scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होममत-विमतन किसी यादव सम्मेलन में गया, न भूराबाल साफ करो कहा- लालू यादव

न किसी यादव सम्मेलन में गया, न भूराबाल साफ करो कहा- लालू यादव

लालू यादव भारतीय लोकतंत्र का चमत्कार भी हैं और एक पहेली भी. उनके जीवन को समझिए खुद उनके नजरिए से, क्योंकि उन्होंने पहली बार अपनी आत्मकथा लिखी है.

Text Size:

वैसे लालू यादव के बारे में इतना कुछ लिखा और सुना जा चुका है कि नयेपन के लिए बहुत कम संभावना बचती है. उनकी आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’  किताब में बार-बार सफाई दी है कि वे ब्राह्मण के खिलाफ नहीं हैं और ना ही उन्होंने ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा दिया था. उन्होंने स्पष्ट लिखा है वे सिर्फ ब्राह्मणवाद और मनुवाद के खिलाफ हैं.

उन्होंने नागेंद्र तिवारी जैसे अधिकारी को याद किया जिनकी वजह से वे पटना विश्वविद्यालय का चुनाव जीत पाये वरना दबंगों ने तो बैलेट बॉक्स तक नालियों और कचरे के डब्बे में डाल दिया था. उन्होंने आगे लिखा है कि भीख मांगते गरीब ब्राह्मण को देख कर भी मुझे बुरा लगता है.

एबीवीपी और आरएसएस को लालू यादव ने कभी पसंद नहीं किया. आरएसएस के लोग जेपी आंदोलन में कांग्रेस विरोधी लहर में रोटी तो सेंकना चाहते थे लेकिन आंदोलन के प्रति ईमानदार नहीं थे. जेपी के जेल भरो अभियान में लालू यादव ने उन्हें पूरी-जलेबी के भोज का लालच देकर भी जेल ले जाने की कोशिश की, लेकिन वे लोग रास्ते से ही भाग गए. उन्होंने लिखा कि ये लोग खोखली प्रतिबद्धता वाले लोग हैं.

चारा घोटाले पर भी उन्होंने अपना पक्ष रखा है. पत्रकार ए.जे. फिलिप के पत्र हवाले से उन्होंने यह बात सामने रखी कि जिस घोटाले का भंडाफोड़ करने का श्रेय उन्हें मिलना चाहिए उसके बदले उन्हें जेल में डाल दिया गया. लालू यादव ने पूरी कहानी बता कर यह भी दावा किया है कि उन्होंने वीपी सिंह को मण्डल लागू करने का सुझाव दिया था.

उन्होंने बहुत विस्तार से वीपी सिंह और देवीलाल के बीच प्रतिद्वंदिता का जिक्र किया है. उन्होंने ही इसके काट के रूप में वीपी सिंह को मण्डल लागू करने के सुझाव दिया और उसका गुणा-गणित समझाया, जबकि वे देवीलाल गुट के आदमी माने जाते थे. उन्होंने शरद यादव और रामविलास पासवान द्वारा श्रेय लेने के दावे को झूठी कहानी बताया. लालू यादव ने अपनी महत्वकांक्षाओं को किताब में छुपाया नहीं कि वे किसी भी कीमत पर सत्ता पाना चाहते थे. मंत्री बनने के लिए वे और नीतीश कुमार अपना सबसे अच्छा कुर्ता-पायजामा पहन कर प्रधानमंत्री कार्यालय के आसपास घूमा करते थे.

लालू यादव ने लिखा कि वे सिद्धांतों में कम और काम करने में ज्यादा यकीन करते हैं. उन्होंने अपने मुख्यमंत्री के पहले कार्यकाल में कई बार चौंकाने वाले फैसले लिए. एक बार तो वो हेट पहनकर रात में पुलिस के साथ ईंट के भट्टा पर पहुँच गए. वहाँ से अक्सर गरीब महिलाओं के यौन शोषण की खबरें आती रहती थी.

उन्होंने रात को ही छापा मार कर एक महिला को आजाद कराया और डीएम से कहकर उसको नौकरी भी दिलवाई. सामंतों ने गंगा नदी पर भागलपुर और पीरपैंती के बीच 80 किलोमीटर तक कब्जा करके ‘जल एस्टेट’ बना लिया था और मछुआरों से मछली मारने के एवज में टैक्स वसूलते थे. लालू यादव ने इस दबदबे को खत्म किया.

दरअसल लालू यादव को ऐसा बिहार मिला था जो सामंतों के कब्जे में था. सत्ता-संसाधन के हर क्षेत्र पर सवर्णों का कब्जा था. इस व्यवस्था को एक दिन में नहीं बदला जा सकता था. इसलिए लालू यादव तात्कालिक असर के लिए ‘अजीबोगरीब’ फैसले लेते थे, जिसे विरोधी नाटक का नाम देते थे.

वे रात को दलित बस्तियों में पहुंच जाते और दरवाजा खटखटा कर उनका हालचाल पूछते कि कोई तंग तो नहीं कर रहा. इस वजह से शोषक जातियों में डर फैला और वंचितों में बराबरी का एहसास हुआ. बाद के दिनों में यही बराबरी का एहसास था जिस पर नीतीश कुमार ने ‘विकास’ की फसल बोयी. एक बार तो उनहोंने एक ताड़ी इकट्ठा करने वाले को मंच पर भाषण देने के लिए बुला लिया. मंच पर बैठे सीपीआई के लोग इस ‘तमाशे’ से नाराज हो गए.

लालू यादव ने पुलिस को स्पष्ट निर्देश दिया था कि शिकायत दर्ज कराने आए गरीबों को सबसे पहले सम्मानपूर्ण थाने में बैठने की जगह दी जाय. उन्होंने अमीरों के लिए आरक्षित पटना क्लब को आम आदमी के लिए भी खोल दिया. उन्होंने कहा कि डोम, चमार जैसी जातियां रोड पर शादी करने को मजबूर है उनको भी पटना क्लब में शादी पार्टी करने का मौका मिले.

जब लाल कृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार करना था तब लालू यादव रात भर नहीं सोये. उनकी पहली योजना लीक हो गयी थी और आडवाणी ने अपना रास्ता बदल लिया था. दूसरी योजना के तहत उन्होंने सुबह 4 बजे पत्रकार बनकर गेस्ट हाउस में फोन किया और कर्मचारी के हाथों आडवाणी जी के फोन का रिसीवर नीचे रखवा कर गिरफ्तारी का जाल बुन दिया. आडवाणी जी को भनक भी न लगी.

इस किताब में नीतीश कुमार मुख्य तौर पर लालू यादव के निशाने पर रहे हैं. नीतीश कुमार को लेकर इस किताब में बहुत कुछ है. कई अध्यायों में उनका जिक्र तो है ही साथ ही एक अलग चैप्टर भी है ‘छोटा भाई नीतीश’ नाम से. उस बात का जिक्र भी है जिसमें नितीश दुबारा लालू के साथ गठबंधन में वापस आना चाहते थे. अपने ऊपर जातिवादी होने के आरोप पर वे कहते हैं कि नीतीश और अन्य विरोधी नेता अपनी जाति के सम्मेलन में शामिल होते रहे हैं, लेकिन मैं आज तक किसी यादव सम्मेलन में शामिल नहीं हुआ हूं.

अपने रेल मंत्री के कार्यकाल को लालू यादव ने सबसे सुखद माना है. रेलवे को घाटा से निकालने की पूरी कहानी उन्होंने लिखी है. अंतिम अध्याय उन्होंने तेजस्वी यादव पर केन्द्रित किया है. तेजप्रताप और मीसा भारती का जिक्र यदा कदा ही हुआ है. इस प्रकार उन्होंने सीधे-सीधे तेजस्वी के पक्ष में अपना राजनैतिक वसीयतनामा लिख दिया.

किताब में बार-बार इस बात का जिक्र मिलेगा कि कैसे कुलीन मीडिया ने उनकी छवि को गलत तरीके से पेश किया. इसलिए उन्होंने अपनी जनता से सीधा संवाद करने के लिए पटना में बड़ी-बड़ी रैलियां आयोजित की. उन्होंने अपनी गलतियों को भी ईमानदारी से स्वीकार किया है कि राजनीतिक सफलताओं ने मुझे अहंकारी बना दिया था. मैं लोगों से दूर हो गया था. बाद में उन्होंने इसमें सुधार किया.

लालू प्रसाद यादव की आत्मकथा ‘गोपालगंज से रायसीना’ प्रकाशित होते ही चर्चा में आ गयी. यह किताब उन्होंने पत्रकार नलिन वर्मा के साथ मिल कर लिखी है. 235 पेज की यह किताब रूपा पब्लिकेशन्स से हिन्दी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में प्रकाशित हुई है. इसकी प्रस्तावना सोनिया गांधी ने लिखी है. 36 तस्वीरों के सहारे भी उनके जीवन के विविध रंग इस किताब में देखे जा सकते हैं. प्रस्तावना और उपसंहार के अलावा इसमें तेरह अध्याय हैं.

(लेखक जेएनयू से ‘उपेक्षित जीवन के विविध आयाम’ विषय पर पीएचडी कर रहे हैं.)

share & View comments