कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से बाजार और कारखाने पूरी तरह से बंद हैं. अर्थव्यवस्था की रीढ़ माने जाने वाले लाखों मजदूर दर-बदर की ठोकरे खा रहे हैं. इसमें बड़ी संख्या प्रवासी मजदूरों की है. भारत में 39 करोड़ से अधिक असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की एक ऐसी बड़ी आबादी है, जो किसी भी सुरक्षा घेरे से बाहर हैं. कोरोनावायरस के परिणाम केवल स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों तक सीमित नहीं हैं. यह दीर्घकालिक मानवीय चिंताओं को बढ़ाते हैं. कारोना संकट की एक ऐसी भयावह तस्वीर दिखाई दे रही है, जो मनुष्यों को एक बार फिर गुलामी और बंधुआ मजदूरी की तरफ धकेल सकती है.
कोरोना संकट काल में एक बड़ी आबादी मानव दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), जो दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है, का सबसे आसान शिकार बन सकती है. लाखों प्रवासी मजदूरों को अभाव और भूख का सामना करना पड़ेगा. उन्हें जिंदगी की जरूरतों को पूरा करने के लिए मजबूरी में साहूकारों और सूदखोरों से बहुत ऊंची ब्याज दरों पर कर्ज लेने होंगे. कर्ज नहीं चुकाने की हालत में उनकी कई पीढ़ियों को दशकों तक बंधुआ मजदूर बनना पड़ेगा. उनके हजारों बच्चों को गुलाम बनाया जाएगा.
लॉकडाउन हटते ही कारखाना मालिक सस्ते श्रम को नियोजित करके अपने वित्तीय घाटे को पूरा करने की कोशिश करेंगे. ऐसी स्थिति में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की सस्ते श्रम के सबसे आसान शिकार बनने की आशंका है. उन मजदूरों में भारी संख्या में ऐसे बच्चे होंगे, जो अपने परिवारों का भरण-पोषण करने के लिए अपनी स्कूली पढाई बीच में ही छोड़ कर काम करने लगेंगे. देशभर में हजारों बच्चों का विनिर्माण इकाइयों में काम करने के लिए दुर्व्यापार किया जाएगा. यानी बंधुआ बाल मजदूरी के लिए उनकी खरीद-फरोख्त की जाएगी. उन्हें मामूली पैसे में खटाया जाएगा. ऐसे बच्चों को शारीरिक, मानसिक और यौन हिंसा का भी सामना करना पड़ेगा. कम उम्र की लड़कियों की शादी की जाएगी. इससे बाल विवाह बढ़ेगा. बहुत सारी लड़कियां दुर्व्यापार की शिकार होगी. उन्हें देह व्यापार के लिए खरीदा और बेचा जाएगा. ऐसी स्थिति में उन लड़कियों को देह व्यापार के पेशे में सबसे ज्यादा धकेला जाएगा, जिनके परिवार के सामने बेरोजगारी और भुखमरी की वजह से जीने-मरने का संकट पैदा होगा.
इस लॉकडाउन का एक और खतरनाक पहलू है, जिसकी वजह से बच्चों का यौन शोषण बढ़ेगा. मीडिया रिपोर्टें बता रही हैं कि इस दौरान लोग घरों में खाली बैठे पोर्न फिल्में देख रहे हैं और इनकी मांग बहुत ज्यादा बढ़ गई है. इसमें भी लोग धड़ल्ले से चाइल्ड पार्नोग्राफी देख रहे हैं. जबकि अपने देश में यह प्रतिबंधित है. बाल दुर्व्यापार और बाल बलात्कार के उन्मूलन के लिए काम करने वाले दक्षिण एशिया के सबसे बड़े बाल संरक्षण संगठनों में से एक इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन फंड की ताजा रिपोर्ट ‘चाइल्ड सेक्सुअल अब्यूज़ मटेरियल इन इंडिया’ यह बताती है कि लॉकडाउन के दौरान भारत में चाइल्ड पोर्नोग्राफी की मांग अप्रत्याशित रूप से बढ़ कर दुगनी हो गई है. जो वयस्क ऐसी फिल्में देखते हैं, उनकी बच्चों को अपनी हवस का शिकार बनाने की संभावना बढ़ जाती है.
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कोरोना संकट से उबरने के लिए फिलहाल तो केंद्र और राज्य सरकारें स्वास्थ्य और आर्थिक चुनौतियों पर ध्यान दे रही हैं. यह फौरी आवश्यकता भी है. लेकिन कोरोना संकट के बाद पैदा होने वाली स्थितियों पर भी हमें नजर रखनी होगी और उसकी चुनौतियों से निपटने की हमें अभी से तैयारी करनी होगी. भुखमरी के कगार पर पहुंचे मजदूर और उनके बच्चों के लिए समाज और कार्पोरेट जगत को भी आगे आना होगा. सरकार को बच्चों की सुरक्षा को प्राथकिता देते हुए उनके लिए अलग से राहत पैकेज देने के साथ-साथ कारगर योजनाएं बनानी होंगी.
बच्चों को हिंसा से बचाने के लिए भारत में एक मजबूत बाल दुर्व्यापार विरोधी कानून की सख्त जरूरत है. मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में एक दुर्व्यापार विरोधी विधेयक संसद में पेश किया था. लेकिन दुर्भाग्य से यह विधेयक तय अवधि में राज्य सभा में पेश न हो पाने से अप्रभावी हो गया है. सरकार को फौरन इस विधेयक को फिर से संसद में पेशकर कर पारित कराना चाहिए. साथ ही बाल मजदूरी को रोकने के लिए सरकारी एंजेसियों और श्रम विभाग को विनिर्माण इकाइयों पर कम से कम अगले दो साल तक विशेष ध्यान देने की जरूरत है.
बाल मजदूरी की रोकथाम में लगी कानून प्रवर्तन एंजसियों और पीड़ितों के पुनर्वास के बजट में तत्काल बढ़ोतरी की जरूरत है. साहूकारों के कर्ज में फंस कर ही गरीब और उनके बच्चे बंधुआ मजदूर बन जाते हैं. शहर से लौटे बेरोजगार मजदूरों के इस दुश्चक्र में फंसने की प्रबल संभावना है. इसलिए निजी कर्जदाताओं और धन उधार प्रणालियों के विनियमन की सख्त जरूरत है. साहूकारों के ब्याज पर दरों की अधिकत सीमा निर्धारित करने और सरकारी बैंकों द्वारा सरल और उदार वसूली प्रक्रिया के तहत बिना जमानत के लंबी अवधि के आसान कर्ज मुहैया कराने की जरुरत है.
ऑनलाइन बाल यौन उत्पीड़न सामग्री की पहुंच को आसान और सुगम बनाने वाले इंटरनेट सेवा प्रदाताओं और डिजिटल प्लेटफार्मों को जवाबदेही के अंतर्गत लाकर इसे नियंत्रित करने की भी जरूरत है. साथ ही सरकार को दुर्व्यापार प्रभावित इलाकों में लोगों को जागरुक करने के साथ-साथ सुरक्षा का व्यापक जाल फैलाना चाहिए.
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सरकार को चाहिए कि वह फौरन असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के पंजीकरण का काम शुरू करे. किसी भी संकट को पैदा होने से पहले ही उसे दूर करने के लिए तैयारी किए जाने की जरूरत होती है. इसी को ध्यान में रखते हुए मजदूरों की आर्थिक सुरक्षा के विशेष वित्तीय बजट का प्रावधान होना चाहिए. जाहिर है कि मौजूदा समय में जो वैश्विक स्वास्थ्य संकट चल रहा है, उसका दुष्परिणाम बाद में भी देखने को मिलेगा. इसलिए लॉकडाउन के बीच हमारी दूरदर्शिता और भविष्य की तैयारियां करोड़ों लोगों और बच्चों के जीवन को बचाने में कारगर हो सकती हैं.
(लेखिका कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रन्स फाउंडेशन की नीति निदेशक हैं. यहां व्यक्त उनका निजी विचार है)