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Sunday, 22 December, 2024
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सरकार खर्चों पर ध्यान रखे, जन-केंद्रित ही नहीं बल्कि जीडीपी-केंद्रित भी बने

भारत की सरकारें अखिल भारतीय स्तर पर जीडीपी के 28 फीसदी के बराबर की राशि खर्च करती रही हैं लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि भारत ने ज्यादा खर्च करके अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बना लिया है

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भारत की केंद्र सरकार हो या राज्य सरकारें, वे दुनिया की सबसे खर्चीली सरकारों की गिनती में शुमार नहीं है. कई क्षेत्रों, मसलन ज़्यादातर अमीर देशों, लैटिन अमेरिकी देशों और मध्य तथा पूर्वी यूरोप के देशों, मध्य तथा पश्चिम एशिया के देशों की सरकारें अपने देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के हिसाब से ज्यादा खर्च करती रही हैं.

लेकिन भारत की सरकारें शाहखर्च नहीं हैं. अंतरराष्ट्रीय मुद्रकोष (आइएमएफ) की वैश्विक आर्थिक स्थिति रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की सरकारें अखिल भारतीय स्तर पर जीडीपी के 28 फीसदी के बराबर की राशि खर्च करती रही हैं. यह दक्षिण-पूर्व एशिया और उप-सहारा अफ्रीका के कई देशों के द्वारा खर्च के अनुपात से ज्यादा है. भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे अपने पड़ोसियों के मुक़ाबले भी जीडीपी के लिहाज से कहीं ज्यादा खर्च करता है.

लेकिन इस खर्च से हासिल क्या हुआ है?

उदाहरण के लिए, बांग्लादेश का सरकारी खर्च भारत के सरकारी खर्च (जीडीपी के 14.5 फीसदी के बराबर) के मुक़ाबले आधा ही है लेकिन वहां लोगों की औसत अधिकतम आयु और स्कूल में पढ़ाई करने की अवधि के आंकड़े भारत के इन आंकड़ों से बेहतर हैं. उसने प्रति व्यक्ति आय का आंकड़ा भी भारत के इस आंकड़े के लगभग बराबर कर लिया है.

मलेशिया, थाईलैंड, और वियतनाम जैसे दक्षिण-एशियाई देशों की सरकारें भी अपनी जीडीपी के अनुपात में कम खर्च करने के बावजूद स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्रों में बेहतर सुधार कर रही हैं. इन और दूसरे कई देशों का वित्तीय घाटा भी कम है और सरकारी कर्ज भी कम ही है— भारत का 83.2 फीसदी है, तो बांग्लादेश का इससे आधा है और वियतनाम का तो इससे भी कम है.

यह भी नहीं कहा जा सकता कि भारत ने ज्यादा खर्च करके अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बना लिया है. इसकी किस तरह व्याख्या की जा सकती है?

एक जवाब तो यह हो सकता है कि आंकड़े भ्रामक हो सकते हैं. प्रति व्यक्ति ऊंची जीडीपी के निचले प्रतिशत के मुक़ाबले प्रति व्यक्ति नीची जीडीपी के ऊंचे प्रतिशत के कारण प्रति व्यक्ति पूर्ण खर्च में कमी आ सकती है.

इसलिए भारत में जीडीपी के लिहाज से सरकारी खर्च का अनुपात ऊंचा हो सकता है लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के उच्च आय वाले देशों के मुक़ाबले प्रति व्यक्ति कम खर्च कर सकता है. इसलिए स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में खराब प्रदर्शन कर सकता है. लेकिन बांग्लादेश इस लिहाज से एक अपवाद है कि वह प्रति व्यक्ति कम खर्च करके भी बेहतर प्रदर्शन कर रहा है.

लेकिन यह भी सच है कि जहां भी सरकारों ने स्कूल, स्वास्थ्य सेवा आदि विभिन्न तरह की सेवाएं उपलब्ध कराई है वे प्रायः स्तरीय नहीं हैं.

इसलिए, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस बयान पर गौर करना जरूरी है कि सरकार के कार्यक्रम सरकार-केंद्रित न होकर जन-केंद्रित होने चाहिए यानी वे भ्रष्टाचार मुक्त हों और बेहतर नतीजे दें. हाल में, जी-20 शिखर सम्मेलन के मामले में प्रधानमंत्री ने जीडीपी-केंद्रित नजरिए की जगह मनुष्य-केंद्रित नजरिया अपनाने की बात की.

उन्हें इस बात का श्रेय दिया जा सकता है कि वे जनता की बुनियादी सुविधाएं— सबको बिजली और नल से जल— मुहैया कराने की जो बात कर रहे हैं उस पर काम भी कर रहे हैं. महिलाओं को रियायती दर पर रसोई गैस उपलब्ध कराने से लेकर सरकारी मदद से मकान और शौचालय बनाने, मुफ्त अनाज और मेडिकल बीमा, किसानों को नकद सहायता देने के कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. इनके अलावा, उन्होंने खासकर परिवहन इन्फ्रास्ट्रक्चर में सरकारी निवेश बढ़ाया है. भविष्य के लिए, उन्होंने मैनुफैक्चरिंग सेक्टरों में निवेश को बढ़ावा देने के लिए एक व्यापक पृत्साहन कार्यक्रम शुरू किया है.

इस तरह की पहल के सामाजिक तथा आर्थिक परिणामों के बारे में अभी कुछ कहना जल्दबाज़ी होगी. इसकी कुछ वजह सरकारी सांख्यिकी व्यवस्था (कोई गणना नहीं, उपभोग के आंकड़े नहीं) में छिपी है, और हाल के कदमों को अभी पूरी तरह लागू भी नहीं किया गया है.

लेकिन एक वजह साफ दिख रही है— जीडीपी में सरकारी (केंद्र और राज्यों का) राजस्व की हिस्सेदारी पिछले कई वर्षों से गिरती रही है जबकि जीडीपी में खर्च की हिस्सेदारी में एक दशक पहले के मुक़ाबले आज करीब एक प्रतिशत-अंक की वृद्धि हुई है. नतीजतन, घाटा और सरकारी कर्ज बढ़ा है, इसके लिए बेशक कोविड संकट भी कुछ जिम्मेदार है.

अगर खर्च में कटौती किए बिना घाटे और कर्ज को कम करके समान स्तर वाले देशों के स्तर के बराबर लाना है तो आसान रास्ता आर्थिक वृद्धि की गति को बढ़ाना ही हो सकता है, जो प्रति व्यक्ति जीडीपी का अनुपात बढ़ा देगा.
और सरकार चाहे जितना भी जन-केन्द्रित होना चाहे, सामाजिक निवेश और जनकल्याण के पैकेज के लिए ज्यादा पैसा खर्चों पर ध्यान देने, और आर्थिक वृद्धि से ही हासिल हो पाएगा.

दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को लाभ इसलिए मिला क्योंकि उन्होंने दोनों काम किए और आज बेहतर हाल में हैं. आर्थिक वृद्धि महत्व रखती है. सरकारों को ज्यादा जन-केंद्रित तो होना ही चाहिए, ज्यादा जीडीपी-केंद्रित भी होना चाहिए.

(बिजनेस स्टैंडर्ड से स्पेशल अरेंजमेंट द्वारा)

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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