कि ‘मुसलमानों या किसी भी और धार्मिक समूह की ही तरह हिंदुओं को भी बिना किसी भय या रोकटोक के पूजा-उपासना का अधिकार है. 1971 में बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम में हिंदू भी मुसलमान भाइयों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़े थे और उन्हें बांग्लादेश में समान अधिकार है.’
Hindus have the right to worship without fear as much as Muslims and other religious groups. They fought alongside their Muslim brothers during the #LiberationWar1971 and have equal rights in Bangladesh.
– HPM #SheikhHasina
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प्रधानमंत्री शेख हसीना ने देश के गृह मंत्री को निर्देश जारी किया कि हिंदुओं के खिलाफ हिंसा करने वालों पर सख्त कार्रवाई की जाए. सरकार के निर्देशों पर अमल करते हुए बांग्लादेश की पुलिस ने 71 मुकदमे दर्ज किए और 450 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया. जिस कुमिल्ला शहर से दंगा शुरू हुआ, वहां उस व्यक्ति की शिनाख्त करके उसे गिरफ्तार कर लिया गया, जिसने विवादित वीडियो को सबसे पहले फेसबुक पर अपलोड किया था. कुमिल्ला में कुल 43 लोग पकड़े गए.
सत्ताधारी दल के तौर पर आवामी लीग ने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए अभियान छेड़ा और ये नारा दिया कि हर आदमी अपना धर्म मानें, लेकिन त्योहार हर किसी के हैं. ये नारा काफी लोकप्रिय हुआ है. पार्टी की ओर से कई शांति जुलूस निकाले गए और सद्भाव बैठकें की गईं. पार्टी के महासचिव ओबैदुल कादिर ने कहा कि पार्टी के सदस्य सांप्रदायिक शक्तियों के खिलाफ संघर्ष करेंगे.
In response to the recent attacks on the Hindu community, Awami League is inspiring the general people to protest bigotry spreading the motto "Each unto his or her religion, festivals are for all"
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बांग्लादेश की मीडिया ने भी इस दौरान बेहद जिम्मेदारी से रिपोर्टिंग की और ऐसा कुछ भी नहीं किया, जिससे अशांति फैले. जब कुमिल्ला में कुरान के अपमान को लेकर पुलिस जांच में ये बात सामने आई कि ऐसा करने वाला भी मुसलमान था, तो बांग्लादेश के प्रमुख मीडिया संस्थानों ने ये खबर और उसकी फोटो को प्रमुखता से प्रकाशित किया. इससे विवाद खत्म करने में काफी मदद मिली.
Iqbal Hossain, identified as prime suspect of placing the Holy Quran at a Cumilla puja mandap, might have been prompted by someone, Home Minister Asaduzzaman Khan said today.#Bangladesh pic.twitter.com/ahdsVbR0Mn
— The Daily Star (@dailystarnews) October 21, 2021
सिविल सोसायटी संगठनों ने भी शांति की पहल की. कई यूनिवर्सिटी और कॉलेजों में शांति जुलूस निकाले गए, जिसमें पक्ष और विपक्ष दोनों ओर के राजनेताओं और पत्रकारों ने भी हिस्सा लिया. बांग्लादेश की क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान मशरफे बिन मुर्तजा ने हिंदुओं पर हुए हमलों की निंदा की और कहा कि ये वो लाल और हरा रंग नहीं है, जिसकी हमने कल्पना की थी. वे दरअसल बांग्लादेश के झंडे में मौजूद इन दो रंगों और एकता की बात कर रहे थे. फिल्म कलाकार भी हिंसा के विरुद्ध मुखर होकर सामने आए.
आम तौर पर, विपक्ष की राय अलग होती है. लेकिन इस मामले में बांग्लादेश का विपक्ष भी सांप्रदायिकता के खिलाफ खड़ा नजर आया. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी ने हालांकि हिंसा और उपद्रव के लिए सरकार और सत्ताधारी दल की आलोचना की लेकिन हिंसा के खिलाफ मुहिम छेड़ने की भी बात की. पार्टी के प्रमुख नेता मिर्जा अब्बास ने कहा कि अगर सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ मजबूत प्रतिरोध खड़ा न किया गया तो इससे बांग्लादेश की वैश्विक छवि को नुकसान होगा. उन्होंने कहा कि “ये घटनाएं बांग्लादेश की आजादी और संप्रभुता के लिए खतरा बन सकती हैं.” ये बेहद सख्त बयान है.
भारत के लिए सबक
भारत ने बांग्लादेश की घटनाओं पर चिंता जताई है. विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने ये बयान दिया कि भारतीय अधिकारी बांग्लादेश उच्चायोग के साथ संपर्क में हैं. इसके अलावा ढाका में स्थित भारतीय उच्चायुक्त ने पीड़ित हिंदुओं के एक प्रतिनिधिमंडल से मुलाकात भी की और उनकी शिकायतें भी सुनीं. ऐसी बातों को कई बार देश आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप की तरह मान लेते हैं और विरोध करते हैं. लेकिन बांग्लादेश ने संतुलित प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि बांग्लादेश के अधिकारी ढाका में भारतीय उच्चायोग के अफसरों से संपर्क बनाए हुए हैं.
ये सही है कि बांग्लादेश में सांप्रदायिक हिंसा हुई. लेकिन सीखने की बात ये है कि बांग्लादेश ने और वहां की तमाम संस्थाओं ने किस तरह एक स्वर में हिंसा की निंदा की और अमन बहाली की कोशिश की.
इसके मुकाबले भारत की राजनीति मौजूदा दौर में बहुत बुरी तरह बंट चुकी है. राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर भी सत्ता और विपक्ष के बीच मतभिन्नता नजर आती है. खासकर सांप्रदायिक मुद्दा अब सरकारी दल का मुद्दा है और हर मामले में राजनीतिक दल और सिविल सोसायटी आपस में पंजा लड़ाती दिखती है.
वहीं बांग्लादेश में राजनीति तो चल रही है, लेकिन इस बात पर आम राय बन गई है कि इस समय देश की प्राथमिकता मानव विकास- शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास और आर्थिक विकास है. सांप्रदायिक हिंसा से इस प्रोजेक्ट में बाधा आ सकती है. शायद यही वजह है जिसे बचाने के लिए पूरा देश सांप्रदायिक हिंसा के खिलाफ एकजुट है.
(लेखक पहले इंडिया टुडे हिंदी पत्रिका में मैनेजिंग एडिटर रह चुके हैं और इन्होंने मीडिया और सोशियोलॉजी पर किताबें भी लिखी हैं. व्यक्त विचार निजी हैं)
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